मंगलवार, 2 अगस्त 2016

'भरोसे की भैंस पाड़ा नहीं जनती,,,,!

वर्तमान सत्तारूढ़ केंद्रीय नेतत्व के 'मिलनसार' व्यवहार से लगता है कि उन्होंने 'संघ' की शिक्षाओं को 'ताक पर रख दिया' है। आधुनिक मुहावरा कुछ यों होना चाहिए कि उन्होंने अपनी तयशुदा नीतियों को 'हेल्ड इन ऑवेन्स ' कर रखा है।  यदि मेरा यह आकलन यथार्थपरक और स्थायीभाव में है तो मोदी सरकार का यह 'परकाया 'प्रवेश देश और दुनिया के हित में ही होगा ! लेकिन सिर्फ मोहन भागवत जी , मोदी जी ,राजनाथ जी, जेटली जी ,बैंकैया जी, रविशँकरप्रसाद जी और सुरेश प्रभु जैसे अग्रिम पंक्ति के व्यक्तित्व ही सामाजिक एकीकरण के उदात्त भाव में दीखते हैं। अन्यथा योगी आदित्यनाथ,महेश शर्मा जी ,साक्षी महाराज ,जनरल सिंह ,सुब्रमण्यम स्वामी ,पर्रिकर जी और अन्य तमाम दोयम दर्जे के भाजपाई-संघी नेता वही पुराना 'गोडसे घराना'राग गाते -बजाते चले जा रहे हैं। एक बुन्देली लोक कहावत है ,जिसमें पलाश की जड़ के छिलके से रस्सी बनाता किसान ,अपने  नादान बेटे को डाँटते  हुए कहता है कि- 'मैं एक हाथ रस्सी जोड़ता हूँ ,तूँ दो हाथ उसे मिटा देता है !' भाजपा और 'संघ परिवार' की  वर्तमान अंतर्कथा का सार रूप यही है !

 पहले 'जनसंघ' और बाद में 'जनता पार्टी' और अब भाजपा के दौर में भी यह 'दोहरी सदस्यता का यह भाव इस दक्षिण पंथी खेमें में विद्यमान रहा है । किन्तु जबसे केंद्र मोदी जी ने सत्ता सम्भाली है ,इस 'परकाया प्रवेश में भारी बृद्धि हुई है। सुप्रसिद्ध साहित्यकार  महाश्वेता देवी के निधन पर देश और दुनिया के प्रबुद्ध वर्ग ने उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किये, किसी ने शब्दांजलि ,किसी ने श्रद्धांजलि और  किसी भावांजलि व्यक्त की । भाजपा नेताओं में और उनकी सरकार के मंत्रियों में तो श्रद्धांजलि देने की होड़  सी मच गई।  इस होड़ की हड़बड़ी में बड़ी गड़बड़ी हो गई।  विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ट्ववीट किया कि महाश्वेता देवी की दो साहित्यिक कृतियों -'प्रथम प्रतिश्रुति' और 'बकुल कथा 'से उन्हें बहुत प्रेरणा मिली है । उनके इस ट्वीट को लगभग चार सौ ट्वीटर  'विद्वानों' ने लाइक भी कर  दिया,लेकिन सुषमा जी को जब किसी शुभचिंतक ने सूचित किया कि ये दोनों रचनाएँ तो आशापूर्णा  देवी की हैं ,तो उन्होंने अपने शोक संदेस को टवीटर से हटा लिया।

दूसरा वाक्या भाजपा अध्यक्ष श्री अमित शाह जी का है ,जो  काफी रोचक है। टवीटर पर महाश्वेता देवी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अमित शाह जी ने  'हजार  चौरासी की माँ ' और  'रुदाली' को  महाश्वेता देवी  की अत्यंत प्रभावशाली रचनाएँ बताया । अमित शाह जी को शायद मालूम ही नहीं कि 'हजार चौरासी की माँ'  से यदि वे प्रभावित हैं तो वे भाजपा अध्यक्ष कैसे बन गए ? उन्हें तो  नक्सलवादियों  या माओवादियों के साथ होना चाहिए था !क्योंकि 'हजार चौरासी की माँ ' उसी नक्सल आंदोलन की  प्रबल पक्षधर है।महाश्वेता देवी तो ताजिंदगी देश के आदिवासियों और सर्वहारा वर्ग के लिए समर्पित रहीं हैं। उनके लेखन में अमित शाह और मोदी जी के लिए बहुत कुछ  उपादेय और अनुशीलन योग्य है. किन्तु 'संघ' और भाजपा की दक्षिणपंथी साम्प्रदायिक विचारधारा -मजदूर विरोधी विचारधारा  के लिए महाश्वेता देवी के रचना संसार में में  केवल भर्त्सना ही मिलेगी। वे आजीवन मार्क्सवादी रहीं हैं। केवल सिंगुर मामले में उन्होंने पार्टी लाइन से हटकर ममता बेनर्जी को मौखिक समर्थन दिया था ,शायद इसी पथ विचलन से प्रभावित होकर भाजपा के 'कुछ'पढ़े -लिखे लोग अब महाश्वेता देवी के मरणोपरांत उन्हें 'संघप्रिय' बनाने में जुटे गए हैं।

