गुरुवार, 1 सितंबर 2016

इस २-सितम्बर की हड़ताल का मकसद है कि भारत को फिर से गुलाम नहीं होने देगें।

अधिकांस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और स्वतन्त्र फेडरेशनों ने आज २ सितम्बर -२०१६ को राष्ट्रव्यापी हड़ताल का- शंखनाद किया है। इस देशव्यापी हड़ताल में भारत के बीस करोड़ मजदूर,कर्मचारी और अधिकारी शामिल हैं। हालाँकि हड़ताल को असफल करने के लिए  केंद्र सरकार ने पूरी ताकत लगादी है। हड़ताल के प्रचण्ड रूप को भाँप कर ही केंद्र सरकार ने विगत कुछ दिनोंसे मजदूरोंको फुसलाने के जतन भी किये हैं। पहले तो केंद्रीय श्रम -  मंत्री ने  सभी केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के द्वारा पेश १२ सूत्री मांगपत्र पर चर्चा के लिए बैठक बुलाई । यह महत्व -पूर्ण बैठक १८ जुलाई को शाम ४. ३०  बजे श्रमशक्ति भवन ,नयी दिल्ली में सम्पन्न हुई। इस बैठक में इंटुक के संजीव रेड्डी ,एटक के डी एल सचदेव ,एचएमएस के हरभजनसिंह ,सीटू के तपन सेन ,एआईयूटीयूसी के आर के  शर्मा , सेवा के मोनाली तथा बीएमएस के बी इन राय - उपवन शर्मा मौजूद थे। इनके अलावा अन्य श्रम - संगठनों के प्रतिनिधि भी मौजूद रहे । लेकिन केंद्र सरकार ने श्रम संगठनों की किसी भी बाजिब मांग का सकारात्मक जबाब नहीं दिया !

केंद्र सरकार की ओर से श्रमिक संघों के १२ सूत्री मांगपत्र पर, श्रम मंत्रालय द्वारा तैयार  जो स्टेटस रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी उसमें नया कुछ नहीं था। वर्तमान मोदी सरकार ने विगत २ सितम्बर -२०१५ की हड़ताल से पहले भी यही स्टेटस रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। यह सरकार  शायद मजदूर संघों को बेबकूफ समझती है। देश के एक करोड़ संगठित और दस करोड़ असंगठित मजदूर - कर्मचारियों को  मोदी सरकार मूर्ख बनाने की कोशिश कर रही है. लेकिन इसका खामियाजा पूरे देश को भुगतना होगा।क्योंकि न केवल देश के आर्थिक हितों को बल्कि देश की सुरक्षा को भी दाँव पर लगाया जा रहा है। भारत अब अमेरिका का उपनिवेश बनने जा रहा है। जबकि अमेरिका के  शस्त्र उत्पादकों द्वारा  न केवल पाकिस्तान को बल्कि दक्षिण एशियाके तमाम गुंडे ,मवालियों -आतंकियों को भी लंबे समय से हथियारों की आपूर्ति बदस्तूर जारी है। भारत-पाकिस्तान के युवा हाथों में ,कश्मीरी लगाववादियों के हाथोंमें बन्दुक थमाकर उन्हें राष्ट्रवाद के नाम पर, मजहब के नाम पर लड़ाया जा रहा है। इस खूनी खेलमें अब तक पाकिस्तानी नेता ही शामिल थे, अब भारत के 'राष्ट्रवादी' भी उसी राह पर चल पड़े हैं। वे इस आत्मघाती गोल पर गदगदायमान हो रहे हैं ।

