मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

'आप' आगे बढ़ें -दिल्ली राज्य की सरकार बनाएँ !


          सभी जानते हैं कि देश की राजनीति  में गठबंधन का दौर है । दिल्ली विधान सभा चुनाव  के परिणाम  भी देश की बहुलतावादी मानसिकता के अनुरूप ही आये हैं। याने यदि  तुरंत या आगामी ६ माह में सबसे बड़े  दल भाजपा और  दूसरे नंबर की  बड़ी पार्टी'आप'दोनों ने ही सरकार नहीं बनाई तो  ६ माह बाद जब चुनाव होंगे तब कांग्रेस  और शीला दीक्षित  के लिए परिस्थितियाँ  काफी अनुकूल होंगी।जनता ,मीडिया और सिस्टम  से जुड़े लोगों  की याददास्त उतनी नकारात्मक नहीं है कि वे  सिर्फ कांग्रेस की असफलता या उसके भ्रष्टाचार को ही अनतकाल तक  याद करते  रहें । यदि  वर्तमान  विधान सभा में किसी भी दल  को स्प्ष्ट बहुमत नहीं है तो ये कांग्रेस की या ईश्वर की  इच्छा   नहीं बल्कि एंटी इन्कम्बेंसी फेक्टर के प्रभाव और केद्र की यूपीए सरकार  को  उसके नकारात्मक कृत्य पर  दिल्ली की जनता  का जनादेश है । जो राजनैतिक दल  जनता के इस जनादेश का सम्मान नहीं करेगा उसे भविष्य  में खामियाजा तो  भुगतना ही  होगा।
                             सर्वाधिक सीटें मिलने के बाद भी भाजपा यदि सरकार नहीं बना पाई तो ये उसकी समस्या है।  यह उसकी ऐतिहासिक भूल भी हो सकती है।  क्योंकि जनता ने तो कांग्रेस को हटाकर उसे भरपूर समर्थन ही दिया है।  बेशक यदि भाजपा सरकार  बनाती और  विधान सभा में उसके खिलाफ अविश्वाश प्रस्ताव लाया जाता तो  बहुत सम्भव था कि  भाजपा ही  विश्वाश मत जीतती। किन्तु भाजपा ने अत्यधिक चतुराई के फेर में  सुअवसर गँवा दिया।   क्योंकि कांग्रेस तो अभी 'कोमा' में ही  है और 'आप' तो भाजपा से कम संख्या बल की पार्टी है. फिर भाजपा ने सरकार नहीं बनाई तो यह कोई लोकप्रिय या जनहितकारी फैसला नहीं  कहा जा सकता।  यह भाजपा और 'संघ' की  आगामी लोक सभा चुनाव के मद्देनजर 'चालाकीपूर्ण' राजनैतिक बेईमानी है।  यदि उसे  'आप ' और कांग्रेस मिलकर सदन में विश्वाश मत पर  हरा भी  देते तो भी इसका फायदा भाजपा को ही मिलता।  भाजपा की ही जीत होती क्योंकि तब सरकार भले ही चली जाती किन्तु दिल्ली की  जनता के सामने भाजपा का पक्ष वर्तमान  स्थिति से ज्यादा बेहतर होता । 
                         चूँकि कांग्रेस  के खिलाफ जनादेश आया है और उसके पास मात्र आठ  विधायक   ही हैं। अतएव उसकी राजनैतिक भूमिका  तो सीमित हो गई है। फिर भी छत-विक्षत  कांग्रेस ने तत्काल  बहुत सूझ-बूझ से एक  लोकतांत्रिक फैसला ले  लिया और 'आप'  को  बिना शर्त समर्थन  दे दिया है। अब दिल्ली की जनता के लिए यही बेहतर था कि 'आप' सरकार बनाये। किन्तु भाजपा और कांग्रेस -दोनों  के भ्रष्टाचार पर आक्रमण करने से 'आप' को जनता का समर्थन मिला है इसलिए 'आप' और उनके नेता अरविन्द  केजरीवाल का 'अनिश्चयात्मक' स्थिति  में होना स्वाभाविक है। किन्तु राजनैतिक  क्षेत्र में उनके लिए अधिक समय तक यह अनिश्चितता नुक्सानदेह हो सकती है।  