शुक्रवार, 25 जनवरी 2019

"मेरा -भारत-महान "

मीडिया की ख़बरों के केंद्र में,
आजकल केवल हाहाकार है ।
दुनियामें "मेरा -भारत-महान "
हो रहा बेहद शर्मशार है ।।
जनताको नेता-नेताको जनता
ठहराती सदा कसूरवार है ।
धनाड्य वर्ग की भोग लिप्सा,
देख देख आवाम बेक़रार है!!
नारी देह प्रदर्शन बिना आज
विज्ञापन कोई टिकता नहीं!
प्रतिस्पर्धा के बाज़ार में इसके,
बिना माल कोई बिकता नहीं।।
झंडा सूचनातंत्र क्रांति का बुलंद,
फिरभी वैचारिक भ्रान्ति- बरकरार है।
मूल्यों का पतन-धरती की दुर्दशा ,
सर्वनाश के लिये कौन जिम्मेदार है!!

बुधवार, 23 जनवरी 2019

गीत हम रचते रहें

एकता के प्यार के सुर छंद में सजते रहें !
नित्य नव निर्माण के ,गीत हम रचते रहें !!
धर्मान्धता अज्ञानता,असमानता उच्छेद कर,
जो अकिंचन हैं खबर उनकी सदा लेते रहें !!

अज्ञानता और अँधेरे के खिलाफ.

जंग जरुरी हो जब काली ताकतों के खिलाफ,
संघर्ष के लिए कुछ 'शहीद' सदा तैयार रहते हैं !
खुदा ईश्वर गॉड मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारों में,
कुछ लोग अपनी दुकान चलाने को तैयार रहते हैं!
धर्म-मजहब कभी कमजोरों का साथ नहीं देते ,
ताकतवर लोग इश्तेमाल करने को तैयार रहते हैं।
अज्ञानता और अँधेरे के खिलाफ लड़ने के लिए,
दीपक जुगनू चाँद सितारे सूरज तैयार रहते हैं !

गुरुवार, 17 जनवरी 2019

बगुला भगतों का क्या कहना ?

भारत जन की नीति बन गई ,शोषण को सहते रहना ।
नये दौर के महाठगों का चाल चरित्र का क्या  कहना? 
सार्वजनिक सम्पत्ति खा गये , निजी क्षेत्र के छुट्टा सांड । 
जुमलेबाजी बेरोजगारी और महंगाई का क्या कहना ?
नोटबंदी और जीएसटी से ,बंद हो रहे लाखों उद्योग! 
भांड विदूषक नेताओं, बगुला भगतों का क्या  कहना ?

अच्छे दिन यों आ नही सकते !

कालाधन सफ़ेद हो गया बहुत सारा,
नोटबंदी जीएसटी कागजी फूलों से।
जीडीपी घट गई डालर हुआ महँगा,
गलत आर्थिक नीति भयंकर भूलों से!!
अच्छे दिन यों आ नही सकते केवल,
मुफ्त कनेक्शन उज्जवला गैस चूल्हों से!
नही होगा किसी भी आरक्षण से विकास,
क्रांति संभव है केवल जनवादी उसूलों से!!

दुनिया की तमाम बेटियों को समर्पित.....


बेटा बारिस है तो बेटी पारस है,
बेटा आनंद है तो बेटी ख़ुशी है,
बेटा ठहाका है तो बेटी हँसी है,
बेटा वंश है तो बेटी भी अंश है,
बेटा शान है तो बेटी आन है,
बेटा तन है तो बेटी मन है,
बेटा सुर है तो बेटी रागनी है,
बेटा संस्कार है तो बेटी संस्कृति है,
बेटा दवा है तो बेटी दुआ है,
बेटा पुरषार्थ है तो बेटी करुणा है,
बेटा शब्द है तो बेटी अर्थ है,
बेटा छंद है तो बेटी कविता है,
बेटा दीप-राग है तो बेटी मेघ मल्हार है,
बेटा भारत है तो बेटी भारतीयता है,
बेटा आत्मा है तो बेटी आत्मीयता है,
बेटा जायजसंघर्ष है तो बेटी क्रांति है,
बेटा पूर्णचंद्र है तो बेटी कांति है,

तो फिर नारी-उत्पीडन कन्या-भ्रूण हत्या क्यों?
असमानता -दुष्कर्म असामाजिकता क्यों!
(संकलित)

मंगलवार, 15 जनवरी 2019

फूल थे, रंग थे ,लम्हों की सबाहत हम थे ,
ऐंसे जिन्दा थे कि जीने की अलामत हम थे ,
अब तो खुद अपनी जरूरत भी नहीं है हमको ,
वो दिन भी थे कि कभी सबकी जरूरत हम थे।

शिशिर पवन जिया देह लहरावे है।

कटी फटी गुदड़ी घास फूस छप्पर ,
शिशिर पवन जिया देह लहरावे है।
सतयुग , त्रेता, द्वापर , कलियुग ,
हरयुग केवल निर्धन को सतावे है।
ऊनी वस्त्र वातानकूलित कोठियाँ और,
लक्जरी लाइफ सिर्फ बुर्जुआ ही पावे है।

