अरविन्द केजरीवाल के नेत्तव में 'आप' का दिल्ली राज्य में सशर्त सरकार बनाने का वर्तमान स्टेंड सूझ-बूझ भरा और काबिले -तारीफ हो सकता है; यदि उनके विमर्श के केंद्र में जनता से किये गए वादों का अजेंडा हो । दिल्ली विधान सभा के सद्द सम्पन्न विधान सभा चुनाव में वहाँ की जनता ने देश की विराट आवाम की खंडित मानसिकता के अनुरूप ही जनादेश दिया है । यही वजह है कि मौजूदा दौर में 'गठबंधन' की राजनीति एक आवश्यक बुराई के रूप में सही अब न सिर्फ केंद्र में बल्कि दिल्ली विधान सभा में भी अवतरित हो चूकी है। ऐंसा प्रतीत होता है कि दो पार्टी सिद्धांत को दिल्ली की जनता ने नामंजूर कर दिया है। आगामी लोक सभा चुनाव में भी इसी पैटर्न पर राष्ट्रव्यापी 'महागठबंधन' की सम्भावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है। आदर्श प्रजातंत्र में 'बहुलताबाद ' को वैसे भी सम्मान कि नजर से ही देखा जाता है। वेशक कांग्रेस और भाजपा जैसे बड़े दलों के राजनैतिक एकाधिकार को इस बहुलतावाद से खतरा हो सकता है। इस खतरे की घण्टी दिल्ली में ही बजेगी इसकी उम्मीद शायद कम लोगों को ही होगी !
दिल्ली विधान सभा में इस समय सबसे बड़ी पार्टी[३१ विधान सभा सदस्य] भाजपा है इसीलिये उससे उम्मीद की जा रही थी कि वो संवैधानिक उत्तरदायित्तव का पालन करते हुए,जनादेश का सम्मान करे। भाजपा से उम्मीद थी कि जनादेश का सम्मान करते हुए 'दिल्ली राज्य ' की लोकप्रिय सरकार का गठन करेगी। डॉ हर्षवर्धन और भाजपा के ' पी एम् इन वेटिंग' नरेंद्र मोदी भी चाहते होंगे कि दिल्ली में डॉ हर्षवर्धन के नेत्तव में भाजपा की राज्य सरकार शीघ्र बने। इस बाबत भाजपा के 'धन कुबेरों' के नेत्तव में पूरी कोशिश भी की गई होगी । किन्तु कांग्रेस की मर्मांतक हार [आठ विधान सभा सदस्य ] और 'आम आदमी पार्टी' [२८] का आशातीत उभार भाजपा की राजनैतिक तिजारत में आड़े आ गया । न केवल आगामी लोक सभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए बल्कि 'आप' के नेटवर्क से घबराये भाजपाइयों ने फूंक-फूंक कर पाँव रखते हुए सत्ता की गेंद 'आप' के पाले में उछाल दी है ।भाजपा का कहना है कि 'आप' ही सरकार बनाकर दिखाएँ !
हालांकि यह करिश्मा यों ही नहीं हो गया। खरीद -फरोख्त के आरोपों से घिरी भाजपा को 'संघपरिवार' ने कवरिंग फायर का सहारा दिया और भाजपा को सरकार बनाने की प्रक्रिया में तथाकथित राजनैतिक शुचिता' का ध्यान रखने की हिदायत दे डाली। 'आम आदमी पार्टी' याने अरविन्द केजरीवाल टीम चूँकि दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है जो कांग्रेस -भाजपा के जुड़वाँ आपराधिक रिकार्ड ,ढपोरशंखी दुष्प्रचार , कुनवा परस्त भ्रष्टाचार और प्रायोजित महँगाई के खिलाफ शानदार लड़ाई लड़कर,दिल्ली विधान सभा में बेहतर सीट संख्या के साथ उपस्थित है। चूँकि गुजारे लायक न्यूनतम बहुमत उसे भी नहीं मिला है इसलिए उसने भी सरकार बनाने की उतावली नहीं दिखाई है । अपने-अपने संख्या बल पर 'नाज'करने के वावजूद दिल्ली सरकार बनाने की बात पर भाजपा और 'आप'दोनों ही पार्टियां अब 'पहले आप-पहले आप' का जाप कर रहीं हैं. यह एक विरला ही नजारा है कि कांग्रेस हारकर भी सीना तानकर चल रही है. जबकि भाजपा और 'आप' में बैचेनी का दौर है।
कांग्रेस की दिल्ली इकाई के प्रवक्ता न केवल 'आप'या केजरीवाल बल्कि भाजपा के भी 'मजे' ले रहे हैं। शीला जी भी सोचतीं होंगी कि 'कमबख्तो !जब भाजपा या 'आप' को सरकार ही नहीं बनानी थी तो मुझे क्यों हटाया ? चूँकि कांग्रेस के समक्ष कुछ खास करने-कराने लायक नहीं बचा था , इसलिए उसने अपने ऐतिहासिक अनुभवों के अनुरूप एक जिम्मेदार पार्टी की भूमिका अदा करते हुए ,अपने आठ विधायकों की सूची दिल्ली के उपराज्यपाल श्री नजीब जंग को इस घोषणा के साथ सोंप दी कि हम बिना शर्त 'आप' के साथ हैं। अब २८ सीट वाले 'आप' याने केजरीवाल टीम - १८ शर्तों का भारी -भरकम बोझ मात्र ८ सीटों वाली कांग्रेस के ऊपर लादकर क्या हासिल कर पाएंगे? ये तो वे ही जाने ! किन्तु भाजपा को आशा है कि इस घटना क्रम से आगामी लोक सभा चुनाव की भरपूर तैयारी के लिए उसे माकूल अवसर अवश्य ही मिल जाएगा ।
