गुरुवार, 21 अप्रैल 2011

ज़न -लोकपाल मसविदा समिति सलामत रहे ...ओम शांति भूषण...ओम...

        भारत में इस समय 'जन-लोकपाल बिल' की ड्राफ्टिंग कमिटी सुर्ख़ियों में है. इसके करताधर्ताओं में से एक श्री शांतिभूषण जी तथाकथित -सी डी काण्ड वनाम कदाचार वनाम भृष्टाचार रुपी दावाग्नि की चपेट में आ चुके है.उन पर और उनके पुत्र -जयंत भूषण पर इलाहबाद तथा नॉएडा इत्यादि में विभिन्न अचल संपत्तियों को गैरवाजिब तरीकों से हासिल किये जाने के आरोप हैं.उनकी सकल संपदा सेकड़ों करोड़ रूपये बताई जा रही है.इन खुलासों से 'अन्नाजी'बेहद दुखी हैं,उनके लिए एक और अवसादपूर्ण सूचना है कि इलाहबाद उच्च न्यायलय कि लखनऊ बेंच ने केंद्र सरकार द्वारा लोकपाल बिल का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए बनाई गई कमिटी को लेकर भारत के अटर्नी जनरल को नोटिस जारी किया है.
         प्रसिद्द वकील श्री शांतिभूषण जी देश के नामी सामाजिक हस्ती हैं.उन्होंने १९७५ में तत्कालीन प्रधानमंत्री बनाम राजनारायण प्रकरण में सफलतम पैरवी करते हुए भारतीय लोकतंत्र की बड़ी सेवा की थी,उनकी निरंतर अलख जगाऊ शैली और उनके ज्येष्ठ पुत्र प्रशांत भूषण की लगातार भृष्टाचार पर आक्रामकता ने नागरिक मंच की और से ड्राफ्ट कमिटी में पिता-पुत्र दोनों को ही नामित करना ठीक समझा.अब उस कमिटी के एक अन्य प्रभावशाली सदस्य और भूतपूर्व न्यायधीश श्रीमान संतोष हेगड़े जी का कहना है कि अन्नाजी को यदि मालूम होता कि शांति भूषण जी पर आरोप हैं तो वे उन्हें ड्राफ्ट कमिटी में लेते ही नहीं.उधर एक अन्य हस्ती श्री अरविन्द केजरीवाल जी इस सम्पूर्ण स्खलन को ढकने का प्रयास करते हुए न केवल भूषण परिवार अपितु इस अभियान में शामिल हर शख्स को ईमानदारी और राष्ट्रनिष्ठां का प्रमाण पत्र रहे हैं.
         अन्नाजी और उनके समर्थकों को लगता है कि भृष्टाचार कि इस लड़ाई में नापाक ताकतों ने अन्ना और नागरिक मंच के कर्ता-धर्ताओं को जान बूझकर घेरना शुरू किया है.उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष को पत्र भी लिख माराऔर सवाल पूंछा  कि बताओ इस सब में तुम्हारा भी हाथ है या नहीं?
 जैसा कि सबको मालूम था किन्तु अन्ना एंड कम्पनी को नहीं मालूम कि दिग्विजय सिंह ने आर एस एस को नहीं बख्सा तो ये दो चार दस वकील और एक दर्जन एन जी ओ वालों कि 'पवित्र टीम'
कि क्या विसात?आर एस एस के वरिष्ठों ने भी विगत दिनों सोनिया जी से गुहार कि थी कि हे !देवी शुभ्र्वश्त्र धारिणी रक्षा करो! सोनिया जी ने दिग्विजयसिंह के प्राणघातक सच्चे वयानो से रक्षा करें!
