शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

क्रांति का नवगीत....

     शब्द गीत छंद में,प्रबंध अनुबंध में ,
     सृजन की साधना सरस रस धार हो!
      कामना अभीष्ट की चेतना समष्टि की,
      काव्यानुभूति में करुण पुकार हो!!
       एकता की अभिधा,संघर्षों की लक्षणा,
        आतताईयों  का प्रवल-प्रतिकार  हो!
       सुबह अलसाई सी शाम सरसाई सी,
      घर  आंगन  में   क्रांति  बहार    हो!!                                 

             श्रीराम तिवारी
       

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें