मंगलवार, 20 अगस्त 2019

इस दौर के सत्तापक्ष ने राजनीति को इस कदर पतनोन्मुखी बना दिया है !

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू का प्रयास रहता था कि उनके जमाने के कुछ दिग्गज विपक्षी नेता चुनाव जीतकर संसद में जरूर पहुंचें ! फिर चाहे वे ए .के गोपालन हों, राम मनोहर लोहिया हों,अटलबिहारी बाजपेयी हों,श्यामाप्रसाद मुखर्जी हों या बाबा साहिब भीमराव अंबेडकर हों! किंतु इस दौर के सत्तापक्ष ने राजनीति को इस कदर पतनोन्मुखी बना दिया है कि चाहे तालाबों में कमल खिले या न खिले किंतु भारतीय राजनीति में हर जगह केवल कमल ही खिलना चाहिए! 
अब जब कोई मतदाता बटन दबाये तो EVM ऐंसी सैट हो कि केवल कमल ही खिलना चाहिये ! यदि कोई नेता मरे तो उसकी मौत के मातम को इस कदर मनाओ कि वोटों का सैलाव आ जाये! यदि कोई आतंकी हमला हो और फौज उसका जबाब दे, तब भी भाजपा उसे भुनाने में अव्वल रही है! यदि विपक्ष या कोई व्यक्ति नीति गत विरोध करे तो उसे देशद्रोही घोषित कर दो! और यदि फिर भी कोई विरोधी चुनाव जीत जाए, तो गोवा,कर्नाटक शैली में उसे खरीद लो! 2014 के बाद भारत में लोकतंत्र का मतलब है 'एकचालुकानुवर्तित्व' याने एकमेवोद्वतीय नास्ति! विपक्ष भी दिग्भ्रमित है वह सिर्फ उन मुद्दों पर सत्तापक्ष का विरोध कर रहा है,जो राष्ट्रीय सुरक्षा और अस्मिता से जुड़े संवेदनशील विषय हैं! जबकि देश के बहुसंख्यक समाज को विपक्ष का यह रवैया बिल्कुल पसंद नही!

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