आन बान सम्मान देश का,
प्रतिपल होता क्षरण देश का।
सत्ता में जो डटे हुए हैं,
उन्हें नहीं भय नाम लेश का।।
कारपोरेटकल्चर का चक्कर,
सुपरमुनाफों के निवेश का।
सार्वजनिक उपक्रम खा डाले,
अठ्ठहास है निजी क्षेत्र का।।
बहुराष्ट्रीय निगमों ने फिर से,
भारत जन को ललकारा है।
अमन चैंन साझा हो सबका,
यह पावन ध्येय हमारा है।।
नंगे भूँखों की कैसी आजादी?
वे बोल रहे 'सारा जहाँ हमारा' है।
प्रतिपल होता क्षरण देश का।
सत्ता में जो डटे हुए हैं,
उन्हें नहीं भय नाम लेश का।।
कारपोरेटकल्चर का चक्कर,
सुपरमुनाफों के निवेश का।
सार्वजनिक उपक्रम खा डाले,
अठ्ठहास है निजी क्षेत्र का।।
बहुराष्ट्रीय निगमों ने फिर से,
भारत जन को ललकारा है।
अमन चैंन साझा हो सबका,
यह पावन ध्येय हमारा है।।
नंगे भूँखों की कैसी आजादी?
वे बोल रहे 'सारा जहाँ हमारा' है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें