प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने अपना ६७ वाँ जन्म दिवस अपनी माताजी के श्रीचरणों में नमन के साथ मनाया। दुनिया भर के तमाम राष्ट्रप्रमुखों ने ,मोदीजी के समर्थकों ने और कतिपय मोदी विरोधियों ने भी सोशल मीडिया पर उन्हें शुभकामनएं दीं। पूरे भारत में और विश्व में भी मोदी जी के जन्म दिन की धूम रही। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को उनके जन्मदिन पर पाकिस्तान के विद्रोही -बलूचिस्तान के निर्वासित नेताओं ने भी अपनी शुभकामनाएँ व्यक्त कीं ! नाचीज ने भी उनके दीर्घायु होने ,शतायु होने की कामना की ! लेकिन आश्चर्य है कि कुछ नामचीन्ह विपक्षी नेताओं ने, राजनैतिक दलों ने भूलवश या व्यस्तता वश मोदीजीको जन्म दिन की शुभकामनाएँ नहीं दीं। ऐंसे लोगों से निवेदन है कि कम से कम 'जन्मदिन' और 'मरण दिन 'को तो राजनीति से दूर रखिये ! सभी विपक्षी नेताओं व दलों को सोचना चाहिए कि क्या मोदी जी उनके प्रधान मंत्री नहीं हैं ? क्या भारत जैसे विराट लोकतांत्रिक देशमें राजनैतिक पक्ष-विपक्षका स्थाई बैरभाव उचित है ? वेशक नीतिगत मामलों में पक्ष-विपक्ष का मतभेद स्वाभाविक है , वह जायज भी हैऔर लोकतंत्र के हित में भी है। किन्तु इसके वावजूद जबकि सभी दल किसी खास विधेयक पर संसद में आम सहमति प्राप्त कर सकते हैं तो किसी पीएम के जन्मदिन पर शुभकामनाओं में कंजूसी क्यों ?
वेशक जब मोदीजी गुजरात के मुख्यमंत्री रहे ,भाजपा संगठन में काम करते रहे या सिर्फ 'संघ' प्रचारक रहे तब उन्होंने भी शायद किसी कांग्रेसी प्रधान मंत्री को वो सम्मान नहीं दिया जिसका मैं इस आलेख में जिक्र कर रहा हूँ। राहुल गाँधी ,सोनिया गाँधी और डॉ मनमोहनसिंह तो मोदी जी से बहुत दूर हैं लेकिन मोदी जी ने तो पंडित नेहरू,इंदिरा जी और जेपी को भी वह सम्मान नहीं दिया जो अटल जी ने दिया है। अपने पूर्वर्ती प्रधानमंत्रियों की लानत-मलामत तो मोदी जी विदेशी धरतीपर भी कर चुके हैं। यह भी किसीसे नहीं छिपा है कि संजय जोशी जैसे अपने संघी साथियों को और आडवाणी,मुरलीमनोहर तथा यशवंत सिन्हा जैसे दिग्गज भाजपाई वरिष्ठ नेताओं को हासिये पर धकेलने में मोदीजी सिद्धहस्त रहे हैं। यही वजह है कि कांग्रेसी नेताओं की ओर से ,वामपंथी नेताओं की ओर से शुभकामना सन्देश सुनाई नहीं दिए। हद तो तब हो गयी जब 'संघ परिवार' के ही अनेक महारथी जो 'शर शैया' पर अपने उत्तरायण की प्रतीक्षा कर रहे हैं,उन्होंने भी मोदीजी को जन्म दिन की मुबारकवाद नहीं दी।
