रविवार, 30 दिसंबर 2012
गुरुवार, 27 दिसंबर 2012
गेंगरेप, हत्या, बलात्कार के लिए पूरा देश जिम्मेदार है।
मीडिया की ख़बरों के केंद्र में आजकल केवल बलात्कार है ।
दुनिया भर में "मेरा -भारत-महान " हो रहा शर्मशार है ।।
जनता 'सत्ता' को 'सत्ता' जनता को बताती कसूरवार है ।
चंद लोगों की भोग लिप्सा देख- देख कर आवाम बेक़रार है
नारी अंग प्रदर्शन बिना आज कोई विज्ञापन टिकता नहीं।
प्रतिस्पर्धा के बाज़ार में इसके बिना कोई माल बिकता नहीं।।
सूचना तंत्र की क्रांति, फिर भी वैचारिक भ्रान्ति- बरकरार है।
नैतिक मूल्यों का पतन इन सबके लिए 'व्यवस्था' जिम्मेदार है।।
श्रीराम तिवारी
दुनिया भर में "मेरा -भारत-महान " हो रहा शर्मशार है ।।
जनता 'सत्ता' को 'सत्ता' जनता को बताती कसूरवार है ।
चंद लोगों की भोग लिप्सा देख- देख कर आवाम बेक़रार है
नारी अंग प्रदर्शन बिना आज कोई विज्ञापन टिकता नहीं।
प्रतिस्पर्धा के बाज़ार में इसके बिना कोई माल बिकता नहीं।।
सूचना तंत्र की क्रांति, फिर भी वैचारिक भ्रान्ति- बरकरार है।
नैतिक मूल्यों का पतन इन सबके लिए 'व्यवस्था' जिम्मेदार है।।
श्रीराम तिवारी
मंगलवार, 25 दिसंबर 2012
श्रीराम तिवारी -षष्ठिपूर्ति एवं कविता संकलन '60 पन्ने ' का विमोचन समारोह
इंदौर दिनांक 22/12/2012
मंच पर {बाएं से दायें } श्रीराम तिवारी ,श्री कैलाश विजयवर्गीय [उद्योग टेक्नालोजी मंत्री,मध्यप्रदेश सरकार] श्री श्रीवर्धन त्रिवेदी[सनसनी स्टार],प्रो मानसिंह परमार [विभागाध्यक्ष -जर्नलिज्म एंड मॉस कम्युनिकेशन ,देवी अहिल्या विश्वविद्द्यालय,इंदौर]
' इंदौर प्रेस क्लब' सभागार में देश के ,प्रदेश के और इंदौर शहर के गणमान्य नागरिकों,बुद्धिजीवियों ,कवियों,साहित्यकारों,ट्रेड यूनियन नेताओं,तथा वरिष्ठजनों के सानिध्य में कॉमरेड श्रीराम तिवारी का "षष्टिपूर्ति सम्मान समारोह" कार्यक्रम अभूतपूर्व गरिमा और उच्च सांस्कृतिक शालीनता के साथ मनाया गया।उनके 60 वें जन्मोत्तसव के अवसर पर इंदौर प्रेस क्लब में मीडिया के युवा -हस्ताक्षरों ने विशेष रूप से साहित्य,कला,संगीत तथा सामाजिक सेवा क्षेत्र की खास हस्तियों को आमंत्रित किया था। सर्व श्री कल्याण जैन - पूर्व सांसद एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष ,अनुशाशन समिति- सपा ,कामरेड कैलाश लिम्बोदिया -जिला सचिव सीपीएम ,श्री अनिल त्रिवेदी प्रख्यात समाजसेवी एवं अधिवक्ता, श्री प्रभु जोशी कवि -चित्रकार-कथाकार,स्माइल लहरी कार्टूनिस्ट,प्रदीप नवीन- कवि एवं व्यंगकार,श्री हरेराम वाजपेई कवि -बहुबिध संस्कृतिकर्मी,सदाशिव कौतुक-कवि एवं साहित्यकार, श्याम सुन्दर यादव -राष्ट्रीय महासचिव -इंटक ,कामरेड गौरी शंकर शर्मा -महासचिव -सीटू जिला इंदौर, कामरेड सुधाकर उर्ध्वारेषे -राष्ट्रीय उपाध्यक्ष -वीमा कर्मचारी महा संघ ,कामरेड अजीत केतकर -महासचिव-aiiea ,कामरेड आरबी बांके,-राष्ट्रीय पदाधिकारी-aibsnlea ,कामरेड सुन्दरलाल जी,कामरेड सीके जोशी - राष्ट्रीय संगठन सचिव-nftebsnl ,कामरेड कमल टटवाड़े -उपाध्यक्ष -इंदौर मंडल डाक-तार सोसायटी [मर्यादित]इंदौर, कामरेड योगेन्द्र चौहान -जिला सचिव aibsnlea ,कामरेड एस के जोशी-जिला सचिव -snea ,इत्यादि क्रन्तिकारी साथियों के आलावा शहर की तमाम ट्रेड यूनियन के प्रतिनिधि खास तौर से वीमा,बैंक ,शिक्षा,पोस्टल तथा मीडिया क्षेत्र के वे साथी इस अवसर पर सेकड़ों की तादाद में उपस्थित रहे जो श्रीराम तिवारी की काव्यात्मक और क्रांतिकारी वैचारिक प्रतिबद्धता से गौरवान्वित हुआ करते हैं।नगर के अनेक साहित्यकार ,ट्रेड यूनियन लीडर और मीडिया के युवा हस्ताक्षर इस ऐतिहासिक कार्यक्रम में शामिल होकर अभिभूत हो गए।
इस अवसर पर श्रीराम तिवारी के नए काव्य -संग्रह " साठ पन्ने" का विमोचन भी किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि माननीय कैलाश विजयवर्गीय-उद्द्योग एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री ,मध्प्रदेश थे।कार्यक्रम के विशिष्ठ अतिथि थे - श्री श्रीवर्धन जी त्रिवेदी-प्रख्यात मीडिया पर्सोनालिटी एवं सनसनी -सूत्रधार । इस भव्य एवं अनुपम कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफ़ेसर मानसिंह परमार ने की। श्री गणेश चन्द्र पाण्डेय -वरिष्ठ महाप्रबंधक -भारत संचार निगम लिमिटेड इंदौर इस गरिमामय साहित्यिक-सांस्कृतिक युति के विशेष अतिथि थे।
इस कार्यक्रम के कई उल्लेखनीय और दिलचस्प पहलु थे :-
[एक]- पुस्तक के विमोचन पर ही पुस्तक के रचयिता को ज्ञात हुआ कि यह उसीकी रचनाओं का संग्रह है जो वो वर्षों से अपने ब्लॉग पर लिखता आया है। चिरंजीव प्रवीण ,चिरंजीव पुष्पेन्द्र, चिरंजीव भरत , चिरंजीव श्रीवर्धन त्रिवेदी और सुश्री अर्चना तिवारी [एंकर-जी न्यूज़] ने 'पापा'[श्रीराम तिवारी] को उनके 60 वें जन्म दिन पर सरप्राइज देने के उद्देश्य से यह शानदार तोहफा तैयार किया जिसमें सुदेश तिवारी का सहयोग सराहनीय रहा .
