शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013

' आपको' नजर न लग जाए ! बधाई! हमारी शुभकामनाएँ ! !


    अरविन्द केजरीवाल के शपथ गृहण  से ठीक पहले   एलपीजी कम्पनियों  द्वारा दिल्ली में सी एन जी के दाम बढ़ाये जाना , आठ कांग्रेसी विधायकों  का 'बिना शर्त' समर्थन 'सशर्त' हो जाना  , 'आप'  के सत्तारोहण की सादगीपूर्ण  प्रस्तुति से बौखलाए भाजपा नेताओं के पेट में  ईर्षा का वायु विकार  पैदा  होना और देश में स्थापित  महत्वाकंकांक्षी  भ्रष्ट  नेताओं  के सामने शुचिता और आदर्शवाद की  कठिन चुनौती  पेश होना   इत्यादि सिम्टम्स बताते हैं कि 'आप' की सरकार  का जीवन लंबा नहीं होगा। चूँकि 'आप' का जन्म नागरिक मंच और 'इंडिया अगेंस्ट करप्सन ' के  आन्दोलनों  की विफलता और राजनैतिक सत्ता के  द्वारा आंदोलनकारियों को अपमानित करने  के परिणाम स्वरुप  हुआ था।  इसलिए जैविक  द्वन्दात्मकता  उसके अंतस में अवस्थित है। उसकी जीवंतता  देश का 'आम आदमी ' ही सुनिश्चित कर सकता है।
              जन-लोकपाल के मार्फ़त  भ्रष्टाचार समाप्त करने ,महंगाई कम करने ,सुशासन देने इत्यादि उद्देशों के लिए किये गए  हाई टेक प्रचार से 'आप' के केजरीवाल  ने  न केवल  शानदार उपस्थिति दर्ज कराई है  अपितु पहले ही हल्ले में सत्ता और शासन के सूत्र भी हासिल कर लिए हैं। यह स्थति कांग्रेस और भाजपा के लिए कतई  सुखद नहीं है। इसलिए तो  गाँव वसा नहीं और  श्वान जीमने को लालायित  हैं। केजरीवाल की 'आप' को गिराने के मंसूबे  बनाये  जाने लगे हैं। लेकिन जब तक आम आदमी और देशभक्त  मीडिया  'आप'  के  साथ है, जब तक केजरीवाल टीम वर्त्तमान व्यवस्था के पाप पंक में नहीं धसती,जब तक  प्रजातांत्रिक -धर्मनिरपेक्ष  और   सामाजिक-नैतिक मूल्य भ्रष्टाचार के सामने झुकने को तैयार नहीं -   तब तक 'आप' की  सेहत को कोई खतरा नहीं ! वेशक केजरीवाल और 'आप' के पास  वर्त्तमान पूँजीवादी  नीतियों से इतर कोई  वैकल्पिक  आर्थिक नीति नहीं है. लेकिन यदि वे वामपंथ और तीसरे मोर्चे से जुड़ते हैं तो उनके पास एक बेहतरीन आर्थिक-सामाजिक दर्शन हो सकता है।   गैर कांग्रेस और गैर भाजपा दलों  को चाहिए कि   केजरीवाल और 'आप' को खुलकर साथ दें. ताकि आगामी लोक सभा चुनाव में देश को भ्रष्टाचार मुक्त, धर्मनिरपेक्ष ,समाजवादी  और वास्तविक लोकतंत्रतातमक शासन सुलभ हो सके।
            लगभग एक साल पहले  भ्रष्टाचार के खिलाफ एक  कारगर क़ानून - 'जन-लोकपाल ' की मांग को लेकर   समाज सेवी अन्ना हजारे ,अरविन्द केजरीवाल, प्रशांत भूषण , किरण वेदी योगेन्द्र यादव  और 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन'के  साथियों ने  दिल्ली के रामलीला मैदान में  आमरण अनशन किया था। जनता के अप्रत्याशित समर्थन से घबराये  कांग्रेस के पुराधाओं ने पहले तो अनशनकारियों के  मान-मनौवल का रास्ता अपनाया,  किन्तु , जब लोक सभा में भाजपा ने तत्कालीन  लोकपाल