शुक्रवार, 26 अगस्त 2016

ऐंसे -कैसे मान लें कि अब भारत भी एक अमीर देश हो गया है?

 विश्व बैंक के एक सर्वे में दुनिया के अमीर देशों की सूची जारी हुई है। अमेरिका पहले स्थान पर है ,रूस नम्बर दो पर ,चीन तीसरे नम्बर पर और भारत सातवें नम्बर पर आ गया है। दुनिया के दो सौ सोलह राष्ट्रों की सूची  में यदि भारत का नम्बर सातवां  है तो प्रतिव्यक्ति आय में यह १२० वें स्थान पर गिर चुका है। चूँकि ये दोनों ही आंकड़े 'न्यू वर्ल्ड वेल्थ आर्गेनाइज़ेशन 'के हैं अतः अविश्वास की गुंजायस कम ही है। यदि अमीर देशों में भारत बाकई  सातवें नम्बर पर आ गया है तो यह भारत की कुछ कम उपलब्धि नहीं है। बल्कि मौजूदा मोदी सरकार के लिए अपनी पीठ ठोकने लायक  बहुत है।लेकिन उन्हें इसका जबाब देना ही होगा कि प्रति व्यक्ति आय में भारत का स्थान १२० वें नम्बर पर क्यों हैं ?

जब डॉ मनमोहन सिंह ने २००४ में सत्ता सम्भाली तब  विश्व के अमीरों की सूची में भारत १४ वें नम्बर पर था। डॉ. मनमोहनसिंह ने यूपीए के १० सालाना शासन काल में भृष्ट अमीरों की सम्पदा में चार गुना ज्यादा इजाफा कराया। और अप्रेल-२०१४ की सूची में भारत ११ वें स्थान पर आ गया। मई २०१४ में मोदी सरकार ने सत्ता सम्भाली और मात्र सवा दो साल में  भारत विश्व के अमीर देशों की सूची में  ७ वें स्थान पर आ गया । याने सवा दो साल में भारत के अमीरों की इतनी अधिक तरक्की हुई है कि भारत ७ वें स्थान पर आ गया। जबकि प्रति व्यक्ति आय में और सकल राष्ट्रीय उत्पादन में भारत अभी भी सूडान ,इथोपिया ,अफगानिस्तान ,पाकिस्तान,बांग्लादेश ,भूटान और नेपाल जैसे कंगले राष्ट्रों से भी नीचे ओंधे मुँह पड़ा है। मोदी सरकार से और देश के आर्थिक नीति निर्मातों से प्रश्न किया जाना चाहिए कि समृद्ध भारत का  वास्तविक तात्यपर्य क्या है ? क्या अमीरों की अमीरी में इजाफा होने या कुछ अरब डालर  विदेशी  मुद्रा भण्डार की बढ़त से देश की समृद्धि का मूल्यांकर होगा ?क्या देश की अधिसंख्य जनता केवल वोटर मात्र है ?क्या मोदी सरकार अपनी आर्थिक नीतियों को कुछ इस तरह पलटने का कष्ट करेगी कि 'प्रति व्यक्ति आय' में  बढ़त हो और उस सूची में भी  भारत कम से कम ७वे स्थान पर हो !

बहरहाल विश्वके प्रमुख अमीर देशों के साथ ७वें नंबर पर भारत को देखकर ,मुझे सूझ नहीं पड़ रहा कि हँसू या रोऊँ !क्योंकि पूँजीवादी विकास का एकमात्र अर्थ है कि इस विकास के दुष्परिणाम का फल देश की गरीब जनता को ही भुगतना पड़ता है। जैसे कि मिट्टी का ऊँचा टीला या चबूतरा बनाने के लिए आसपास की जमीन से ही मिट्टी खोदकर उस टीले को ऊंचा किया जाता है ,उसी तरह यदि  देश में कुछ लोग ज्यादा अमीर बनेगें तो उनके हिस्से में जो धन की बाढ़ आई वह धन उनके हिस्से का ही होगा जो कंगाल होते जा रहे हैं । यद्द्पि इस सूचना से मुझे खुश होना चाहिए था , कि भारत अब और जायद अमीर देश हो गया है। किन्तु इस खबर के वास्तविक अर्थ  की समझ रखने वाला कोई भी  सच्चा भारतीय  खुश होने के बजाय कुपितया दुखी ही होगा। क्योंकि इस समृद्धि का अर्थ स्पष्ट है कि ज्यादा लोगों के आर्थिक शोषण और उनका हिस्सा हड़पकर ही  चन्द अमीर घरानो -कार्पोरेट्स के जमाखातों में आकर्षक आर्थिक आंकड़े विश्व बैंक को सहला रहे हैं। इस किस्म के लुभावने आर्थिक आंकड़ों में भले ही भारत  एक अमीर देश दीखता है।किन्तु देश की अधिकांस निर्धन जनता का, यह सनातन कंगाली पीछा क्यों नहीं छोड़ रही  ? यह सवाल अवश्य बार-बार मेरे मन में उठ रहा है। 

यह बिडम्बना ही है कि सवासौ करोड़ की आबादी वाले देश में दो-चार खरबपति ,दस-बीस अरबपति और मात्र ३%  इनकम टैक्स पेई हों ,जिस देश में ४०% जनता बीपीएल /एपीएल के झमेले में झूल रही हो ,जिस देश की ६०% से ज्यादा आबादी अभी भी पीने योग्य पानी के लिए तरस रही हो ,जिस देश की ७०%जनता स्वास्थ सेवाओं से वंचित हो ,जिस देश की आधी आबादी खुले में शौच के लिए मजबूर हो ,जिस देश के कालाहांडी[ओड़ीसा ] में किसी गरीब आदिवासी को अपनी मृत पत्नी की पार्थिव देह कन्धे पर लादकर कीचड़ भरे पथरीले रस्ते पर मीलों पैदल  चलना पड़ता हो , जिस देश के लोगों का चरित्र इतना गिर गया हो कि रेलवे के पंखे और कम्बल चुराकर घर ले जाएं , जिस देश के लोग राह में दुर्घटना ग्रस्त किसी कारवाले को या बस वाले यात्रियों को मौत से जूझता देखकर भी उनके पर्स और कीमती सामान पर हाथ साफ कर भाग जाएँ , जिस देश में बिना भेंट-पूजा दिए थाने में ,सरकारी कार्यालयों में और राजनीति के ठिकानों में नमस्ते का उत्तर भी न मिलता हो ,उस देश को हम महान भारत तो कह सकते हैं ,किन्तु अमेरिका ,रूस ,चीन ,ब्रिटेन, जर्मनी,जापान,के बाद यदि ७वा स्थान मिला हो तो खुश होने के बजाय सर पीटने का मन करता है। श्रीराम तिवारी

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