[दो] मंत्री श्री कैलाश विजयवर्गीय जी 6 बजे ग्वालियर में थे और साढ़े सात बजे 'इंदौर प्रेस क्लब' में आ पहुंचे।
[तीन]श्री श्रीराम तिवारी को मंच से एक शब्द नहीं बोलने दिया गया , जबकि सारा कार्यक्रम उनके लिए ही था ,उन्ही की पुस्तक का विमोचन था ,उन्ही का 'षष्टिपूर्ति सम्मान समारोह' था और सूत्रधार भी उन्ही के सुपुत्र डॉ प्रवीण तिवारी थे। श्री तिवारी जी को अपनी बात कहने या काव्य-पाठ करने का अवसर नहीं मिल पाने के वावजूद कार्यक्रम की सभी ने मुक्त कंठ से सराहना की।
[ चार ] कार्यक्रम में इतनी भीड़ हो गई कि 200 कुर्सियों का हाल खचाखच भरा था और सेकड़ों लोग बाहर-भीतर खड़े थे।हल्की -हल्की ठण्ड के वावजूद लोग कार्यक्रम की भव्यता और गरिमा देख दो घंटे तक खड़े रहे।
[पांच] श्रीराम तिवारी' षष्टिपूर्ति समारोह ' और ' साठ पन्ने' के विमोचन कार्यक्रम को उपस्थित सम्माननीय साहित्यकारों और वुद्धिजीवियों ने समवेत स्वर में कहा "भूतो न भविष्यति"
कार्यक्रम के अंतिम चरण में केक काटकर 60 वां जन्म दिन मनाते हुए कविवर और साहित्य मनीषी श्रीराम तिवारी ने सर्व श्री-कल्याण जैन,अनिल त्रिवेदी,सुधाकर उर्ध्व्रेशे,अजीत केतकर,गौरी शंकर शर्मा,परेश टोकेकर,श्यामसुंदर यादव ,सुदेश तिवारी,नरेन्द्र चौवे, अनुज बधू किरण , भाई राजेन्द्र,रवीन्द्र अवश्थी जी हाडा जी,धर्मपत्नी उर्मिला तिवारी, पुत्री अनामिका अंजना तिवारी पंडित माधव उपाध्याय, पंडित मिलन तिवारी पंडित श्री कीर्तिवाल्लभ खर्कवाल, श्रीमती पुष्पा खर्कवाल, अग्रज पंडित राम सहाय तिवारी पंडित ,नाथूराम चतुर्वेदी,अनुज परशुराम ,अनुज वधु मनोरमा , चिरंजीव -सिद्धार्थ,लवलीन कार्तिक रोहित ,हिमांशु,रूपेश,निषध, रुपेंद्र्सिंह , शुभम, संजय, श्रीमती रश्मि चौबे,श्रीमती रेखा -मुकेश गंगेले,बहिन फूला, पंडित हरिनारायण शुक्ल जी,पंडित लक्ष्मी कान्त चतुर्वेदी ,राजेंद् तिवारी ,राजेश तिवारी ,मिलन तिवारी,बंटी,अक्षत,और चेतन्य तिवारी इत्यादि का आभार माना।
इस महत और नितांत साहित्यिक /सांस्कृतिक कार्यक्रम की विशेषता यह थी की सुदूर भारत से हजारों मील दूर अमेरिका से चिरंजीव आसुतोष ,आस्ट्रलिया से सुधीर,सिगापुर से शेलेश और देश के कोने -कोने से सेकड़ों लोगों ने खाश तौर से भारत संचार निगम लिमिटेड के कर्मचारियों/अधिकारीयों और ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं / नेताओं ने अपने प्रिय कामरेड श्रीराम तिवारी को उनके " षष्टिपूर्ति -सम्मान समरोह " और काव्य संग्रह विमोचान पर क्रांतिकारी सन्देश प्रेषित किये।
संकलन: डॉ ;प्रवीण श्रीराम तिवारी
लाइव -इंडिया
1- मंदिर मार्ग ,न यी दिल्ली।
रविवार, 2 दिसंबर 2012
वी वॉंट मोर योर हानर:
इन दिनों जबकि सत्तासीन राजनीतिक गठबंधन और विपक्ष के सभी दल देश की जनता के कष्ट दूर करने के बजाय उसके बहाने एक- दूसरे पर कीचड उछालने में लगे हों , शाम-दाम -दंड-भेद से आगामी चुनाव जीतकर सत्ता में पहुँचने को बेकरार हों , लोकतंत्र के तीन प्रमुख स्तम्भ लगभग लकवाग्रस्त हो चुके हों, सिद्धान्तहीनता और मूल्यहीनता चरम पर हो ,राष्ट्र असुरक्षित हो तब लोकतंत्र के एक मज़बूत स्तम्भ के रूप में -न्यायपालिका का अवतरण कुछ इस तरह प्रतीत होता है जैसे धर्म् भीरुओं को श्रीमद भगवद गीता के इस श्लोक में प्रतीत होता है:-
' यदा -यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत!
अभ्युत्थानम अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम !!
तो हम सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि शायद स्थितियां उतनी बुरी नहीं हैं जितनी कल्कि अवतार के लिए जरुरी हैं शायद पापियों के पापों का घड़ा अभी पूरा नहीं भरा। या नए दौर में इश्वर भी कोई नए रूप मे शोषित,दमित,छुधित,तृषित जनता -जनार्दन का उद्धार करेगा! शायद भारतीय न्याय पालिका के किसी कोने से 'सत्य स्वरूप -मानव कल्याण स्वरूप' कोई तेज़ पुंज शक्ति अवतरित हो और इस वर्तमान दौर के कुहांसे को दूर कर दे।
यदि वास्तव में स्थितियां इतनी बदतर हैं जितनी की विपक्षी पार्टियां ,स्वनामधन्य स्वयम्भू समाज सुधारक या मीडिया का एक हिस्सा पेश कर रहा है, तो फिर 'भये प्रगट कृपाला ,दीनदयाला ......".का महाशंख्नाद तो कब का हो जाना चाहिए था और प्रभु कल्कि रूप में अब तक महा पापियों को यम पुर भेज चुके होते।दरसल में समसामयिक राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय चुनौतियों का आकलन अपने-अपने वर्गीय चरित्र
और सोच पर आधारित है।अमीर और कार्पोरेट वर्ग की चिंता हुआ करती है की सरकारें हमेशा ऐंसी हों जो उनकी चाकरी करें और उनके मुनाफाखोरी वाले सिस्टम में दखल न दे। मध्यम और बुर्जुआ वर्ग की चिंता रहती है कि रूसो ,वाल्टेयर उनका हुक्का भरें याने देश के करोड़ों नंगे भूंखे ,बेघर ठण्ड में ठिठुरकर मरते रहें किन्तु उन्हें तो बस बोलने की ,लिखने की,हंसने की,रोने की आज़ादी चाहिए। याने उनकी कोई आर्थिक समस्याएं नहीं , सामाजिक राजनैतिक समस्या नहीं,अगर होगी तो वे स्वयम सुलझा लेंगे याने सरमायेदारों से उनका कोई स्थाई अंतर्विरोध नहीं वे तो सिर्फ अपने अभिजात्य मूल्यों की परवाह करते हैं और उसके लिए अपने ही वर्ग बंधुओं को जेल भिजवाने को भी तैयार हैं।बात जब राष्ट्र के मूल्यों की ,क़ानून के राज्य की,सर्वसमावेशी जन-कल्याणकारी निजाम की आती है तो वे अपने वर्गीय अंतर्विरोध भुलाकर तमाम झंझटों का ठीकरा देश की अवाम के सर फोड़ने के लिए भी एकजुट हो जाते हैं। दुनिया के तमाम राष्ट्रों में प्रकारांतर से वर्गीय द्वंदात्मकता का यही सिलसिला जारी है।लेकिन उन राष्ट्रों के बारे में कुछनहींकहा जा सकता जिन्होंने पूँजीवादी निजाम को सिरे से नकार दिया है और सामंतवाद को कुचल दिया है। ,लेकिन यह जरुर उल्लेखित किया जा सकता है कि वहां के समाजों का मानवीयकरण संतोषप्रद स्थिति में आ चूका है।इसके बरक्स पूंजीवादी ,अर्धसामंती, अर्धपूंजीवादी और अमेरिका के पिछलगू राष्ट्रों में
सभी जगह वेरोजगार,भूमिहीन मजदूर-किसान पर संकट आन पड़ा है। भारत में नई आर्थिक व्यवस्था ने बस इतना ही कमाल किया है कि पहले 49 अरबपति थे अब शायद 70 हो गए है और गाँव में गरीब यदि 20 रुपया रोज कमाने वाला और शहर का गरीब 32 रुपया रोज कमाने वाला माना जाए, जैसा कि सरकारी सर्वे की रिपोर्ट बताती हैं तो उनकी तादाद देश में 50 करोड़ से अधिक ही है।इन 50 करोड़ नर-नारियों को ज़िंदा रहने के लिए रोटी कपड़ा मकान की जरुरत है। उन्हें किसी का कार्टून बनाने की या किसी और तरह की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए न तो समय है और न समझ है। इस देश में खंडित राजनैतिक जनादेश की तरह खंडित अभिरुचियाँ , खंडित मानसिकता और खंडित आस्थाएं होने से परिणाम भी खंड-खंड मिल रहे हैं। यही वजह है कि न केवल क्रान्तिकारी विचार छिन्न-भिन्न होते जा रहे हैं अपितु नैतिक मूल्य भी विखंडित होते जा रहे हैं। चरमराती व्यवस्था में पैबंद जरुर लग रहे हैं और इन पैबंद लगाने वालों का सम्मान किया जाना चाहिए।
