शुक्रवार, 15 सितंबर 2023

हिंदी भाषा के प्रयोग तथा व्यवसाय गत रूप

 वेशक पाली,प्राकृत,अपभृंश अब भले ही केवल इतिहास की धरोहर बनकर रह गईं हों,संस्कृत और उसका वैदिक वाङ्ग्मय भले ही केवल पूजापाठ और ईश आराधना के साधन मात्र रह गए हों।लेकिन हिंदी भाषा ज्ञान के बिना किसी नेता या दल का केंद्र की सत्ता में आ पाना मुश्किल है।

मध्यप्रदेश,राजस्थान ,यूपी,बिहार,छग,हिमाचल,झारखण्ड और दिल्ली की राजनीतिमें हिंदी भाषा ज्ञान के बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता। बिना हिंदी भाषाज्ञान के किसी भी नेता या दल का केंद्रीय राजनीती में सफल होना अब असम्भव है। भारत में हिंदी नहीं जाननेवाला अफसर चल सकता है ,डॉक्टर-वकील चल सकता है ,इंजीनियर भी चल सकता है ,लेकिन नेता-अभिनेता नहीं चल सकता।
हिंदीभाषी जनता को हिंदी नहीं जानने वाला नेता बिना पूंछ का पशु नजर आता है। जबसे नरेन्द्र मोदीजी भारत के प्रधानमंत्री बने हैं ,तबसे भले ही देश रसातल में धस रहा हो,किंतु हिंदी हवा में उड़ रही है यूरोप ,इंग्लैंड,अमेरिका और विश्व के अन्य देशों के प्रवासी भारतीय और एनआरआई सबके सब संघमय होकर 'हर-हर मोदी का नारा लगाकर जता रहे हैं कि उन्हें न सिर्फ 'हिंदी'आती है बल्कि वह उन सभी के दिलों में बस रही है। कुम्भ के मेले में, तीर्थ स्थानों में और दर्शनीय स्थलों पर विदेशी भी धड़ल्ले से हिंदी बोलते पाए जाते हैं। कुछ तो संस्कृत भी अच्छी खासी बोल लेते हैं। श्रीराम तिवारी.
राजभाषा हिंदी की चिंतनीय स्थिति
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1-राजभाषा का अर्थ है राज्य की भाषा । सामान्य शब्दों में राजकाज को चलाने के लिए जिस भाषा का उपयोग किया जाता है उसे राजभाषा कहते हैं
2-हमारे देश में बिभिन्न कालों में अलग-अलग भाषाएं राजभाषा के रूप में प्रचलित रही है अशोक के समय में पाली, राजपूत काल में हिंदी, मुगल काल में फ़ारसी,अंग्रेजों के काल में काफी समय तक फ़ारसी व अंग्रेजी राजभाषा रही ।
3- देश के आजाद होते ही 15 अगस्त 1947 से हिंदी को राजभाषा बनाने के लिए प्रयास शुरू हुए थे ।कुछ विरोध भी हुआ किन्तु ,14 सितंबर 1949 को एक लंबे विमर्श के बाद हिंदी को राजभाषा स्वीकार किया गया। संविधान लागू होते ही हिंदी भारत की राजभाषा बन गई ।14 सितंबर को प्रतिवर्ष हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
4- हिंदी को राजभाषा स्वीकार करने के साथ ही देवनागरी लिपि को राजकीय लिपि स्वीकार किया गया तथा अंतर्राष्ट्रीय अंको को राजकीय अंक के रूप में स्वीकार किया गया ।
5- संविधान में राजभाषा के रूप में हिंदी व अन्य भाषाओं का वर्णन निम्नानुसार है -
5-1-संविधान के भाग 5 अनुच्छेद 120 में संसद की भाषा का प्रावधान है।
5-2- भारतीय संविधान के भाग 6 अनुच्छेद 210 में राज्य की विधानसभाओं की भाषा का प्रावधान है।
5-3- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 से 351 तक राजभाषा हिंदी व अन्य भाषाओं के बारे में किए गए प्रावधानों का उल्लेख है ।
5-4-संविधान की आठवीं अनुसूची में हिंदी के अतिरिक्त भारत की 22 मुख्य भाषाओं का उल्लेख किया गया है तथा देश के शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक उन्नति के लिए इन भाषाओं के विकास हेतु सामूहिक उपाय को आवश्यक माना गया है ।
