रविवार, 12 जुलाई 2015

मानसिक गुलामी और भृष्टाचार का अक्स तो भारतीय परम्परा में सनातन से मौजूद है।

   अक्सर देखा गया है कि इमारती लकड़ी के लिए जंगल में सबसे पहले सीधे -सुडौल और सुदर्शन पेड़ को ही काटा जाता है। उबड़- खाबड़ -आड़े-टेड़े पेड़ों की तरफ तो लकड़ी काटने वाला नजर उठाकर भी नहीं देखता ।  मानव  समाज में भी सीधे  -सरल  नर-नारियों  की  कुछ यही दशा है। शराफ़त  और कायदे से जीवन यापन करने वाले  व्यक्ति को शासन-प्रशासन में बैठे लोग- वर्गीय समाज के धूर्त-बदमास तत्व चैन से नहीं जीने देते। विधि व  क़ानून  का सम्मान करने वाले को 'चुगद' याने  बौड़म समझा जाता है। बदमाश तत्व  सबसे पहले इन्हे ही शिकार बनाते हैं। यह अमानवीय -असामाजिक  बीमारी  सारे 'सभ्य' संसार में समान रूप से व्याप्त है। भारत भी इस बीमारी  के गर्त में आकंठ डूबा हुआ है। भारतीय निरीह जनता दुनिया में सर्वाधिक आक्रान्त है।यहाँ की लोकशाही का वैसे तो दुनिया में बड़ा नाम है किन्तु अंदरूनी स्थति बहुत  भयावह और निष्ठुर है।

                   भारत की अधिकांस  पूँजीवादी राजनैतिक पार्टियाँ -भाजपा,कांग्रेस ,सपा ,तृणमूल कांग्रेस इत्यादि के निरंकुश   शासन-व्यवस्था  के वीभत्स दौर में  शरीफ  प्रजाति के नागरिकों ,छात्रों, युवाओं, मजदूरों, किसानों  तथा आम आदमी का कहीं भी बिना रिश्वत दिए जीवित रहना दूभर हो  चुका  है।आप यदि धनवान हैं तो रिश्वत  देकर उल्लू सीधा कर सकते हैं। ये  आप बाहुबली और 'दवंग' हैं तो आप मंत्री -सांसद के खास हो सकते हैं यदि आप सत्ता की चूल हिलाने की ताकत रखते हैं तो  शौक से हत्या ,बलात्कार,लूट -शोषण कुछ भी कीजिये। आप  का कोई बाल बाँका नहीं कर सकता। लोकपाल ,लोकायुक्त,एसटीएफ ,सीबीआई या ईडी कोई भी आपकी निजी जीवंतता  पर -आपके आचरण पर अंगुली नहीं उठा सकता। यदि आप सत्तारूढ़ पार्टी के कर्णधार हैं तो लोकतंत्र  - सम्विधान और व्यवस्था सभी आपके सामने भूलुंठित होने को आतुर हैं।

                              यदि आप  इस वर्गीय समाज  की राज्य सत्ता के नापाक चलते -पुर्जे हैं, तो आप की बीसों अंगुलियाँ घी में हैं। आपका  सर कढ़ाई मे पक्का समझिये । आपके हरेक  जायज - नाजायज और  उलटे -सीधे काम  चुटकियों में  घर बैठे हो जायंगे। 'खास' लोगों के लिए यही इस पूँजीवादी  व्यवस्था का चलन है। लेकिन  यदि आप  'आम' आदमी हैं ,सत्तासीन वर्ग द्वारा किये जा रहे दुराचार,व्यभिचार और लूट के विरोधी हैं तो आप को  चाहे-अनचाहे एमपी  जैसे   'व्यापम ' के भूत याने 'व्यवसायिक परीक्षा मंडल 'की वैतरणी में डुबकी लगाने  और  मरने को विवश किया जा सकता है।

