यद्द्पि मैं राजनीतिशास्त्र का अध्येता नहीं हूँ फिर भी सरसरी तौर पर इतना अवश्य जानता हूँ कि नमक से नमक नही खाया जाता!याने पूँजीवाद का विकल्प पूँजीवाद नहीं होता!याने कांग्रेस की जगह भाजपा को नही बल्कि सर्वहारावर्ग के हरावल दस्तों का शासन होना चाहिये था!
फाँसी पर चढ़ने से पहले भगतसिंह जितना कुछ जान चुके थे,उसका एक चौथाई भी मैं अब तक ठीक से नहीं जान पाया हूँ। लेकिन खेद की बात है कि अधिकांस पूँजीवादी दलों के नेता इसका दशमांश भी नहीं जानते। जो तिकड़म या सौभाग्य से सत्ता पा गए,वे भी इस बाबत कुछ नहीं जानते। यदि जानते होते तो वे 'नमक से नमक नहीं खाते'।
सत्ता हासिल करने वास्ते कभी दलित तो कभी सवर्ण को नही उकसाते!देश की जनता क्रांतिकारी विचारों से लेस होती, यदि शहीद भगतसिंह के विचारों को थोड़ा भी समझती,तो आज देश में जातिवाद का नंगा नाच नही होता! आज साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की तूती नही बोलती, बल्कि पूँजीवाद को लतियाकर दिल्ली में 'फ़्रांसिसी क्रान्ति' अथवा महान अक्टूबर क्रांति की तरह कोई 'क्रांतिकारी सरकार' बनाकर जनता वास्तविक विकास का लुफ्त उठाती!
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