फेसबुक पर टिप्पणी लिखने व उस टिप्पणी को पसंद करने के आरोप में मुंबई की दो लडकियों की गिरफ्तारी पर अब सुप्रीम कोर्ट ने भी गहरी नाराजी व्यक्त की है।मौजूदा चीफ जस्टिस श्रीमान 'अल्तमस कबीर साहब की अगवाई में बड़ी बेंच ने अपनी कड़ी आपत्ति जाहिर की है कि किसी ने भी इस मामले में जनहित याचिका दायर क्यों नहीं की। हालांकि कोर्ट स्वयम संज्ञान लेने ही वाला था कि दिल्ली की श्रेया सिंघल ने 'अभिव्यक्ति की आज़ादी' के इस मसले को जन हित याचिका के रूप में पेश कर दिया और अब सभी दूर इस बात की चर्चा चल रही है की फेसबुक पर निरापद टिप्पणी के निहतार्थ अब सूचना प्रौद्दोगिकी एक्ट में तब्दीली की किस मंजिल तक जायेंगे? मुंबई में कुछ तत्वों ने कसम खा रखी है कि वे नहीं सुधरेंगे। उनके लिए अभिव्यक्ति की आज़ादी, भारतीय संविधान,लोकतंत्र सब बकवाश है। मध्ययुगीन बर्बर डकेतों,हमलावरों और फासिस्टों का रक्त जिनकी शिराओं में बह रहा हो उनसे उम्मीद नहीं है की वे राष्ट्र की अस्मिता और क़ानून का सम्मान करेंगें। सुप्रीम कोर्ट के इस अप्रत्याशित निर्णय से देश में क़ानून का राज न्यूनाधिक ही सही कायम कायम तो हो सकेगा - जिन्होंने कल तक मुंबई को बंधक बना रखा था और पूरे देश को आँखे दिखा रहे थे अब वे देश और दुनिया के सामने हतप्रभ हैं। ये रुग्न मानसिकता वाले चाहे मुबई के नस्लवादी हों,चेन्नई के भाषावादी हों , उत्तरपूर्व के अलगाववादी हों या उगे वाम पंथी नक्सलवादी हों, सभी को काबू में करने का वक्त आ चूका है। यह सुअवसर सुप्रीम कोर्ट ने देश को अनेक बार उपलब्ध करवाया है ,देश की जनता को यह अवसर खोना नहीं चाहिए। भारतीय संविधान ,भारतीय मूल्य और देश के करोड़ों मेहनतकशों की श्रम शक्ति की अनदेखी करने वाले व्यक्ति,समूह या विचारधारा को निर्ममता से कुचल दिया जाना चाहिए। ताकि इस देश में भाषा,नस्ल,मज़हब और क्षेत्रीयता की बिना पर किसी शख्स का महिमा मंडन करने वाले नादान खुद अपने कृत्य पर पर शर्मिंदा हों।
पौराणिक मिथकों की अंध श्रद्धा ने कतिपय अकिंचनों को इस कदर अँधा कर दिया है कि प्रभु लीला हो रही है किन्तु प्रज्ञा चक्षुओं के अभाव में उसकी करनी को देख् नहीं पा रहे हैं। ,पापियों को तो बाकायदा यमपुर भेजा जा रहा है, कभी किसी साम्प्रदायिक अहमक पापी के मरने पर लाखों लोगों को दिखावे का शोक करते देखा जा सकता है। ईश्वर की महिमा पर आस्था पर और यकीन बढ़ता चला ही जा रहा है। निक्रष्ट परजीवी दिवंगत जब तक जिए फ़ोकट की खाते रहे, कभी भाषा के नाम पर,कभी क्षेत्रीयता के नाम पर,कभी क्रिकेट के नाम पर ,कभी फिल्म निर्माण में हस्तक्षेप के नाम पर कभी अपनी पारिवारिक दादागिरी के नाम पर आजीवन देश को ,सम्विधान को और डरपोंक जनता को ठगते रहे . इनकी करतूतों को जानते हुए भी लोग उनके चरणों में दंडवत करते रहे। जो व्यक्ति मरणोपरांत भी देश में झगडा- फसाद, रोड जाम ,शहर बंद कराने , अभिव्यक्ति पर पावंदी लगवाने को उद्द्यत हो, जो इतना स्वार्थी हो की अपने सगे भतीजे को भी गैर मानता हो वो पूरे मराठी समाज का शुभचिंतक और हितचिन्तक कैसे हो सकता है? निसंदेह उन्होंने अपने जीते जी कुछ देश भक्ति पूर्ण काम अवश्य किये होंगे। उनके अनुयाईयों की जिम्मेदारी है कि उनके तथाकथित महान कार्यों की सूची देश और दुनिया के सामने रखें ताकि वे लोग जो उनके अंत्येष्टि संस्कार के दरम्यान बेहद तकलीफ भोगते रहे,भयभीत होकर चुपचाप कष्ट उठाते रहे, वे भी महसूस करें कि उनकी तकलीफ उस महान पुरुष के लिए श्रद्धा सुमन थी। जो उन महात्मा के महान बलिदानों के सामने नगण्य थी। शहीद भगतसिंह ,शहीद चंद्रशेखर आज़ाद ,महात्मा गाँधी की तरह लोग उनके अमर बलिदानों को भी सदा याद रखेंगे।
जिनके स्वर्गारोहण पर पूरा महानगर कई दिनों तक जडवत रहा उनकी असलियत क्या है? यह इसलिए नहीं की लोग उन पर जान छिड़कते थे बल्कि इसलिए की कहीं किसी फसाद के शिकार न हो जाएँ या दूकान न लुट जाए सो लोग डरे सहमे हुए थे। इस घटना को फेसबुक पर महज एक सार्थक टिप्पणी के रूप में एक लड़की पेश करती है ,दूसरी कोई सहेली उस टिप्पणी पर 'पसंद' क्लिक करती है और 'अख्खा मुंबई मय पुलिस गब्बरसिंह होवेला'''' न केवल मुंबई ,न केवल महाराष्ट्र बल्कि पूरे भारत में 'सुई पटक सन्नाटा' धन्य हैं वे लोग जिन्होंने सहिष्णुता का ऐतिहासिक कीर्तीमान बना डाला।
किस के डर से ? इस घटना के बहाने संविधान ,राष्ट्र और उसकी अस्मिता में से कोई भी चीज साबुत नहीं छोड़ी गई। कांग्रेस और भाजपा अपने-अपने कर्मों से खुद ही असहज थे। कितु वामपंथ ने भी तो इस प्रकरण में सिवाय बयानबाजी के कुछ खास नहीं किया। धन्य हैं पूर्व जस्टिस मार्कंडेय काटजू-अध्यक्ष भारतीय प्रेस परिषद् . जिन्होंने खुलकर कहा कि बाल ठाकरे इस सम्मान के हकदार नहीं कि उनके शव को तिरंगे से विभूषित किया जाए या राजकीय सम्मान से नवाज़ा जाए। यदि यह सम्मान उन्हें दिया भी गया है तो उनके अनुयाईयों को हक़ नहीं की देश के क़ानून और नैतिक मूल्यों को ठेंगा दिखाएँ। अब भारत के महान सपूत सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस श्रीमान अल्तमस कबीर साहब ने भी दिल्ली की श्रेया सिंघल की याचिका को आधार मानकर 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्र ' के साथ साथ देश की अस्मिता की रक्षार्थ याने राजनैतिक गुंडागर्दी पर नकेल कसने का बीड़ा उठाया है। हमें उन पर और सुप्रीम कोर्ट पर गर्व है। उधर बंगाल में ममता बनर्जी द्वारा और पोंडीचेरी में चिदमरम पुत्र के बहाने वहां की पुलिस द्वारा अभिव्यक्ति का गला घोंटा जाने पर भी जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने सवालिया निशाँ लगाकर, पूरी सत्यनिष्ठा और राष्ट्र्धर्मिता के साथ इस जर्जर -दिग्भ्रमित-भेडचाल वाले जन-मानस को जगाने का शानदार शंखनाद किया है उनका साधुवाद।सुप्रीम कोर्ट का कोटिशः नमन। हमें विश्वाश है कि जिस तरह से अतीत में जस्टिस बी आर कृष्ण अय्यर समेत महान न्यायविदों ने न केवल भारत राष्ट्र के संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांतों की रक्षा के लिए,न केवल प्रजातांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए, न केवल फासिस्ट और साम्प्रदायिक तत्वों पर अंकुश लगाने के लिए, बल्कि देश के अश्न्ख्य शोषित -पीड़ित,दमित जनों के पक्ष में अपनी मेघा शक्ति का इस्तेमाल किया था, न केवल उनके आदर्शों तक अपितु उनसे भी आगे जाकर वर्तमान दौर में देश पर लादी जा रही कार्पोरेट दादगिरी और पर राष्ट्र परालाम्बिता के खिलाफ अपने बुद्धि चातुर्य और नितांत उच्च नैतिक मूल्यवत्ता का प्रयोग करेंगे।
देश के अमर शहीदों से उत्प्रेरित होकर देश के सर्वहारा वर्ग,मजदूर वर्ग और शोषित पीड़ित मेहनतकश जनता के हित में भी अपनी आवाज बुलंद करेंगे। उन नीतियों पर भी प्रश्न चिन्ह लगाने की कृपा करेंगे जिनसे अमीर और ज्यादा अमीर तथा गरीब और ज्यादा गरीब होते जा रहे हैं। आप महानुभाव वैसी ही कृपा दृष्टी बनाए रखें जैसे की अभी 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ' पर सहज संज्ञान लेकर न केवल देश में बढ़ती असामाजिकता पर रोक लगाने का काम किया अपितु दुनिया के सामने भारत का और भारतीय न्याय व्यवस्था का मान बढाया।
श्रीराम तिवारी
' यदा -यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत!