चाल चरित्र का क्या कहना

निर्धन जन की आदत बन गई ,
शोषण उत्पीड़न सहते रहना !
ई वी एम निर्वाचित शासक,
चाल चरित्र का क्या कहना!!
सार्वजनिक उपक्रम बर्बाद कर,
खुद निजीक्षेत्र आबाद करना!
जुमलेबाजी बेरोजगारी और
महंगाई का क्या कहना !!
नोटबंदी हो या जीएसटी,
नये आरक्षण का क्या कहना!
जब भांड विदूषक नेता बन गये,
तो बगुला भगतों का क्या कहना ?

शनिवार, 12 जनवरी 2019

मुल्क की जान पै बन आई है

मानाकि जर्जर है ये मुल्क,
और सदियों की खुमारी छाई है!
किंतु ये कैसा इलाज कर रहे हो,
कि मुल्क की जान पै बन आई है ?
मझधार में डूब रही तुम्हारी कस्ती,
फिर भी तुम्हें सूझ रही ठिलवाई है!
जुमलों वादों को बताते हो अपनी,
उपलब्धि-विकास! दुहाई है दुहाई है!!

जन्मदिन पर बधाई और हार्दिक शुभकामना

स्वत्यस्तु ते कुशल्मस्तु चिरायुरस्तु॥ विद्या विवेक कृति कौशल सिद्धिरस्तु ॥ ऐश्वर्यमस्तु बलमस्तु राष्ट्रभक्ति सदास्तु॥ वन्शः सदैव भवता हि सुदीप्तोस्तु ॥ 

आप सदैव आनंद से, कुशल से रहे , दीर्घ आयु , विद्या, विवेक तथा कार्यकुशलता में सिद्धि ,ऐश्वर्य व बल को प्राप्त करें तथा राष्ट्र भक्ति भी सदा बनी रहे.


जन्मदिन पर बधाई और हार्दिक शुभकामना।💐🙏
1

चीरहरण कर्ता मैं हूँ!

हे पार्थ-
विनाशकारी नोटबंदीें और
एट्रोसिटी एक्ट का कर्ता मैं हूँ!
रिजर्व बैंक,सीबीआई चुनावआयोग,
का चीरहरण कर्ता मैं हूँ!
मैं तमाम टैक्सों में 'GST' हूँ !
आधुनिक मशीनो में 'EVM' मैं हूँ !
कथाबाचकों में 'आसाराम' मैं हूँ !
संतो मे रामपाल-'रामरहीम'मैं हूँ !
योगियों में योगी'आदित्यनाथ' और
भगोड़ों में नीरव 'विजय माल्या' मैं हूँ !
अमीरों मे 'मुकेश अम्बानी' हूँ !
और अनिल अंबानी अडानी मैं ही हूँ!
शब्दों मे 'मित्रो' मैं हूँ और
चोरों में 'चौकीदार' मैं हूँ!
मुद्दों मैं 'राम मंदिर' मुद्दा हूँ मैं !
'विकास' मैं हूँ और "विनाश" भी मैं ही हूँ !
धाराओं में धारा 370 में हूँ और,
चुनावी भाषणों का नित्य ही बजता ढपोरशंख मैं हूँ!
जो मूर्खों और अंधभक्तों के मन को भाये,
 वो अंधराष्ट्रवादी  सत्ता का लब्बो लुआब मैं हूँ !

जो बात सभीके हित की हो,

वही देश का मालिक होगा,
जिस हाथ कुदाली छेनी हो !
जो बात सभीके हित की हो,
वो बात जुबांसे कहनी हो !!
सच्ची सामाजिक समरसता हो,
और न ऊंच नीच की श्रेणी हो !
अभिव्यक्ति की आजादी हो,
सर्वहित नीति नसैनी हो!!
जय धर्मनिरपेक्षता लोकतंत्र,
और समाजवाद त्रिवेणी हो !
न कोई नंगा भूंखा शोषित हो,
न जाति पांत की बैनी हो !!
मूल्य आधारित शासन हो,
इज्जत किसान मजूर को देनी हो !
समझ जिन्हें हो भले बुरे की,
मुल्क सत्ता उनको ही देनी हो !!
श्रीराम तिवारी

सबकी जरूरत हम थे

फूल थे, रंग थे ,लम्हों की सबाहत हम थे ,
ऐंसे जिन्दा थे कि जीने की अलामत हम थे ,
अब तो खुद अपनी जरूरत भी नहीं है हमको ,
वो दिन भी थे कि कभी सबकी जरूरत हम थे।

