मंगलवार, 8 जनवरी 2019

मझधार में डूब रही तुम्हारी कस्ती

मानाकि जर्जर है ये मुल्क,
और सदियों की खुमारी छाई है!
किंतु ये कैसा इलाज कर रहे हो,
कि मुल्क की जान पै बन आई है ?
मझधार में डूब रही तुम्हारी कस्ती,
फिर भी तुम्हें सूझ रही ठिलवाई है!
जुमलों वादों को बताते हो अपनी,
उपलब्धि-विकास! दुहाई है दुहाई है!!

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