बिल का  समर्थन नहीं किया  तो  कांग्रेस के  नेताओं ने अनशन कर्ताओं  को अपनी मजबूरी बताकर मामला शांत करने की कोशिश की। जब आंदोलनकारी नहीं माने  तो फिर यूपीए सरकार ने उनके खिलाफ  कठोर रुख  अपनाया। कांग्रेसियों ने अनाप-शनाप वयानबाजी कर , आंदोलनकारियों को  दिल्ली की  ठिठुरती  रातों में भूंखो मरने को रामलीला मैदान में  छोड़ दिया । उस बक्त  भाजपा  ,वाम मोर्चे   और तीसरे मोर्चे की  राजनीति  के  क्षत्रपों ने भी  इन  गैर राजनैतिक - अहिंसक  अनशनकारियों को राजनीति  में आकर भ्रष्टाचार खत्म करने का व्यंगात्मक आह्वान किया  था।
                                       इस  अपमानजनक व्यवहार से आंदोलनकारियों  के मन में कांग्रेस  और भाजपा  के  प्रति घोर वैमनस्य घर कर गया। चूँकि अन्ना  हजारे  को 'संघ' का समर्थन भी  प्राप्त था। अतएव वे तो केवल कांग्रेस विरोध का झंडा लेकर  ही  गैर राजनीती के वियावान में भटकने चले गए।  किन्तु जिनका स्वाभिमान बुलंदियों पर था और जिनके जिगर में भृष्टाचार को खत्म करने का जज्वा और जूनून था ,  जिनका आदर्शवादी   सामाजिक  आंदोलनो से मोह भंग हो  चुका  था ,उन्होंने राजनीति  में आकर व्यवस्था परिवर्तन की चुनौती को  स्वीकार  किया । आनन् -फानन 'आम आदमी पार्टी' बनाई गई। मुख्य धारा का मीडिया और एन आर आई से लेकर दिल्ली के मध्यवित्त वर्ग ने 'आप' को हाथों-हाथ लिया। भरपूर समर्थन भी दिया।
             अरविन्द केजरीवाल  के नेत्तव में -मनीस सिसोदिया,योगेन्द्र यादव ,संजयसिंग ,कुमार विश्वाश और प्रशांत भूषण जैसे अनेक  दिग्गजों  के प्रयाशों को  एनआरआई  और मीडिया ने भी  विश्वाश व्यक्त  किया। जब पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव सम्पन्न हुए तो  दिल्ली विधान सभा चुनाव में  पहली बार मैदान में उतरी नव-गठित  ' आम आदमी पार्टी' को अप्रत्याशित सफलत मिली । अरविन्द केजरीवाल के नेत्तव में  'आप' की सरकार ने  दिल्ली के उसी रामलीला मैदान में  शपथ ग्रहण की है जहाँ  अरविन्द केजरीवाल और उनके  साथी अपमानित हुए थे । अहंकारी और भ्रष्ट शासकों  को यह दुखांत अनुभव हो सकता है।
                   'आप' ने  न केवल कांग्रेस को ८ सीट पर समेट  दिया है  ,न केवल शीला दीक्षित को  विधायक  भी नहीं बनने  दिया बल्कि दिल्ली राज्य  में बनने  वाली सम्भावित भाजपा  की सरकार का रास्ता  भी रोक लिया है ।  भाजपा  के 'सी एम् इन वेटिंग '  डॉ हर्षवर्धन यदि मुख्यमंत्री नहीं बन पाये तो उसका श्रेय 'आप' को जाता है। 'आप' की   इस छप्पर-फाड़  सफलता से  भारतीय जन- मानस  के  वैचारिक  गर्भ गृह में  अनेक  प्रकार के कयास गुंजायमान हो  रहे हैं। 'आप' के नेता अरविन्द केजरीवाल अब केवल दिल्ली राज्य के मुख्यमंत्री ही नहीं बल्कि  भारतीय  राजनीति में व्यवस्था परिवर्तन के आकाशदीप  बन चुके हैं ।