बुधवार, 2 जनवरी 2019

हिन्दू को राम-राम, मुस्लिम के सलाम।।

चिंतन की चटनी, मनन का मुरब्बा।
दर्शन की दाल, विचारों का हौब्बा ।।
प्रसिध्दि के मोदक, हैं जिनके पास।
प्रशंसक-प्रकाशक, पालतू हैं खास।।
कविता में कल्पना की,आनंदानुभूति।।
शोषण श्रृगांर से है,उनको सहानुभूति।।
अभिजात्य कवि, हैं स्वयंभू ख्यातनाम।
हिन्दू को राम-राम, मुस्लिम के सलाम।।

सत्ता से जिनको, दलाली मिली धांसू।
अव्यवस्था पर बहाते, घड़ियाली आंसू।।
पीर पैगम्बरों के, नित मंत्र नव रचते।
अपने आगे किसी को, कुछ न समझते।।
मानसिक अय्याशी का इंतजाम करते हैं ।
जीवन के यथार्थ को सिरोपाव ढंकते हैं ।।
कला-कला के लिए, है तकिया-कलाम !
हिन्दू को राम-राम, मुस्लिम के सलाम !!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें