आज से ९२ साल पहले आज की ही तारीख{१३-अप्रैल-१९१९}को ब्रिटिश आतताइयों के क्रूर कलंकी जनरल डायर के आदेश पर ,जलियाँ वाला बागमें निहत्थे आबाल-बृद्ध-नर -नारियों को जिस अमानवीयता ,हैवानियत और न्रुशंश्ता से क़त्ल कियागया था; उस शहादत का ,उस बलिदान का असर था कि न केवल जंगे आज़ादी की हुलस परवान चढी, बल्कि साम्राज्वादी दुहरे शोषण का प्रतिकारअवतरित हुआ.इस लोमहर्षक मर्मान्तक सहस्त्र जन-नर संहार से न केवल पराधीन भारत की सम्पूर्ण आवाम ने असह वेदना के आंसू बहाए बल्कि तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत ने ब्रिटेन की आवाम के दवाव में जनरल डायर को इस वीभत्स -निरंकुश कार्यवाही के लिए जिम्मेदार मानकर उसे दण्डित किया.भारतीय स्वधीनता संग्राम को ऐंसी ही कुर्वानियों की बदौलत ये आज़ादी हासिल हुई की भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक राष्ट्र बनकर सीना ताने दुनिया के सामने शान से खड़ा है. इस दौर में नकारात्मक परिवर्तनों की लहर है.जिसे बदला जाना चाहिए उस कुरीत या परम्परा को महिमा मंडित किया जा रहा है ,जिसे अक्षुण रखा जाना चाहिए जैसे की शहीदों के बलिदान ,विचार और राष्ट्र निर्माण के हेतुक,वे भुलाये जा रहे हैं या मिटाए जा रहे हैं.संचार एवं सूचना प्रौद्द्योगिकी का इस्तेमाल समाज का इलीट क्लास ही कर पा रहा है.साधनहीन हासिये पर खड़ा इस ओउचक संसाधन को उजबक की नाईं निहारकर चमत्कृत है. उसे क्या गरज पडी कि यह जाने कि किसने ?कब?किसके?लिए क्या कुर्वानी दी?कि अब उसके क्या मौलिक और सार्वजनिक अधिकार एवं कर्तव्य है?क्योंकि कुर्वानियों का इतिहास तो १५ अगस्त,२६ जनवरी और २ अक्तूबर के लिए आरक्षित है.पूरी एक अरब आबादी इन तमाम सरोकारों से महरूम है.क्योकि उसे या तो खेत जोतने जाना है ,या सडको पर डामरीकरण -कांक्रीटीकरण करना है ,भवन बनाना है!बाकि कि आबादी का बड़ा हिस्सा प्रतिस्पर्धी माहोल का मसीनीकृत निरीह प्राणी है.अब जो बचे वे तो चोरी -चकारी-हत्या और लूटपाट या रिश्वत ,मिलावट ,जमाखोरी मुनाफाखोरी के फेर में पूँजी के गुलाम है फिर वास्तिविक राष्ट्रीय कौन?
अनेक कारणों ने शहीदभगतसिंह,सुखदेव,राजगुरु,और चंद्रशेखर आज़ाद जैसे अनेक युवाओं को भारत के स्वधीनता संग्राम की अहिसा वादी दिशा को चुनौती देने पर मजबूर किया".हिन्दुस्तान सोसलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी " का उद्देश्य ,कार्यक्रम और नीतियां तब खुलकर दुनिया के सामने आयीं जब asemvli bam kand केस की सुनवाई में शहीद भगतसिंह ने तत सम्बन्धी वयान जारी कर भारतीय जन-मानस में साहस का संचार किया.चूँकि इसी दौरान सम्पन्न सोवियत अक्तूबर क्रांति ने सारी दुनिया के यवाओं को उद्देलित किया था अतः यह स्वभाविक ही था की भारत का पढ़ा लिखा संघरशील नौजवान तबका उस महानतम क्रांति से उत्प्रेरित होने को बेताब था.शहीद भगत सिंह ने तो जजों के सामने जो वक्तव्य रखा वो भारतीय इतिहास की वेमिसाल धरोहर है.उन्होंने कहा था "तुम साम्राज्य के नौकर हो जिसने भारत की जनता को गुलामी की बेड़ियों में जकड रखा है,हम ब्रिटश हुकूमत से युद्धरत हैं अतः हमे युद्ध बंदी के रूप में गोलियों से उड़ा दिया जाये!"इसी क्रम में उन्होंने फंसी के तख्ते से भारतीय जनता -जनार्दन से आह्वान किया था कि"हम वोलशेविक हैं""जब तलक दुनिया में सबल राष्ट्रों द्वारा निर्वल राष्ट्रों का शोषण होता रहेगा ,जब तलक सबल समाज द्वारा निर्वल समाजों का शोषण होता रहेगा ,जब तलक ताकतवर मनुष्य कमजोर पर जुल्म करता रहेगा ,क्रांती के लिए हमारा संघर्ष जारी रहेगा"{देखें पुस्तक- सिहावलोकन-मन्मथनाथ गुप्त}बताया जाता है कि जलियांवाला नर संहार के समय जो थोड़े से इंसानजो जीवित बच गए थे ,उसमें बालक भगतसिंह{उम्र-९ वर्ष} भी थे.