देश के तमाम श्रम संगठनों के १२ सूत्री मांगपत्र पर सरकार समर्थक यूनियन 'बीएमएस' के भी हस्ताक्षर हैं। किन्तु वे मोदी सरकार का लिहाज रखते हुए हड़ताल से बाहर हैं। जबकि मोदी जी ने भी डॉ मनमोहन सिंह द्वारा घोषित आर्थिक सुधारों में और ज्यादा तीव्रगामी अटॉमिक बूस्टर लगा दिए हैं। अंधाधुंध विनिवेश,निजीकरण के अलावा   रक्षा रेलवे,वित्त, टेलिकॉम विभाग जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में १००% या असीमित एफडीआई लाने की योजना  को छोड़ने  के लिए  यह सरकार  तैयार नहीं है। सरकारी और निजी क्षेत्रके  करोड़ों मजदूरों के हितों की उपेक्षा कर , न्यूनतम वेतन ,न्यूनतम पेंशन ,ग्रेच्यूटी,मेडिकल इत्यादि के मुद्दों को ठंडे बास्ते में डालकर यह  सरकार देश के पूंजीपतियों और अमेरिका जैसे साम्राज्यवादी मुल्कों के कारपोरेट घरानों से प्यारा की पेंगें बढ़ रही है। आर्थिक क्षेत्र में भी देश की जीडीपी दर डाउन है। डालर के सापेक्ष रुपया भूलुंठित हो रहा है। केंद्र सरकार का रुख बेहद प्रतिगामी और मालिक परस्त है।

दो-सितम्बर की राष्ट्रव्यापी हड़ताल को विफल करने के लिए केंद्र सरकार ने आनन -फानन न केवल अपने [केंद्रीय] कर्मचारियों को बढ़ा हुआ वेतन भुगतान कर दिया अपितु दो साल का  बकाया बोनस देकर , हड़ताल को कमजोर करने का प्रयास किया है ।लेकिन देश के मजदूर पीछे नहीं हटने वाले नहीं हैं। वे  अपने हकों के लिए , श्रम संगठन बनाने के विधिक अधिकार के लिए सजग हैं। वे हर जोर-जुल्म से संघर्ष करते रहेंगे ,जब तक अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर लेते। इस हड़ताल से पहले की तरह ही बीएमएस ने कन्नी काट ली है। उनका वर्ग चरित्र यही है। केवल सरकारी कर्मचारियों या अधिकारियों को छोड़कर बाकी देश के करोड़ों मेहनतकशों के सन्दर्भ में वर्तमान मोदी सरकार की नीति-नियत ठीक नहीं है। उनका रवैया घोर पूंजीवादपरस्त है ,कन्जर्वेटिव ही नहीं बल्कि ब्रिटिश गुलामी के दौर से भी महा भयानक है।जनाक्रोश को दबाने के लिए यह सरकार निरन्तर अति सक्रिय  है। साम्प्रदायिक एवम जातिय विमर्श उछालना ,पाकिस्तान का हौआ खड़ा करना ,कश्मीर की दावाग्नि को हवा देना ,चीन का खतरा बढ़-चढ़ कर बयान करना,गौमांस और लव -जेहादको महिमा मंडित करना इत्यादि सवालों पर जनता में झगड़े बनाये रखना एक किस्म की लोकतान्त्रिक जरूरत  बना दी गयी है।
 
 सम्भवतः भारत के बहुत से लोग नहीं जानते कि 2 सितम्बर 2016 को देश के सेंट्रल ट्रेड यूनियन मिलकर देश  व्यापी हड़ताल क्यों कर रहे है ? भारतीय मीडिया पूरी तरह मालिक परस्त है।  प्रसारभारती ,आकाशवाणी और डीडी न्यूज में हड़ताल को लगभग बेलक आउट कर दिया जाता है। देश की आवाम को हड़ताल के नकारात्मक पहलुतो खूब दिखाए जाते हैं।किन्तु उनके १२ सूत्री मांगपत्र की फोटो भी नहीं दिखाई जाती। अधिकांस  पूंजीवादी नेता और न्यूज चेनल खुद ही नहीं जानते कि ये हड़ताल क्यों हो रही है? हड़ताली मजदूरों -कर्मचरियों की मांगे क्या है ? क्यों देश के मजदूर वर्ग को इतना बड़ा कदम उठाना पड़ा  है ? देश के सभी श्रमिक संघटनो को साल भर बाद फिर एक क्यों होंना पड़ा  ?