                  मध्य प्रदेश में इन दिनों व्यापम फर्जीवाड़े  के खिलाफ चिन्हित गवाहों और  व्हिसिलब्लोअर को ही नहीं बल्कि सत्तारूढ़ नेताओं और अफसरों को भी अपने प्राणों की चिंता सत्ता रही है। शनेः -शनेः  जिस तरह  कुख्यात बलात्कारी आसाराम के खिलाफ  सारे सबूत और  गवाह   खत्म कर दिए गए ठीक उसी तरह व्यापम  से संबंधित  कोई भी सुरक्षित नहीं है। सभी जानते हैं कि वर्तमान महाभृष्ट निजाम और अधोगामी व्यवस्था  के सौजन्य से इन सबका असमय ही कलवलित होना तय है।यह व्यापम महामारी - मध्यप्रदेश ,छग यूपी ,बिहार, राजस्थान ,महाराष्ट्र, कर्नाटक ,बंगाल और  गुजरात  तक फैली हुई  है। यह केवल संयोग नहीं है कि  देश भर के अंधश्रद्धा केन्द्रों ,पैसा बटोरू मजहबी संस्थानों, विश्वविद्यालयों ,मंत्रालयों ,सरकारी विभागों ,अकादमिक - संस्थानों  तथा चिकित्सा  क्षेत्रों में जगह -  जगह व्याप्त है। इनमें जिनकी पैठ है उन  महाठगों  -महाधुर्तों के ही  अच्छे दिन आये हैं। योग्यता वाले को हर किस्म के विकास व शिक्षा ,सेवा क्षेत्र में कहीं कोई सम्मान या अवसर नहीं हैं। आरक्षण वालों को , मुन्ना भाइयों -मुन्नी बहिनों को और अनैतिक रिश्तों के रुतवे - रूप सौंदर्य वालों को , पैसे धइले और वोट  कबाड़ू क्षमता वालों को ,जातीय -साम्प्रदायिक आधार पर जनता को आकर्षित करने वालों को -उनकी  उपादेयता  के आधार पर इस व्यवस्था में सब कुछ उपलब्ध है।यहाँ तक की नकली डिग्री वाले या वाली को मंत्री पद भी उपलब्ध है।

                   यदि इस बदनाम व्यवस्था रुपी काजल की कोठरी में कोई भगतसिंह,राजगुरु,सुखदेव या बिस्मिल   जैसा क्रांतिकारी , गाँधी -लाल बहादुर शाश्त्री जैसा देशभक्त  'धर्मपुत्र' वहाँ  किसी तरह पहुँच भी गया तो इस व्यवस्था के प्रभुत्ववादी  नकारात्मक तत्व उसे बलात   दागदार बनाकर आत्महत्या करने पर ही मजबूर कर देंगे। यदि कोई इस चाल से भी बच गया तो उसके सीने पर सुभाषचन्द्र बोस या चंद्रशेखर आजाद जैसा शहादत का तमगा चिपकाकर श्रद्धासुमन चढ़ाने लग जायेंगे। यदि  कोई इस फेर में नहीं आया तो उसे  अपने दानव कुल अर्थात 'बुर्जुआ कुनवे ' में जबरन शामिल  कर- जयप्रकाश नारायण या अटलबिहारी बना देंगे।इतने पर भी यदि  कोई सिरफिरा इस अधोगामी व्यवस्था के  हितों के अनुरूप आचरण नहीं करता तो उसे जहरीले व्यापम काण्ड  के 'मृत' गवाहों या दुष्कर्मी आसाराम के 'स्वर्गीय' गवाहों की तरह असमय ही  'यमलोक'  पहुंचा दिया जाएगा ।

