क्षण-क्षण आत्म गौरव के ,
दिव्यता से राष्ट्र को मिले !
दिव्यता से राष्ट्र को मिले !
हरी-भरी धरा खिल उठी,
और जन गण मन हो गया।।
और जन गण मन हो गया।।
आज मुक्ति संग्राम का लहू ,
जैसे फिर से जवां हो गया!
जैसे फिर से जवां हो गया!
संघर्ष द्वन्द ग्रन्थ के सभी,
कई बार इस मुल्क ने पढ़े!!
कई बार इस मुल्क ने पढ़े!!
भाग्य का विधान बन गया,
और भारत धन्य हो गया!
और भारत धन्य हो गया!
पड़ोसी शत्रू की कुचालों से,
मुल्क बार बार घायल हुआ ! !
मुल्क बार बार घायल हुआ ! !
धर्म जाति मजहब का,
मर्ज लाइलाज हो गया!
मर्ज लाइलाज हो गया!
पूंजीवादी प्रचार तंत्र भी,
मुल्कका अभिशाप बन गया !!
मुल्कका अभिशाप बन गया !!
जाति पाँति मजहब के
चुनाव में चलन बढ़ गये!
चुनाव में चलन बढ़ गये!
शनै: शनै: लोकतंत्र के,
स्तंभ चारों रुग्ण हो गये !!
स्तंभ चारों रुग्ण हो गये !!
बाजारवादी नीतियों से,
राष्ट्र हित नीलाम हो गया!
राष्ट्र हित नीलाम हो गया!
जैसे शहीदों के सपनों का
कत्ल खुले आम हो गया!!
कत्ल खुले आम हो गया!!
सिद्धांतों के व्योम में हम ,
सदा प्रश्न बनकर घूमते रहे!
सदा प्रश्न बनकर घूमते रहे!
सभी क्रान्तियां अधूरी रहीं ,
संघर्ष सारा कुंद हो गया!!
संघर्ष सारा कुंद हो गया!!
बढ़ती आबादी- मंहगाई से,
यह मुल्क परेशान हो गया!
यह मुल्क परेशान हो गया!
सिस्टम भृष्टाचार रिश्वत का,
व्यभिचार आम हो गया!
व्यभिचार आम हो गया!
आज शहीदों के सपनों का ,
वेदना से मिलन हो गया!!
वेदना से मिलन हो गया!!
श्रीराम तिवारी-:
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