दरसल मोदी सरकार की एक और भयानक कारस्तानी जनता को नहीं मालूम। यह सरकार श्रम कानूनो में बदलाव करने जा रही है.जिस बदलाव के खिलाफ १९२६ में शहीद भगतसिंह और उनके साथियों ने अस्मेबली में बम फेंके ,उसी ट्रेड बिल की आधुनिक अवतरणी यह नया मोदी वादी श्रम कानून है।  इस नए श्रम कानून में तीन पुराने श्रम कानूनो *इंडस्टिरियल एक्ट 1947*, ...*ट्रेड यूनियन एक्ट 1926*और *इंडिस्टियल एक्ट 1946* का खत्मा होगा और  यदि  ये नया कानून बन गया तो क्या :-
(1) मोटर ट्रांसपोर्ट वर्क्स एक्ट 1961. (2) पेमेंट ऑफ़ बोनस एक्ट 1965, (3) इंटर स्टेट वोर्कमेंन एक्ट 1979, (4) बिल्डिंग्स एंड कंस्ट्रक्टशन एक्ट 1996 के अनुसार कर्मचारियो को नोकरी से निकालना आसान हो जाएगा ।
(2) यूनियन बनाना मुश्किल हो जाएगा न्यूनतम 10 फीसदी या 100 कर्मचारी की जरुरत होगी । जहाँ पहले 7 कर्मचारी मिलकर यूनियन बना लेते थे वहा अब 30 की जरुरत होगी ।
(3) एक माह में ओवर टाइम की सीमा 50 से बढ़ाकर 100 घंटे करना गलत है क्योकि इसका भुगतान डबल रेट में ना होकर अब सिंगल रेट में होगा । जब कानून में ही 100 घंटे का प्रवधान हो जाएगा तो मजदूरो को 8 घंटे के जगह 12 घंटे की नियमित ड्यूटी हो जाएगी।।
(4) फेक्टरी के मालिको को अब ज्यादा अधिकार मिल जाएंगे कोर्ट जाने का अधिकार खत्म हो जाएगा ।।(5) मौजूदा 44 श्रम कानूनो को ख़त्म करके 4 कर दिया जाएगा ।
(6) यूनियन में बाहरी लोगो पर रोक लगा दी जाएगी ।
(7) अप्रेंटिश् एक्ट में एक तरफ़ा बदलाव कर 2 साल से बड़ा कर 10 साल कर दिया जाएगा ।


ये इतना खतरनाक कानून होगा कि यदि इसका विरोध नहीं किया गया और ये बन गया तो देश में श्रमिक वर्ग के और बुरे हाल हो जायेंगे। चूँकि यह सब अडानियों-अम्बानियों,निवेशकों और आर्थिक साम्राज्यवादियों के इशारे पर किया जा रहा है,इसलिए मजदूरो कर्मचारियों पर बोझ डाला जा रहा है।  विदेशी कंपनिया कहती है की भारत के 44 श्रम कानून बहुत ही जटिल और मजदूर हितैषी हैं। मोदी जी आप इनको पहले खत्म करो फिर हम भारत आएंगे !इसलिए मोदी सरकार ये कदम उठा रही है। और एक बार फिर भारत को गुलाम बनाने की पहल की गई है । इसलिए देश के 11 सेंट्रल ट्रेड यूनियन ने मिलकर ऐलान कर दिया है की 2 सितम्बर को देश व्यापी हड़ताल हो रही है। ताकि मजदूर विरोधी ,देश विरोधी और लोकतंत्र विरोधी कानून न बन पाये ! इस  २-सितम्बर की हड़ताल का मकसद भी यही है कि भारत को फिर से गुलाम नहीं होने देगें। 


  इंकलाब -जिंदाबाद ! ,,,,, हड़ताली साथी -जिंदाबाद ,,,!

 आज क्या है ? ,,,राष्ट्रव्यापी हड़ताल है -हड़ताल है ,,,,,!!

 कौन बनाता हिंदुस्तान ?,,,भारत का मजदूर -किसान !

 देश की रक्षा कौन करेगा ? भारत का मजदूर -जवान !

 अम्बानी -अडानी ,टाटा -बिड़ला की जागीर नहीं - हिंदुस्तान हमारा है !




   श्रीराम तिवारी ,,,,,भूतपूर्व राष्ट्रीय संगठन सचिव ,,,,,बीएसएनएलईयू ,,,,,,!


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