अभ्युत्थानम अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम !!
तो हम सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि शायद स्थितियां उतनी बुरी नहीं हैं जितनी कल्कि अवतार के लिए जरुरी हैं शायद पापियों के पापों का घड़ा अभी पूरा नहीं भरा। या नए दौर में इश्वर भी कोई नए रूप मे शोषित,दमित,छुधित,तृषित जनता -जनार्दन का उद्धार करेगा! शायद भारतीय न्याय पालिका के किसी कोने से 'सत्य स्वरूप -मानव कल्याण स्वरूप' कोई तेज़ पुंज शक्ति अवतरित हो और इस वर्तमान दौर के कुहांसे को दूर कर दे।
यदि वास्तव में स्थितियां इतनी बदतर हैं जितनी की विपक्षी पार्टियां ,स्वनामधन्य स्वयम्भू समाज सुधारक या मीडिया का एक हिस्सा पेश कर रहा है, तो फिर 'भये प्रगट कृपाला ,दीनदयाला ......".का महाशंख्नाद तो कब का हो जाना चाहिए था और प्रभु कल्कि रूप में अब तक महा पापियों को यम पुर भेज चुके होते।दरसल में समसामयिक राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय चुनौतियों का आकलन अपने-अपने वर्गीय चरित्र
और सोच पर आधारित है।अमीर और कार्पोरेट वर्ग की चिंता हुआ करती है की सरकारें हमेशा ऐंसी हों जो उनकी चाकरी करें और उनके मुनाफाखोरी वाले सिस्टम में दखल न दे। मध्यम और बुर्जुआ वर्ग की चिंता रहती है कि रूसो ,वाल्टेयर उनका हुक्का भरें याने देश के करोड़ों नंगे भूंखे ,बेघर ठण्ड में ठिठुरकर मरते रहें किन्तु उन्हें तो बस बोलने की ,लिखने की,हंसने की,रोने की आज़ादी चाहिए। याने उनकी कोई आर्थिक समस्याएं नहीं , सामाजिक राजनैतिक समस्या नहीं,अगर होगी तो वे स्वयम सुलझा लेंगे याने सरमायेदारों से उनका कोई स्थाई अंतर्विरोध नहीं वे तो सिर्फ अपने अभिजात्य मूल्यों की परवाह करते हैं और उसके लिए अपने ही वर्ग बंधुओं को जेल भिजवाने को भी तैयार हैं।बात जब राष्ट्र के मूल्यों की ,क़ानून के राज्य की,सर्वसमावेशी जन-कल्याणकारी निजाम की आती है तो वे अपने वर्गीय अंतर्विरोध भुलाकर तमाम झंझटों का ठीकरा देश की अवाम के सर फोड़ने के लिए भी एकजुट हो जाते हैं। दुनिया के तमाम राष्ट्रों में प्रकारांतर से वर्गीय द्वंदात्मकता का यही सिलसिला जारी है।लेकिन उन राष्ट्रों के बारे में कुछनहींकहा जा सकता जिन्होंने पूँजीवादी निजाम को सिरे से नकार दिया है और सामंतवाद को कुचल दिया है। ,लेकिन यह जरुर उल्लेखित किया जा सकता है कि वहां के समाजों का मानवीयकरण संतोषप्रद स्थिति में आ चूका है।इसके बरक्स पूंजीवादी ,अर्धसामंती, अर्धपूंजीवादी और अमेरिका के पिछलगू राष्ट्रों में
सभी जगह वेरोजगार,भूमिहीन मजदूर-किसान पर संकट आन पड़ा है। भारत में नई आर्थिक व्यवस्था ने बस इतना ही कमाल किया है कि पहले 49 अरबपति थे अब शायद 70 हो गए है और गाँव में गरीब यदि 20 रुपया रोज कमाने वाला और शहर का गरीब 32 रुपया रोज कमाने वाला माना जाए, जैसा कि सरकारी सर्वे की रिपोर्ट बताती हैं तो उनकी तादाद देश में 50 करोड़ से अधिक ही है।इन 50 करोड़ नर-नारियों को ज़िंदा रहने के लिए रोटी कपड़ा मकान की जरुरत है। उन्हें किसी का कार्टून बनाने की या किसी और तरह की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए न तो समय है और न समझ है। इस देश में खंडित राजनैतिक जनादेश की तरह खंडित अभिरुचियाँ , खंडित मानसिकता और खंडित आस्थाएं होने से परिणाम भी खंड-खंड मिल रहे हैं। यही वजह है कि न केवल क्रान्तिकारी विचार छिन्न-भिन्न होते जा रहे हैं अपितु नैतिक मूल्य भी विखंडित होते जा रहे हैं। चरमराती व्यवस्था में पैबंद जरुर लग रहे हैं और इन पैबंद लगाने वालों का सम्मान किया जाना चाहिए।
फेसबुक पर टिप्पणी लिखने व उस टिप्पणी को पसंद करने के आरोप में मुंबई की दो लडकियों की गिरफ्तारी पर अब सुप्रीम कोर्ट ने भी गहरी नाराजी व्यक्त की है।मौजूदा चीफ जस्टिस श्रीमान 'अल्तमस कबीर साहब की अगवाई में बड़ी बेंच ने अपनी कड़ी आपत्ति जाहिर की है कि किसी ने भी इस मामले में जनहित याचिका दायर क्यों नहीं की। हालांकि कोर्ट स्वयम संज्ञान लेने ही वाला था कि दिल्ली की श्रेया सिंघल ने 'अभिव्यक्ति की आज़ादी' के इस मसले को जन हित याचिका के रूप में पेश कर दिया और अब सभी दूर इस बात की चर्चा चल रही है की फेसबुक पर निरापद टिप्पणी के निहतार्थ अब सूचना प्रौद्दोगिकी एक्ट में तब्दीली की किस मंजिल तक जायेंगे? मुंबई में कुछ तत्वों ने कसम खा रखी है कि वे नहीं सुधरेंगे। उनके लिए अभिव्यक्ति की आज़ादी, भारतीय संविधान,लोकतंत्र सब बकवाश है। मध्ययुगीन बर्बर डकेतों,हमलावरों और फासिस्टों का रक्त जिनकी शिराओं में बह रहा हो उनसे उम्मीद नहीं है की वे राष्ट्र की अस्मिता और क़ानून का सम्मान करेंगें। सुप्रीम कोर्ट के इस अप्रत्याशित निर्णय से देश में क़ानून का राज न्यूनाधिक ही सही कायम कायम तो हो सकेगा - जिन्होंने कल तक मुंबई को बंधक बना रखा था और पूरे देश को आँखे दिखा रहे थे अब वे देश और दुनिया के सामने हतप्रभ हैं। ये रुग्न मानसिकता वाले चाहे मुबई के नस्लवादी हों,चेन्नई के भाषावादी हों , उत्तरपूर्व के अलगाववादी हों या उगे वाम पंथी नक्सलवादी हों, सभी को काबू में करने का वक्त आ चूका है। यह सुअवसर सुप्रीम कोर्ट ने देश को अनेक बार उपलब्ध करवाया है ,देश की जनता को यह अवसर खोना नहीं चाहिए। भारतीय संविधान ,भारतीय मूल्य और देश के करोड़ों मेहनतकशों की श्रम शक्ति की अनदेखी करने वाले व्यक्ति,समूह या विचारधारा को निर्ममता से कुचल दिया जाना चाहिए। ताकि इस देश में भाषा,नस्ल,मज़हब और क्षेत्रीयता की बिना पर किसी शख्स का महिमा मंडन करने वाले नादान खुद अपने कृत्य पर पर शर्मिंदा हों।