उनके गुरुवर अण्णा  हजारे इसलिए दुबले हो रहे हैं कि अरविन्द  केजरीवाल  तथा जिन समर्थकों को उन्होंने 'नालायक' मानकर छोड़ दिया था, वे अन्ना के सहयोग के बिना ही सफल होते जा रहे हैं। अण्णा के नकारात्मक ,हठधर्मी आन्दोलनों से  केजरीवाल और 'आप' की सकारात्मक राजनीती  काफी  आगे निकल चुकी है। चूँकि 'आप' का दृष्टिकोण सकरात्मक  और विजन वैज्ञानिक है ,और चूँकि 'आप ' ने कांग्रेस और भाजपा  दोनों को ही भृष्ट व्यवस्था का उन्नायक माना है इसलिए 'आप' की  विश्वशनीयता बढ़ी है। 'आप'की राजनीती का भविष्य  उज्जवल  है।
                    'आप'का  नजरिया प्रगतिशील है ,साधनों की शुचिता और व्यवस्था  परिवर्तन की चाहत है,जनता का  भारी  समर्थन  मिल रहा है। कांग्रेस के आठ  विधायकों के समर्थन  से सरकार बनाने के सवाल पर भी  'आप' ने जनता से 'परमीशन'  ले ली है. यह एक शानदार लोकतांत्रिक कदम है।  'आप' का  हर कदम नैतिकता पूर्ण ,आदर्शोन्मुखी  और प्रजातांत्रिक है   इसलिए भारत में 'आप'   के उदय से  क्रांति की सम्भावनाओं को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। 'आप' के उदय से न केवल कांग्रेस  बल्कि भाजपा को भी समान  रूप से  खतरा है इसलिए इन  दोनों बड़ी पार्टियों में बैचनी है। कांग्रेस में 'आप' को समर्थन के प्रश्न पर घमासान मचा है। भाजपा  के पेट में भी  दर्द उठ रहा है कि सबसे बड़ी पार्टी [३१-विधायक] होने के वावजूद  उसे  विपक्ष में बैठना पड़  रहा है। यह सब 'आप' कि माया है।   भाजपा को डर  है  कि आगामी लोक सभा चुनाव में भी 'आप' की भूमिका  कुछ ज्यादा ही महत्वपूर्ण हो सकती  है। इसलिए संघ परिवार ने 'आप' को घेरना शुरू कर दिया है.अण्णा  को अरविन्द के खिलाफ भड़काया जा रहा है। संघ परिवार को यह डर  भी सता रहा है कि कहीं  डॉ हर्षवर्धन की तरह   'नमो' भी  पीएमएन वेटिंग ' ही  न रह जाएँ !
                कांग्रेस और राहुल गांधी ने  भी 'आप' को मान्यता दे दी है । इसलिए  आगामी लोक सभा चुनाव के पूर्व  'आप' को समर्थन देकर  सम्भावनाओं के  दरवाजे खुले रखे  गये  हैं.कांग्रेस को मालूम है कि वेशक   भारतीय राजनीति  में भ्रस्टाचार और कदाचार का बोलबाला   है.महंगाई ,बेकारी और राजकोषीय घाटे की स्थति है। किन्तु  इन समस्याओं से  'आप' कैसे निपटेगी ?'आप'  के सामने  अनेक  चुनौतियाँ  दर पेश होंगी। नीतियों के  अभाव  में 'आप'दिल्ली की जनता से किये गए वादों को  पूरा नहीं कर पायेगी। तब ६ माह बाद समर्थन वापिस लेकर उसका बोरिया बिस्तर बाँधना आसान होगा। कांग्रेस  ने यदि अतीत की गलतियों से सबक नहीं सीखकर 'आप' को निपटाने की गलती की तो वास्तव में उसको लम्बे वनवास के लिए भी तैयार रहना चाहिए ! यदि अपने अजेंडे का  ५०% भी 'आप' ने पूरा कर दिखया,राजनीति  की काजल कोठरी में अपना दामन बेदाग़ रखा तो  आइंदा  सिर्फ दिल्ली ही नहीं पूरा भारत 'आप' का होगा !
                                 श्रीराम तिवारी  

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