चूँकि  दिल्ली का जन-मानस  तो अभी बँटा  हुआ है इसलिए बहरहाल किसी को स्पष्ट बहुमत मिल पाना सम्भव नहीं। कांग्रेस की जो दुर्दशा हुई है उससे ज्यादा अब उसकी सीटें कम तो नहीं बल्कि बढ़ने की सम्भावना है। भाजपा को चूँकि राजस्थान ,मध्यप्रदेश और छ्ग में अनपेक्षित सफलता मिली है. किन्तु दिल्ली में उसका विजय रथ 'आप' ने ही  रोक लिया है।  इसलिए  भाजपा को  दिल्ली  की  आंशिक विजय कतई  मंजूर  नहीं। भाजपा और 'संघ परिवार'  की सत्ता पिपासा बढ़ चुकी है। उन्हें  केंद्र की सत्ता चाहिए और उसके पहले दिल्ली राज्य की  सत्ता  भी चाहिए।  उनके  हिस्से का शिकार 'आप' कैसे खा  सकते हैं ?   भाजपा की सीटें  छीन पाना 'आप' के लिए अभी तो  सम्भव नहीं। यदि आइंदा फिर से चुनाव की नौबत  भी आती है तो 'आप' को २८ से ज्यादा की तो बहरहाल इम्मीद नहीं करना चाहिए।
                             अरविन्द केजरीवाल और 'आप'  के समक्ष दरपेश  मौजूदा चुनौतियों  अप्रत्याशित नहीं हैं। उन्हें जानना -समझना होगा कि यह स्थिति उलट भी हो सकती थी या हो सकती है. याने २८ सीटें  जो 'आप' को मिलीं हैं वे कांग्रेस  की भी  हो सकती थीं !आइंदा यदि 'आप' ने सरकार बनाने से न-नुकर की तो कांग्रेस की वापिसी  में कोई संदेह नहीं। यदि 'आप' ने मौजूदा चुनौती का डटकर मुकबला नहीं किया,सत्ता या सरकार की जिम्मेदारी से दूरी बनाई   तो अभी जो आठ सीटें  कांग्रेस को मिली  हैं  वे आइंदा  'आप'  की हो सकतीं  हैं। यदि  'आप' ने अभी सरकार नहीं बनाई तो आइंदा जब चुनाव होंगे तब  भले ही भाजपा  की कुछ सीटें घट  जाएँ , कांग्रेस की कुछ बढ़ जाएँ, किन्तु  'आप' का भविष्य खतरे में पड  सकता है। इसलिए कांग्रेस के  द्वारा प्रदत्त  बिना शर्त समर्थन को सहर्ष स्वीकार कर 'आप' को केजरीवाल के मुख्य मंत्रितव में अविलम्ब  सरकार  बनाना चाहिए। जनता से पूंछने की जरुरत नहीं पड़ेगी यदि 'आप' के नेता भ्रष्ट पूँजीवादी  व्यवस्था में; राजनीति  की   काजल - कोठरी में बिना कालिख के ५ साल भी निकाल लें।कांग्रेस और भाजपा के भ्रष्टाचार को देश के सामने  लाने के लिए अरविन्द केजरीवाल  और 'आप' का सत्ता में आना जरूरी है। उन्हें अपने उस अनुभव को नहीं भूलना चाहिए जो विगत वर्ष उन्हें जंतर-मंतर और रामलीला मैदान पर हुआ था और तब  अण्णा  हजारे की संकुचित मनोदशा के वावजूद   केजरीवाल ने भुजा उठाकर कहा था "हाँ !भृष्टाचार मिटाना तब तक सम्भव नहीं  है  जब तक  ईमानदार लोग  खुद ही  राजनीती में न  जाएँ" ! कालचक्र ने 'आप'को एक  मौका दिया है। अब  तो पथ यही है कि मत  चूके चौहान ! दिल्ली में सरकार बनाएँ !अपना अजेंडा -घोषणा पत्र  पूरा करें ! सफल हो गए तो भारत का राजनैतिक इतिहास बदल दोगे  ! यदि कांग्रेस ने धोखा दिया तो जनता उसको देख लेगी। यदि 'आप ' इस बार चूक गए तो यह जरूरी नहीं की जनता 'आप' को  बार्-बार मौका देगी !

                                              श्रीराम तिवारी 

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