किशोरावस्था में ही कहीं किसी से सुना था कि हरएक नवाचार या क्रांति का सूरज पहले पूर्व में यानि कि बंगाल मेंही उदित होता है,बाद में सारा भारत उस नव प्रभात कि रश्मियों से आप्लावित होता जाता है.
जिज्ञासा वश तत्कालीन उपलब्ध साहित्य में सेबंगाल के अधिकांश प्रभृति विभुतिजनों के हिंदी अनुवादों को
आद्द्योपंत पढने के बाद अपने व्यक्तित्व को अपने समकक्षों और समकालिकों से बेहतर परिष्कृत और प्रगत पाया. संस्कृत में एक सुप्रसिद्ध सुभाषितानि है:-
शैले शैले न मानिक्यम,मौक्तिकं न गजे-गजे!
साधवा न लोकेषु ,चन्दनं न वने -वने!!
भारत के हरेक प्रान्त और हर भाषा में शानदार साहित्यिक -सांस्कृतिक सृजन की विरासत विद्द्य्मान है किन्तु 'जेहिं कर मन रम जाहीं सौं ,तेहिं तेहीं सौं काम...'बंगाल के उद्भट विद्द्वानो ने व्यक्तिशः मुझे सर्वाधिक
प्रभावित किया है अतः इस आलेख की पृष्ठभूमि में यह आत्म स्वीकारोक्ति प्रतिपादित करता हूँ कि काव्यानुभूति में गुरुदेव कवीन्द्र -रवीन्द्र से,धर्म-अध्यात्म में स्वामी विवेकानंद से और राजनीतिमें कामरेड ज्योति वसू
से जो वर्गीय चेतना प्राप्त की हैउसको भारतीय वांग्मय में ही नहीं बल्कि संसार की सर्वोच्च सूची में भी शीर्ष पर
अंकित किया जा चूका है.
अभी अप्रैल -२०११ में भारत के पांच राज्यों में विधान सभा चुनाव संपन्न हुए है.इनके परिणाम आगामी १०-१५ दिनों में घोषित किये जायेंगे.तब तक देश और दुनिया के राजनीति विश्लेषक 'बैठा वानिया क्या करे?इधर का बाँट उधर करे!'की तर्ज पर इन राज्योंकेचुनाव परिणामों
पर अपना अभिमत जाहिर करेंगे.उन्हें केरल और बंगालको छोड़कर बाकि केराज्योंमें कोई खास दिलचस्पी
नहीं है.इसके कई कारण हैं .मुख्य कारण यही है कि जब सारी दुनिया में ऐंसा संभव नहीं कि किसी देश की
केन्द्रीय सरकार पूंजीवादी या अमेरिका परस्त हो और राज्यों में धुर वामपंथी -कमुनिस्ट सरकार हो तो परिवर्तन की ख़बरों को गढ़ा भी जा सकता है और जन-मानस की खोपड़ी में मढ़ा भी जा सकता है.
वैसे आम जागरूक भारतीय जन-मानस को भली-भांति ज्ञात है की केरल में तो ६० के दशक में ही आम चुनाव के मार्फ़त साम्यवादियों की सरकार बन चुकी थी.वह पूरे विश्व की पहली निर्वाचित सरकार थी
जो प्रजातांत्रिक प्रणाली के तहत सत्ता में आयी थी.उससे पूर्व दुनिया के किसी भी देश मेंऐंसा नहीं हुआ था.
हालाकि रूस चीन ,क्यूबा,वियतनाम,हंगरी,पोलैंड,पूर्वी जर्मनी,युगोस्लाविया,रूमानिया तथा कोरिया इत्यादि में हिंसक तौर तरीकों से कम्युनिस्ट {मजदूरसरकार} स्थापित हो चुकींथी.शीत युद्ध के दरम्यान एक तिहाई
से ज्यादा दुनिया के देशों में मेहनतकश परस्त सरकारें आ चुकी थीं. जिस ब्रिटेन ने सारी दुनिया को पूंजीवादी प्रजातंत्र का पाठ पढाया,वहां भी लेबर पार्टी की सरकार चुनाव में जीत गई.अमेरिकी सरकार
और पूंजीपतियों ने जन-विद्रोह के भय से 'कल्याणकारी राज्य' का चोला बदला.जनता को भरमाने
के अनेक धत्मरम अमेरिकी सरमायेदारों ने किये.कभी वियतनाम,कभी भारत बनाम चीन ,कभी भारत बनाम पकिस्तान,कभी ईरान बनाम ईराक ,कभी अर्ब बनाम इजरायल और कभी क्यूबा बनाम अमेरिका का फंडा लेकर सी आई ये ने सारी दुनिया में अपना जाल तो फैलाया और सफलता भी कई जगह मिली किन्तु क्यूबा,वियतनाम और भारत {बंगाल- केरल}में अमेरिका को अब तक सफलता नहीं मिली है.
