पूरा का पूरा सोशल मीडिया छोटे-छोटे गुटों में विचारधारा के आधार पर तब्दील हो गया है!
हर एक्टिविस्ट अपने मित्र सूची में सिर्फ उसी को जगह देता है जो उसकी विचारधारा का समर्थक है ! ऐसे मे एक दूसरे की तारीफ होती रहती है!
आलोचना या समालोचना की कोई गुंजाइश नहीं होती, इसलिए इस प्लेटफार्म के उपयोग के लिए जरूरी है कि अपने मित्रों की सूची में अपने विपरीत विचारधारा के लोगों को स्थान दिया जाए!
और उनके कमैंट्स के बाद उसको काउंटर करने के लिए तार्किक बहस की जाए!
तभी दिमाग में लगी जंग समाप्त होगी पर लोग अपने -अपने प्रशंसा में लगे हुए हैं !
जिससे सोशल मीडिया के प्लेटफार्म का सही उपयोग नहीं हो पा रहा है!
लोकतंत्र की मजबूती वैचारिक विमर्श से ही सार्थक होती है
हर एक्टिविस्ट अपने मित्र सूची में सिर्फ उसी को जगह देता है जो उसकी विचारधारा का समर्थक है ! ऐसे मे एक दूसरे की तारीफ होती रहती है!
आलोचना या समालोचना की कोई गुंजाइश नहीं होती, इसलिए इस प्लेटफार्म के उपयोग के लिए जरूरी है कि अपने मित्रों की सूची में अपने विपरीत विचारधारा के लोगों को स्थान दिया जाए!
और उनके कमैंट्स के बाद उसको काउंटर करने के लिए तार्किक बहस की जाए!
तभी दिमाग में लगी जंग समाप्त होगी पर लोग अपने -अपने प्रशंसा में लगे हुए हैं !
जिससे सोशल मीडिया के प्लेटफार्म का सही उपयोग नहीं हो पा रहा है!
लोकतंत्र की मजबूती वैचारिक विमर्श से ही सार्थक होती है
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