6-राजभाषा हिंदी की मुख्य समितियां-
1-हिंदी सलाहकार समिति
२-संसदीय राजभाषा समिति
3-केंद्रीय राजभाषा क्रियान्वयन समिति
4-नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति गठित की गई है।
7- हिंदी भाषा के प्रयोग तथा व्यवसाय गत रूप इस प्रकार हैं- 1-मातृभाषा हिंदी2- संपर्क भाषा हिंदी 3-राष्ट्रभाषा हिंदी 4-राजभाषा
हिंदी,5-साहित्यिक हिंदी,6-ब्यवसायिक हिंदी
7--बिधि परक हिंदी,8-बैज्ञानिक एवम तकनीकी हिंदी।
8- हिंदी भाषा -गाना,फिजी,सूरीनाम मॉरीशस, त्रिनिदाद में बहुसंख्यक जनता की संपर्क भाषा के रूप में प्रयुक्त होती है। साथ ही नेपाल, वर्मा, श्रीलंका, इंग्लैंड, अमेरिका, कनाडा ,अफ्रीका, आदि देशों में काफी संख्या में भारत के तथा एशियाई लोग हैं जिनके बीच हिंदी संपर्क भाषा के रूप में प्रयोग में लाई जाती है ।
9-यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि हिंदी को राजभाषा स्वीकार करते हुए अंग्रेजी का प्रयोग तत्समय 15 वर्ष के लिए आवश्यक माना गया था। इसके बाद राज्य का कामकाज राज्य भाषा हिंदी में होना था किंतु ,राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में यह कार्य नहीं हो सका है। हिंदी की स्वीकार्यता हेतु शासकीय कामकाज में उसका प्रयोग होना जरूरी है किंतु अभी भी पूरा पत्राचार और कामकाज हिंदी में नहीं होता। प्रयोग मूलक बहुलता अभी भी अंग्रेजी भाषा की है।
10-राज्य के उच्च न्यायालयों व सर्वोच्च न्यायालय में प्रयोग की जाने वाली भाषा आजादी के 75 वर्ष बाद भी मूलतः अंग्रेजी बनी हुई है जबकि न्यायालय में भी हिंदी के प्रयोग को अनिवार्य किया जाना चाहिए था।जरूरी यह भी था कि हिंदी के साथ ही सम्बंधित राज्य के न्यायालय में वहां की मुख्य भाषा में कामकाज हो, निर्णय हों तो इससे जनता को न्यायिक प्रक्रिया में होनें वाली भाषायी अज्ञता, व दुरूहता से तथा इसके कारण होनें वाली लूट से भी राहत मिलेगी।इससे हिंदी सहित संबंधित भाषाओं के प्रचार प्रसार को भी बढ़ावा मिलेगा। किंतु दुर्भाग्य से इस देश में अभी तक अंग्रेजी का ही बोलवाला चला आ रहा है।
11- संविधान के अनुच्छेद 351 में यह स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि- "संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिंदी का प्रचार प्रसार बढ़ाएं जिससे,वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके। और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिंदुस्तानी और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप,शैली,और पदों को आत्मसात करते हुए और जहां आवश्यक हो वहां उसके शब्द भंडार के लिए मुख्यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करें।"
12-राजभाषा घोषित होने तथा स्पष्ट संबैधानिक प्रावधानों के बाद भी हिंदी प्रेमियों के सार्थक हस्तक्षेप तथा राजनीतिज्ञों की इच्छा शक्ति के अभाव में आजादी के 77 वर्ष बाद भी हिंदी राजभाषा का पूर्ण स्थान नहीं पा सकी यह हिंदी अत: राजभाषा प्रेमियों की चिंता मूल विषय होना चाहिए। श्रीराम तिवारी
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