वेशक ! 'आप' की १८ 'महाशर्तों 'से भाजपा की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला। उसका वोट बेंक न तो अवैध कालोनियों में रहता है और ना ही उसे बिजली विभाग के भ्रष्टाचार से राजनैतिक पराभव की परवाह है। उसका अधिकांस वोट बेंक तो मिनरल वाटर पीने वाला हो गया है। वैसे भी भाजपा का वोट बेंक किसी एक खास लहर में नहीं अपितु 'संघ परिवार' की सतत सक्रियता में और 'टॉप टू वाटम ' सदैव चाक - चौबंद होकर जनता में निरंतर पैठ बनाये रखने की कोशिशों से निरंतर बढ़ रहा है। कभी हिन्दुत्व की लहर , कभी राम मंदिर की लहर ,कभी साम्प्रदायिक दंगों की लहर, कभी विकाश की लहर और कभी 'नमो' लहर में भाजपा का तरनतारन होता ही रहता है। दिल्ली में भाजपा को अधिकाँश सवर्ण-वामन,वानिया ,ठाकुर वोटों के अलावा बाबाओं,स्वामियों ,अन्नाओं और पूंजीपतियों का वरद हस्त प्राप्त है। केजरीवाल के नेत्तव में 'आप'ने भाजपा के नहीं कांग्रेस के वोट बेंक का सूपड़ा साफ़ किया है और आइंदा भी आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा के वोट बढ़ने वाले हैं। क्योंकि कांग्रेस के लिए तो एंटी इन्कम्बेंसी फेक्टर अभी कम से कम ५ साल तक और रहेगा। इसलिए राष्ट्रीय छितिज पर नरेद्र मोदी को राहुल या कांग्रेस अभी चुनौती देने की स्थति में नहीं है । कांग्रेस की निरंतर छिछालेदारी करने वाला तीसरा मोर्चा और जनता के सवालों को लेकर निरंतर संघर्ष करने वाला वाम मोर्चा - अभी -अभी हुए विधान सभा चुनाव में उचित समर्थन हासिल करने में असमर्थ रहे हैं । उनके संघर्षों का फल केवल भाजपा को ही मिल रहा है.
वेशक ! दिल्ली में 'आप'को मिले जन-समर्थन से उम्मीद जगी है कि तीसरा मोर्चा और वाम मोर्चा आइंदा कुछ बेहतर परफार्मेंस दे सकेंगे।दिल्ली में नई सरकार के गठन की सूरत बनती नहीं दिख रही है। केजरीवाल ने दिल्ली के उपराज्यपाल को सूचित किया है कि 'आप' की १८ शर्तों पर कांग्रेस और भाजपा का जबाब आने के बाद वे मतदाताओं याने जनता से पूंछकर ही सरकार गठन के लिए कदम बढ़ाएंगे । इसके लिए कुछ समय भी उन्होंने माँगा है। भाजपा की अनिच्छा और 'आप' की शर्तों से कांग्रेस गदगदायमान है कि" न तो नौ मन तेल मिलने वाला है और न ही राधा नाचने वाली है". राष्ट्रपति शासन के बहाने दिल्ली राज्य की सत्ता पर प्रकारांतर से कांग्रेस का ही कब्जा रहने वाला है. फर्क सिर्फ इतना है कि अब शीला दीक्षित सत्ता में नहीं होंगी । बल्कि परोक्ष रूप से सोनिया जी का ही प्रभाव रहेगा । कांग्रेस को वापसी के लिए ६ माह भी काफी हैं वशर्ते वो'आप' या केजरीवाल से वो खेल न खेले जो उसने कभी चंद्रशेखर से कभी गुजराल से और कभी देवेगौड़ा से खेला था । केजरीवाल और 'आप' भी जरुरत से ज्यादा जनतांत्रिकता के दिखावे के फेर में न रहें !उनका यह कहना कि-' हम जनता से पूंछकर उप राज्य पाल को बताएँगे कि कांग्रेस का समर्थन लेकर सरकार बनाना है या नहीं ' यह कदाचित व्यवहारिक नहीं लगता। वैसे भी जनता ने अपने हिस्से का काम तो चुनावों में कर ही दिया है। फिर भी जनता को याने मतदाताओं को तो और भी गम हैं जमाने में राजनीति के अलावा। सभी तो राजनीती में होलटाइमर नहीं हो सकते हैं न ! 'आप' की तरह !
श्रीराम तिवारी
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