इंकलाब ज़िंदाबाद !
progressive Articles ,Poems & Socio-political -economical Critque !
शनिवार, 12 जनवरी 2019
सबकी जरूरत हम थे
फूल थे, रंग थे ,लम्हों की सबाहत हम थे ,
ऐंसे जिन्दा थे कि जीने की अलामत हम थे ,
अब तो खुद अपनी जरूरत भी नहीं है हमको ,
वो दिन भी थे कि कभी सबकी जरूरत हम थे।
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