      दरसल राजा दिग्विजय सिंह यही चाहते हैं की उनका आतंक न केवल कांग्रेस के दुश्मनों पर बल्कि कांग्रेस के अन्दर एंटी दिग्गी नौसीखियों को यह एहसास हो जाये की यु पी ऐ द्वतीय के वर्तमान संकट मोच्कों में वे सर्वश्रेष्ठ हैं.उन्हें अब किसी पद कि भूंख नहीं.वे उन-उन लोगों से जिन-जिन ने उन्हें अतीत में रुसवा किया है,गिन-गिन कर बदले लेने की ओर अग्रसर लग रहे हैं.उन्हें अमरसिंह जैसे दोस्तों से  हासिल समर्थन और सहयोग ने , अपने साझा राजनैतिक शत्रुओं पर हमले करने की सुविधाजनक स्थिति में और मज़बूत कर दिया हैअपने चेले .कांतिलाल भूरिया को एम् पी का कांग्रेस अद्ध्यक्ष बनवाकर श्री दिग्विजयसिंह इस दौर के सर्वाधिक सफल राजनीतिग्यतो  बन गए  हैं.किन्तु वे भूल रहे हैं की यह सब नकारात्मक राजनीती है याने दूसरों की रेखा मिटाकर अपनी रेखा बढ़ाना.भृष्टाचार के खिलाफ न केवल अन्ना बल्कि देश के करोड़ों लोग चिंतित हैं ,वे इससे नजात पाने के लिए छटपटा रहे हैं.यदि अन्ना या नागरिक समूह का प्रयास लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के अनुरूप नहीं है तो फैसला अदालत पर छोड़ा जाये किन्तु उस पवित्र उद्देश्य के लिए प्रयास रत लोगों पर व्यक्तिगत आरोप लगाकर जनता के बीच उन्हें भी भृष्ट सावित करना [भले ही वो भृष्ट ही क्यों न हों}देश हित में उचित नहीं.
        जिस दिन जंतर-मंतर पर अन्नाजी का अनशन शुरू हुआ था मेने अपने ब्लॉग पर तत्काल एक आर्टिकल लिखा था जो कि वेव मीडिया के अन्य साइट्स पर अब भी उपलब्ध है.उसमें जो-जो अनुमान लगाए गए थे वे सभी वीभत्स सच के रूप में सामने आते जा रहे हैं.सामाजिक राजनैतिक रूप से अपरिपक्व व्यक्तियों द्वारा भावावेश में खोखले आदर्शों कि स्थापना के लिए कभी गांधीवाद ,कभी नक्सलवाद और कभी एकात्म-मानवतावाद का शंखनाद किया जाता है और फिर चार -दिन कि चांदनी i फिर अँधेरी रात घिर आती है.अनशन तोड़ते वक्त अन्नाजी ने जब  भृष्टाचार के खिलाफ अपने एकाधिकारवादी  नजरिये का ऐलान किया था ,समझदार लोगों ने तभी मान लिया था कि इनका भी वही हश्र होगा जो अतीत में हजारों साल से इस बावत बलिदान देते चले आये महा मानवों का होता चला आया है,
         इसका ऐ तात्पर्य कतई नहीं कि बुराइयों से लड़ा ही न जाये, .दरसल यह महा संग्राम तो सत्य और असत्य  के बीच,सबल और निर्बल के बीच,तामस और उजास के बीच सनातन से जारी है. बीच इमं कभी-कभी सत्य परेशान होता नजर आता है किन्तु अन्ततोगत्वा जीत सत्य की ही हुआ करती है.वशर्ते यह संघर्ष वर्गीय चेतना से लेस हो और इस संघर्ष में जुटे लोगों का आचरण शुद्ध हो, संघर्ष रत व्यक्तियों और समूहों में निष्काम भाव होतो ही सत्य की विजय होती है.यदि धर्म-अर्थ -काम-मोक्ष की या इनमें से किसी एक की भी लालसा किसी में होगी तो उसे इतिहास के कूड़ेदान में फेंक दिया जायेगा. जब कोई गर्वोन्मत्त व्यक्ति ,समूह ,राष्ट्र या विचारधारा यह घोषित करे कि धरती पर हमसे पहले जो भी  आये वे सभी असफल और नाकारा थे ,तो उसे यह स्मरण रखना चाहिए कि उसके यथेष्ट कि प्राप्ति उससे कोसों दूर जा बैठी है . पवित्र और विरत उद्देश्यों के लिए ह्रदय कि विशालता और मानसिक विराटत:नितांत जरुरी है.              श्रीराम तिवारी
.

1 टिप्पणी:

  1. धार्मिक भ्रष्टाचार दूर किये बगैर आर्थिक भ्रष्टाचार दूर करने की बातें केवल छलावा हैं.

    जवाब देंहटाएं