लंबी लंबी उड़ानों के हंस,
पथ क्रांति का सजा्ये हुए हैं।
छोड़ यादों का दूर कारवां,
बादलों में समाये हुए हैं ।।
पथ क्रांति का सजा्ये हुए हैं।
छोड़ यादों का दूर कारवां,
बादलों में समाये हुए हैं ।।
साथी मिलते गये नए नए ,
कुछ अपने पराये हुए हैं ।
फलसफा पेश है पुर नज़र ,
लक्ष्य उसपै टिकाये हुए हैं ।।
कुछ अपने पराये हुए हैं ।
फलसफा पेश है पुर नज़र ,
लक्ष्य उसपै टिकाये हुए हैं ।।
उमंग के रंग हों जिस गगन में,
मेघ उसमें ही छाये हुए हैं।
युग युग से जो प्यासे रहे हैं,
क्षीरसिंधु में नहाये हुए हैं।।
मेघ उसमें ही छाये हुए हैं।
युग युग से जो प्यासे रहे हैं,
क्षीरसिंधु में नहाये हुए हैं।।
अपनी चाहत के रंग -बदरंग,
खुद अपने ही सजाये हुए हैं।
औरों की खता कुछ नहीं है,
गुल अपने ही खिलाये हुए हैं।।
खुद अपने ही सजाये हुए हैं।
औरों की खता कुछ नहीं है,
गुल अपने ही खिलाये हुए हैं।।
चंद दिन की है ये जिंदगानी,
मुखड़ा नाहक फुलाये हुए हैं।
जख्म जितने भी हैं जिंदगी के,
सब अपने ही कमाए हुए हैं।।
मुखड़ा नाहक फुलाये हुए हैं।
जख्म जितने भी हैं जिंदगी के,
सब अपने ही कमाए हुए हैं।।
कबसे भूले हैं अपने ठिकाने,
आस फिर भी जगाये हुए हैं।
वक्त ने ही है सब को मिटाया,
वक्त के ही सब बनाये हुए हैं।।
आस फिर भी जगाये हुए हैं।
वक्त ने ही है सब को मिटाया,
वक्त के ही सब बनाये हुए हैं।।
श्रीराम तिवारी
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