अर्जित किया है तो वह एक मात्र भारत ही है जो दुनिया का पहला दिग्विजयी क्रिकेट सम्राट है.
१९८३ को कपिलदेव की कप्तानी में भारतीय क्रिकेट टीम ने विदेशी धरती पर भारत की विजय का परचम लहराया था. २८ साल बाद महेंद्र सिंग धोनी की कप्तानी में भारतीय टीम ने अपनी ही मेजवानी में श्रीलंकाई टीम को ६ विकेट से हराकर 'विश्व कप' हासिल कर क्रिकेट की दुनिया में भारत का झंडा ऊँचा किया है. विश्व कप के ३६ वर्षीय इतिहास में अब तक १० आयोजन हो चुके हैं .प्रत्येक चार साल बाद होने वाले इन आयोजनों में भारत पहली दफा १९८३ में जब क्रिकेट का सिरमौर बना था तब वह तीसरा टूर्नामेंट था , इस दफा जब भारत ने विश्व-कप हासिल किया तो यह १० वां टूनामेंट है.
भारतीय टीम अब तक के विश्व-कप टूर्नामेंटस में६७ मैच में से ३९ बार जीती है और २६ बार हारी है .
एक बार बराबर और एक बार अनिणीत रही है.
वर्तमान भारतीय टीम ने अपने ३७ वर्षीय चिरयुवा और सीनियर साथी सचिन तेंदुलकर को उनकी स्वेच्छिक सेवा निवृति पर शानदार -यादगार विजय श्री का उपहार देकर अंतर राष्ट्रीय क्रिकेट जगत में और भारतीय जन-मानस में अप्रतिम अनुकरणीय सम्मान दिया है.भारत की जनता ने विगत ३० मार्च को भी भारत-पाक क्रिकेट सेमी फ़ाइनल में भारतीय टीम की विजयी सौगात को जिस आल्हाद से जश्न में बदला वो अद्वतीय है.किन्तु पकिस्तान के कप्तान शहीद आफरीदी ने पाकिस्तान की नाराज जनता से जो करारा सवाल किया वो बेमिसाल है .अब दौर आया है की भारत पकिस्तान दोनों देश इन सवालों के हल ढूंढें .शाहिद ने अपनी हार पर चारों ओर से मीडिया और पकिस्तान की उन्मादी जनता के आरोपों से आक्रमक सवालों से खिन्न होकर पलटवार किया कि 'भारत के खिलाफ पाकिस्तान में इतना जूनून क्यों? पकिस्तान कि क्रिकेट टीम भारत के अलावा और किसी टीम से भी तो हार सकती थी?
भारत कि टीम हमसे अच्छा खेली सो भारतीय टीम जीत गई.हमारे खिलाडियों ने भी शानदार खेल दिखाया तभी तो सेमी फ़ाइनल तक पहुंचे,और पहले हमने भी कई बार भारत को हराया है ,क्रिकेट अनिश्चितता और अनंत संभावनाओं का खेल है इसमें आप राजनीती या विदेशनीति कितनी करते हैं इससे क्रिकेट या खिलाडियों को कोई लेना देना नहीं 'भारत के मुंबई वानखेड़े स्टेडियम में भारत पाक मैत्री के सन्देश देखकर शहीद आफरीदी तो क्या यदि परवेज मुशर्रफ भी होता तो भारतीय जनता के अमन पैगाम पर यही प्रतिक्रिया होती.
शाहिद आफरीदी के अल्फाजों से मेरे जैसे अंतर राष्ट्रीयता वादियों को भी सम्बल मिलता है .मैं एक भारतीय होने के नाते हमेशा चाहता हूँ कि न केवल क्रिकेट वरन सभी खेलों -फुटवाल,हाकी तथा अन्य सभी खेलों में हम भारतीय ही अव्वल रहें लेकिन ये हर समय मुमकिन नहीं ,किसी के लिए भी नहीं कोई भी खेल या खिलाडी हार से निरापद नहीं. ,जीत की सदिच्छा पूर्ती करने के लिए जरुरी नहीं कि हम दूसरों के खिलाफ नारेबाजी करें या अंध राष्ट्रवाद का बीज वपन करें. खेल को दो देशों के संबंधों में प्रगाढ़ता स्थापित करने का माध्यम बनाये जाने के लिए शाहिद आफरीदी कि सोच सकारात्मक है. तो उसका स्वागत है किन्तु खेल भावना के मूल उद्देश्य भी परिष्कृत होते रहें तो क्या हर्ज़ है?भारत के लोगों को भी चाहिए कि शाहिद आफरीदी जैसे सच्चे खिलाडियों को उचित सम्मान दें और हो सके तो 'नेहरु शांति पुरूस्कार' भी शाहिद को दिया जा सकता है!
इस टूर्नामेंट में दुसरे नम्बर पर रही श्रीलंकाई टीम के खिलाडी बधाई के पात्र हैं उन्होंने आखिरी दम तक भारत के १२१ करोड़ लोगों को 'चमकाए' रखा. महेला जयवर्धने कि यादगार शतक और मुथैया मुरलीधरन कि विदाई इस टीम को इस अवसर पर अधिक यादगार बनाते हैं. भारत के गौरव सचिन तेंदुलकर और भारतीय टीम के कोच गेरी कर्टसन भी अपने हिस्से का इतिहास लिख चुके हैं .
'मेन आफ दी टूर्नामेंट' रहे युवराज सिंह ने जितना किया वह काबिल-ऐ- तारीफ है किन्तु वे इससे ज्यादा कर सकते थे. धोनी ने आखरी मोड़ पर फ़ाइनल में भारत के नैया खेवनहार गौतम गंभीर और कोहली इत्यादि की मेहनत को व्यर्थ नहीं जाने दिया, देश कि जनता को शानदार विजय का स्वाद चखाया, अतः उनकी तमाम भूलों को विस्मृत करते हुए आगामी विश्व-कप कि तैयारी का भार उन्ही के कन्धों पर डाला जायेगा ऐसी अपेक्षाओं के साथ ...ब्लोगिंग कि दुनिया में विचरण करने वाले तमाम क्रिकेट-प्रेमी मित्रों को भारतीय टीम कि विजय पर बधाई.
श्रीराम तिवारी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें