' रोम जल रहा था और नीरो वाँसुरी बजा रहा था' - यह बहुश्रुत आप्तवाक्य हो चूका है। भारत की भी अभी तक तो यही नियति रही है। शाइनिंग इंडिया और फीलगुड जैसे नारों के दौर में ठगे जाने के वावजूद देश की आवाम ने यूपीए सरकार की गफलतों से आजिज आकर पुनः एनडीए पर दावँ लगाया। लेकिन महज तेरह महीने बाद ही 'मोदी सरकार'रुपी पूत के पाँव पालने में ही दिखने लगे हैं। वैसे तो आत्मघाती नीतियों के चलते वर्षों पहले से ही इस देश पर आर्थिक ,सामजिक और विदेश नीति गत संकट मंडराते आ रहे हैं। लेकिन अब वर्तमान मोदी सरकार भी इन बिकट चुनौतियों से आँखे चुरा रही है। मध्यप्रदेश में तो व्यापमकांड ,डीमेट कांड में हो रहीं निर्मम हत्याओं को आत्महत्या बताया जा रहा है। उधर कंन्द्र में ललितगेट कांड घोटालों में फंसी नेत्रियों - मन्त्राणियों की काली करतूत पर कालजयी चुप्पी धारण की जा रही है।भाजपा शासित प्रदेशों में किसानों - मजदूरों के आन्दोलनों पर पुलिसिया अत्याचार किये जा रहे हैं। जनता के सवालों की अनदेखी की जा रही है। वर्तमान सत्तारूढ़ नेतत्व अपने अंदरूनी संकट को भी देश पर लादने की भरसक कोशिश कर रहा है।
प्रायः देखा गया है कि जब भी किसी भाजपाई नेता या मंत्री के 'सतकर्मों' का भांडा फूटता है तो वह स्वयं शुतुरमुर्ग हो जाता है। नेता या नेत्री विशेष की इस संकटापन्न अवस्था में उसके सहोदर भाजपाई सबसे ज्यादा खुश होते हैं। महाराष्ट्र में यदि पंकजा मुण्डे या मिस्टर तोड़ासे पर भृष्टाचार के आरोप लगते हैं तो सीएम फड़नवीस मन ही मन प्रमुदित होते हैं। क्यों की महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव उपरान्त जब फड़नवीस को मुख्यमंत्री नामजद किये जाने की तैयारी चल रही थी, तब पंकजा गोपीनाथ मुण्डे और तावड़े -दोनों ही मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल थे। फड़नवीस यदि अब खुश हैं तो उनकी चुप्पी से यह जाहिर भी हो रहा है। इसी तरह सुषमा ,वसुंधरा ,सुधांसु मित्तल या वरुण गांधी पर आरोप लगने की स्थति में बीजेपी के अंदर और सत्ता के अंदर सबके अपने -अपने बहाने हैं। कौन किसके संकट पर खुशियाँ मना रहा है यह सब स्पष्ट दिख रहा है।
सिर्फ 'न खाऊंगा न खाने दूँगा ' की भीष्म प्रतिज्ञा खंडित होने पर ही नहीं, बल्कि राह के कांटों से बिन मांगे मुक्ति की सफलता पर कौन है जो 'मौन' धारण नहीं कर लेगा ? आडवाणी , सुषमा,ठाकरे ,वसुंधरा में से कोई भी कभी भी 'नमो' समर्थक नहीं रहा। सुधांसु मित्तल ,वरुण और अन्य जो इन दिनों ललित मोदी के निशाने पर हैं वे सभी कभी न कभी नरेंद्र मोदी के मूक आलोचक ही रहे हैं। इसीलिये अब बड़े मोदी जी ने छोटे मोदी की 'तोतली बातों' पर मौन धारण कर रखा है। अम्बानी-अडानीया स्मृति ईरानी के आलावा जो कोई भी खाता - पीता फंसा की उसकी शामत आयी समझो !
