सोमवार, 18 अप्रैल 2011

जब तक निजी संपत्ति ओर कारोबारी लाभ का सीमांकन नहीं होता तब तक भृष्टाचार अक्षुण रहेगा.

अतीत के सामंती जुल्मों
 सितम से वर्तमान लोकतान्त्रिक पूंजीवादी शासन तंत्र बेहतर है.किन्तु वैयक्तिक संपत्ति और मुनाफाखोरी इसका सबसे बड़ा आकर्षण है.जिसकी बदौलत एक तरफ समृद्धि के पहाड़ ऊँचे होते चले जाते हैं और दूसरी ओर विपन्नता की अमानवीय खाइयों का निर्माण जारी रहता है,इन बर्बर बुराइयों के परिणाम स्वरूप भृष्टाचार रुपी दुर्दमनीय शैतान का साम्राज्य स्थापित हो जाता है. विगत दो शताब्दियों में विश्व के महानतम वैज्ञानिकों
 भौतिकवादी अर्थशास्त्रियों और दार्शनिकों ने अपनी तार्किक स्थापनाओं में ये सिद्धांत पेश किया था कि पूंजीवाद भी वर्गों कि 
द्वंदात्मकता का अखाडा मात्र है,इसीकी कोख से  एक नितांत नई -वर्गविहीन ,जातिविहीन ,शोषण विहीन ,समतामूलक और भृष्टाचार विहीन व्यवस्था का जन्म होगा. जब तक असमानता और ये मलिनताएँ मौजूद हैं विपरीत वर्गों का द्वन्द टल नहीं सकता.
          जब तक शोषण आधारित मुनाफाखोर व्यवस्था समाप्त नहीं हो जाती भृष्टाचार रुपी अँधेरा कायम रहेगा.शीलवानआदर्शवादी और वैयक्तिक क्रांतिकारी सुधीजन  मानवीय मूल्यों को स्थापित किये जाने की वकालत करने वाले भी आपस में बटे होने से इस व्यवस्था पर कोई कारगर चोट करने  में तब तक असफल होते रहेंगे जब तक वे इस व्यवस्था का मूल्छेदन नहीं करते
       चूँकि भूमंडलीकरण और बाजारीकरण के नव्य उदारवादी मुखोटे ने पूंजीवाद को बेलगाम बना दिया है अतेव यह बहुत जरुरी और प्राथमिकता का प्रश्न है की इस परजीवी अमर्वेलि को अमूल-चूल नष्ट किया जाये? या इधर -उधर हाथ -पैर मारकर -कोई कानूनी प्रक्रिया जन्य संवैधानिक संसोधन के लिए जद्दोज़हद की जाये ?वर्तमान दौर की सरमायादारी ने आज के भारत में भृष्टाचार को इस देश की प्राण वायु बना कर रख दिया है,ऐसा प्रतीत होता है मानो भृष्टाचार के विना यह देश जिन्दा नहीं रहना चाहता.
                       स्वाधीनता संग्राम के महानतम मूल्यों को पहले  भी प्रतिकार स्वरूप आजमाया जा चूका है.महात्मा गाँधी बाबा साहिब आम्बेडकर,नेहरूजी ,बिनोबाजी जयप्रकाश नारायण जी ,नानाजी ,गोपालन जी,इंदिराजी और देश की किसान -मजदूर जमातों ने अपने -अपने साधनों-सिद्धांतों और बलिदानों से इस महाविकट भृष्टाचार के संक्रामक रोग का मुकाबला किया है;किन्तु मर्ज़ बढ़ता ही गया -ज्यों-ज्यों  दवा की.अब पुनः कुछ स्वनाम धन्य ,एन जी ओ पोषित परजीवियों ने अपनी ढपली पर वही घिसा-पिटा राग दुहराया है.इन्हें देश के मुठ्ठी भर अवोध उत्साहिलालों ने जन्तर-मंतर सेउठाकर  १० जनपथ ले जाने का सब्ज बाग़ क्या दिखाया इन बूढ़े राजनैतिक नौसीखीयों  में फिर से नई तमन्नाओं ने जोश भर दिया .क्या सत्ता पक्ष ,क्या विपक्ष सबके सब अन्नमय से अन्नामय हो गए.लेकिन कुछ धीर-विचारवान बच गए जिहोने शमशान वैराग्य स्वीकार नहीं किया.
            भारत की जनता का एक विशेष वर्ग ऐंसा है जो मीडिया का स्थाई उपभोक्ता है.यह वर्ग स्वयम महा भृष्ट ,चरित्रहीन ,लम्पट और गैर जिम्मेदार है.यह वर्ग वही है जो क्रिकेट के मैच को महायुद्ध और उस खेल में जीत-हार को राष्ट्रों की जीत -हार के रूप में देखता है.इस वर्ग को २३ फरवरी के रोज दिल्ली की सड़कों पर चिलचिलाती धुप में नंगे पैर संसद की ओर कूच करते १० लाख मजदूर-किसान दिखाई नहीं देते जो न केवल उन सवालों को लेकर- जो अन्ना एंड कम्पनी ने उठाये हैं- अपितु उन सवालों को भी उठा रहे थे जो देश की निर्धन आवाम के लिए बहुत जरुरी है..मीडिया के स्थाई उपभोक्ता  वर्ग को क्या देखना है यह उसके आका पूंजीपति और उनका पाद प्रक्षालन करने वाला मीडिया ही तय करता है.जिन चेनल या अखवारों ने हवाबाजी को घास नहीं डाली और अपने विवेक से इस घटना क्रम को दर्शाया उनकी विश्वशनीयता बढ़ी है.
       भृष्टाचार तो भारत की धमनियों में दौड़ रहा है,कहा-कहाँ नहीं है?क्या २-G ,कामनवेलथ गेम्स ,आदर्श सोसायटी ,हवाल कांड,तेलगी कांड,बोफोर्स,चारा कांड इत्यादि की सूची सेकड़ों में ही समाप्त हो जाएगी?ये सब होता रहाहै  और अब भी सर्वत्र हो रहा है ,जब तक निजी संपत्ति का अधिकार है,मुनाफाखोरी की -लूट की खुली छूट है,पूंजीवादी शोषण की बदनाम -दें बस्तियां जब तक मौजूद हैं-कोई भी माई का लाल ,कोई भी संविधान संशोधन बिल या कानून ,कोई भी अन्ना हजारे -रामदेव या तीश मारखां भृष्टाचार का बाल बांका नहीं कर सकता.बमुश्किल जीवन यापन करने वाला मेहनतकश -मजदूर-किसान या आम शरीफ नागरिक क्या बिना रिश्वत दिए नल कनेक्शन प् सकता है?क्या बिजली कनेक्शन,बच्चों का एडमीशन,और सरकारी नौकरी में बिना लेनके कार्य सिद्धि संभव है?यदि आप महानतम सचरित्र्वान हैं आपात स्थिति में अचानक  कहीं दूर दूसरे शहर जाना है,आपको रेलवे आरक्षण नहीं मिला ,और वेटिंग में हैं क्या १०० रूपये देकर बर्थ मिलने पर भी आप उसे ठुकराकर घंटों खड़े-खड़े या टोलेट की बदबूदार जगह पर दिल्ली से चेन्नई जाने का माद्दा रखते है?
        आप नहीं चाहते हुए भी भृष्टाचार करने को बाध्य हैं क्योकि स्वभिमान ,नैतिकता ,को वर्तमान पूंजीवादी सड़ी -गली व्यवस्था ने अपने पद प्रक्षालन के लिए गुलाम बना रखा है.इस पतनशील व्यवस्था के केंद्र में मुनाफा विराजमान है.मुनाफा प्राप्त करना है तो भृष्टाचार जरुरी है.इसीलिये यदि जीना है तो इस भृष्ट व्यवस्था में शामिल हो जाओ.और यदि भृष्टाचार मुक्त देश या जीवन की तलाश है तो इस अधोगामी नारकीय सिस्टम को बदल डालो.कुछ भटके हुए देशभक्त अपने स्वर्णिम अतीत की मरू मरीचिका के मोह में पड़कर उसकी जगह पुराना अमानवीय गया-गुजरा सामंतवाद लाना चाहते हैं जो कभी भी शोषित -दमित जनता को स्वीकार नहीं.
        जो लोग भृष्टाचार मुक्त भारत ,उन्नत भारत ,समानता-स्वतंत्रता-धर्मनिरपेक्षता-से सुसज्जि भारत  देखना चाहते हैं उन्हें खोखले आदर्शों,संविधान संशोधनों,या व्यक्तिनिष्ठ संस्थाओं की उधेड़ बुन में अपनी उर्जा व्यय नहीं करना चाहिए.एक वर्ग विहीन ,जातिविहीन,वैज्ञानिक भौतिकतावादी समतामूलक द्वंदात्मक दर्शन और समग्र -जन -क्रांति ही इस आदमखोर पूंजीवाद और उसकी नाजायज औलाद-भृष्टाचार से भारत के जन-गण को मुक्ति प्रदान karaa  सकती है.
                   श्रीराम तिवारी

1 टिप्पणी:

  1. एक-एक शब्द सही है लेकिन आम जनता कहाँ इन बातों पर विचार कर रही है,उसे तो जाती-धर्म,सम्प्रदाय के खांचों में बाँट दिया गया है.इसलिए शोषण विहीन ,समता मूलक समाज की स्थापना हेतु चालबाजों के अधर्म का पर्दाफ़ाश और असलियत को सामने लाना होगा तभी सफलता मिलेगी.

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