मंगलवार, 8 जनवरी 2019

साइंस फिक्‍शन के बादशाह # Isaac_Asimov 5th januaray birth day


विज्ञान के साथ ही विज्ञान कथा का इतिहास प्रारम्भ होता दिखाई देता है.जब पश्चिम में प्रयोग आधारित विज्ञान का बोलबाला प्रारम्भ हुआ तो विज्ञान कथा भी उभरने लगी. ज्यों ज्यों जनता का जुड़ाव विज्ञान के साथ बढ़ता गया विज्ञान कथा के प्रशंसक भी बढ़ते गए.विज्ञानकथा साइंस फिक्‍शन का हिन्दी अनुवाद है.
" साइन्स फिक्‍शन साहित्य की वह विधा है जो विज्ञान और प्रौद्योगिकी में सम्भावित परिवर्तनों के प्रति मानवीय प्रति- क्रियाओं को अभिव्यक्ति देती है.इसे किसी एक शैली विशेष को प्रमाणिक नहीं माना जा सकता है.अतः इसका फलक बहुत विशाल है.मगरविज्ञानकथा वैज्ञानिक दृष्टि कोण को पुष्ट करने वाली होनी चाहिए."
आईज़ैक असिमोव ने उर्पयुक्त बातें साइंस फिक्सन केबारे कहीं थी.आईज़ैक असिमोव को व्यापक रूप से साइंस-फिक्शन शैली का मास्टर माना जाता है .साइंस फिक्शन के "बिग-थ्री (तीन सबसे बड़े)" लेखक क्रमश:रॉबर्ट ए. हेईनलीन,आर्थर सी. क्लार्क और आईज़ैक असिमोव थे.
असिमोव अपनी प्रसिद्ध रचना "फ़ाउन्डेशन शृंखला" जिसकी श्रृंखला में गैलेक्टिक एम्पायर सीरीजतथा रोबोट सीरीज प्रकाशित हुई को मिलाकर अपनी कहानियों के लिए एक यूनिफाइड "फ्यूचर हिस्ट्री" का निर्माण किया.
"नाईटफॉल" उनके द्वारा लिखी गयी अनेकों लघु कथाओं में से एक थी.1964मेंअमेरिकाके साइंसफिक्शन लेखकों
ने सर्वश्रेष्ठ लघु साइंस फिक्शन कहानी के रूप में चुना.
उन्होंने 'लकी स्टार सीरीज' नामक बच्चोंसेसंबंधित साइंस फिक्शन उपन्यासों को लिखा भी है.असिमोव नेपॉल फ्रेंच उपनाम (पेन नेम) के तहत बाल कथाएँ लिखीं.उन्होंने अपनी पहली साइंस फिक्शनकहानी"कॉस्मिक कॉर्कस्क्रू" को 1937 में लिखना शुरू किया.
असिमोव, लेखन के क्षेत्र में अब तक सर्वाधिक कार्य करने वाले लेखकों में से एक हैं जिन्होंने 500 से अधिक पुस्तकों तथा अनुमानतः 9000 पत्रों और पोस्टकार्डों को लिखा अथवा सम्पादित किया है.
असीमोव ने मिस्ट्रीतथाफेंटेसी(रहस्यमयीतथा काल्पनिक) के अतिरिक्त गैर-फिक्शन विषयों पर भीकाफीकुछ लिखा है.उनकी अधिकतरसाइंसपुस्तकेंविज्ञानसेसंबंधित विषयों को ऐतिहासिक तरीके से समझाने के लिए आपको समय में पीछे की ओर ले जाती हैं जब विज्ञान अपने सरलतम स्तर पर था.वे वैज्ञानिकों की राष्ट्रीयता, जन्म तिथि, तथा मृत्यु तिथि के साथ साथ तकनीकी शब्दों की उत्पत्ति का इतिहास और उनका उच्चारण भी प्रदान करते हैं. उदा- हरणों में शामिल हैं उनकी गाइड टू साइंस, 'अंडरस्टेंडिंग फिजिक्स ' कातीन वॉल्यूमकासेट,असिमोव्स क्रोनोलोजी ऑफ साइंस एंड डिस्कवरी, के साथ साथ एस्ट्रोनोमी (खगोल-विज्ञान), गणित, बाइबल, विलियम शेक्सपियर के कार्य, तथा केमिस्ट्री विषयों पर किये गए उनके अनेकों कार्य.मंगलग्रह के एक क्रेटर 'एस्टेरोइड 5020 ''असिमोव''', 'साइंस फिक्शन' नामक पत्रिका, ब्रुकलिन, न्यू यॉर्क स्थित एक प्राथमिक विद्यालय, तथा एक आईज़ैक असिमोव साहित्यिक पुरस्कार का नामकरण उनके सम्मान में किया गया है.
उन्होंने "थ्री लॉज़ ऑफ रोबोटिक्स" दिया.असिमोव ने जब 'रोबोटिक्स' शब्द का इस्तेमाल सर्वप्रथम किया . विज्ञान के क्षेत्र के अलावा असिमोव इतिहास में भी काफी रूचि रखते थे.1960 के दशक से शुरू करके उन्होंने इतिहास की 14 लोकप्रिय पुस्तकें लिखीं जिनमे सबसे उल्लेखनीय हैं, दी ग्रीक्स: ए ग्रेट एडवेंचर (1965), दी रोमन रिपब्लिक (1966), दी रोमन एम्पायर (1967), दी इजिप्शियन्स (1967) तथा दी नियर ईस्ट: 10,000 ईयर्स ऑफ हिस्ट्री (1968).
आईजक असिमोव रूस में जन्‍मे एक अमेरिकी लेखकथे.
इसाक का जन्‍म 2 जनवरी 1920कोसोवियत सोशलिस्‍ट रिपब्लिक के पेट्रोविचीनामकीजगहमेंहुआ था.जब इसाक तीन साल के थे उसी समय उनकेमाता-पितापरिवार समेत अमेरिका में आकर बस गए थे.उन्‍हें पढ़ने का शौक था इसलिए पांच साल की उम्र तक उन्‍होंने पढ़ना सीख लिया था.बचपन में वह साइंस फिक्‍शन याविज्ञान गल्‍प कथाओं को पढ़ा करते थे. 11 साल की छोटी उम्र से ही उन्‍होंने कहानियां लिखना शुरू कर दिया था. उन्‍होंने 1939 में कोलंबिया यूनिवर्सिटी से बीएससी की.इसके बाद 1948 में केमिस्‍ट्री में पीएचडी पूरी की. इस दौरान उन्‍हें दूसरे विश्‍व युद्ध के समय नेवी में काम करना पड़ा.बाद में असिमोव बॉस्‍टन यूनिवर्सिटी की स्‍कूल ऑफ मेडिसिन फैकल्‍टी में पढ़ाने लगे.1992 में उनकी मौत 6 अप्रैल को न्‍यू यॉर्क सिटी में हुई। मौत की वजह दिल और गुर्दे का फेल होना बताया गया.
आईज़ैक असिमोव एक मानवतावादी तथा बुद्धिजीवी व्यक्ति थे.उन्होंने दूसरों की धार्मिक आस्थाओं का विरोध नहीं किया, लेकिन वास्तविक विज्ञान की आड़ में व्याप्त अंधविश्वासों तथा गैर-वैज्ञानिक आस्थाओं के खिलाफ वे हमेशा आवाज उठाते रहे.अपनी आत्मकथा के अंतिम वॉल्यूम में असिमोव लिखते हैं-"यदि मैं एक नास्तिक नहीं होता तो एक ऐसे भगवान में विश्वास करता जो लोगों की रक्षा, उनके शब्दों की बजाय उनके जीवन की समग्रता के आधार पर करता. मुझे लगता है कि वे उन पाखंडी टीवी उपदेशकों की बजाय एक नेक और ईमानदार नास्तिक को अधिक पसंद करते, जिनके मुंह से तो केवल भगवान, भगवान निकलता है लेकिन उसके सारे कर्म बेईमानी से भरे होते हैं."असिमोव के ढेर सारे लेखन की समीक्षा करने वाले जॉन जेनकींस का कहना है:
It has been pointed out that most science fiction writers since the 1950s have been affected by Asimov, either modeling their style on his or deliberately avoiding anything like his style.