पौराणिक मिथकों की अंध श्रद्धा ने कतिपय अकिंचनों को इस कदर अँधा कर दिया है कि प्रभु लीला हो रही है किन्तु प्रज्ञा चक्षुओं के अभाव में उसकी करनी को देख् नहीं पा रहे हैं। ,पापियों को तो बाकायदा यमपुर भेजा जा रहा है, कभी किसी साम्प्रदायिक अहमक पापी के मरने पर लाखों लोगों को दिखावे का शोक करते देखा जा सकता है। ईश्वर की महिमा पर आस्था पर और यकीन बढ़ता चला ही जा रहा है। निक्रष्ट परजीवी दिवंगत जब तक जिए फ़ोकट की खाते रहे, कभी भाषा के नाम पर,कभी क्षेत्रीयता के नाम पर,कभी क्रिकेट के नाम पर ,कभी फिल्म निर्माण में हस्तक्षेप के नाम पर कभी अपनी पारिवारिक दादागिरी के नाम पर आजीवन देश को ,सम्विधान को और डरपोंक जनता को ठगते रहे . इनकी करतूतों को जानते हुए भी लोग उनके चरणों में दंडवत करते रहे। जो व्यक्ति मरणोपरांत भी देश में झगडा- फसाद, रोड जाम ,शहर बंद कराने , अभिव्यक्ति पर पावंदी लगवाने को उद्द्यत हो, जो इतना स्वार्थी हो की अपने सगे भतीजे को भी गैर मानता हो वो पूरे मराठी समाज का शुभचिंतक और हितचिन्तक कैसे हो सकता है? निसंदेह उन्होंने अपने जीते जी कुछ देश भक्ति पूर्ण काम अवश्य किये होंगे। उनके अनुयाईयों की जिम्मेदारी है कि उनके तथाकथित महान कार्यों की सूची देश और दुनिया के सामने रखें ताकि वे लोग जो उनके अंत्येष्टि संस्कार के दरम्यान बेहद तकलीफ भोगते रहे,भयभीत होकर चुपचाप कष्ट उठाते रहे, वे भी महसूस करें कि उनकी तकलीफ उस महान पुरुष के लिए श्रद्धा सुमन थी। जो उन महात्मा के महान बलिदानों के सामने नगण्य थी। शहीद भगतसिंह ,शहीद चंद्रशेखर आज़ाद ,महात्मा गाँधी की तरह लोग उनके अमर बलिदानों को भी सदा याद रखेंगे।
जिनके स्वर्गारोहण पर पूरा महानगर कई दिनों तक जडवत रहा उनकी असलियत क्या है? यह इसलिए नहीं की लोग उन पर जान छिड़कते थे बल्कि इसलिए की कहीं किसी फसाद के शिकार न हो जाएँ या दूकान न लुट जाए सो लोग डरे सहमे हुए थे। इस घटना को फेसबुक पर महज एक सार्थक टिप्पणी के रूप में एक लड़की पेश करती है ,दूसरी कोई सहेली उस टिप्पणी पर 'पसंद' क्लिक करती है और 'अख्खा मुंबई मय पुलिस गब्बरसिंह होवेला'''' न केवल मुंबई ,न केवल महाराष्ट्र बल्कि पूरे भारत में 'सुई पटक सन्नाटा' धन्य हैं वे लोग जिन्होंने सहिष्णुता का ऐतिहासिक कीर्तीमान बना डाला।
किस के डर से ? इस घटना के बहाने संविधान ,राष्ट्र और उसकी अस्मिता में से कोई भी चीज साबुत नहीं छोड़ी गई। कांग्रेस और भाजपा अपने-अपने कर्मों से खुद ही असहज थे। कितु वामपंथ ने भी तो इस प्रकरण में सिवाय बयानबाजी के कुछ खास नहीं किया। धन्य हैं पूर्व जस्टिस मार्कंडेय काटजू-अध्यक्ष भारतीय प्रेस परिषद् . जिन्होंने खुलकर कहा कि बाल ठाकरे इस सम्मान के हकदार नहीं कि उनके शव को तिरंगे से विभूषित किया जाए या राजकीय सम्मान से नवाज़ा जाए। यदि यह सम्मान उन्हें दिया भी गया है तो उनके अनुयाईयों को हक़ नहीं की देश के क़ानून और नैतिक मूल्यों को ठेंगा दिखाएँ। अब भारत के महान सपूत सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस श्रीमान अल्तमस कबीर साहब ने भी दिल्ली की श्रेया सिंघल की याचिका को आधार मानकर 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्र ' के साथ साथ देश की अस्मिता की रक्षार्थ याने राजनैतिक गुंडागर्दी पर नकेल कसने का बीड़ा उठाया है। हमें उन पर और सुप्रीम कोर्ट पर गर्व है। उधर बंगाल में ममता बनर्जी द्वारा और पोंडीचेरी में चिदमरम पुत्र के बहाने वहां की पुलिस द्वारा अभिव्यक्ति का गला घोंटा जाने पर भी जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने सवालिया निशाँ लगाकर, पूरी सत्यनिष्ठा और राष्ट्र्धर्मिता के साथ इस जर्जर -दिग्भ्रमित-भेडचाल वाले जन-मानस को जगाने का शानदार शंखनाद किया है उनका साधुवाद।सुप्रीम कोर्ट का कोटिशः नमन। हमें विश्वाश है कि जिस तरह से अतीत में जस्टिस बी आर कृष्ण अय्यर समेत महान न्यायविदों ने न केवल भारत राष्ट्र के संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांतों की रक्षा के लिए,न केवल प्रजातांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए, न केवल फासिस्ट और साम्प्रदायिक तत्वों पर अंकुश लगाने के लिए, बल्कि देश के अश्न्ख्य शोषित -पीड़ित,दमित जनों के पक्ष में अपनी मेघा शक्ति का इस्तेमाल किया था, न केवल उनके आदर्शों तक अपितु उनसे भी आगे जाकर वर्तमान दौर में देश पर लादी जा रही कार्पोरेट दादगिरी और पर राष्ट्र परालाम्बिता के खिलाफ अपने बुद्धि चातुर्य और नितांत उच्च नैतिक मूल्यवत्ता का प्रयोग करेंगे।
देश के अमर शहीदों से उत्प्रेरित होकर देश के सर्वहारा वर्ग,मजदूर वर्ग और शोषित पीड़ित मेहनतकश जनता के हित में भी अपनी आवाज बुलंद करेंगे। उन नीतियों पर भी प्रश्न चिन्ह लगाने की कृपा करेंगे जिनसे अमीर और ज्यादा अमीर तथा गरीब और ज्यादा गरीब होते जा रहे हैं। आप महानुभाव वैसी ही कृपा दृष्टी बनाए रखें जैसे की अभी 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ' पर सहज संज्ञान लेकर न केवल देश में बढ़ती असामाजिकता पर रोक लगाने का काम किया अपितु दुनिया के सामने भारत का और भारतीय न्याय व्यवस्था का मान बढाया।
श्रीराम तिवारी
मंगलवार, 13 नवंबर 2012
Happy Deepawali.........
देश और दुनिया के तमाम मेहनतकश मजदूर-किसान,छात्र,नोजवान एकजुट हों। वर्तमान व्यवस्था को बदलने और वैकल्पिक नीतियों को जनता के सामने पेश करें। वर्तमान वैश्विक आर्थिक- सामजिक व्यवस्था में विज्ञान और प्रौद्दोगिकी की तरक्की को नए पंख जरुर लग गए हैं , किन्तु मिडिल क्लास के एक हिस्से ने भृष्टाचार के बेंट बनकर चंद मुनाफाखोरों और भूमि के भुन्खों को जो आसमान पर बिठा दिया है उससे असमानता के कीर्तिमान खंडित हो चुके हैं। राष्ट्रों की सकल संपदा का अधिकांस हिस्सा कुछ लोगों के आधिपत्य में आ चुका है, निर्धनता और घटित क्रयक्षमता की तादाद अरबों में है। सारी दुनिया में इस असमानता का प्रभाव कमोवेश एक जैसा है .चीन ,वेनेज़ुएला,क्यूबा की राह में भी इन ताकतों ने षड्यंत्रों के जाल विछाने की कोशिश की है किन्तु यह एक सुखद और सकारात्मक स्थिति है की साम्राज्वाद और संघठित पूंजीवाद भी इन 'क्रांति के दीपों 'को बुझा नहीं सकें हैं। अब उन राष्ट्रीयताओं और जनगण की जिम्मेदारी है की न केवल क्रांति की इन मिसालों को बुझने से बचाएं अपितु हर घर में हर खेत में हर देश में हर 'पवित्र पूजा स्थल' में इस तरह के अनगिन दीप जलाएं।
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ!!!