             वर्तमान व्यवस्था में  यदि कोई नेता या सामाजिक कार्यकर्ता  अपराधी नहीं भी लेकिन यदि वह औरों के अपराधों अनदेखी करता है  तो उसे जबरन 'मोनी' याने मन मोहनसिंह बना दिया जाता है। ऐंसा लगता है कि  इस राक्षसी संहारक व्यवस्था से आक्रान्त होकर ही वर्तमान  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 'मौन' धारण किया हुआ  है। पापी आसाराम  दुष्कर्म काण्ड के  गवाहों को तो मोदी जी भी नहीं बचा पाये।  वे व्यापम घोटाले में मारे गये , पकडे गए या गायब किये गए  गवाहों  को नहीं बचा पाये। जब मोदी जी नहीं बचा पाये तो शिवराजसिंह चौहान कैसे बचा पाते। मारे गए गवाह या अन्य संबंधित  शख्स सबके सब पैदायशी बदमाश या अपराधी नहीं थे। वेशक इस भृष्ट वर्गीय  समाज में पूर्व से ही पैठ बना चुके आपराधिक  नेटवर्क ने ही उन्हें मारा है।

   आसाराम  के खिलाफ या  व्यापम काण्ड के  गवाह विशेष  को यदि  राज्य सरकारें और केंद्र सरकार सुरक्षा ही नहीं दे सकी  तो इसमें अब  सीबीआई जाँच से किसे लाभ होने जा रहा है ?    उन्हें क्या लाभ  हो सकता है  जिनका जीवन ही बर्बाद  हो चूका है ?  इन मारक  घोटालों-फर्जीवाड़ों की सीबीआई  जांच  के द्वारा यह जान लेने पर कि  गुनहगार कौन है ? पीड़ितों का क्या फायदा होगा ? किसी अपराधी को साल-दो साल की सजा मिल जाने से मारे गए  निर्दोषों को और भारतीय लोकतंत्र को क्या हासिल होगा।?

                                 जब  मध्यप्रदेश के महामहिम राज्यपाल का दिवंगत  पुत्र ही  व्यापम भृष्टाचार की भेंट  चढ़ गया  तो बाकी की क्या  बिसात है ?  सत्तारूढ़ नेता ,अफसर , पैसे वालों  के रिश्तेदार और  उनकी ओलादों को उपकृत  किये  जाने की खबरें कोई नयी और आकस्मिक  नहीं है। मानव सभ्यता के इतिहास में सबल मनुष्य द्वारा निर्बल मनुष्य का शोषण ,सबल समाज द्वारा निर्बल समाज का शोषण और सबल राष्ट्र  द्वारा निर्वल  राष्ट्र के शोषण का सिलसिला जितना पुराना है। भाई-भतीजावाद और भृष्ट तत्वों के संरक्षण का इतिहास भी उतना ही पुराना है। यही दस्तूर आजादी और लोकतंत्र से भी पहले  भारत में भी चला आ रहा है। ये सिलसिला  तो तुगलकों, खिुलजियों और  सल्तनतकाल  जमाने से ही चला आ रहा है । सात समंदर पार से जब योरोपियन  और अंग्रेजों  पधारे  तो  उन्होंने भी २०० साल तक भारतीय जनता को 'क्लर्क'   के लायक  भी नहीं समझा। जब १८५७ की क्रांति या विद्रोह असफल  हुआ तो  महारानी विक्टोरिया ने चंद  हिन्दुस्तानियों को और कुछ  देशी  राजाओं   को अपनी नौकरशाही में छोटे पदों पर 'सेवाओं' की इजाजत दी। उन्हें में से कुछ वकीलों और बॅरिस्टरों ने देश को आजाद कराने का सपना देखा।आजादी के बाद कांग्रेस और भाजपा के नेताओं नेताओं ने  तथा  देश के चालाक  सभ्रांत वर्ग ने इसी परम्परा को परवान चढ़ाया।