आज के दौर के युवाओं को शहीद भगत सिंह या जालियां वाला बाग़ के नर संहार का अवदान स्मरण है या नहीं ये तो वे ही जाने किन्तु 'बीडी जलाई ले ...जिगर में बड़ी आग है...से लेकर रोको मत तोको मत ...हमको प्यार करने दो"या भारतीय क्रिकेट टीम द्वारा किसी बाहरी टीम को पराजित किये जाने पर आधुनिक महानगरीय युवाओं के एक हाथ में सूरा और दूसरा हाथ अनेतिक खुरापात को मचलने लगता है.
जो लोग मोहाली या वानखेड़े के बहाने फीलगुड में आकर दो दो बार दीवाली मन चुके वे तथाकथित राष्ट्रभक्त आज जलियांवाला बाग़ के १७५० अमर शाहेदों को क्यों भूल गए ?
जंतर -मंतर पर दूकान सजाने वाले ,गांधीवाद का दम भरने वाले,देश में सतयुग लेन वाले,श्री-श्री ,योगेश्वर ,महान समाज सुधारक ,चिन्तक और इन सबको फ़ोकट में तिराने वाला मीडियातो {लाइव इंडिया को छोड़कर -जिसने पूरे १२ घंटे का समय उन महान शहीद सपूतों को दिया} अपनी गलाकाट प्रतिस्पर्धा के आवेग में राष्ट्र के वास्तविक सरोकारों से कोसों दूर है.
अनेक कारणों ने शहीदभगतसिंह,सुखदेव,राजगुरु,और चंद्रशेखर आज़ाद जैसे अनेक युवाओं को भारत के स्वधीनता संग्राम की अहिसा वादी दिशा को चुनौती देने पर मजबूर किया".हिन्दुस्तान सोसलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी " का उद्देश्य ,कार्यक्रम और नीतियां तब खुलकर दुनिया के सामने आयीं जब asemvli bam kand केस की सुनवाई में शहीद भगतसिंह ने तत सम्बन्धी वयान जारी कर भारतीय जन-मानस में साहस का संचार किया.चूँकि इसी दौरान सम्पन्न सोवियत अक्तूबर क्रांति ने सारी दुनिया के यवाओं को उद्देलित किया था अतः यह स्वभाविक ही था की भारत का पढ़ा लिखा संघरशील नौजवान तबका उस महानतम क्रांति से उत्प्रेरित होने को बेताब था.शहीद भगत सिंह ने तो जजों के सामने जो वक्तव्य रखा वो भारतीय इतिहास की वेमिसाल धरोहर है.उन्होंने कहा था "तुम साम्राज्य के नौकर हो जिसने भारत की जनता को गुलामी की बेड़ियों में जकड रखा है,हम ब्रिटश हुकूमत से युद्धरत हैं अतः हमे युद्ध बंदी के रूप में गोलियों से उड़ा दिया जाये!"इसी क्रम में उन्होंने फंसी के तख्ते से भारतीय जनता -जनार्दन से आह्वान किया था कि"हम वोलशेविक हैं""जब तलक दुनिया में सबल राष्ट्रों द्वारा निर्वल राष्ट्रों का शोषण होता रहेगा ,जब तलक सबल समाज द्वारा निर्वल समाजों का शोषण होता रहेगा ,जब तलक ताकतवर मनुष्य कमजोर पर जुल्म करता रहेगा ,क्रांती के लिए हमारा संघर्ष जारी रहेगा"{देखें पुस्तक- सिहावलोकन-मन्मथनाथ गुप्त}बताया जाता है कि जलियांवाला नर संहार के समय जो थोड़े से इंसानजो जीवित बच गए थे ,उसमें बालक भगतसिंह{उम्र-९ वर्ष} भी थे.
आज के दौर के युवाओं को शहीद भगत सिंह या जालियां वाला बाग़ के नर संहार का अवदान स्मरण है या नहीं ये तो वे ही जाने किन्तु 'बीडी जलाई ले ...जिगर में बड़ी आग है...से लेकर रोको मत तोको मत ...हमको प्यार करने दो"या भारतीय क्रिकेट टीम द्वारा किसी बाहरी टीम को पराजित किये जाने पर आधुनिक महानगरीय युवाओं के एक हाथ में सूरा और दूसरा हाथ अनेतिक खुरापात को मचलने लगता है.
जो लोग मोहाली या वानखेड़े के बहाने फीलगुड में आकर दो दो बार दीवाली मन चुके वे तथाकथित राष्ट्रभक्त आज जलियांवाला बाग़ के १७५० अमर शाहेदों को क्यों भूल गए ?
जंतर -मंतर पर दूकान सजाने वाले ,गांधीवाद का दम भरने वाले,देश में सतयुग लेन वाले,श्री-श्री ,योगेश्वर ,महान समाज सुधारक ,चिन्तक और इन सबको फ़ोकट में तिराने वाला मीडियातो {लाइव इंडिया को छोड़कर -जिसने पूरे १२ घंटे का समय उन महान शहीद सपूतों को दिया} अपनी गलाकाट प्रतिस्पर्धा के आवेग में राष्ट्र के वास्तविक सरोकारों से कोसों दूर है.
श्रीराम तिवारी
एडमिरल विष्णु भगवत,अन्ना हजारे और नकारात्मक लहरों के बारे में आपके विचार प्रेरक एवं अनुकरणीय हैं.दरअसल हजारे सा :सर्कार को संरक्षण देने हेतु ही आगे आये हैं और क्रांतिकारी शहीदों को जान-भूज कर उपेक्षित किया गया है अन्यथा शोषण कारी शक्तियां कैसे खरी रहतीं.
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