क्रांतिकारी अभिवादन सहित ,
श्रीराम तिवारी।
देश और दुनिया के तमाम मेहनतकश मजदूर-किसान,छात्र,नोजवान एकजुट हों। वर्तमान व्यवस्था को बदलने और वैकल्पिक नीतियों को जनता के सामने पेश करें। वर्तमान वैश्विक आर्थिक- सामजिक व्यवस्था में विज्ञान और प्रौद्दोगिकी की तरक्की को नए पंख जरुर लग गए हैं , किन्तु मिडिल क्लास के एक हिस्से ने भृष्टाचार के बेंट बनकर चंद मुनाफाखोरों और भूमि के भुन्खों को जो आसमान पर बिठा दिया है उससे असमानता के कीर्तिमान खंडित हो चुके हैं। राष्ट्रों की सकल संपदा का अधिकांस हिस्सा कुछ लोगों के आधिपत्य में आ चुका है, निर्धनता और घटित क्रयक्षमता की तादाद अरबों में है। सारी दुनिया में इस असमानता का प्रभाव कमोवेश एक जैसा है .चीन ,वेनेज़ुएला,क्यूबा की राह में भी इन ताकतों ने षड्यंत्रों के जाल विछाने की कोशिश की है किन्तु यह एक सुखद और सकारात्मक स्थिति है की साम्राज्वाद और संघठित पूंजीवाद भी इन 'क्रांति के दीपों 'को बुझा नहीं सकें हैं। अब उन राष्ट्रीयताओं और जनगण की जिम्मेदारी है की न केवल क्रांति की इन मिसालों को बुझने से बचाएं अपितु हर घर में हर खेत में हर देश में हर 'पवित्र पूजा स्थल' में इस तरह के अनगिन दीप जलाएं।
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ!!!
क्रांतिकारी अभिवादन सहित ,
श्रीराम तिवारी।
सोमवार, 22 अक्टूबर 2012
is vyvstha ko badal dalo.....
जिन्दगी में सबकी जरुरत पड़ती है सो उस हिसाब से सम्वाद बनाओ किन्तु ये मत सोचो कि किसी की कमी से कोई काम नहीं रुकता ,उसकी कमी कोई और पूरी कर देगा -ऐसा सोचने से उसकी कमी को पूरा नहीं किया जा सकता।जिन्दगी शतरंज के खेल की तरह है,जिसमें कोई भी प्यादा चाहे तो अंतिम पंक्ति में पहुंचकर - वजीर,हाथी,ऊंट,घोडा,बनकर प्रत्स्पर्धी के राजा को मात दे सकता है,किन्तु किसी भी पक्ष का कोई भी मोहरा लाख चाहने पर भी किसी और की जगह नहीं ले सकता।प्यादे की भी जगह कोई नहीं ले सकता .जीवन में सबको सबकी जरुरत है।सब को चाहिए की सभी की कद्र करें,फ़िक्र करें .यह प्रकारांतर से स्वयम की फ़िक्र का शानदार क्रियान्वन होगा।
आजकल भारतीय राजनीति में विश्वाश का संकट उत्पन्न हो गया है। सत्ता पक्ष [यूपीए] के नेता विपक्ष[खास तौर से एनडीए] पर सच्चे-झूंठे आरोप लगा रहे हैं,मीडिया भी अपने हितधारकों के मंशानुसार आरोप,प्रत्यारोप की चूहा-बिल्ली दौड़ में शामिल है।स्वनामधन्य कतिपय तथाकथित 'सिविल सोसायटी'वाले और राजनीती में शोषित वर्ग के पक्षधर भी इस कीचड उछाल वीभत्स खेल में शामिल हो गए हैं।न्याय पालिका और कतिपय वास्तविक ईमानदार समूह भी इस हवा के रुख के साथ चला जा रहा है।इस दौर में क्या वास्तव में कुछ भी ऐंसा नहीं जिस पर देश को नाज़ हो? क्या राजनीती में,कार्यपालिका में,न्याय पालिका में,व्यवस्थापिका में ऐसा कुछ नहीं बचा जो इस व्यवस्था की जीवन्तता का वाहक सिद्ध हो सके? यदि कुछ नहीं बचा तो इस व्यवस्था को बदलने में क्या हर्ज़ है?
आजकल भारतीय राजनीति में विश्वाश का संकट उत्पन्न हो गया है। सत्ता पक्ष [यूपीए] के नेता विपक्ष[खास तौर से एनडीए] पर सच्चे-झूंठे आरोप लगा रहे हैं,मीडिया भी अपने हितधारकों के मंशानुसार आरोप,प्रत्यारोप की चूहा-बिल्ली दौड़ में शामिल है।स्वनामधन्य कतिपय तथाकथित 'सिविल सोसायटी'वाले और राजनीती में शोषित वर्ग के पक्षधर भी इस कीचड उछाल वीभत्स खेल में शामिल हो गए हैं।न्याय पालिका और कतिपय वास्तविक ईमानदार समूह भी इस हवा के रुख के साथ चला जा रहा है।इस दौर में क्या वास्तव में कुछ भी ऐंसा नहीं जिस पर देश को नाज़ हो? क्या राजनीती में,कार्यपालिका में,न्याय पालिका में,व्यवस्थापिका में ऐसा कुछ नहीं बचा जो इस व्यवस्था की जीवन्तता का वाहक सिद्ध हो सके? यदि कुछ नहीं बचा तो इस व्यवस्था को बदलने में क्या हर्ज़ है?
गुरुवार, 18 अक्टूबर 2012
अरविन्द केजरीवाल को अपनी नीतियां घोषित करना चाहिए.