                         आज  कांग्रेस बड़ी हरिश्चंद्र बन रही है। ,व्यापम के खिलाफ भारत बंद में 'वाम मोर्चे' की नकल कर रही है। इसी  कांग्रेस के ६० सालाना  दौर में आजादी के बाद देशी पूंजीपतियों -भूस्वामियों और कांग्रेस के नेताओं के खानदानों को ही शिद्द्त से उपकृत किया जाता रहा है। एमपी छग में द्वारिकाप्रसाद मिश्रा से लेकर  - शुक्ल बंधूओं तक ,अर्जुनसिंहसे लेकर  ,प्रकाश चंद सेठीतक  ,सोलंकी ,जोगी से लेकर   दिग्विजयसिंह तक कोई भी उस 'अग्निपरीक्षा' में सफल होने का दावा नहीं कर सकता। जिसके लिए उन्होंने बार-बार संविधान की कसमें खाईं  होंगी कि - ''बिना राग द्वेष ,भय,पक्षपात के अपने कर्तव्य का निर्वहन करूंगा  ......."     

                                  यदि  'संघ परिवार' वाले और उसके अनुषंगी भाजपाई भी उसी 'भृष्टाचारी परम्परा' का शिद्द्त से  निर्वाह  किये जा रहे हैं ,जो  परम्परा और 'कुलरीति' कांग्रेस ने बनाई है तो किसी को आश्चर्य  क्यों  ?  सवाल किया जा सकता है कि  कांग्रेस और भाजपा के भृष्टाचार में  फर्क  क्या है ?  जो लोग कभी कांग्रेस को 'चोर' कहा करते थे वही लोग  इन दिनों भाजपा को 'डाकू' कहने  में जरा भी नहीं हिचकते।  चोर और डाकु में जो भी फर्क है वही कांग्रेस और भाजपा का चारित्रिक अंतर है।  कुछ  लोगों को इन दोनों में एक फर्क  'संघ' की हिंदुत्व वादी खंडित मानसिकता का भी दीखता है। वैसे तो  कांग्रेस ने पचास साल तक  पैसे वालों व जमीन्दारों को ही  तवज्जो  दी है। किन्तु यूपीए के दौर में वाम के प्रभाव में कुछ गरीब परस्त काम भी किये गए। यदि आज आरटीआई ,मनरेगा और मिड डे मील  दुनिया में  प्रशंसा पा रहे हैं  तो उसका कुछ श्रेय तो अवश्य ही  वामपंथ को जाता है ।
        
               भाजपा नेताओं  द्वारा अम्बानियों-अडानियों  को साधने और उनकी मनुहार या सदाशयता का भी  कुछ अंतर  तो जरूर कांग्रेस से जुदा  है। सत्तारूढ़ भाजपा नेताओं के अपने निजी  चाल-चरित्र-चेहरे  का भी कुछ  अंतर तो अवश्य  है। राष्ट्रवाद की  झूंठी दुहाई और बड़बोलेपन का भी कुछ अंतर तो अवश्य  है। लेकिन कांग्रेस  और भाजपा के सत्तासीन होने उपरान्त किये गए भृष्टाचारी आचरण में रत्ती  भर का अंतर नहीं है। यह तो वक्त की मार का तकाजा था कि मनमोहनसिंह जैसा ईमानदार व्यक्ति बदनाम किया गया। जबकि खाया-पीया खाँटी बिचोलियों ,जीजाओं और धरतीपकड़ कांग्रेसियों  ने। इसी तरह अब मोदी जी भले ही कहते रहें कि  'न खाऊंगा और न खाने दूंगा 'किन्तु खाने वाले तो खा रहे हैं। मध्यप्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे देश में कौन कितना खा रहा है ? ये सब भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र  मोदी जी को अवश्य  मालूम  होना चाहिए । मुझे विश्वाश है कि उन्हें सब कुछ मालूम है। चूँकि बताने से उनके ही कथन की रुसवाई होगी ,इसीलिये शायद  वे भी अब महज भृष्टाचार के बरक्स  'मनमोहनसिंह जैसे  मौनी बाबा हो गए हैं।

