शुक्रवार, 6 मार्च 2015

"हा ! हा ! भारत दुर्दशा देखि न जाये '' का मंजर क्यों नजर आ रहा है ?

 इससे पहले कि  भारत के प्रधानमंत्री  श्री नरेंद्र मोदी जी अपनी  राजकीय यात्रा पर श्रीलंका पहुंचें  वहां  के नवनिर्वाचित  राष्ट्रपति श्री विक्रम सिंघे ने भारतीय मछुआरों को चेतावनी दी है कि  'अंतर्राष्ट्रीय  समुद्री सीमा  का उलंघन  किया तो गोली  मार दी जाएगी '। किसी  काल्पनिक  अनुलंघनीय अपराध के लिए  कोई छटाक भर का 'टापू-देश ' भारत   जैसे महानतम लोकतान्त्रिक राष्ट्र की जनता को इस तरह की धमकी देता रहे  और सत्तारूढ़ नेता बगलें झांकते रहें तो  धिक्कार है ऐसी घटिया राजनीति  को और सत्ता पर काबिज नेतत्व को !  परोक्ष रूप से श्रीलंका के राष्ट्रपति ने   मछुआरों को नहीं बल्कि  भारत के बड़बोले - सत्तासीन नेताओं को  ही  'हवाई थप्पड़ मारा  है " !  नसीबवालों की असीम अनुकम्पा से अभी तक तो अमेरिका , पाकिस्तान  ,नेपाल ,बांग्ला देश और  चीन  ही  भारत को पीसने में जुटे थे किन्तु   अब ये श्रीलंका रुपी बिलोंटा   भी  'मियाऊं -मियायुँ  करके  वर्तमान 'लोह पुरुष' को  बिल्ली सावित  कर रहा है ! पता नहीं  क्या बेबसी है इन नसीब वालों की ? कहीं भी  तो अच्छे दिन उनकी पकड़ में  नहीं आ रहे हैं !  स्वनामधन्य राष्ट्रवादियों  परम  - राष्ट्रभक्तों  की सरकार के होते  हुए  भी -"हा ! हा ! भारत दुर्दशा देखि न जाये '' का मंजर क्यों नजर आ रहा है ?

   यूपीए के विगत  दस सालाना कार्यकाल को भारत की जनता ने एक अपरोधबोध की तरह भुगता है । गठबंधन धर्म निभाते-निभाते डॉ मनमोहन जी  'सिंह' से 'मेमना' हो गए थे। अपनी कार्पोरेटपरस्त अर्थनीति के अनुग्रह  से  गृह,विदेश, वित्त, टेलीकॉम ,रक्षा , रेल ,खेल ,तेल  और  पेट्रोलियम या खनिज समेत कोई भी मंत्रालय या सेक्टर नहीं  बचा था, जहाँ तत्कालीन प्रधान मंत्री को  'बेबसी' का सामना  न करना पड़ा हो ! उनकी  इस बेबसी ने मई-२०१४ मेंअपना  असर दिखाया। देश की जनता ने, यूपीए और कांग्रेस को , न केवल सत्ता से बल्कि सत्ता की  राजनीति  से ही 'तड़ीपार' कर दिया। बेशक वह स्याह कालखण्ड - डॉ मनमोहनसिंह का नहींथा  ,यूपीए का नहीं था  ,कांग्रेस का  भी नहींथा  ,सोनिया गांधी का नहींथा  ,राहुल बाबा का भी  नहीं था  बल्कि वह तो  भारत की 'बेबसी' का दौर था। बड़े अफ़सोस की बात है कि  नसीबवालों का दौर तो  उस दौर से भी  बदतर है।
                         
                   मनमोहनसिंह की बेबसी  की वजह तो सत्ता के दो केंद्र होने में निहित थी।  इसके अलावा  आर्थिक घोटाले होना  , अटॉमिक करार की व्यग्रता  , महँगाई और भृष्टाचार  और अन्ना-रामदेव  आंदोलन भी  उनके सामने मुँह  बाए खड़े थे।  मनमोहनसिंह  की 'बेबसी' का  एक अन्य कारण यह भी हो सकता है  कि वे ढ़पोरशंखी और बड़बोले नहीं हैं । वे   अति विनम्र स्वभाव और लचर व्यक्तित्व  के धारक हैं ।भाववादी या  भाग्यवादी लोग  उसमें एक और कारण जोड़ सकते हैं , कि  तत्कालीन  प्रधानमंत्री डॉ मनमोहनसिंह  बदनसीब थे !  लेकिन  अब  केंद्र की  सत्ता के निजाम बदल  चुके हैं ।  चूँकि अब नसीब वालों का राज  है।  चूँकि अब गठबंधन धर्म की  नाजायज मजबूरियाँ नहीं हैं। चूँकि अब प्रचंड बहुमत वालों का शासन है।  अतः  सवाल उठना स्वाभाविक है कि   अब  भारत  को   रोज-रोज शर्मनाक बदनसीबी  या बेबसी का मुँह  क्यों देखना पड  रहा है ?