मेरे कतिपय समकालीन प्रगतिशील मित्रों में आजकल एक विषय पर आम राय है कि वर्तमान वैश्विक चुनौतियां अब भारत में तीव्रगति से और अधिक आक्रामक रूप से प्रविष्ट हो रही हैं। इन चुनौतियों में सबसे अव्वल है राज्य सत्ता का अमानवीयकरण। प्रजातांत्रिक व्यवस्था में भले ही वो पूंजीवादी ही क्यों न हो,आम जनता को ज़िंदा रहने के न्यूनतम संसाधनों का एक हिस्सा न्यूनतम ही सही - जन-कल्याण के रूप में -विगत शताव्दी के अंतिम दशक तक सर्वत्र दिया जाता रहा है। सबको शिक्षा,स्वास्थ्य,सुरक्षा,रोटी,कपडा,मकान और सामाजिक सुरक्षा इत्यादि के लिए निरंतर संयुक्त संघर्ष चलाये जाने पर शाशक वर्गों ने 'सोवियत पराभव'उपरान्त पश्चिमी पूंजीवादी आर्थिक माडल को अपनाने में देर नहीं की और जनता को मिलने वाली कमोवेश आवश्यक न्यूनतम सेवा सुविधाएँ धीरे-धीरे छीन ली गई .राजकोषीय घाटे के बहाने ,अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक अनुबंधों के बहाने खाद,बीज,तेल,गेस शिक्षा स्वास्थय पर सरकारी इमदाद लगभग जीरो कर दी गई।सरकारी क्षेत्र का दायरा सीमित कर दिया गया।निजी क्षेत्र को लूट की खुली छूट दी गई।राज्यसत्ता में हितधारकों को उपकृत करने हेतु एनजीओ बनाये गए .आर्थिक सुधारों के बहाने जनता को बाज़ार के हवाले कर दिया गया . इस अंधेरगर्दी के खिलाफ देश की संगठित ट्रेड यूनियनों ने अपनी-अपनी राजनैतिक विचारधारा से परे एकजुट होकर निरंतर संघर्ष चलाया है।विगत 28 फरवरी -2012 ,20 सितम्बर-2012 और आगामी 21-22 फरवरी 2013 को राष्ट्रव्यापी हड़तालों का एलाने जंग इसी संघर्ष की छोटी सी कड़ी है। इस संघर्ष में साथ देने के बजाय कुछ लोग' विना सुर-ताल के अपनी ढपली अपना राग' गा-बजा रहे हैं।अन्ना एंड कम्पनी,रामदेव रविशंकर,और इन्ही के कल तक के हमसफर अरविन्द केजरीवाल कुछ इस तरह से देश के तस्वीर दुनिया के सामने रख रहे हैं कि इस देश में 'सब कुछ बुरा ही बुरा है' ये कल तक अपने अपने एनजीओ चलाने वाले अब देश का उद्धार करने के लिए अवतरित हो चुके हैं।
सारी दुनिया जानती है की किसी भी राष्ट्र की एकजुटता,शांति ,सुरक्षा और विकाश तभी संभव है जब उस राष्ट्र के नागरिकों की राष्ट्रीय चेतना को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सोचने समझने के अनुरूप ढाला जाए। आर्थिक नीतियों को राष्ट्र की मांग आपूर्ति और जनसंख्या अनुपात से तत्संगत किया जाए।आज जब देश में खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश पर आपत्ति है, वायदा वाजार।सट्टा -बाज़ार ,निजीकरण, ठेकाकरण,कारखना बंदी पर आमजनता को संगठित कर संघर्ष की जरुरत है तब देश में कुछ लोग जनता को धार्मिक अफीम खिला रहे है, चारों ओर धरम के नाम पर तिजारत करने वाले ढोंगी बाबाओं,मुल्लाओं,फादरों की भरमार है।जनता का एक हिस्सा इन बाबाओं -मुल्लाओं-फादरों की मीठी-मीठी लुभावनी बातों में आकर न केवल खुद का सतानाश कर लेता है अपितु देश को दुनिया भर में जग हंसाई का पात्र बना देता है। धरम मज़हब का ये धंधा कुछ राजनीतिक पार्टियों को भी पोषता है। ये धर्माडंबर उन्हें आम चुनाव में परोक्ष सहयोग देकर राष्ट्र को वास्तविक प्रजातांत्रिक रास्ते से भटकाता है।
निरीह निर्दोष आम जनता अपने हकों की लूट को ईश्वर की इक्षा समझती है। इसी वजह से जब कभी देश के संगठित मजदूर किसान बढ़ती हुई महंगाई ,वेरोजगारी,शिक्षा,स्वास्थ्य ,पीने का पानी और आवश्यक जीवन संसाधनों के लिए राष्ट्र व्यापी संघर्ष छेड़ते हैं तो यह तथाकथित अंध श्रद्धालु वर्ग इन ढोंगी बाबाओं के चरणों में अपनी मुक्ति ढूंड़ता है।इतना ही नहीं ये एनजीओ चलाने वाले अन्ना ,रामदेव ,केजरीवाल सबके सब सिर्फ मीडिया के सामने ही हीरो बनने की फितरत में रहते हैं। ये कभी कांग्रस कभी भाजपा के नेताओं को भ्रष्ट बताकर समझते हैं की इससे देश पाक साफ़ हो जाएगा?
कौन कितना भृष्ट है यह जान लेने से क्या होगा? जब व्यवस्था ही लूट की है याने आर्थिक सुधारों की ,भूमंडलीकरण की,निजीकरण की या पूँजी के मार्फ़त राज्यसत्ता सञ्चालन की तब यह कैसे संभव है की रिश्वत ,घूंस, घोटाले नहीं होंगे ? गंदगी होगी तो मख्खियाँ भी होंगी। पूंजीवाद होगा ,अमेरिकी इच्छाओं का प्रधान मंत्री होगा,देशी-विदेशी पूंजी का प्रवाह होगा, व्यापार और मुनाफे पर सरकार उदार होगी तो जो सरकार में होंगे उन्हें बिन मांगे मोती तो मिलना ही हैं। फिर सत्ता में चाहे यूपीए हो या एनडीए हो ऐ राजा हो या प्रमोद महाजन हो,रावर्ट वाड्रा हो या गडकरी हो खुर्शीद हों या लक्ष्मण बंगारू हों कलमाडी हों या जूदेव हों लूट का ये सिलसिला जारी रहेगा .अरविन्द केजरीवाल का इरादा यदि वाकई देश भक्ति पूर्ण है तो वे पहले अपनी आर्थिक नीति घोषित करें . इतना ही काफी नहीं बल्कि व्यवस्था रुपी जिस कुएं में भंग पडी उसी की साफ़ सफाई करते कराते रहेंगे या की नए कुएं के निर्माण पर देश के प्रगतिशील वैज्ञानिक विचारों से सलाह मशविरा करेंगे! सिर्फ हंगामा खड़ा करते रहने से आप चेर्चा में बने रह सकते हैं देश का कुछ भी भला इस हँगामा नवाजी से नहीं होने वाला। यदि नदी किनारे खड़े खड़े लहरों को कोसते रहोगे तो नदी रुकने वाली नहीं और लहरें तो कभी भी नहीं।।।।
श्रीराम तिवारी
सारी दुनिया जानती है की किसी भी राष्ट्र की एकजुटता,शांति ,सुरक्षा और विकाश तभी संभव है जब उस राष्ट्र के नागरिकों की राष्ट्रीय चेतना को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सोचने समझने के अनुरूप ढाला जाए। आर्थिक नीतियों को राष्ट्र की मांग आपूर्ति और जनसंख्या अनुपात से तत्संगत किया जाए।आज जब देश में खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश पर आपत्ति है, वायदा वाजार।सट्टा -बाज़ार ,निजीकरण, ठेकाकरण,कारखना बंदी पर आमजनता को संगठित कर संघर्ष की जरुरत है तब देश में कुछ लोग जनता को धार्मिक अफीम खिला रहे है, चारों ओर धरम के नाम पर तिजारत करने वाले ढोंगी बाबाओं,मुल्लाओं,फादरों की भरमार है।जनता का एक हिस्सा इन बाबाओं -मुल्लाओं-फादरों की मीठी-मीठी लुभावनी बातों में आकर न केवल खुद का सतानाश कर लेता है अपितु देश को दुनिया भर में जग हंसाई का पात्र बना देता है। धरम मज़हब का ये धंधा कुछ राजनीतिक पार्टियों को भी पोषता है। ये धर्माडंबर उन्हें आम चुनाव में परोक्ष सहयोग देकर राष्ट्र को वास्तविक प्रजातांत्रिक रास्ते से भटकाता है।
निरीह निर्दोष आम जनता अपने हकों की लूट को ईश्वर की इक्षा समझती है। इसी वजह से जब कभी देश के संगठित मजदूर किसान बढ़ती हुई महंगाई ,वेरोजगारी,शिक्षा,स्वास्थ्य ,पीने का पानी और आवश्यक जीवन संसाधनों के लिए राष्ट्र व्यापी संघर्ष छेड़ते हैं तो यह तथाकथित अंध श्रद्धालु वर्ग इन ढोंगी बाबाओं के चरणों में अपनी मुक्ति ढूंड़ता है।इतना ही नहीं ये एनजीओ चलाने वाले अन्ना ,रामदेव ,केजरीवाल सबके सब सिर्फ मीडिया के सामने ही हीरो बनने की फितरत में रहते हैं। ये कभी कांग्रस कभी भाजपा के नेताओं को भ्रष्ट बताकर समझते हैं की इससे देश पाक साफ़ हो जाएगा?
