इंकलाब ज़िंदाबाद !
progressive Articles ,Poems & Socio-political -economical Critque !
मंगलवार, 15 जनवरी 2019
शिशिर पवन जिया देह लहरावे है।
कटी फटी गुदड़ी घास फूस छप्पर ,
शिशिर पवन जिया देह लहरावे है।
सतयुग , त्रेता, द्वापर , कलियुग ,
हरयुग केवल निर्धन को सतावे है।
ऊनी वस्त्र वातानकूलित कोठियाँ और,
लक्जरी लाइफ सिर्फ बुर्जुआ ही पावे है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें