नव्य उदारवाद कहता है 'वही जियेगा जो शक्तिशाली है , वही जीतेगा जो ताकतवर है ' 'कर लो दुनिया मुठ्ठी में' ''छू लो आसमान को" इत्यादि अनुत्पादक और सफेदपोश - प्रबंधकीय नारों के कोलाहल में कमजोर वर्गों के आधुनिक युवाओं की वास्तविक संघर्ष क्षमता को सस्ते में खरीदा जा रहा है। उनके निजी और पारिवारिक भविष्य को अनिश्चितता की अँधेरी सुरंग में धकेला जा रहा है।
सभ्रांत लोक के भारतीय युवाओं की ऊर्जा अर्थात वास्तविक प्रतिभा अमेरिका ,इंग्लैंड और विदेशों में खपने को उद्द्यत रहा करती है।जबकि दूसरी ओर नकारात्मकता के संघर्ष में राजनैतिक भृष्टाचार उत्प्रेरक का काम कर रहा है। उदाहरण के लिए इधर मध्यप्रदेश में ही विगत १० सालों में हजारों योग्य,परिश्रमी और संघर्षशील युवाओं को उनके हिस्से का हक नहीं मिल पाया है , जिन्हें कोई आरक्षण नहीं ,जिनका कोई 'पौआ' नहीं उन बेहतरीन योग्य और मेघावी युवाओं की संघर्ष क्षमता को निजी क्षेत्र में १२-१२ घंटे खपकर सस्ते में समेटा जा रहा है। अयोग्य,मुन्ना भाई ,रिश्वत देने की क्षमता वाले - अयोग्य और बदमाश किस्म के लोग आरक्षण की वैशाखी या सत्ता का प्रसाद पाकर अपना उल्लू सीधा करने में सफल हो जाया करते हैं। भृष्टाचार के 'गर्दभ' पर सवार निक्म्मे लोग जब डॉक्टर ,इंजीनियर,पुलिस, प्रोफ़ेसर,प्रशासक,प्रोफेसनल्स ,खिलाडी या नेता होंगे तो देश और समाज की बदहाली पर आंसू बहाने का नाटक क्यों ?
व्यवस्था के उतार या 'मूल्यों की गिरावट' पर इतना कुकरहाव क्यों? भृष्ट अफसर मंत्री और नेताओं के निठल्ले-अकर्मण्य रिस्तेदार ही जब पूरे सिस्टम पर काबिज हो चुके हों तो ईमानदार,योग्य और चरित्रवान युवाओं के समक्ष संगठित 'संघर्ष' के अलावा कोई रास्ता नहीं। मध्यप्रदेश में विगत शिवराज सरकार के दौर में 'व्यापम' और खनन भृष्टाचार की अनुगूंज या मोदी सरकार प्रथम के जमाने में RBI, सुप्रीम कोर्ट जज की न्युक्ति इत्यादि के मुद्दे तो देश की भृष्टतम व्यवस्था की हाँडी के एक-दो चावल मात्र हैं।
कैरियर निर्माण के व्यक्तिगत संघर्ष में - सामाजिकऔर राष्ट्रीय सरोकार पूर्णतः तिरोहित होते ही जा रहे हैं ,साथ ही मौजूदा नई दुनिया का उत्तर आधुनिक ग्लोबल युवा -अपने पूर्वजों से भी ज्यादा असंरक्षित धर्मभीरु,लम्पट और दिशाहीन होता जा रहा है। धूर्त शासक वर्ग द्वारा उसे प्रतिस्पर्धा की अँधेरी सुरंग में धकेला जा रहा है। उसे भौतिक और निजी सम्पन्नता कीमरुभूमि में नख्लिस्तान बनाकर दिखाने और कार्पोरेट जगत के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने का पाठ पढ़ाया जा रहा है। उसके हाथ पैर बांधकर गहरे कुँए में फेंककर तैरने और सबसे पहले आत्मउत्सर्ग के लिए हकाला जा रहा है। शातिर स्वार्थी प्रभूवर्ग का कहना है ' की बहाव के विपरीत तैरकर जो पहले बाहर आएगा उसे 'सफलता ' की सुंदरी वरमाला पहनायेगी।
व्यक्तिगत आकाँक्षा,महत्वाकांक्षा की मृग मरीचिका के मकड़ जाल में फंसे हुए युवाओं को यह समझने का अवसर ही नहीं दिया जा रहा कि नैसर्गिक -प्राकृतिक संसाधन , जीवकोपार्जन के संसाधन ,शैक्षणिक-प्रशिक्षिणक सुविधाएँ,प्रोन्नति के अवसर , जीवन यापन की मानवीय शैली और अभिरुचियाँ उनसे कोसों दूर होतीं चलीं जा रहीं हैं। उसे नहीं मालूम की उनके लिए नैगमिक और राज्य सत्तात्मक संरक्षण का अनुपात किस हालात में है। उत्तर भारत में और खास तौर से हरियाणा -पंजाब में स्त्री -पुरुष के लेंगिक अनुपात के क्षरण की ही तरह आधुनिक युवा पीढ़ी के लिए भी राज्य सत्ता के संरक्षण का अनुपात अर्थात संवैधानिक अधिकारों -अवसरों का अनुपात दयनीय है।
जिस तरह इंदौर सराफा बाजार की गन्दी नालियों से कुछ निर्धन और वेरोजगार युवा-नर -नारी बाल्टियों में कीचड भरभर कर अपने झोपड़ों में ले जाते हैं, ताकि उसमें तथाकथित 'संघर्ष' करते हुए गोल्ड' का कोई टुकड़ा या कण उन्हें मिल जाए। इसी तरह की हालात जिजीविषा के लिए संघर्षरत आधुनिक सम्मान आक्षांक्षी युवा पीढ़ी की है, जो अपराध जगत को पसंद नहीं करते जिन्हे शार्ट कट पसंद नहीं वे ही निरीह और मेघावी युवा प्रतिस्पर्धा की भट्टी में झोंके जा रहे हैं। ये युवा न केवल भारत में बल्कि दुनिया के उन तमाम राष्ट्रों में भी संघर्ष कर रहे हैं,जहाँ उनके किशोर हाथों में बन्दुक पकड़ाई जा रही है। उनके खून के प्यासे सिर्फ मजहबी उन्मादी ही नहीं हैं,बल्कि वे भी हैं जो नव बाजारीकरण -वैष्वीकरण तथा निगमीकरण के तलबगार हैं.उन्हें यह जानने की फुर्सत ही नहीं कि इस तरह के संघर्ष से इंसान नहीं हैवान पैदा हुआ करते हैं।
श्रीराम तिवारी
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