चूँकि अतीत में अपने राजनैतिक विरोधियों को निरन्तर कोसते हुए आदरणीय मोदी जी ने अम्बानी,अडानी,जियो टेलीकॉम ,भाजपा, संघ परिवार ,कारपोरेट कम्पनियोंके मालिकान और जिन-जिनके अच्छे दिन आये हैं उन सभी को खूब सम्मान दिया और मनसब भेंट किये। सम्भवतः इसीलिये मोदी जी सिर्फ इन चन्द लोगों के ही परमप्रिय प्रधानमंत्री रह गए हैं,और जनता-जनार्दन तथा लोकतांत्रिक विपक्ष से बहुत दूर हो गए हैं। मोदी जी वेशक यूएस प्रेजिडेंट ओबामा,जापानी पीएम शिंजो आबे और रुसी राष्ट्रपति पुतिन के करीब तो हो सकते हैं ,किन्तु अपने वतन में, अपने घर गांव वडनगर से लेकर संसद तक वे बहुत से लोगों को जाने-अनजाने निराश भी करते रहे हैं !यह तो सच है कि 'एक व्यक्ति ,हर किसी को संतुष्ट नहीं कर सकता' किन्तु जब कोई व्यक्ति भारत जैसे विराट लोकतंत्र का ध्वजवाहक हो तो देश समाज का बहुमत 'सर्वाधिक' कुशल नेतत्व की उम्मीद करता है और धीरोदात्त चरित्र की अपेक्षाओं में सुनहरे भविष्य की उम्मीद करता है।
चूँकि भारतीय संविधान के मुताबिक मोदीजी अब सभी के प्रधान मंत्री हैं ,इसलिए जन्म दिन की शुभकामनाएँ देने का जितना हक सत्ता सुखवालों को है ,उतना ही हक उन सभी को है जो चुनाव हार गए हैं । क्योंकि आम चुनाव में जिसे बहुमत मिलता है वही पूरे देशका एकमात्र प्रधानमंत्री हुआ करता है। तब जो नेता या दल चुनाव हार जाते हैं ,उनके मतदाता- सपोर्टर यह नहीं कह सकते कि उनका कोई प्रधानमंत्री नहीं है। दरसल प्रधानमंत्री जो भी हो ,वह पूरे देश का नेता होता है। और वैसे भी भारतीय संस्कृति में भी यही रीति है कि भले ही वह एक बच्चा ही क्यों न हो ? वह हाथी के सिर वाला बैडोल 'एकदन्त' गजबदन ही क्यों न हो ? लेकिन यदि उसे गणपति या 'गणाधिपति' माना है तो प्रथम पूज्य वही होगा। पाश्चात्य दर्शन के अनुसार 'जो जीता वही सिकन्दर' भी कह सकते हैं। इसलिए यदि कोई हर-हर मोदी नहीं करता तो कोई अनीति नहीं ,किन्तु 'हैप्पी बर्थ डे 'कहने में यदि किसी की जुबान लड़खड़ाती है तो कोई बात गले नहीं उतरती ! आप पीएम की नीतियों से सहमत नहीं तो विरोध कीजिए ,यह तो शौर्य और आत्मगौरव का प्रमाण है। किन्तु अपने देश की जनता द्वारा निर्वाचित प्रधानमंत्री को आप प्रधान मंत्री ही ना माने या 'हैप्पी बर्थ डे' कहने में आगा -पीछा देखें तो यह बड़े शर्म की बात है। मेरे ख्याल से सभी भारत वासियों को एक स्वर में तहेदिल से अपने प्रधानमंत्री को 'जन्म दिन 'की मुबारकबाद देनी चाहिए !
