जब तक आपके घर में ,मोहल्ले में ,शहर में ,प्रदेश में , देश में और दुनिया में कोई माकूल कल्याणकारी- व्यवस्था स्थापित न हो जाए ,कोई न्यायप्रिय -अमनपसन्द वातावरण स्थिर न हो जाए या जब तक कोई बेहतर सकारात्मक सामाजिक -आर्थिक -सांस्कृतिक क्रांति न हो जाए ; तब तक प्रत्येक व्यक्ति की सेहत के लिए यह उचित है कि अपने परम्परागत मानवीय मूल्यों और नैतिक सन्देशों का अनुशरण अवश्य करे। ऐंसा करते हुए ही मानवीय जीवन की अनवरत यात्रा जारी रखी जा सकती है।
प्रायः विश्व के हर समाज ,हर राष्ट्र के रीति-रिवाजों में और अधिकांस धर्म-मजहब में कुछ तो सार्थक सिद्धान्त -सूत्र अवश्य हैं। वर्तमान धर्म-मजहब के आडम्बर और पाखण्ड को किनारे कर यदि हम हमारे मुमुक्षु पूर्वजों द्वारा अन्वेषित 'सुख मन्त्रों' का अध्यन करें ,उनका अनुशीलन भी करें तो ,अनुभव बताता है कि उसमें कुछ भी बेकार नहीं है।बल्कि कुछ ऐसा अवश्य है जो अवैज्ञानिक नहीं है। इसलिए हर पुरातन मानवीय मूल्य को अंध आस्था के हवाले नहीं किया जा सकता। बल्कि बहुत कुछ ऐंसा है जो सर्वकालिक है ,सार्वभौमिक है और क्रांतिकारी भी है।
उदाहरण के लिए कुछ पुरातन और उपयोगी शिक्षाएं इस आलेख में प्रस्तुत हैं :-
१- ये तीन चीजें कभी किसी का इन्तजार नहीं करतीं -समय ,मौत और ग्राहक !
२-ये तीन चीजें जीवन में एक बार ही मिलती हैं -माँ -बाप और जवानी !
३-ये तीन बातें हमेशा याद रखें -कर्ज,फर्ज और मर्ज !
४-इन तीनों का सदा सम्मान करो -जल ,जंगल और जमीन !
५-इन तीनों को ईश्वर से अधिक पूज्य मानों -माता-पिता और शिक्षक !
६ -ये तीन बातें हमेशा स्मरण रखो -कम खावो ,गम खावो ,नम जावो !
७-इन तीन को कभी छोटा नहीं समझो -कर्ज ,क्रोध और बीमारी !
८-इन तीन को हमेशा काबू में रखो -मन ,इन्द्रियाँ और शरीर !
९-ये तीन कभी वापिस नहीं लौटते -धनुष से छूटा तीर ,मुँह से निकला बोल और प्रमादसे निकला समय !
१० - ये तीनों बहुत पछताते हैं -डाल का चूका बन्दर ,आषाढ़ का चूका किसान और अखाड़े में चूका पहलवान !
११-समय ,सेहत और सम्बन्ध इन तीनों पर कीमत का लेबल नहीं लगा होता,जब हम इन्हें खो देते हैं तब उनकी कीमत का पता चलता है !
* -गलती कबूल करने और गुनाह छोड़ने में कभी देर नहीं करनी चाहिए। अन्यथा सफर जितना लंबा होगा वापिसी उतनी ही मुश्किल होती चली जाएगी !
*-इंसान तब समझदार नहीं होता जब वह बड़ी -बड़ी बातें करने लगे ,बल्कि समझदार तो वह तब होता है जब छोटी-छोटी बातों को समझने लगे !
* -मंदिर में वो भगवान् है ,जिसे इंसान ने बनाया है। घर में वो माँ -बाप हैं ,जिन्होंने हमें बनाया है।
*-एक मिनिट में जिंदगी नहीं बदलती ,किन्तु एक मिनिट 'सोचकर' लिया गया फैसला,जिंदगी बदल सकता है !
*- हमारी दुर्लभ मानव देह सोने के पात्र के समान है। इसमें हिंसा ,स्वार्थ ,धर्मांधता ,साम्प्रदायिकता ,जातीयता और विलासिता का कूड़ा -करकट भरने के बजाय ,सदविचार ,सदाचार,और मानवता के क्रांतिकारी विचारों का अमृत भर दो !
सङ्कलन :-श्रीराम तिवारी
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