देश भर में मोदी सरकार की किसान विरोधी नीति के खिलाफ आंदोलन जारी है । देश में संसद में 'रेप' और धार्मिक असहिष्णुता के खिलाफ जनाक्रोश झलक रहा है। आर्थिक मोर्चे पर देश में बदहाली है। बीमा बिल के मार्फत सार्वजनिक क्षेत्र को कमजोर करने की बदनीयत साफ़ दिख रही है। सब्जियों के भाव आसमान पर हैं। किसान आत्महत्या कर रहे हैं। मोदी जी अपने ही 'कौरव दल' में किला लड़ा रहे हैं। राहुल जी लापता हैं। इन तमाम नकारात्मक खबरों के बीच तीन खबरें भारत के लिए शुभसूचक हैं।
[१] कांग्रेस, बसपा ,जदयू ,वामपंथ सहित देश की १४ पार्टियों ने किसान विरोधी 'भूमि अधिग्रहण बिल के खिलाफ शानदार एकजुटता का इजहार किया। संसद मार्च करते हुए राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपा। देश भर में किसानों पर होने वाले हमले के खिलाफ विपक्ष की यह एकता काबिले तारीफ़ है।
[ २ ] मुंबई उच्च न्यायालय का ताजा फैसला है कि " सरकार की नीति-रीति के विरोध में लिखने,बोलने या कार्टून बिधा के मार्फत अपनी असहमति वयक्त करने मात्र से कोई नागरिक 'देशद्रोही' नहीं हो जाता। सरकार को निशाने पर रखकर तीखे और मजाकिया कार्टून या केरीकेचर बनाने वाले लेखक,कलाकार या कार्टूनिस्ट पर देशद्रोह का मुकदद्मा नहीं चलाया जा सकता। " ज्ञातव्य है कि कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी पर राष्ट्रीय चिन्हों का और संसद का अपमान करने का आरोप लगाकर सितमबर -२०१२ में गिरफ्तार किया गया था। जनता के भारी विरोध और न्यायपालिका की सूझबूझ से देश में अभिव्यक्ति की आजादी को जीवनदान मिला। संघर्ष शील जागरूक वकीलों को धन्यवाद।
[२] सुप्रीम कोर्ट ने जाट जाति को केंद्र सरकार द्वारा नौकरियों व् शिक्षण संस्थानों में दिया गया आरक्षण रद्द कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट का आशय है ''जाति एक महत्वपूर्ण घटक है,लेकिन यह किसी जाति के पिछड़ेपन को निर्धारित करने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता। अतीत में किसी खास जाति को गलत ढंग से दिया गया आरक्षण आगे भी इसी गलत ढंग से अन्य जाति को यह अधिकार देने का वैधानिक आधार नहीं हो सकता"
राजनीति के दल-दल में कमल खिलने से सिर्फ सत्ता के दल्लाओं के ही अच्छे आये हैं। लेकिन किसानों ,मजदूरों ,युवाओं और वेरोजगारों के बुरे दिन आये हैं। मध्यमवर्ग तो कोई न कोई रास्ता अपनी जिजीविषा का खोज ही लेगा किन्तु ओला-पाला ,वेमौसम वारिश से पीड़ित किसान और भूमि अधिग्रहण क़ानून की मारक क्षमता से भयग्रस्त किसान के लिए जीवन बहुत दुराधरष हो चुका है।एकमात्र आशा की किरण सरकार की किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ जन संघर्ष ही है. जिसका श्रीगणेश दिल्ली में सम्पूर्ण विपक्ष द्वारा हो चुका है।
सरकार के फैसले भले ही देश की आवाम को अंधकूप में धकेल रहे हों, किन्तु भारतीय न्यायपालिका के कुछ ताजातरीन फैसलों से देश को कुछ शकुन हासिल हुआ है। भारतीय न्यायपालिका के इन फैसलों से समाज के जातीय और धार्मिक संगठित गिरोहों की दादागिरी पर कुछ तो अंकुश जरूर लगेगा। इसके लिए उन वकीलों ,जजौं और संस्थाओं को धन्यवाद दिया जाना चाहिए , जो न्याय के पक्षधर हैं। जो सत्य के लिए संघर्षरत है उनका अभिवादन किया जाना चाहिए ।यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि आरक्षण केवल उन्हें ही दिया जाए जो आर्थिक रूप से बेहद कमजोर हैं। जो शरीरिक और मानसिक रूप से अपंग हैं। जिसके पास हजारों एकड़ जमीन है ,जो सांसद हैं , मिनिस्टर है, उच्चधिकारी है ,यदि वह अपनी जाति को पिछड़ा ,दलित या महादलित बताकर अपने ही स्वार्थ सिद्धि में लगे हैं तो उसे और ज्यादा लूट का आरक्षण क्यों मिलना चाहिए ?
जिसे ५० साल पहले आरक्षण मिल चूका ,जिसके बच्चे अमेरिका -यूरोप में पड़ रहे हों या सेटिल हो गए हों उन्हें आरक्षण सिर्फ इसलिए नहीं दिया जा सकता कि पचास साल पहले की सरकार ने उन्हें वह हक दिया था। जो आरक्षित प्राणी आस्ट्रलिया न्यूजीलैंड में वर्ल्ड क्रिकेट मैच देखने के लिए हवाई यात्राओं का खर्चा सरकार के मथ्थे मढ़ रहा हो उसे आरक्षण की दरकार क्यों है ? जो भीख का कटोरा लेकर चौराहे पर खड़ा है ,जो धुप में सड़क किनारे पंचर सुधर रहा है. जो खेत में- खदान में -ईंट भट्ठों पर रोजनदारी मजदूरी कर रहा है,जो भवन निर्माण में उजरती मजदूर है उसे आरक्षण क्यों नहीं मिलना चाहिए ? रोटी-कपडा -मकान के लिए संघर्ष कर रहे करोड़ों लोग आरक्षण के हकदार हैं। भले ही वे किसी भी जाति के हों । जाति आधारित आरक्षण व्यवस्था के कारण ही भारत में जातीयतावाद का जहर और ज्यादा बढ़ रहा है। यदि भारत को मजबूत करना है तो जातीयतावाद को कमजोर करना होगा। जातीयतावाद को कमजोर करना है तो आर्थिक आधार पर आरक्षण दिये जाने का प्रावधान संविधान में होना चाहिए।
श्रीराम तिवारी
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