सवाल उठ सकता है कि जिनको महँगाई ने मारा ,जिन्हें सूखा-बाढ़ और व्यापम ने मारा ,मोदी जी उनके भी प्रधानमंत्री हैं ,किन्तु राजधर्म नदारद है। जो अल्पसंख्यक हैं ,जो बीफ भक्षणके नाम पर धिक्कारे जाते हैं , जो दलित हैं और मृत पशु उठाने के नाम पर मोदी जी के राज्य गुजरात में ही मार दिए जाते हैं,क्या मोदी जी उनके प्रधान मंत्री नहीं हैं ?उन्हें प्रधानमंत्री का सहयोग क्यों नहीं मिलता ? जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की चिंता करते हैं मोदीजी उनके भी प्रधानमंत्री हैं ,जो सत्ताधारियों की असहिष्णुता के खिलाफ बोलते हैं ,मोदी जी उनके भी सौ फीसदी प्रधानमंत्री हैं.जो साम्प्रदायिक उन्माद और अंधश्रद्धा जनित पाखण्डवाद का विरोध करते हैं मोदी जी उनके भी प्रधान मंत्री हैं । तो सवाल उठता है कि उनकी हत्या पर मौन क्यों रहते हैं ? चूँकि 'राष्ट्रवाद' का आह्वान है कि इन सवालों पर कमर कस के रखें , संगठित संघर्ष जारी रखें।
सभी भारतवासियों से अनुरोध है कि जनादेश द्वारा निर्वाचित प्रधानमंत्री को दीर्घायु होने की शुभकामनाएं देंने में कंजूसी नहीं करें । क्योंकि यही एक आचरण है जो मोदीजी को भी बाध्य कर सकता है कि- वे फासिज्म से दूर रहेंगे । वे भृष्टाचार उन्मूलन के वादे पूरे करेंगे ,वे कालाधन वापिस लाकर गरीबों के खातों में जमा करेंगे ,कश्मीर में धारा ३७० लागू करेंगे । वे चुनाव में किये गए वादों के अनुसार देश में एक 'समान कानून'याने यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करेंगे। वे पाकिस्तान में घुसकर वहाँ से न केवल आतंकी दाऊद ,हाफिज सईद को पकड़कर लाएंगे बल्कि भारत विरोधी केम्पों पर हमले करेंगे । वे बिहार चुनाव में किये गए वादे पूरे करेंगे ,दिल्ली चुनाव में किये गए वादे पूरे करेंगे। तीन साल पहले देश और दुनिया के सामने अण्णा हजारे ने ,श्री-श्री ने ,स्वामी बाबा रामदेव ने सुब्रमण्यम स्वामी ने और खुद मोदीजी ने भी यूपीए सरकार पर लाखों करोड़ गबन और भृष्टाचार के ढेरों आरोप लगाए थे ,आशा की जा सकती है कि मोदी जी उस धन को वापिस लेकर सरकारी खजाने मेंशीघ्र जमा करेंगे। उम्मीद है कि मोदी जी एक लाख छियत्तर हजार करोड़ रूपये - टेलिकॉम सेक्टर से याने 'स्पेक्ट्रम स्कैम 'के और बाकी कोयला,गैल ,तेल रेल तथा मनरेगा इत्यादि के दर्जनों स्केम के हजारों करोड़ वसूल करेगे और दोषियों को दण्डित कराने के लिए न्यायायिक कारवाही अवश्य करेंगे ! इसलिए भी उन्हें 'हैप्पी बर्थ डे' किया जाना चाहिये !
एक राजनैतिक पृष्ठभूमि पर आधारित फिल्म में हीरो अनिल कपूर फ़िल्मी 'मुख्यमंत्री' अमरीश पूरी को सिस्टम की अनैतिकता पर बड़ा ओजस्वी भाषण देता है। अमरीशपुरी भी कटाक्ष करते हैं कि 'कहना आसान है ,सत्ता में आकर खुद करके दिखाओ तब पता चलेगा, कि सिस्टम के खिलाफ जानेमें कितना जोखिम है !' इस वार्तालाप के बाद अनिल कपूर याने 'नायक'को 'संवैधानिक विशेषाधिकार'के तहत एक दिन का मुख्यमंत्री बना दिया जाता है। चूँकि अनिल कपूर रुपी 'एक दिन के बादशाह' को ईमानदार न्यायप्रिय जनता एवम परेश रावल रुपी निष्ठावान पीए का समर्थन हासिल रहता है ,इसलिए फ़िल्मी कहानी का सुखान्त इस सन्देश के साथ होता है कि कितना ही बदनाम और खराब सिस्टम हो यदि उस सिस्टम के अलमबरदारों को जूते मारो तो वो भी सुधर सकता है। बिना किसी कठोर या रक्तिम क्रांति के २४ घंटे बीतने से कुछ क्षण पहले ही 'नायक' द्वारा तमाम भृष्ट अनैतिक आचरण वाले अफसर - नेता और मुख्यमंत्री भी जेल के सींकचों के अंदर कर दिए जाते हैं । मोदी जी याद रखें कि ढाईवर्ष गुजर चुकें हैं ,अभी तक किसी चोर या भृष्ट नेता -अधिकारी का बाल भी बांका नहीं हुआ है।
विगत लोक सभा चुनावों के दरम्यान मोदी जी ने जो वादे किये या यूपीए -कनग्रेस पर हमले किये वह तो चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा है। उन्होंने जनता को जो 'अच्छे दिनों'की उम्मीद बंधाई, स्विस खातों की रट लगाईं वेशक यह सब मात्र आदर्शवादी 'यूटोपिया' ही है।जो केवल फिल्मों में या 'फिक्शन' कहानियों में ही सम्भव है।किन्तु फिर भी कुछ बेहतर करने की चाहत का माद्दा यदि किसी व्यक्ति,समाज या राष्ट्र में हो तो परिकल्पना को सिद्धांत बनते देर नहीं लगती। इतिहास साक्षी है कि सिद्धांतों के लिए मरने -मिटने वालों की कभी किस दौर में कमी नहीं रही। जिस तरह रास्ते पर पड़ा गोबर भी अपने साथ धूल को समेट लेता है उसी तरह क्रांतियों और विप्लव का नेतत्व करने वाले लोग असफल होने के वावजूद भी ,व्यक्ति ,समाज और राष्ट्रों का कुछ तो परिमार्जन और पुनरोद्धार अवश्य कर लेते है। याने तत्सम्बन्धी एकल या सामूहिक सकारात्मक प्रयास कभी निरर्थक -अकारथ नहीं जाते।
सम्पूर्ण क्रांति या व्यवस्था परिवर्तन सम्भव न भी हो तब भी न्याय और नीति का पक्ष और ज्यादा मजबूत अवश्य होता जाता है। अतीत में फायरबाख , ओवेन और सैंट साइमन जैसे अर्धवैज्ञनिकवादी समाजवादी विचारक यूरोप को प्रभावित करने में सफल रहे। और 'सोशल डेमोक्रेसी' के मानने वालों ने भले ही मार्क्स एंगेल्स से , लेनिन और स्तालिन से पृथक 'अहिंसावादी' सिद्धांत लिया हो ,किन्तु प्रकारांतर से उनके विचारोंने सम्पूर्ण यूरोप,अमेरिका को व अफ्रीकी देशों को मानवीय मूल्यों से समृद्ध अवश्य किया है। लेनिन के नेतत्व में सम्पन्न महान अक्टूबर क्रान्ति -वोल्शेविक क्रांति भले ही अब चुक गयी हो किन्तु 'सोवियत संघ' वाली तासीर का अक्स आज भी 'रूसी संघ ;में विद्यमान है। चीन ,क्यूबा ,वियतनाम भी इस तरह की क्रांतियों के जीवन्त प्रमाण हैं। चूँकि भारतीय प्रधान मंत्री मोदी जी को प्रचण्ड जनादेश मिला है ,इसलिए देश की जनता को यकीन है कि वे शीघ्र ही कारपोरेट फोबिया से उबरकर जन कल्याण कारी योजनाओं पर अमल करेंगे। वे क्रांतिकारी जननायक के रूप में भारत की निर्धन जनता को समृद्धशाली बनाने की दिशा में जरूर कुछ खास करेंगे। इसी उम्मीद के साथ मोदी जी को पुनः उन्हें जन्म दिन की शुभकामनाएं !वे शतायु हों ! श्रीराम तिवारी !