अभी अचूक निशाने बहुत से हैं।

अपने बल पौरुष को जांचने के,
आधुनिक संसाधन बहुत से हैं।
तूफ़ान में दिए जलाये रखने के
अधुनातन ठिये बहुत से हैं।।
भृष्टाचार को उखाड़ फेंकने के,
अभी अचूक निशाने बहुत से हैं।
सदियाँ गुजरीं जिनको संवारने में,
मूल्योंको बचाने के साधन बहुतसेहैं।
अनीति करने वाले बहुत कम हैं जहांमें,
उनसे निपटने के संसाधन बहुत से हैं!
भय भूँख के प्राक्रतिक कारण अल्प हैं,
उनसे निपटने के अनुसंधान बहुत से हैं।
मेंहगी है रूप नाक नक़्शे की शल्यक्रिया,
विकृत मानसिकता के निदान बहुत से हैं।

मझधार में डूब रही तुम्हारी कस्ती

मानाकि जर्जर है ये मुल्क,
और सदियों की खुमारी छाई है!
किंतु ये कैसा इलाज कर रहे हो,
कि मुल्क की जान पै बन आई है ?
मझधार में डूब रही तुम्हारी कस्ती,
फिर भी तुम्हें सूझ रही ठिलवाई है!
जुमलों वादों को बताते हो अपनी,
उपलब्धि-विकास! दुहाई है दुहाई है!!

शुक्रवार, 4 जनवरी 2019

नैतिक मूल्यों का पतन!