                         कांग्रेस और भाजपा के या यों  कहैं कि  मोदीजी  और मनमोहनसिंह जी के दौर के भृष्टाचार में एक फर्क  'प्रोपेगेंडा' का  भी  है। मोदी जी ने सूचनाएवं  संचार तंत्र का  भरपूर इस्तेमाल करते हुए  कांग्रेस मुक्त भारत का एजेंडा आगे  बढ़ाया है। जबकि कांग्रेस के नेता  अपने  अपरिपक्व ' हाई कमान' के आगे सिर्फ  'गणेश परिक्रमा' में ही लींन  रहे। वे देश जनपथ के आगे ही  नत्मस्तक होते रहे।जीजा जी ने भी कांग्रेस को कुछ  रुस्वा  ही किया है।  इसके अलावा इस दौर में  एक फर्क आरटीआई -मीडिया तथा संचार तंत्र की आधुनिक सम्पन्नता का भी  है। जिस तंत्र ने कांग्रेस को उसके गर्त के अंजाम तक पहुँचाया उसी तंत्र ने १६ मई-२०१४ को एनडीए याने मोदी सरकार को  अब उच्च शिखर पर बिठाया है । मोदी जी की पार्टी  की सरकार मध्यप्रदेश और राजस्थान में भी  है। दोनों जगह महत्वपूर्ण गवाहों को मरा जा चुका  है। मध्यप्रदेश में  व्यापम भृष्टाचार  रुपी  भुजंग ने शिव  राज का गला दवोच रखा है और राजस्थान में न केवल ललित मोदी की दोस्ती ने बल्कि बलात्कारी आसाराम  की  जहरीली  नागफाँस ने वसुंधरा जी को जकड़ रखा है ! अभी तो ये दोनों ही नरेंद्र मोदी की कृपा के पात्र हैं।

                       मनोवैज्ञानिक कहते आ रहे हैं कि  साधारण नागरिक न तो  कोई   बड़े क्रांतिकारी  बन सकते हैं और न ही  वे कोई बहुत बड़े अपराधी ही बन सकते हैं।औसत बुद्धि वाले  नर-नारी  अपनी अक्ल  का बहुत थोड़ा हिस्सा ही इस्तेमाल  करते हैं। इसके विपरीत रेवोलुशनरी या अराजक तथा आपराधिक और अनीतिगत जीवन जीने वाले शख्स  उससे कई  गुना अधिक बुद्धि का 'सदुपयोग' या 'दुरूपयोग' करते देखे गए हैं। मुझे उम्मीद है  कि मेरे इस अध्यन  से मनोवैज्ञानिक ,समाजशास्त्री और  आधुनिक शरीर - विज्ञानी भी शायद कुछ तो सहमत होंगे। स्वाधीनता संग्रामों और विभिन्न समाजवादी क्रांतियों का इतिहास हमें बताता है कि  समाज में कुछ खास किस्म की बौद्धिक तथा जीवटता के शख्स जब अपनी जिद पर आते हैं तो वे समाज से ,देश से गुलामी की जंजीरे भी तोड़ डालते हैं। इस दौर में भी ऐंसे क्रांतिकारी लोग हैं जो देश ,समाज  को शोषण मुक्त करने के लिए निरंतर संघर्षरत हैं। भले ही वे मुठ्ठी भर वामपंथी ही क्यों न  बचे हों ?