वेशक जब मोदीजी गुजरात के मुख्यमंत्री रहे ,भाजपा संगठन में काम करते रहे या सिर्फ 'संघ' प्रचारक रहे तब उन्होंने भी शायद किसी कांग्रेसी प्रधान मंत्री को वो सम्मान नहीं दिया जिसका मैं इस आलेख में जिक्र कर रहा हूँ। राहुल गाँधी ,सोनिया गाँधी और डॉ मनमोहनसिंह तो मोदी जी से बहुत दूर हैं लेकिन मोदी जी ने तो पंडित नेहरू,इंदिरा जी और जेपी को भी वह सम्मान नहीं दिया जो अटल जी ने दिया है। अपने पूर्वर्ती प्रधानमंत्रियों की लानत-मलामत तो मोदी जी विदेशी धरतीपर भी कर चुके हैं। यह भी किसीसे नहीं छिपा है कि संजय जोशी जैसे अपने संघी साथियों को और आडवाणी,मुरलीमनोहर तथा यशवंत सिन्हा जैसे दिग्गज भाजपाई वरिष्ठ नेताओं को हासिये पर धकेलने में मोदीजी सिद्धहस्त रहे हैं। यही वजह है कि कांग्रेसी नेताओं की ओर से ,वामपंथी नेताओं की ओर से शुभकामना सन्देश सुनाई नहीं दिए। हद तो तब हो गयी जब 'संघ परिवार' के ही अनेक महारथी जो 'शर शैया' पर अपने उत्तरायण की प्रतीक्षा कर रहे हैं,उन्होंने भी मोदीजी को जन्म दिन की मुबारकवाद नहीं दी।
चूँकि अतीत में अपने राजनैतिक विरोधियों को निरन्तर कोसते हुए आदरणीय मोदी जी ने अम्बानी,अडानी,जियो टेलीकॉम ,भाजपा, संघ परिवार ,कारपोरेट कम्पनियोंके मालिकान और जिन-जिनके अच्छे दिन आये हैं उन सभी को खूब सम्मान दिया और मनसब भेंट किये। सम्भवतः इसीलिये मोदी जी सिर्फ इन चन्द लोगों के ही परमप्रिय प्रधानमंत्री रह गए हैं,और जनता-जनार्दन तथा लोकतांत्रिक विपक्ष से बहुत दूर हो गए हैं। मोदी जी वेशक यूएस प्रेजिडेंट ओबामा,जापानी पीएम शिंजो आबे और रुसी राष्ट्रपति पुतिन के करीब तो हो सकते हैं ,किन्तु अपने वतन में, अपने घर गांव वडनगर से लेकर संसद तक वे बहुत से लोगों को जाने-अनजाने निराश भी करते रहे हैं !यह तो सच है कि 'एक व्यक्ति ,हर किसी को संतुष्ट नहीं कर सकता' किन्तु जब कोई व्यक्ति भारत जैसे विराट लोकतंत्र का ध्वजवाहक हो तो देश समाज का बहुमत 'सर्वाधिक' कुशल नेतत्व की उम्मीद करता है और धीरोदात्त चरित्र की अपेक्षाओं में सुनहरे भविष्य की उम्मीद करता है।
चूँकि भारतीय संविधान के मुताबिक मोदीजी अब सभी के प्रधान मंत्री हैं ,इसलिए जन्म दिन की शुभकामनाएँ देने का जितना हक सत्ता सुखवालों को है ,उतना ही हक उन सभी को है जो चुनाव हार गए हैं । क्योंकि आम चुनाव में जिसे बहुमत मिलता है वही पूरे देशका एकमात्र प्रधानमंत्री हुआ करता है। तब जो नेता या दल चुनाव हार जाते हैं ,उनके मतदाता- सपोर्टर यह नहीं कह सकते कि उनका कोई प्रधानमंत्री नहीं है। दरसल प्रधानमंत्री जो भी हो ,वह पूरे देश का नेता होता है। और वैसे भी भारतीय संस्कृति में भी यही रीति है कि भले ही वह एक बच्चा ही क्यों न हो ? वह हाथी के सिर वाला बैडोल 'एकदन्त' गजबदन ही क्यों न हो ? लेकिन यदि उसे गणपति या 'गणाधिपति' माना है तो प्रथम पूज्य वही होगा। पाश्चात्य दर्शन के अनुसार 'जो जीता वही सिकन्दर' भी कह सकते हैं। इसलिए यदि कोई हर-हर मोदी नहीं करता तो कोई अनीति नहीं ,किन्तु 'हैप्पी बर्थ डे 'कहने में यदि किसी की जुबान लड़खड़ाती है तो कोई बात गले नहीं उतरती ! आप पीएम की नीतियों से सहमत नहीं तो विरोध कीजिए ,यह तो शौर्य और आत्मगौरव का प्रमाण है। किन्तु अपने देश की जनता द्वारा निर्वाचित प्रधानमंत्री को आप प्रधान मंत्री ही ना माने या 'हैप्पी बर्थ डे' कहने में आगा -पीछा देखें तो यह बड़े शर्म की बात है। मेरे ख्याल से सभी भारत वासियों को एक स्वर में तहेदिल से अपने प्रधानमंत्री को 'जन्म दिन 'की मुबारकबाद देनी चाहिए !