मीडिया की ख़बरों के केंद्र में,
एक बड़े नेता का साक्षात्कार है !
दुनिया में"मेरा -भारत-महान"
राफैल में हो रहा शर्मशार है ।।
'सत्ता' विपक्षको विपक्ष 'सत्ता' को
संसद में ठहराता कसूरवार है ।
चंद लोगों की भोग लिप्सा देखकर,
मेहनतकश आवाम बेक़रार है!!
नारी अंग प्रदर्शन बिना इस दौर में,
कोई विज्ञापन लगता नहीं दमदार है!
प्रतिस्पर्धी जमाने में उत्पादनों का,
बाज़ार में मिलता नही खरीददार है!!
सूचनातंत्र की एेतिहासिक क्रांति,
फिरभी वैचारिक भ्रान्ति- बरकरार है।
नैतिक मूल्यों का पतनभी कुछ हदतक,
इन सबके लिए किंचित जिम्मेदार है।।
श्रीराम तिवारी

मौसमे बहार आती तो है

हरएक स्याह रात के बाद,
एक नयी सुबह आती तो है ।
तलाश है ज़िसकी तुम्हें हर वक्त,
वो मौसमे बहार आती तो है ।।
कामनाओं से परे उठ यत्किंचित,
जिंदगी बेपनाह जगमगाती तो है।
समष्टि चेतना को दे दो कोई नाम,
बिल्कुल रूहानी इबादत जैसा!
हो तान सुरीली स्वागत समष्टि का,
व्यवहार जिंदगी का सूरज जैसा!!
तब मानवीय संवेदनाओं की बगिया,
महकती है और कोयल गाती तो है ।
यदि व्योम में बजें वाद्यवृन्द पावस के,
तो भोर हर मौसम खिलखिलातीतो है !
हर एक स्याह रात के बाद,
एक नयी सुबह आती तो है !
Shriram Tiwari

बुधवार, 2 जनवरी 2019

हिन्दू को राम-राम, मुस्लिम के सलाम।।

चिंतन की चटनी, मनन का मुरब्बा।
दर्शन की दाल, विचारों का हौब्बा ।।
प्रसिध्दि के मोदक, हैं जिनके पास।
प्रशंसक-प्रकाशक, पालतू हैं खास।।
कविता में कल्पना की,आनंदानुभूति।।
शोषण श्रृगांर से है,उनको सहानुभूति।।
अभिजात्य कवि, हैं स्वयंभू ख्यातनाम।
हिन्दू को राम-राम, मुस्लिम के सलाम।।

सत्ता से जिनको, दलाली मिली धांसू।
अव्यवस्था पर बहाते, घड़ियाली आंसू।।
पीर पैगम्बरों के, नित मंत्र नव रचते।
अपने आगे किसी को, कुछ न समझते।।
मानसिक अय्याशी का इंतजाम करते हैं ।
जीवन के यथार्थ को सिरोपाव ढंकते हैं ।।
कला-कला के लिए, है तकिया-कलाम !
हिन्दू को राम-राम, मुस्लिम के सलाम !!

गतिशील साहित्य सृजन में छन्दमय कोष की प्रासंगिकता ..


