७० वें स्वाधीनता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए प्रधान मंत्री मोदी जी ने जो कुछ कहा उससे किसी को शायद ही कोई शिकायत होगी। बल्कि मुझे तो उनका पीओके , गिलगिलत - बलूचिस्तान वाला वक्तव्य बहुत सटीक लगा। इसके अलावा उन्होंने फ़ौज के जवानों को याद किया। किसानों - महिलाओं की और दलितों की बात की। सौर ऊर्जा ,दालों की कमी और पेट्रोलियम आयात पर बचाये गए बीस हजार करोड़ रुपयों की बात की ,उन्होंने सार्वजानिक उपक्रमों को घाटे से उबारने और मुनाफे में लाने का दावा किया,उन्होंने महँगाई कंट्रोल में होने की बात की औरआगामी तीन वर्षों में देश के पांच करोड़ अन्त्यज गरीबों तक एलपीजी सुविधा पहुंचाने का वादा भी दुहराया। चूँकि भाषण का मामला वन वे है, मोदी जी प्रधान मंत्री हैं और लालकिले की प्राचीर से उन्होंने जो कुछ भी कहा है ,वह देश की आवाज है ,यह भाषण देश की पालिसी और प्रोग्राम को भी दर्शाता है। इसलिए स्वाधीनता दिवस पर अधिकांस देशवासियों का जश्ने आजादी की शुभकानाओं के आदान - प्रदान पर आत्मतुष्ट हो जाना स्वाभाविक है। लेकिन विवेकशील राष्ट्रीय चेतनाका दायित्व है कि सापेक्ष सत्य को स्वीकार करे,और अर्धसत्यके कुहांसे को कोई रात का अँधेरा न समझ बैठे,यह सम्पूर्ण भारतीय जनमानस का दायित्व है।
लाल किले की प्राचीर से सत्तरवें स्वाधीनता दिवस के भाषण में मोदीजी ने एयर इण्डिया ,शिपिंग कारपोरेशन और बीएसएनएल समेत अन्य सार्वजनिक उपक्रमों को 'ऑपरेशनल प्रॉफिट' में होना बताया है ,यह न केवल मोदी सरकार के लिए ,न केवल हितग्राहियों के लिए बल्कि पूरे राष्ट्रके लिए आत्म गौरव और प्रशन्नता की बात है। किन्तु इसका श्रेय मोदी जी को बिकुल नहीं है। क्योंकि यदि उनकी वजह से बीएसएनएल में नफा हुआ है ,तो उनके होते हुए एमटीएनएल घाटे में क्यों है ? क्योंकि भाजपा और एनडीए के चुनावी घोषणा पत्र में और कार्यनीतिक एजेंडे में तो भारत के सभी सार्वजनिक उपक्रम को महज 'सफेद हाथी' कहा गया है। श्री मोदीजी की बदौलत बीएसएनएल को प्रॉफिट नहीं हुआ है। मोदीजी और भाजपा वाले तो निजीकरण के समर्थक हैं। एनडीए -प्रथम याने अटलबिहारी सरकार के समय से ही उन्होंने सभी सार्वजनिक उपक्रमों में १००% एफडीआई के लिए जोर लगाया है। पूँजी निवेश की वैश्विक 'बनिया लाबी'का मोदी जी के सर पर हाथ है। इसी भृष्ट लॉबी के इशारे पर अटलजी के दौर में स्वर्गीय प्रमोद महाजन और अरुण शौरी ने आनन्-फानन निजी क्षेत्र को लाइसेंस बाँटे थे। और देश के दुधारू डिपार्टमेंट -डीओटी को चूना लगाया था, निजीकरण का श्रीगणेश किया था। जो लोग टाटा,अम्बानी,अडानी, सुनील मित्तल भारती के खैरख्वाह होंगे, वे बीएसएनएल का मुनाफा क्यों चाहेंगे ? वे तो उसे बेमौत मरते देखना चाहते हैं।
जिस स्पेक्ट्रम घोटालेकी बात मोदीजीऔर भाजपावाले चटखारे लेकर बार-बार करते रहतेहैं , उसका बीजांकुरण भले ही नरसिम्हाराव ,सुखराम , दयानिधि मारन ने किया हो ,किन्तु असल खिलाड़ी तो प्रमोद महाजन और अरुण शौरी ही थे। वेशक सन २००४ के बाद डॉ मनमोहनसिंह की यूपीए सरकार में द्रुमक के भृष्ट संचार मंत्री ए राजा और करूणानिधि की बेटी कनिमोझी ने भी खूब घोटाले किये। डॉ मनमोहन सिंह ,सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी यह सब रोकने में और मॉनिटरिंग करने में असफल रहे। सार्वजानिक उपक्रमों को बर्बाद करने के लिए एनडीए और यूपीए दोनों बराबर के जिम्मेदार हैं। पहले तो अटलबिहारी सरकार ,फिर डॉ मनमोहनसिंह की दस सालाना यूपीए सरकार ने और मोदी सरकार ने लगातार विश्व बैंक और अमेरिकी दवाव में आकर न केवल बीएसएनएल बल्कि सभी सार्वजनकि उपक्रमों में १००% एफडीआई के दरवाजे खोल दिए हैं । किन्तु वामपंथी ट्रेड यूनियनों ने यह राष्ट्रघात नहीं होने दिया। अब यदि बिना १ % एफडीआई के भी बीएसएनएल ऑपरेशनल प्रॉफिट में आ गया है तो उसका श्रेय संगठित ट्रेडयूनियन आंदोलन को जाता है। क्योंकि वेशक निवृतमान संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद जी का भी सहयोग सराहनीय रहा है ,इस नाते मोदी जी भी अपनी पीठ खुद थोक सकते हैं। लेकिन उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि जब दूर संचार विभाग की मोनोपाली थी तब भी भारत सरकार के खजाने में अरबों-खरबों डॉलर कमाकर यही दिया करता था। एक बढ़िया सरकारी विभाग को सार्वजानिक उपक्रम बनाया ही इसलिए गया था कि वह घाटे में आ जाये ,और तब सरकार उसका निजीकरण करदे। इसीलिये तत्कालीन ही एनडीए की अटल सरकार ने इसको जबरन लिमिटेड कम्पनी बना दिया। लेकिन संयोग से बीएसएनएल के कर्मचारी/अधिकारी का बहुत मजबूत और संगठित मोर्चा है,इसीलिये अब तक बीएसएनएल बचा हुआ है। इसमें मोदी जी की कोई मेहरवानी नहीं है।
भारत जैसे विशाल लोकतान्त्रिक देश के प्रधान मंत्री की यह नैतिक जिम्मेदारी है कि वह कम से कम स्वाधीनता दिवस पर तो सच बोलें ! यदि एफडीआई के बगैर बीएसएनएल मुनाफा दे सकता है तो एमटीएनएल पब्लिक शेयर का क्या मतलब है ?जबकि वह घाटे में जा रहा है। मोदी जी एमटीएनएल को प्राफिट में लाने का प्रयास क्यों नहीं करते? बंद हो चुके अनेक उपक्रमों की सुध क्यों नहीं लेते ?चूँकि आमतौर पर प्रधानमंत्री द्वारा स्वाधीनता दिवस पर लालकिले की प्राचीर से दिए गए भाषण के निहतार्थ बहुत व्यापक और दूरगामी होते हैं ,इसलिए उन्हें अपनी कॉलर ऊंची करने या आत्मप्रशंसा करने से बचना चाहिए। उनकी जग हँसाई से देश की भी जग हंसाई हो सकती है। । श्रीराम तिवारी।
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