सवाल उठ सकता है कि जिनको महँगाई ने मारा ,जिन्हें सूखा-बाढ़ और व्यापम ने मारा ,मोदी जी उनके भी प्रधानमंत्री हैं ,किन्तु राजधर्म नदारद है। जो अल्पसंख्यक हैं ,जो बीफ भक्षणके नाम पर धिक्कारे जाते हैं , जो दलित हैं और मृत पशु उठाने के नाम पर मोदी जी के राज्य गुजरात में ही मार दिए जाते हैं,क्या मोदी जी उनके प्रधान मंत्री नहीं हैं ?उन्हें प्रधानमंत्री का सहयोग क्यों नहीं मिलता ? जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की चिंता करते हैं मोदीजी उनके भी प्रधानमंत्री हैं ,जो सत्ताधारियों की असहिष्णुता के खिलाफ बोलते हैं ,मोदी जी उनके भी सौ फीसदी प्रधानमंत्री हैं.जो साम्प्रदायिक उन्माद और अंधश्रद्धा जनित पाखण्डवाद का विरोध करते हैं मोदी जी उनके भी प्रधान मंत्री हैं । तो सवाल उठता है कि उनकी हत्या पर मौन क्यों रहते हैं ? चूँकि 'राष्ट्रवाद' का आह्वान है कि इन सवालों पर कमर कस के रखें , संगठित संघर्ष जारी रखें।
सभी भारतवासियों से अनुरोध है कि जनादेश द्वारा निर्वाचित प्रधानमंत्री को दीर्घायु होने की शुभकामनाएं देंने में कंजूसी नहीं करें । क्योंकि यही एक आचरण है जो मोदीजी को भी बाध्य कर सकता है कि- वे फासिज्म से दूर रहेंगे । वे भृष्टाचार उन्मूलन के वादे पूरे करेंगे ,वे कालाधन वापिस लाकर गरीबों के खातों में जमा करेंगे ,कश्मीर में धारा ३७० लागू करेंगे । वे चुनाव में किये गए वादों के अनुसार देश में एक 'समान कानून'याने यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करेंगे। वे पाकिस्तान में घुसकर वहाँ से न केवल आतंकी दाऊद ,हाफिज सईद को पकड़कर लाएंगे बल्कि भारत विरोधी केम्पों पर हमले करेंगे । वे बिहार चुनाव में किये गए वादे पूरे करेंगे ,दिल्ली चुनाव में किये गए वादे पूरे करेंगे। तीन साल पहले देश और दुनिया के सामने अण्णा हजारे ने ,श्री-श्री ने ,स्वामी बाबा रामदेव ने सुब्रमण्यम स्वामी ने और खुद मोदीजी ने भी यूपीए सरकार पर लाखों करोड़ गबन और भृष्टाचार के ढेरों आरोप लगाए थे ,आशा की जा सकती है कि मोदी जी उस धन को वापिस लेकर सरकारी खजाने मेंशीघ्र जमा करेंगे। उम्मीद है कि मोदी जी एक लाख छियत्तर हजार करोड़ रूपये - टेलिकॉम सेक्टर से याने 'स्पेक्ट्रम स्कैम 'के और बाकी कोयला,गैल ,तेल रेल तथा मनरेगा इत्यादि के दर्जनों स्केम के हजारों करोड़ वसूल करेगे और दोषियों को दण्डित कराने के लिए न्यायायिक कारवाही अवश्य करेंगे ! इसलिए भी उन्हें 'हैप्पी बर्थ डे' किया जाना चाहिये !