आज टेलीविजन,कम्प्यूटर,मोबाइल,तथा ब्रॉडबैंड इत्यादि के अत्यधिक प्रचलन से ज्ञान आधारित सूचना तंत्र सहित संपूर्ण वैश्विक उत्पादनों का भूमंडलीकरण हो चुका है। नए-नए ब्लॉगों और वेबसाइट्स पर अंधाधुंध सृजनशीलता के दुर्गम पहाड़ निर्मित किये जा रहे हैं। अधिकांश लेखन निहायत ही गैर जिम्मेदाराना,तथ्यहीन होता जा रहा है। कुछ तो अनुत्पादक और अर्थ-हीन (मुनाफामूलक नही ) ही हो चुका है!
कुछ साहित्यिक अभिकर्म नितान्त नीरस होता जा रहा है। कहीं कहीं कुछ रोचकता का अभाव भी झलक रहा है। भारतीय उप महाद्वीप में अतीत की बर्बर-दमनकारी-सामन्तयुगीन (अ)सभ्यताओं के तंबू भले ही उखाड़ दिए गए हों,किंतु अतीत का वह हिस्सा अभी भी हराभरा साबूत है,जो साहित्यिक-सांस्कृतिक एवं मानवता के कल्याणकारी सरोकारों से सराबोर है। जिसमें मानवीय उत्थान तथा उच्चतर संवेदनाओं को निरंतर प्रवाहमान करते रहने की क्षमता विद्यमान है। इसे भाषा व्याकरण के द्वारा शताब्दियों से प्रसंस्कृत किया जाता रहा है।
महाकाव्यों के सृजन की शिल्पज्ञता तथा नई सभ्यताओं का उदयगान भी इसी रस-सिद्धांत तथा छंदोविधान की परंपरा के निर्वाह का परिणाम है।
सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, साहित्यिक, धार्मिक तथा राजनैतिक उपादानों को पूंजीवादी प्रजातंत्र के शक्तिशाली शासक वर्ग ने निरंतर सत्ता में बने रहने का साधन बना लिया है। इस दौर के प्रभूतासंपन्न वर्ग ने भी वैज्ञानिक उपलब्धियों पर कब्जा जमा रखा है। आज जल-जंगल-जमीन तथा राष्ट्रों की सकल संपदाओं-संस्कृति पर भी इसी वर्ग का आधिपत्य है। आजादी के पूर्व भी “सकल पदारथ” इसी शोषक-शासक वर्ग के हाथों में थे। तब देशी-विदेशी का अंतर सिर्फ राजमुकुट हथियाने के संघर्ष में सन्निहित था। प्रत्येक प्रतिगामी कठिन दौर में क्रांतियों की जन्मदात्री, अमर शहीदों की प्रियपात्र तथा श्रेष्ठ काव्यकर्मियों की रचना धर्मिता के इसी छंदोविधान ने जनमानस के मध्य क्रांतिकारी भावों का संचरण किया है। जो कि सिर्फ संस्कृत और हिन्दी में ही उपलब्ध था।
सौन्दर्यबोधगम्यता तथा सार्थक सृजनशीलता की कसौटी पर खरा उतरने की कोशिशें अनेकों ने की हैं, किंतु मानवीय संवेदनाओं का सत्व कमतर होते जाने तथा भौतिक संसाधनों पर आश्रित होते जाने के कारण साहित्य का रसास्वादन चंद लोग ही कर सके हैं। इनमें से कुछ थोड़े ही ऐसे होंगे जिन्होंने साहित्य का विधान तथा भाषा व्याकरण के रस सिद्धांत को समझ सके होंगे।
वर्तमान दौर की शिक्षा प्रणाली भी एल.पी.जी. की बाजार व्यवस्था अनुगामिनी हो चुकी है। मॉर्डन टैक्नोलॉजी, सांइस, चिकित्सा तथा अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षैत्र में भाषा के सौंदर्य शास्त्र को नहीं अपितु अंग्रेजी के ज्ञान को सफलता की गांरटी बना लिया है। संस्कृत, हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं का रसमय काव्यकोष उपरोक्त संदर्भों से काट कर केवल पूजा-अर्चना का निमित्त मात्र बना कर रख दिया गया है। जहां तक हिन्दी का प्रश्न है, वैश्विक बाजार में इसकी पकड़ बरकरार है। दक्षिण एशिया का कोई भी बाजार हिन्दी ज्ञान के बिना अधुरा है, यदि हिन्दी नहीं होती तो बॉलीवुड भी शायद इतना उन्नत नहीं होता और तब निसंदेह घर-घर में हॉलीवुड का धमाल मचा होता। ऐसी सूरत-ए-हाल में भारत की गैर-हिन्दी तस्वीर कितनी बदरंग और भयावह होती इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। सचेत भारतीय सोच सकते हैं की तब कैसा भारत होता? केवल भारत ही क्यों? पूरे दक्षिण एशिया का नक्शा कैसा होता? यदि हिन्दी नहीं होती तो संभवत: भारत आज़ाद भी नहीं हो पाता ! अत: यह स्वयं सिध्द है की इस देश की अक्षुणता हिन्दी के अस्तित्व पर ही टिकी हुई है, और न केवल भौगोलिक रूप से बल्कि एक समृद्ध सांस्कृतिक परिवेश के रूप में भी संस्कृत एवं हिन्दी भाषाओं का अवदान उल्लेखनीय रहा है और इसमें रस सिद्धांत छंदो-विधान का प्रयोग क्रांतिकारी चरित्रों एवं मानवीय संवेदनाओं के प्रवाह ने ब्रह्मास्त्र का काम किया है। यदि भारतीय वाड़गमय की काव्यधारा की निर्झरणी का अजस्त्र स्त्रोत उपलब्ध नहीं होता तो हमारी हालत वैसी ही होती जैसे की कॉमनवेल्थ- ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, अफ्रीका महाद्वीप, लेटिन अमेरिका एवं उत्तर अमेरिकी आदिवासियों की सदियों पूर्व हो चुकी है।