                    यूपीए वाली  'बदनसीबों' की सरकार  ने  शायद भारत की इतनी थू-थू नहीं कराई जितनी यह 'नसीब वालों' की  सरकार  आये दिन करवा रही  है  ! आजादी के ६८ सालों में देश ने इतनी 'बेबस' सरकार कभी नहीं देखी!पहले तो नसीब वालों  को दिल्ली की जनता ने 'आप' जैसे 'अराजक ' 'उपद्रवियों' को जिताकर  नसीब वालों को  शर्मशार  किया ।  नसीबवालों ने  बिहार में जब  जीतनराम  पर दाँव   लगाया  तो पाँसे  ही पलट गए।  वहां अब नीतीश जैसा 'बदनसीब' फिर मुख्यमंत्री बन गया। कश्मीर में  नसीबवालों के अनुकूल हवा  चली । वहाँ  की जनता ने कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस का पाटिया उलाल किया। भाजपाईयों और संघियों ने सत्ता प्राप्ति के निमित्त  अच्छी खासी  मशक्कत   की ।  किन्तु सत्ता के कंगूरे पर बदनसीबी ने फिर बीट कर दी। चुनावी प्रचार में 'नसीबवालों' ने  'बाप-बेटी' को खलनायक माना, उन्ही बाप बेटी  को उन्होंने 'रातो-रात 'संत' बना दिया।    ऐसी भी क्या बेबसी थी  'नसीबवालों'  की  ?  अब क्यों देश विरोधी  नापाक तत्वों को  गले  लगा लिया । भाजपा  ने किस बेबसी में  धारा  ३७० छोड़ी ?   कांग्रेस और मनमोहन सरकार को धिक्कारने वाले जावांज  नसीबवाले' अब अपनी बेबसी पर अनर्गल प्रलाप क्यों कर रहे हैं ? संघी ' जिन्हे शहीद कहते हैं, उन  श्यामाप्रसाद मुखर्जी  के  बलिदान  को  किस बेबसी में  विसार दिया गया ?  क्यों नहीं धिक्कृत् गया उस बेबसी को जिसने मुफ्ती जैसे  'हलकट' व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाया। मुफ्ती सुखुरु हो गए  होते तो भी गनीमत थी ,लेकिन वे तो अंगारे उगलने अलगे हैं।

                मुफ्ती ने न केवल पाकिस्तान की ,न केवल  पाक प्रशिक्षित आतंकियों की ,बल्कि  कश्मीरी अलगाववादियों  की  भी मुक्त कंठ से प्रशंशा की है। ये कोई अचरज की बात नहीं ! किस मूर्ख को नहीं मालूम कि पीडीपी  या  मुफ्ती के मन में क्या है ? लेकिन अचरज तो इसपर होना चाहिए कि नसीबवालों की क्या बेबसी थी कि  कश्मीरी आवाम  का नसीब  ऐसे हाथों  में सौंप दिया जिनकी डोर हाफिज सईद के हाथों में  है ? इसीलिये तो अब अफजल गुरु भी ' शहीद' फ़रमाया जा रहा है। उसके पार्थिव शरीर की मांग उठने लगी है।  कुछ दिनों बाद उसे और कसाव को भी 'शेरे कश्मीर' अवार्ड से नवाजा जा सकता है।  इन भारत विरोधी आतंकियों को अशोक चक्र या भारत  रत्न  दिए जाने की भी की भी मांग उठ सकती है !  नसीबवालों की  बेबसी है  भाई  ! क्या  कहें ? कुछ भी हो सकता है !

                     कालेधन को वापिस लाने में 'मोदी सरकार' की जो बेबसी झलक रही है उसका जीवंत प्रमाण तो इसी सत्र  में देश की राज्य सभा ने ही दे दिया। कामरेड सीताराम येचुरी द्वारा रखे गए 'संशोधन' प्रस्ताव को  संयुक्त  विपक्ष ने भारी बहुमत से पारित किया गया।  जबकि  सत्ता पक्ष को याने नसीब बालों को बड़े बेआबरू होकर खीसें निपोरनी पडी।
                                      निर्भया गैंग रेप पर बनी  डॉक्यूमेंट्री पर भारत सरकार का तथाकथित प्रतिबंध पूरी तरह फ्लॉप हो चूका है।  भारत सरकार के तमाम निर्देशों की अनदेखी कसरते हुए बीबीसी ने इंग्लैंड और यूरोप के अनेक देशों में 'इंडियाज डॉटर' डाक्यूमेंट्री का धड़ल्ले से प्रदर्शन किया। बेबस  मोदी सरकार  की  कोई भी  रत्ती भर  भी इज्जत नहीं कर रहा है। बीबीसी ने भारत सरकार को धता बताकर कह दिया कि   ठीक है हम तुम्हारे देश में प्रसारण नहीं करेंगे. जबकि यू -ट्यूब पर यह 'भारतीय चरित्र हनन' की कहानी पहले ही वायरल हो चुकी है।  अब हटाने का मतलब क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत ? बेबस सरकार बीबीसी को कोस रही है। देश की जनता अपने आप को कोस रही है कि  मनमोहन सरकार  के आकाश से गिरे तो मोदी सरकार की खजूर में अटके ! इस महा विकट स्थति में  सुब्रमण्यम  स्वामी और बाबा  रामदेव  के ओपिनियन  नहीं आ रहे हैं क्या बात है ?

                                श्रीराम तिवारी
                                    

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