                   इतिहास के हर दौर में अपराधिक और अराजकता का शैतानी परचम फहराने वाले भी असाधारण बौद्धिक प्रतिभा के  धनी  हुआ करते हैं। वे चाहे सीरिया -इराक  के आईएसआईएस वाले हों ,वे चाहे यमन -सूडान  में बोको हरम वाले हों , वे चाहे अफगानिस्तान-  पाकिस्तान के  तालिवान वाले हों , वे चाहे अलकायदा -लश्करे तोइबा वाले हों  ,वे चाहे जमात-उड़ दावा वाले हों ,वे चाहे कश्मीर के अलगाववादी और भारत के नक्सलवादी हों , वे चाहे सिमी-मुजाहदीन वाले हों, वे चाहे जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान का झंडा फहराने वाले हों ,वे चाहे मिल्लत  या  'दुख्तराने -हिन्द' वालियां हों, ये सभी असाधारण  बुद्धि-चातुर्य  वाले नर-नारी ही  शैतान के वशीभूत होकर  सीधे और सरल समाज को ध्वस्त  करने में जुटे रहते हैं। वेशक इन विध्वंशकों की  बौद्धिक प्रतिभा आम आदमी से उग्र और क्रियाशील हुआ करती है। किन्तु संहार और सृजन में या संहार या पालन में फर्क तो होता ही है।

                     हालाँकि  ऐसा नहीं है कि एक आम और शरीफ इंसान की  बुद्धि  किसी बदमाश से कमतर होती है। दरसल उससे कई गुना ज्यादा पाई जाती है। किन्तु सामान्य बुद्धि वाले को  अहिंसा  ,दया  ,सत्य  ,करुणा ,क्षमा  और  लोक-परलोक  की  मानवीय  सम्वेदनाएँ जो वंशानुगत  मिलती हैं वे उसे नकारात्मक और विध्वंशक तत्वों के समक्ष  शिथिल कर देतीं हैं। एक  सज्जन व्यक्ति को मानवीय मूल्यों की उच्चतर  धारणाएं 'धर्मभीरु' बना देती  हैं। जबकि घल्लू घारा वाले उग्रवादी - भिंडरावाले , इंदिराजी की हत्या करने वाले अन्ते-बनते ,१९८४ के दंगों  वाले ,चिकमगलूर हत्याकाण्ड  वाले ,मुंबई हत्याकांड वाले , २६/११ वाले ,९/११ वाले ,कंधार वाले , बिरयानी वाले , गोधरा काण्ड वाले ,गुजरात  दंगे वाले ,कश्मीर में नरसंहार वाले , सीमाओं पर धोखे से सैनिकों की मुंडियां काटने वाले ,नकली बुलेटप्रूफ जैकेट वाले , ताबूत की दलाली खाने वाले , अमरनाथ यात्रा पर गए निहत्ते हिन्दू  तीर्थयात्रियों पर पथराव  करने वाले ,कोकराझार वाले  ,सीरम घाटी में नरसंहार करने वाले, हवाला घोटाला वाले  चारा  वाले ,कोयला वाले ,तेल -खेल-टूजी -  थ्रीजी स्पेक्ट्रम घोटाला वाले,  चिट फंड वाले,स्विश बैंक खाते वाले  और ये मध्यप्रदेश के 'जांवाज' व्यापम फर्जीवाड़े वाले - सब के सब असाधारण प्रतिभा सम्पन्न ही थे या हैं। ये बात अलहदा है कि  इन शैतानी ताकतों को दुनिया की विभिन्न राजयसत्ताओं  के द्वारा  निहित स्वार्थपूर्ति के लिए ही  पाला -पोषा जाता है।  नेकनीयत  और अमनपसंद  आवाम  की यह बुर्री आदत है कि इन  नापाक  और  पाशविक शक्तियों  से खुद एकजुट होकर  लड़ने की बजाय किसी 'हीरो' अवतार ,अण्णा  या 'नमो' पर ज्यादा निर्भर हो जाया करते है। खुद को अकिंचन और निर्बल जानकर ,अपने आप को  मंदिर के बाहर का दींन -हीन  निर्धन सुदामा मानकर-  बेईमान शासकों को कृष्ण की मानिंद  मंदिर के गर्भगृह में बिठा देती है ?

                                                     :-श्रीराम तिवारी :-   

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