एक राजनैतिक पृष्ठभूमि पर आधारित फिल्म में हीरो अनिल कपूर फ़िल्मी 'मुख्यमंत्री' अमरीश पूरी को सिस्टम की अनैतिकता पर बड़ा ओजस्वी भाषण देता है। अमरीशपुरी भी कटाक्ष करते हैं कि 'कहना आसान है ,सत्ता में आकर खुद करके दिखाओ तब पता चलेगा, कि सिस्टम के खिलाफ जानेमें कितना जोखिम है !' इस वार्तालाप के बाद अनिल कपूर याने 'नायक'को 'संवैधानिक विशेषाधिकार'के तहत एक दिन का मुख्यमंत्री बना दिया जाता है। चूँकि अनिल कपूर रुपी 'एक दिन के बादशाह' को ईमानदार न्यायप्रिय जनता एवम परेश रावल रुपी निष्ठावान पीए का समर्थन हासिल रहता है ,इसलिए फ़िल्मी कहानी का सुखान्त इस सन्देश के साथ होता है कि कितना ही बदनाम और खराब सिस्टम हो यदि उस सिस्टम के अलमबरदारों को जूते मारो तो वो भी सुधर सकता है। बिना किसी कठोर या रक्तिम क्रांति के २४ घंटे बीतने से कुछ क्षण पहले ही 'नायक' द्वारा तमाम भृष्ट अनैतिक आचरण वाले अफसर - नेता और मुख्यमंत्री भी जेल के सींकचों के अंदर कर दिए जाते हैं । मोदी जी याद रखें कि ढाईवर्ष गुजर चुकें हैं ,अभी तक किसी चोर या भृष्ट नेता -अधिकारी का बाल भी बांका नहीं हुआ है।
विगत लोक सभा चुनावों के दरम्यान मोदी जी ने जो वादे किये या यूपीए -कनग्रेस पर हमले किये वह तो चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा है। उन्होंने जनता को जो 'अच्छे दिनों'की उम्मीद बंधाई, स्विस खातों की रट लगाईं वेशक यह सब मात्र आदर्शवादी 'यूटोपिया' ही है।जो केवल फिल्मों में या 'फिक्शन' कहानियों में ही सम्भव है।किन्तु फिर भी कुछ बेहतर करने की चाहत का माद्दा यदि किसी व्यक्ति,समाज या राष्ट्र में हो तो परिकल्पना को सिद्धांत बनते देर नहीं लगती। इतिहास साक्षी है कि सिद्धांतों के लिए मरने -मिटने वालों की कभी किस दौर में कमी नहीं रही। जिस तरह रास्ते पर पड़ा गोबर भी अपने साथ धूल को समेट लेता है उसी तरह क्रांतियों और विप्लव का नेतत्व करने वाले लोग असफल होने के वावजूद भी ,व्यक्ति ,समाज और राष्ट्रों का कुछ तो परिमार्जन और पुनरोद्धार अवश्य कर लेते है। याने तत्सम्बन्धी एकल या सामूहिक सकारात्मक प्रयास कभी निरर्थक -अकारथ नहीं जाते।
सम्पूर्ण क्रांति या व्यवस्था परिवर्तन सम्भव न भी हो तब भी न्याय और नीति का पक्ष और ज्यादा मजबूत अवश्य होता जाता है। अतीत में फायरबाख , ओवेन और सैंट साइमन जैसे अर्धवैज्ञनिकवादी समाजवादी विचारक यूरोप को प्रभावित करने में सफल रहे। और 'सोशल डेमोक्रेसी' के मानने वालों ने भले ही मार्क्स एंगेल्स से , लेनिन और स्तालिन से पृथक 'अहिंसावादी' सिद्धांत लिया हो ,किन्तु प्रकारांतर से उनके विचारोंने सम्पूर्ण यूरोप,अमेरिका को व अफ्रीकी देशों को मानवीय मूल्यों से समृद्ध अवश्य किया है। लेनिन के नेतत्व में सम्पन्न महान अक्टूबर क्रान्ति -वोल्शेविक क्रांति भले ही अब चुक गयी हो किन्तु 'सोवियत संघ' वाली तासीर का अक्स आज भी 'रूसी संघ ;में विद्यमान है। चीन ,क्यूबा ,वियतनाम भी इस तरह की क्रांतियों के जीवन्त प्रमाण हैं। चूँकि भारतीय प्रधान मंत्री मोदी जी को प्रचण्ड जनादेश मिला है ,इसलिए देश की जनता को यकीन है कि वे शीघ्र ही कारपोरेट फोबिया से उबरकर जन कल्याण कारी योजनाओं पर अमल करेंगे। वे क्रांतिकारी जननायक के रूप में भारत की निर्धन जनता को समृद्धशाली बनाने की दिशा में जरूर कुछ खास करेंगे। इसी उम्मीद के साथ मोदी जी को पुनः उन्हें जन्म दिन की शुभकामनाएं !वे शतायु हों ! श्रीराम तिवारी !
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