बदलते नहीं मौसम इंसानी फितरत से ,
उदित होता है रवि तो इठलाती भोर है।
अगम को सुगम पथ बनाता कोई और ,
मंजिल पर जा पहुंचा बन्दा कोई और है।
संघर्ष के संत्रास भोगते हैं क्रांतिवीर ,
स्वतंत्रता का फल चख रहा कोई और है।
जिनके पूर्वजों ने की थीं वतन से गद्दारियाँ,
उन्हीं के वंशजों द्वारा वतन को लूटने का दौर है।
उपजाता अन्न बनाता लहू को पसीना कोई ,
उदर जिसके समा जाता वह शख्स कोई और है।
चमकती है बिजली कहीं गरजता बादल कहीं ,
गिरती है गाज जिस पर वो अभागा कोई और है।
पिघलते हैं ग्लेसियर मचलते हैं हिमाद्रि तुंग ,
महिमामंडित होतीं जो नदियां वे कोई और हैं।
क्रांतिपथ- अग्निपथ आबाद है अविराम ,
भले ही इस जमाने का मिजाज कुछ और है।
श्रीराम तिवारी
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