अबकी बार अमेरिका ने भारत के मार्क्सवादियों को ठिकाने लगाने का पूरा इंतजाम कर रखा है.
यह तो जग जाहिर है कि सोवियत संघ में साम्यवाद के पतन से दुनिया अब एक ध्रुवीय हो चुकी
है.भारत में जो भी सरकार १९८५ के बाद बनी {केंद्र में}वह अमेरिकी प्रभुत्व को स्वीकारने में अक्षम
रही.यु पी ये प्रथम के उत्तर काल में जब वन -टू-थ्री एटमी करार पर साम्यवादी खुलकर अमिरीकी दादगिरी के खिलाफ हो गए तो अमेरिका कि भोंहें तन गईं और तब ,जबकि भारत में अमेरिका के पिठ्ठू नोटों में बिक रहे थे ,सांसद खरीदे जा रहे थे तब अमेरिका और उसकी सी आई ये इन भारतीय साम्यवादियों के गढ़ ध्वस्त करने का काम जिन्हें सौंप चुकी थी वे देश द्रोही आज-कल भारतीय मीडिया के केंद्र में 'नायक-नायिका'वनकर सत्तासीन होने के करीब है.
डेनमार्क में बैठे पुरलिया हथियार कांड के मुख्य अभियुक्त किम डेवी और ब्रिटिश नागरिक पीटर ब्लीच ने खुलासा किया है कि बंगाल कि वाम मोर्चा सरकार को अस्थिर करने,वदनाम करने और उखड फेंकने कि साजिस में भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी रा और ब्रिटिश एजेंसी एम् आई शामिल थी.सी बी आई ने तत्काल इस खुलासे का खंडन कैसे कर दिया जबकि यही सी बी आई विगत दो बरस में एक बच्ची -आयुषी तलवार के हत्यारों को चिन्हित कर पाने में विफल रही है.हमारी ख़ुफ़िया एजेंसियों को अरवो रूपये खर्च करने उपरान्त भी पता नहीं चल पता कि मुंबई में पाकिस्तानी आतंकवादी कब कहर बरपाने वाले हैं!ऐंसी महान एजेंसियों को मिनिटों में मालूम हो गया कि पुरलिया हथियार काण्ड में किसका हाथ नहीं है?अरे भाई इतने सजग हो तो ये तो बताओ कि उनका नहीं तो किनका हाथ था?
१८ दिसंबर १९९५ को पश्चिम बंगाल के पुरलिया जिले में विदेशी विमान से बड़ी संख्या में विदेशी आधुनिक हथ्यार गिराए गए थे,हथियार गिराने वाले क्रिश्चियन नील्सन उर्फ़ किम डेवी ने विगत २८ अप्रैल को खुलासा किया है किपश्चिम बंगाल कि विश्व भर में प्रसिद्ध ज्योति वसूके नेत्रत्व में
चल रही मार्क्सवादी सरकार को गिराने कि बृहद योजना के तहत भारत स्थित विदेशी एजेंटों ने सप्लाई किये थे.सवाल उठता है कि इस गंभीर मसले पर तथाकथित राष्ट्रवादी अब मौन क्यों हैं?
किम डेवी ने टाइम्स नोंव नामक चेनल के समक्ष यह दावा भी किया कि पकडे जाने के बाद तत्कालीन भारतीय विदेश मंत्रालय ने उसे नेपाल के रास्ते बाहर भागने में मदद भी कि थी.
हथियार गिराने में संलग्न एक अन्य अपराधी ब्रिटिश नागरिक पीटर ब्लीच ने भी स्वीकार किया कि वह तो हथियारों का लाईसेंस शुदा व्यापारी है ,ब्रिटिस ख़ुफ़िया एजेंसी ने जिसको जितने हथियारों का आदर दिया वो मेने पूरा किया.मुझे नाहक ही भारत में सजा कटनी पडी.
यह एकमात्र वाकया नहीं है.सब जानते हैं कि केरल में चर्च कि ताकत किसके इशारों पर एल दी ऍफ़ को हराने में जुटी है.बंगाल में ममता के पास अचानक अरबो रूपये कहाँ से आ रहे हैं?माओवादी ,त्रुन्मूली और अमेरिकी आका यदि सब मिलकर बंगाल कि जनता को भ्रमित कर सकें और ३५ साल से चल रही लोकप्रिय सरकार कि जगह अमेरिकी और माओवाद परस्त सरकार स्थापित करने में कामयाब हो भी जाएँ तो भी बंगाल कि 'जागृत'जनता उस सरकार को शीघ्र ही उखड फेंकेगी और वाम पंथ को इस दौरान अपने आपको आत्मचिंतन -आत्म विश्लेषण का भरपूर अवसर मिलेगा ताकि पुनः न केवल केरल,बंगाल,या त्रिपुरा में अपितु केंद्र में भी सत्ता सँभालने कि हैसियत प्राप्त कर सके..
श्रीराम तिवारी