सोमवार, 22 अगस्त 2016

रियो ओलम्पिक में भारत की दुर्दशा के लिए कौन जिम्मेदार है ?

इसमें कोई शक नहीं कि रियो ओलम्पिक में भारत की  बेहद शर्मनाक दुर्दशा हुई है। इतिहास में भारत का इतना पतन कभी नहीं हुआ। गुलामी के दिनों में भी भारत के  ध्यानचंद जैसे महान हॉकी खिलाड़ी  गोल्ड मेडल लाने का माद्दा रखते थे । आजादी के बाद साल दर साल भारत ने खेलों में तरक्की की है। विगत २०१२ के ओलम्पिक खेलों  में भी भारतको आधा दर्जन मेडल मिले थे। लेकिन मोदी सरकार के सत्तामें आने के बाद ; भारत को  जिस तरह हर क्षेत्र में नकारात्मक धक्का लगा है ,उसी तरह खेल  के क्षेत्र में भी भारत का प्रशासन रसातल में  धस गया है। रियो ओलम्पिक में भारत की महादुर्दशा के लिए कौन-कौन जिम्मेदार हैं ? भारत की खस्ताहाल खेल नीति या नेता अथवा खेल अधिकारी या खिलाड़ी ;  इसकी जबाबदेही अवश्य  ही तय होनी चाहिए।

एक भारतीय मैराथान धाविका 'ओ पी जैशा'ने रियो ओलम्पिक में ४२ किलोमीटर की मैराथन दौड़ में एक ग्लास पानी भी नसीब नहीं होने का दर्द बयां किया है। इस शर्मनाक घटना के फोटो पहले ही वायरल हो चुके हैं ,किन्तु भृष्ट- बेईमान खेल अधिकारी अपनी अय्यासी और काली करतूतों पर पर्दा डालने के लिए ,उलटे उस धाविका के बयान को गलत बता रहे हैं। जबकि सारी दुनिया ने जैशा को बीच सड़क पर बेहोश पडी हालत में देखा है। और पीड़ित भारतीय धाविका का फोटो सोशल मीडिया पर सारी दुनिया पहले ही अच्छी तरह से देख चुकी है। क्या भारतके प्रधानमंत्री मोदीजी इन पापियों को दण्डित करेंगे ?या कालेधन वालों की तरह,विजय माल्या की तरह , ललित मोदी की तरह,जमाखोरों और कालाबाजारियों की तरह , इन अपराधियों की ओर से भी नजर फेर लेंगे ? 

भारतीय मैराथन धाविका  'ओ पी जैशा ' ने  IBN7 को रोते हुए बताया  कि '' ४२ किलोमीटर की मैराथन दौड़ के दौरान उसे पीने के लिए एक बूँद पानी  भी नहीं दिया गया । बिना पानी ,ग्लूकोज और शहद के वह लगातार ३६ किलोमीटर दौड़ चुकने के बाद जब वह सड़क पर बेहोश होकर गिर पडी,तो दो घंटे तक किसी ने उसकी सुध नहीं ली। दूसरे देशों के खिलाडी-धावकों ने जरूर उसे उठाकर सड़क किनारे बिठा दिया किन्तु वह मरणासन्न अवस्था में अपने देश के सिस्टम पर आंसू बहती रही। भारतीय ओलम्पिक दल का कोई भी शख्स  वहाँ मौजूद नहीं था।'' भारत से लेकर रियो तक सबकेसब सेल्फी खींचने और सोशल मीडिया पर फोटो पोस्ट करने में व्यस्त थे। रियो में खिलाड़ियों को देखने सुनने वाला  कोई नहीं था। मैराथन धाविका ने बताया कि ''दूसरे देशों के कोच और खिलाडियों या सहयोगियों ने उसकी मदद की और पानी पिलाया। जबकि दुनिया के तमाम अन्य पार्टिसिपेंट के लिए उनके देशों के परिचारक हर आठ किलोमीटर पर टॉल लगाकर खड़े और हौसला भी बढा रहे थे।भारत के भी कुछ टॉल लगे हुए थे लेकिन वहां कोई मौजूद नहीं था।''

भारत का निर्मम- धृष्ठ प्रशासन ,मक्कार खेल अधिकारी ,प्रमादग्रस्त  कोच  और भारत के निर्लज्ज  खेलमंत्री शायद  रियो में सपरिवार केवल सैर -सपाटे या सेल्फी खींचने के लिए गए थे। कायदे से हर आठ किलोमीटर पर खिलाड़ी को पीने का पानी मिलना चाहिये था। अपनी अकर्मण्यता पर पर्दा डालने के लिए ,ओलम्पिक में अपनी काली करतूत छिपाने के लिए , सत्ता में बैठे निर्लज्ज लोग और उनके चमचे  रियो में साक्षी -सिंधु को मिले कांसे और चाँदी के एक-एक मेडल को ऐतिहासिक उपलब्धि  बता रहे हैं।  इन दो मेडलों पर करोड़ों न्योछावर करने का ढोंग -पाखण्ड कर रहे हैं । रियो ओलम्पिक में अपनी घोर असफलता पर शर्मिंदा होनेके बजाय ये जिम्मेदार लोग  सत्ता की चापलूसी में ढपोरशंख बजाने में जुट गए हैं। आईओए वालो ,खेल अधिकरियो , नीति-निर्धारकों -देश की हालत पर कुछ तो शर्म करो  ! शहीदों के महान देश भारत का मजाक उड़वाना बंद करो !