जहां-जहां उपनिवेशवादी आक्रांताओं ने साहित्यिक, सांस्कृतिक जड़ें जमा ली थी ; वहां वहां के स्थानीय मूल-निवासियों (आदिवासियों) की सभ्यता/संस्कृति एवं भाषा का लोप हो चुका है। भारत की भाषाई एवं सास्कृतिक विरासत दोनों जिंदा हैं। चूंकि हमारी देशज भाषाई विरासत में परिवर्तन के क्रांतिकारी तत्व काव्यात्मक रूप से मौजूद हैं अत: 21वीं सदी का भारतीय समाज शोषणमुक्त होकर रहेगा ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है। हालांकि बारत में आजादी के 62 वर्ष बाद भी हिन्दी राज संचालन की सहधार्मिणी नहीं बन सकी है। यह भी एक दुखद विडम्बना है। समाजवादी क्रांति के मार्ग में भी अंग्रेजी की दीवार सबसे बड़ी बाधा है, यह गुलामी की निशानी भी है।
भारत में क्षेत्रीय भाषाओं का विकास भी लोकतंत्र तथा हिन्दी की कीमत पर ही हुआ है। हिन्दी-संस्कृत को पददलित करते हुए अंग्रेज़ी आज भी “इण्डिया” की “विक्टोरिया” बनी हुई है। आज भी अभिजात वर्ग की भाषा अंग्रेजी ही है। इन तमाम विसंगतियों, विद्रूपताओं तथा विडम्बनाओं के बावजूद के बावजूद संस्कृत /हिन्दी का छन्द एवं सौन्दर्यशास्त्र अति समृध्द होने से आज हिन्दी का ककहरा नहीं जानने वाले भी हिन्दी की कमाई से (फिल्म-टीवी चैनल वाले) मालामाल हो रहे हैं। अनेक त्रासद परंपराओं का बोझ उठाते हुए, बदलती व्यवस्थाओं के दौर में भी मानवीय मूल्यों की अंतर्धारा सतत प्रवाहमान है। इसका एक प्रमुख कारण यह भी है की संस्कृत-हिन्दी का छंद एवं सौंदर्य शास्त्र बेहद सकारात्मक रचनाधर्मिता से ओत-प्रोत है। भारत की क्षेत्रीय भाषाओं को भी इसी रसमय काव्यधारा के व्याकरण का अवलंबन मिलता रहा है। मात्र आर्थिक-सामाजिक-साजवैतिक परिवर्तनों के हेतु से ऐतिहासिक-साहित्यिक विधा को विस्मृति के गर्त में धकेलकर, क्रांति का लक्ष्य प्रप्त नही किया जा सकता। प्रगतिशीलता के दंभ में कतिपय साहित्यकार-लेखक-कवि वैचारिक विभूतियां दिग्भ्रमता के बियाबान में भटक रही हैं और अपनी अज्ञानता को नई विधा बता रही हैं।
संपूर्ण भारतीय वाडंगमय की चुम्बकीय शक्ति का केन्द्र बिन्दु उसका वैचारिक सौष्ठव तथा शिल्प की अतुलनीय क्षमता है। पाण्डित्य-प्रदर्शन कहकर या वेद-पुराण-आगम-निगम की खिल्ली उड़ाकर तथा षड्दर्शन को कालातीत कहकर सरसरी तौर पर खारिज नहीं किया जा सकता। इस समृद्ध मानवीय वैश्विक धरोहर को सदा के लिए संस्कृति और धर्म के नाम पर शोषक शासक वर्ग का शस्त्र भी नहीं बनाया जा सकता। संपूर्ण पुरा-साहित्य को ईश्वर की जगह बैठाकर चंबर डुलाना भी नितान्त निंदनीय है, किन्तु लोकहितार्थ उसका उपयोग वंदनीय है। मेग्नाकार्टा, शुक्रनीतिसार, चाणक्यनीति तथा यूनानी दर्शन एवं अन्य पुरातन मूल्यों के निरन्तर परिष्करण से ही आधुनिक युग की लोकतांत्रिक तथा समाजवादी क्रांतियों को “विचार शक्ति” प्राप्त हुई है। इसे और ज्यादा न्यायपूर्ण, सुसंगत तथा निर्बलों के पक्ष में वर्ग संघर्ष की चेतना का उत्प्रेरक बनाय जाना चाहिये। साहित्य की ऐतिहासिक यात्रा में “छन्दबद्ध” काव्यधारा के अनेक रूप दृष्टव्य हैं। भारतीय संस्कृत-हिन्दी वाडंगमय के आदियुग से लेकर वर्तमान उत्तर आधुनिक युग तक जिस रस, छन्द तथा सौन्दर्यशास्त्र का बोलबाला रहा है उसके गुणधर्म केवल स्वस्ति वाचन मात्र नहीं हैं। नेदमंत्रों के रुप मे प्रागेतिहासिक कालीन छन्दबद्ध रचनाओं का छन्दोविधान लौकिक छन्द व्यवस्था से समृध्द वैज्ञानिक अन्वेषणों तथा प्रकृतिदर्शन की अनुगूंज भी था। द्वन्द्वात्मक भौतिकवादी दर्शन का श्री गणेश भी था।