स्मृति ईरानी को नकली डिग्री के फेर में संकट ग्रस्त देख अकेले मुरली मनोहर बाबा ही नहीं बल्कि सैकड़ों खानदानी 'संघी' और 'संघमित्राएं',मन ही मन प्रमुदित हो रहीं हैं। मानों ये सब के सब पृथापुत्र या पुत्रियाँ हों व् स्मृति ईरानी रुपी कर्ण के रथ का पहिया रक्तरंजित कुरुक्षेत्र के मैदान में धस गया हो !जब कोई भाजपा प्रवक्ता इन अपराधग्रस्त नेताओं या नेत्रियों की वकालत के लिए अपना मुँह खोलता भी है तो उसकी हालत राम माधव जैसी हो जाती है। राम माधव जो संघ से भाजपा का उद्धार करने पार्टी में भेजे गए हैं ,उन्होंने योग दिवस पर उपराष्ट्रपति को भी लपेट लिया। इन राम माधव की लू और किसी ने नहीं बल्कि उन्ही की सरकार के 'आयुष' मंत्री ने उतारी है। उन्ही की पार्टी की सरकार के मंत्री जी ने खुलासा किया कि उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को तो प्रोटोकॉल के तहत बुलाया ही नहीं गया। विपक्ष के हमलों के आगे 'पार्टी विथ डिफ़रेंस' -भाजपा और विकास -सुशासन के नारों वाली -मोदी सरकार दोनों ही का चाल -चरित्र -चेहरा विद्रूप हो चला है। देश के स्वतंत्र मीडिया ने भी सत्ता के घात-प्रतिघात और आघात सहते हुए भी अपनी शानदार भूमिका का निर्वहन किया है। लेकिन भाजपा नीति मोदी सरकार के मंत्री मुख्यमन्त्री की कीर्ति पताका पूंछ रही है कि क्या संघ की शाखाओं में यही सिखाया जा रहा है? 'किम तस्मात् त्वं बंधुहन्ता' भव !'
यूपीए के दौरान दस वर्षीय शासनकाल में देश को दिशाहीन नीतियों देकर ,घोटालों के जंजाल में फंसाकर कांग्रेसी 'हाईकमान' भी इन दिनों मानसून की तरह मानचित्र से गायब है। दिग्विजयसिंह ,जयराम रमेश जैसे दो-चार कांग्रेसी ही किला लड़ा रहे हैं। बाकी सब तो अतीत के सत्ता सुख भोग के नॉस्टेलजिया में ही मस्त हैं। विगत सत्र के दरम्यान राहुल गांधी ने कुछ अधकचरे वामपंथी तेवर दिखाए थे. किन्तु उन्हें यह ज्ञान नहीं है कि भाषण देना आसान है लेकिन नीतियों -कार्यक्रमों का जनतंत्रीकरण कठिन है। कांग्रेस को पहले अपने राष्ट्रीय अधिवेशनों में यह तय करना होगा कि उनकी यूपीए -२ की मनमोहनी नीतियां गलत थीं। उन्हें देश की आवाम के समक्ष -मजदूर -किसान परस्त वैकल्पिक नीतियों का खाका प्रस्तुत करना होगा। अकेले दो-चार लच्छेदार वामपंथी जुमले जड़ देने से वे सर्वहारा के नायक नहीं बन जाएंगे !जातीयता और साम्प्रदायिकता पर भी उन्हें बहुसंख्यक हिन्दुओं की भावनाओं का ख्याल रखना होगा। कांग्रेस द्वारा सिर्फ अल्पसंख्यक राग गाते रहने से बहुसंख्यक हिन्दू समाज कांग्रेस से कोसों दूर हो गया है। इसी तरह वामपंथ और तीसरे मोर्चे की भी हालत कुछ ज्यादा आशाजनक नहीं है। जनता परिवार वाले भी जनता के समक्ष विश्वश्नीयता खो चुके हैं।
केवल देश का मजदूर और किसान आंदोलन ही जागृत है। केंद्रीय श्रम संघों की अभियान समिति के आह्वान पर आगामी दिनों में विशाल पैमाने पर राष्ट्रव्यापी हड़तालों का आह्वान किया गया है। न केवल सीटू-एटक जैसी वामपंथी ट्रेड यूनियन बल्कि कांग्रेस समर्थित इंटक और भाजपा समर्थित ' भारतीय मजदूर संघ' भी इस संघर्ष में शामिल हैं। केंद्रीय स्वतंत्र फेडरेशन और राज्य सरकारों के कर्मचारी तथा ठेका मजदूर भी अब अत्याचार के खिलाफ उठ खड़े हुए हैं। हायर-फायर की नीति और जमीन हड़पो की नीति पर देश के अधिकांस मजदूर -किसान कोई समझौता नहीं करने वाले हैं ! वर्तमान मोदी सरकार यदि इसी तरह पूंजीपतियों और घोटाले बाज तत्वों की हितकारिणी बनी रही और उसके मंत्री मंडलीय साथी इसी तरह घोटाले बाजों का साथ देते रहे तो यह संघर्ष और तेज होगा। मध्यप्रदेश के व्यापम जैसे भयानक कांडों में हो रही दर्जनों मौतों पर मुख्यमंत्री की ओर भी अंगुली उठ रही है ,राजस्थान में सरकारी सम्पदा पर नेताओं का निजी कब्जा हो रहा है और महाराष्ट्र में ठेकों के घोटाले हो रहे हैं । यदि यह सब इसी तरह होता रहा तो 'मोदी' सरकार' अगले चुनाव में जनता को मुँह दिखाने लायक नहीं रहेगी !१९८४ में भाजपा के सिर्फ दो ही सांसद जेट पाये थे। कहीं २०१९ में भाजपा का पुनर्मूषको भव : तो नहीं होने जा रहा है ?
श्रीराम तिवारी
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