 दरसल भाजपा और संघके बौध्दिकों में वैचारिक दरिद्रता और द्वंदात्मक  चिंतन की कंगाली है, वे गुलगुले तो  गप-गप खा जाते हैं ,किन्तु गुड़ खानेके परहेज  का पाखण्ड करते हैं। उन्हें जहाँ कहीं कोई नजमा हेपतुल्लाह या जगदम्बिका पाल जैसा विद्रोही कांग्रेसी दिखा ,जहाँ कहीं कोई सुरेश प्रभु जैसा विद्रोही शिवसैनिक दिखा ,जहाँ कहीं कोई पथभृष्ट जीतनराम मांझी दिखा ,कोई  'सुधारवादी वामपंथी' -समाजवादी  दिखा कि भाजपा वाले उसे अपने 'पाले'में घसीट लाने की जुगत में भिड़ जाते हैं। केरल विधान सभा चुनाव  में माकपा- एलडीएफ की जीत पर मोदी जी ने सीपीएम पार्टी को नहीं, पिनराई  विजयन को भी नहीं, बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ माकपा नेता अच्युतानंदन को  फोन पर बधाई दी। मोदीजी को मालूम है कि बुजुर्ग कामरेड अच्युतानंदन जी लम्बे समय से संठनात्मक मुद्दों पर  पिनराई  विजयन और  माकपा पोलिट ब्यूरो से जुदा राय रखते आ रहे  हैं। और चूँकि भाजपा वाले  पक्के घर फोड़ू हैं। ये लोग किसी मेट्रिक फ़ैल को मंत्री बना देंगे ,किसी असफल गुमनाम कलाकार को एफटीटीआई का अध्यक्ष बना देंगे और किसी  दल-बदलू काले कौवे को 'भारत रत्न ' सौंप देंगे । किन्तु ज्योति वसु, माणिक सरकार ,हरिकिशन सुरजीत या ईएमएस नंबूदिरीपाद का सम्मानपूर्वक नाम भी नहीं लेंगे। क्योंकि 'संघ' वाले अपने अलावा किसी  और विचारधारा में शुद्धता और 'अनुशासन' पसन्द  ही नहीं करते !

हिंदुत्ववादी वीरों ने  'असहिष्णुता'और अभिव्यक्ति  के मुद्दे पर नामवरसिंह द्वारा अलग -थलग स्टेण्ड लेने पर  उनकी  भूरि -भूरि प्रशंसा की है। नामवरसिंह के जन्म दिन पर मोदी जी ने बधाई सन्देश भेजा और देश के गृह मंत्री राजनाथसिंह जी ने खुद उपस्थित होकर शिद्दत से नामवरसिंह का जन्म दिन मनाया ! लोगों के मन में  प्रश्न उठ रहे हैं  कि  क्या यह 'भाजपा'का हृदय परिवर्तन है ? क्या ऐंसा करके भाजपाई नेता  इस मार्क्सवादी वामपंथी -नामवरसिंह केउस लिखे हुए को  मिटा सकते हैं जो 'संघ' और साम्प्रदायिकता के खिलाफ जाता है ? नामवरसिंह ने अब ऐंसा  कहाँ-क्या लिख दिया जो हिटलर, गोडसे या गोलवलकर के 'चिंतन'से मेल खाने लगा है ? नामवर के बहाने भाजपा नेताओं ने यदि 'सबका साथ -सबका विकास 'के मन्त्र पर अमल किया है ,तब तो ठीक है। किन्तु उन्हें यह याद रखना होगा  कि 'भरोसे की भैंस पाड़ा नहीं जनती '। और 'नटवन खेती -बहुअंन घर नहीं चलते '! 'पाहुनों से साँप नहीं मरवाते '। अनेक प्रमाण हैं जहाँ 'संघ' और भाजपा नेताओं ने पथभृष्ट दलबदलू कांग्रेसी और दिग्भृमित वामपंथी ,उजबक समाजवादी तथा  महत्वाकांक्षी  शिवसैनिक को अपना 'कर्ण 'बनाया है ! मोदी जी खुद दुर्योधन की तरह इन सभी को 'अंगराज'कर्ण बनाते जा रहे हैं। उधर उनके 'वैचारिक सहोदर' दलित-महिला -उत्पीड़न में दुशासन की भूमिका अदा किये जा रहे हैं ! 

श्रीराम तिवारी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें