शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

भारतीय मीडिया के जन-सरोकार हासिए पर क्यों हैं?

     सूचना प्रौद्दोगिकी और संचार क्रांति का जितना फायदा कार्पोरेट सेक्टर और उसके आनुषांगिक बड़े मीडिया घरानों ने उठाया उसका १०० वां भाग भी देश की आम  जनता के हिस्से नहीं आ पाया है. भारत के बुर्जुआ मीडिया को सिर्फ तब राष्ट्रीय हित याद आते हैं जब क्रिकेट मैच चल रहा हो ,वो भी भारत -पाकिस्तान के बीच..वर्ना तो भूतों, प्रेतों, उबाऊ-चलताऊ सीरियलों ,वासी -तिवासी रक्तरंजित विजुगुप्सा पूर्ण ख़बरों में और नितांत स्तरहीन विज्ञापनों में टी आर पी की खातिर वह साम्राज्यवादियों के चरणों में भी साष्टांग दंडवत हेतु प्रस्तुत हुआ करता है.कौन फ़िल्मी हीरो किस खिलाडी बाला के साथ रंगरेलियां मना रहा है या कौन क्रिकेट खिलाडी किस "वैशाली की नगर वधु"के यहाँ दारू पीकर पड़ा मिला -इस सबके लिए इस खुद ग़र्ज मीडिया के पास स्पेस है.किन्तु रोज कितने वेरोजगार नौजवान बेमौत मर रहे हैं,कितने दवाफरोश नकली दवाई अस्पतालों-बाज़ारों में खपा रहे हैं,राष्ट्र-निर्माण के लिए कौन प्रतिवद्धता से अपना खून पसीना कर रहा है,भारत को सारी दुनिया में इस वर्ष गेहूं उत्पादन में अव्वल स्थान प्राप्त होने में जिन किसानो ने पसीना बहाया उनके लिए इस दिग्भ्रमित या स्वार्थ्गामी मीडिया के पास एक भी शब्द नहीं है.उसके पास यह पता करने की फुर्सत नहीं है कि देश कि नदियों को जोड़ने की "माला नाहर योजना "का क्या हुआ? खैर ये तो बहुउद्देशीय और वृहद राष्ट्रीय सरोकार हैं इनके बारे में जब सुधिजनों को ही कुछ नहीं सूझ पड़ता तो अर्ध शिक्षित ,अपरिपक्व ,लाभ-शुभ्गामी, स्वार्थान्ध मीडिया और साम्राज्यवादियों की कृपा पर पलने वाले एन जी ओ क्योंकर इस वाबत अपने निहित स्वार्थों को नजर-अंदाज करेंगे?
         वे लोग जो अतीत के स्वर्णिम भारत पर मुग्ध हैं,वे लोग जो वैश्वीकरण -उदारीकरण और भूमंडलीकरण के अलाम्वारदार हैं और वे लोग जो आदर्शवाद  और बाबावाद के घोड़े दौड़ा  रहे हैं,उन सभी को यह दुखद समाचार है की जिस पाकिस्तान की क्रिकेट टीम को हराकर आप विगत एक महीने से गदगदायमान हो रहे हो उसी पाकिस्तान ने प्रतिव्यक्ति आय में भारत से बजी मार ली है;आपको यह जानकार शर्म भले न आय किन्तु अन्नाजी ,रामदेवजी, शान्तिभूषन जी या किसी दीयमान अवतार से एक अदद अनशन इस बाबत भी तो करवा डालना चाहिए की नहीं?
             वाशिंगटन पोस्ट की खबर है कि भारत में सिर्फ 17% लोग ही खुशहाल हैं.124 देशों की सूची में भारत इस मामले में 71 वें स्थान  पर है. कोई  गेलाप  नामक  स्वतंत्र  एजेंसी  के हवाले  से यह निष्कर्ष  जग  जाहिर  किया  गया  है. मज़ेदार  बात  ये है कि पाकिस्तान 40 वां सबसे  खुशहाल  देश है. अर्थात  पाकिस्तान  में 32% आवडी  खुशहाल  है. हालाँकि  भारत से भी ज्यादा  भुखमरे  देश हैं-बांगला  देश ,चाद ,सूडान  और भूटान  किन्तु हमारे  दो  खास  दोस्त {?} चीन  और पाकिस्तान अमीर  हैं .यह इस देश के मीडिया और महान गांधीवादियों  ,एकात्म -मानवतावादियों  के विवेक  पर छोड़ता  हूँ  कि वे पता लगायें  कि जब भारत ने सारी दुनिया से ज्यादा  गेहूं और चावल  उत्पादन कर लिया  है ,जब भारत अटॉमिक  क्लब  का सदस्य  बन  चूका  है,जब भारत अन्तरिक्ष  में तेजी  से उभर  रहा है ,जब भारत में दुनिया का सबसे  बड़ा  और महान  लोकतंत्र  है तो देश कि सबसे  बड़ी  अदालत  को आये  दिन  क्यों  कहना  पड़ता है कि गरीवों  को भूँखा  मत  मरो  ,जो अन्न  गोदामों  में सड़ रहा है तो कम  से कम  उसी  में से गरीवों को कुछ बाँट  दो ?देश में सिर्फ 17% लोग सुखी  हैं और ह्म्बकी  के 83%लोग जो कि वास्तव  में सच्चे  भारतीय  हैं वे शोषण  के खिलाफ  लड़ने  के बजाय  आपस  में लड़  रहे हैं.जिसके  पास इसका  इलाज  है                                      -श्रीराम तिवारी
   
   

2 टिप्‍पणियां:

  1. Good note...sir. lekin aapke hisab se iska hal kya hoga....kya Sirf Samyvad hi iska akhiri samadhan hoga?

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  2. mishraiji abhi savaal saamywad ya kisi anya vaikalpik vyvstha ka nahin hai.abhi to aap hm or desh ke hairan-pareshaan log sirf itna hi kar len ki aapni pareshani ko bhagvaan ya bhagy par na dholen balki ye maane ki vyvstha insanone bigadee hai so sudharne ya badalne ki jimmedari bhi insano ki hi hai ismen meedia ka role mahtwpoorn hai atev yh aalekh mene apne blog par utara hai.aapne padha ,sangyaan liya -dhanywad...

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