लौकिक-संस्कृत, पाली, अपभ्रंश तथा मध्ययुगीन भक्तिकालीन हिन्दी/काव्यधारा में जहां अनुष्टुप, इन्द्रवज्रा, शार्दुलविक्रीडित, द्रुतविलम्बित, शिखरणी, मालिनी, मन्दाक्रान्ता आदि छन्दों का पिरयोग देखने को मिलता है, वहीं दूसरी ओर वेदों, संहिताओं, षड्दर्शन तता उपनिषदों में उक्त छन्तों के अलावा गायत्री, जगती, वृहती, त्रिष्टुप, उष्णिक, भूरिक तथा प्रगाथ आदि छन्दों का प्रयोग प्रधानता से किया गया है।
पाणिनी, सायण, महीधर, जयदेव तथा तुलसी की व्याकरणीय विद्वत्ता से इतर भी लोक साहित्य की समृद्धी में नाथपंथियों, सूफियों तथा भक्तिकालीन कवियों की अनगढ़ संरचनाओं में भी ह्रदय को छकछोरने अतवा संवेदनाओं के धरातल पर मुक्तिकामी मारक क्षमता मौजूद थी। इसी काव्य परम्परा से भारत के पुनर्जागरण काल की समाज क्रांति, का उदय हुआ तथा राष्ट्रीय मुक्ति संग्राम को संजीवनी मिलने से आज के स्वाधीन भारत का मानचित्र साकार हुआ है। पिंगलकृत छन्दसूत्रों में भी इस विषय का उल्लेखनीय वर्णन है। वैदिक छन्दों को सीधे पाली और प्राकृत में रुपान्तरित करते हुए, योगरूढ़ संस्कृत छन्द-शास्त्र ने हिन्दी (ब्रज-बुन्देली-अवधी-रुहेली) में अवतरणीय प्रचलन प्राप्त किया है। किसी छन्द विशेष को आसानी से पहचाना जा सकता है। सूत्रों की क्रमिक जानकारी भर होना चाहिए।
हिन्दी काव्य धारा को सर्वाधिक चर्चित कराने वाले “रासों” साहित्य में “दूहा” या दोहा का प्रयोग बहुतायत से हुआ है। इसके अलावा गीतिका, हरगीतिका, मालिनी, छप्पय, चौपाई, सौरठा, कवित्त, सवैया, ख्याल, रोला, उल्लाला तथा मत्तगयंद इत्यादि छंद-पदावली को लौकिक साहित्य के साधकों में बेहद लोकप्रियता प्राप्त होती रही है।
लगभग दो हज़ार वर्षों की काव्य-यात्रा में भौगोलिक, सामाजिक तथा आर्थिक कारकों ने यदि एक छोर पर राजनैतिक छलांगे लगई हैं, तो दूसरी ओर सहित्यिक छलांगों ने भी मानवीय संवेदनाओं- करुणा, अहिंसा, सत्य प्रेम तथा सौंदर्य को परिष्कृत करते हुे छंद शास्त्र का शानदार प्रवर्तन किया है, बेहतरीन धरोहरों से मानवता को नवाज़ा भी है।
राष्ट्र भाषा तथा उसकी छंदबद्ध अविरल धारा से ही भारतीय संस्कृति-सभ्यता एवं एकता-अखंडता और महान प्रजातंत्र सुरक्षित है।
उत्तर-आधुनिक छंदविहीन साहित्यिक चेष्टाओं को उसकी भाव-उद्दीपनता के कारण यत्किंचित भले ही प्रगतिशील पाया गया हो, किन्तु भारोपीय भाषा परिवार की निरंतर उत्तरजीविता के जैविक गुणों से लबालब, छंद शास्त्र से सुसज्जित हिन्दी भाषा की त्रिकालज्ञता में छंदबद्ध सृजन का स्थान सर्वोपरि रहा है।
निसंदेह संस्कृत के अर्वाचीन काव्य-सूत्रों को अधुनातन रूप प्रदान करने में हिन्दी तथा भारत की क्षेत्रीय भाषाओं की योग रूढ़ता का विशेष योगदान रहा है। लोक-गायन, लोक-वादन, तथा लोकनृत्य के उल्लेख बगैर इस साहित्यिक विधा के घटना विकास क्रम पर वैज्ञानिक ढंग से राय प्रस्तुत कर पाना संभव नहीं होगा।
संस्कृत या हिन्दी में वर्णिक अथवा मात्रिक छन्द रचना का सृजन तब तक दोषपूर्ण और निरर्थक ही रहेगा, जब तक वह छंदमुक्ति अथवा अतुकान्त काव्य की सृजनशीलता का ढोंग करता रहेगा। भावप्रवणता से ओत-प्रोत गद्य साहित्य के अपने शानदार तेवरों में वह कथा, कहानी, उपन्यास, निबंध, आलेख, जीवन वृतांत तथा पत्रकारिता समेत, आर्थिक, सामाजिक एवं समूचे राजनैतिक उत्तरदायित्वों का निर्वहन तो बखूबी कर ही रहा है, फिर गद्य साहित्य को मुक्त छंद या अतुकान्त कविता के नाम पर छंद में अछंदता की क्या जरुरत है? कथित व्याकरणविहीन, छंदविहीन, सौंदर्य बोध विहीन काव्य-रचना को “काव्य जगत” द्वारा मान्यता कभी नहीं मिल पायेगी।
अतएव सर्वप्रथम समस्त सुधी एवं प्रगतिशील तबक़े को छंदशास्त्र, रस-सिद्धांत एवं काव्यकोष का अध्येता होना चाहिए, तदुपरांत अपने क्रांतिकारी न्यायाधारित विचारों को जन-जन तक पहुंचाना चाहिए।
-श्रीराम तिवारी