'रियो डी जेनेरियो' -ओलम्पिक समापन उपरान्त  जारी अंतिम पदक सूची के अनुसार अमेरिका अपने प्रथम स्थान पर नाबाद है। लेकिन जो देश  विगत चार ओलम्पिक खेलों से लगातार नंबर दो पर हुआ करता था ,वो चीन अब नंबर तीन पर आ गया है। उसकी जगह ब्रिटेन नंबर दो पर आ गया है। १९८०  के ओलम्पिक में  तो सोवियत संघ नंबर वन था। किंतु सोवियत विखण्डन के उपरान्त वाला रूस अब ५ -६ नंबर पर खिसक गया है। लेकिन यदि उसके बिखरे फेडरल राष्ट्रों -रूस ,यूक्रेन,जार्जिया,उजवेगस्तान,अजरवेजान,तुर्कमेनिस्तान इत्यादि  के मेडल एक साथ जोड़ें जाएँ ,तो यह कुल योग अमेरिका को मिले कुल पदकों  से भी ज्यादा होगा ।अर्थात 'सोवियतसंघ'  यथावत होता तो रियो ओलम्पिक में  वही नबर वन होता। और अमेरिका नंबर दो पर  ही होता।

उधर चीन के खिलाडियों  और चीन सरकार ने खेलों के लिए इस ओलम्पिक में जी जान लगा दी थी। चीनियों का मकसद था कि रियो में चीन नम्बर दो पर आये ;और अमेरिका को पीछे छोड़ दे। चीन चौबे से छब्बे तो नहीं बन पाया किन्तु दुब्बे जरूर बन गया। क्योंकि  ब्रिटेन  ने दूसरा स्थान छीन लिया है। जबकि १९९६ में ब्रिटेन को सिर्फ एक स्वर्ण पदक मिला था। उससे नसीहत लेकर ब्रिटिश सरकार ने खेल विषयक नीतियाँ और कार्यकर्मों में कुछ खास परिवर्तन किये थे , परिणामस्वरूप रियो ओलम्पिक में ब्रिटिश खिलाडियों ने चीनी खिलाडियों से भी बेहतर प्रदर्शन  किया है । और अब  ब्रिटेन नंबर दो पर है । भारत की मोदी सरकार ने विगत सवा दो साल में जो कुछ किया उसका परिणाम सबके सामने है।  पहले आधा दर्जन मेडल लाया करते थे ,इस बार केवल दो पदकों में ही सरकार और खेल प्रेमी गदगद हो रहे हैं। पुराने और परम्परागत भारतीय भृष्ट  खेल प्रबधन पर कोई लगाम नहीं लगाई गयी।  पुराने भृष्टों की जगह अपने 'संघनिष्ठ' नए भृष्ट  अफसरों और मक्कार नेताओं  को खेल प्रबधन सौंप कर  केंद्र सरकार चैन की नींद सोती रही ।  सवा दो साल केवल ठकुर सुहाती ही बर्बाद कर दिए !अब दो पदकों को देख-देख ऐंसे किलक रहे मानों क्रिकेट विश्व कप में पाकिस्तान को हरा दिया हो !

               भृष्ट सिस्टम -मुर्दाबाद :-

   सवा सौ करोड़की आबादी वाला हमारा प्यारा भारत -दुनिया का तथाकथित सबसे बड़ा लोकतंत्र -जिंदाबाद !

   केंद्र में ऊर्जावान प्रधानमंत्री श्री मोदीजी और उनके नेतत्व में विशुध्द 'राष्ट्र्वादी' एनडीए सरकार-जिंदाबाद !

    रियो ओलम्पिक खेलों पर दो सौ करोड़ रूपये  खर्च करने वाले मंत्री ,अफसर,कोच -खिलाड़ी -जिंदाबाद !

   अपने खिलाडियों की जीत के लिए -यज्ञ , हवन ,कीर्तन,मन्नत ,पूजा -पाठ  करने वाले शृद्धालु -जिंदाबाद !

    कासे का एक पदक जीतनेवाली साक्षी और चाँदी का मेडल जीतने वाली संधू और उनके कोच -जिंदाबाद !

   आजादीके सत्तर साल बाद रियो ओलम्पिक में भारतको एक भी स्वर्णपदक नहीं मिला भृष्ट सिस्टम -मुर्दाबाद !

                        shriram Tiwari

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