कौन कितना भृष्ट है यह जान लेने से क्या होगा? जब व्यवस्था ही लूट की है याने आर्थिक सुधारों की ,भूमंडलीकरण की,निजीकरण की या पूँजी के मार्फ़त राज्यसत्ता सञ्चालन की तब यह कैसे संभव है की रिश्वत ,घूंस, घोटाले नहीं होंगे ? गंदगी होगी तो मख्खियाँ भी होंगी। पूंजीवाद होगा ,अमेरिकी इच्छाओं का प्रधान मंत्री होगा,देशी-विदेशी पूंजी का प्रवाह होगा, व्यापार और मुनाफे पर सरकार उदार होगी तो जो सरकार में होंगे उन्हें बिन मांगे मोती तो मिलना ही हैं। फिर सत्ता में चाहे यूपीए हो या एनडीए हो ऐ राजा हो या प्रमोद महाजन हो,रावर्ट वाड्रा हो या गडकरी हो खुर्शीद हों या लक्ष्मण बंगारू हों कलमाडी हों या जूदेव हों लूट का ये सिलसिला जारी रहेगा .अरविन्द केजरीवाल का इरादा यदि वाकई देश भक्ति पूर्ण है तो वे पहले अपनी आर्थिक नीति घोषित करें . इतना ही काफी नहीं बल्कि व्यवस्था रुपी जिस कुएं में भंग पडी उसी की साफ़ सफाई करते कराते रहेंगे या की नए कुएं के निर्माण पर देश के प्रगतिशील वैज्ञानिक विचारों से सलाह मशविरा करेंगे! सिर्फ हंगामा खड़ा करते रहने से आप चेर्चा में बने रह सकते हैं देश का कुछ भी भला इस हँगामा नवाजी से नहीं होने वाला। यदि नदी किनारे खड़े खड़े लहरों को कोसते रहोगे तो नदी रुकने वाली नहीं और लहरें तो कभी भी नहीं।।।।
श्रीराम तिवारी
शुक्रवार, 12 अक्टूबर 2012
कविता- सारा जहाँ हमारा है....
[1] डेंगू -मलेरिया-स्वाइन फ्ल्यू का बुखार , अस्पतालों में अव्यवस्था वेशुमार!
महंगी दवाईयाँ, महँगे टेस्ट,महँगी फीस, आम आदमी होता इलाज़ को लाचार!!
निजी अस्पतालों में निर्धन का प्रवेश निषेध,सरकारी क्षेत्र में लुटेरों की भरमार !
पानी सर से ऊपर गुजरने लगा,फिर भी लोगों को है किसी नायक का इंतज़ार!!
लोग पूजा घरों में करते रहते हैं बेसब्री से , कि प्रभु कब लोगे कल्कि अवतार !
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[ 2] यत्र-तत्र-सर्वत्र हो रहा निरंतर धुंआधार, दृश्य-श्रव्य-पाठ्य मीडिया में प्रचार !
कि हो रहा भारत निर्माण , भारत के इस निर्माण में मेरा भी हक़ है यार!!
विकाश की गंगा बह रही उल्टी आज,श्रम के सागर से समृद्धि के शिखर पार!
क्रांति की चिंगारी बुझने को है ,पतंगों को पता नहीं किसका है इंतज़ार!!
देशी मर्ज़ विदेशी इलाज़ ;उधार का हलुआ , वतन को अब मंज़ूर नहीं सरकार!
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[3] जात -पांत ,भाषा-मजहब के झगड़ों से, अपना वतन बचाना साथी!
समाजवाद,प्रजातंत्र,धर्मनिरपेक्षता,के नाना दीप जलाना साथी!!
मिल जाए आवश्यक श्रम- फल ,रोजी-रोटी संसाधन जीवन का साथी!
बोलो बच्चो चीख-चीख कर, 'सारे जहां से अच्छा' हिन्दोस्तान हमारा है !!
वर्ना नंगे भूँखों को तो 'सारा जहां हमारा है !
[4] दुनिया भर के महाठगों ने नव -उदार चोला पहना!
पहले गैरों ने लतियाया अब अपनों का क्या कहना!!
भूल हमारी हम पर भारी,शोषण को सहते रहना!
मीरजाफरों जयचंदों को हमने दिया सहारा है!!
देश हमारा नीति विदेशी ,निजीकरण का नारा!
वर्ना नंगे भूँखों को तो सारा जहां हमारा है !!
सबको शिक्षा सबको काम' काम के बदले पूरे दाम!
मिलता रहे मजूरों को उनकी क्षमता से नित काम !1
यही तमन्ना भगत सिंह की यही पैगाम हमारा है!
वर्ना नंगे भूंखे को तो 'सारा जहां हमारा है'!!
श्रीराम तिवारी
महंगी दवाईयाँ, महँगे टेस्ट,महँगी फीस, आम आदमी होता इलाज़ को लाचार!!
निजी अस्पतालों में निर्धन का प्रवेश निषेध,सरकारी क्षेत्र में लुटेरों की भरमार !
पानी सर से ऊपर गुजरने लगा,फिर भी लोगों को है किसी नायक का इंतज़ार!!
लोग पूजा घरों में करते रहते हैं बेसब्री से , कि प्रभु कब लोगे कल्कि अवतार !
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[ 2] यत्र-तत्र-सर्वत्र हो रहा निरंतर धुंआधार, दृश्य-श्रव्य-पाठ्य मीडिया में प्रचार !
कि हो रहा भारत निर्माण , भारत के इस निर्माण में मेरा भी हक़ है यार!!
विकाश की गंगा बह रही उल्टी आज,श्रम के सागर से समृद्धि के शिखर पार!
क्रांति की चिंगारी बुझने को है ,पतंगों को पता नहीं किसका है इंतज़ार!!
देशी मर्ज़ विदेशी इलाज़ ;उधार का हलुआ , वतन को अब मंज़ूर नहीं सरकार!
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[3] जात -पांत ,भाषा-मजहब के झगड़ों से, अपना वतन बचाना साथी!
समाजवाद,प्रजातंत्र,धर्मनिरपेक्षता,के नाना दीप जलाना साथी!!
मिल जाए आवश्यक श्रम- फल ,रोजी-रोटी संसाधन जीवन का साथी!
बोलो बच्चो चीख-चीख कर, 'सारे जहां से अच्छा' हिन्दोस्तान हमारा है !!
वर्ना नंगे भूँखों को तो 'सारा जहां हमारा है !
[4] दुनिया भर के महाठगों ने नव -उदार चोला पहना!
पहले गैरों ने लतियाया अब अपनों का क्या कहना!!
भूल हमारी हम पर भारी,शोषण को सहते रहना!
मीरजाफरों जयचंदों को हमने दिया सहारा है!!
देश हमारा नीति विदेशी ,निजीकरण का नारा!
वर्ना नंगे भूँखों को तो सारा जहां हमारा है !!
सबको शिक्षा सबको काम' काम के बदले पूरे दाम!
मिलता रहे मजूरों को उनकी क्षमता से नित काम !1
यही तमन्ना भगत सिंह की यही पैगाम हमारा है!
वर्ना नंगे भूंखे को तो 'सारा जहां हमारा है'!!
श्रीराम तिवारी
बुधवार, 10 अक्टूबर 2012
कामरेड ह्यूगो शावेज को -लाल सलाम।
लगातार तीसरी बार वेनेज़ुएला के राष्ट्रपति निर्वाचित होने पर कामरेड ह्यूगो शावेज और वेनेज़ुएला के तमाम क्रांतिकारी मतदाताओं का क्रांतिकारी अभिवादन .अभिनंदन।। शानदार- इंकलाबी- एकजुटता का वैश्विक समर्थन।।।
जो लोग वैश्विक राजनैतिक,सामाजिक,आर्थिक और भौगोलिक अज्ञानता के शिकार हैं उन्हें यदि ये नहीं मालूम कि वेनेजुएला कहाँ है? ह्यूगो शावेज कौन हैं?समाजवादी व्यवस्था क्या है? तो उनका इसमें कोई कसूर नहीं, हर किसी को हरेक चीज की जानकारी हो ये जरुरी नहीं, किन्तु यदि एक जीवंत राष्ट्र के रूप में अमेरिकन साम्राज्य की नाक के सामने पूंजीवादी विश्व विनाशक नीतियों के सामने कोई जन-कल्याणकारी समतामूलक वैकल्पिक व्यवस्था प्रस्तुत करने वाला हो और सारे संसार में उसकी चर्चा हो किन्तु भारतीय मीडिया में उसे चार पंक्तियाँ भी नसीब न हों तो दो ही कारण समझे जा सकते हैं।एक-यह कि सूचना उपलब्ध नहीं दो-की भारत का मीडिया अमेरिकी सूचनाओं की खुरचन पर जिन्दा है।
मैं जिस शहर में रहता हूँ वहां आधा दर्जन राष्ट्रीय एक दर्जन आंचलिक और सेकड़ों नगरीय समाचार पत्र ,टीवी चेनल्स और सूचना संसाधन उपलब्ध हैं ,देश के महानगरों से प्रदेश के राजधानियों से देश की राजधानी से निकलने वाले अखवारों ,टीवी चेनलों और रेडिओ संचार माध्यमों में भी वो सब कुछ है जो या तो सबको पहले से ही मालूम है [इन्टरनेट,मोबाइल एस एम् एस इत्यादि से] या जो जनता के लिए नितांत अनचाहे परोसा जाने वाला पत्नोंमुखी पूंजीवादी वासी दुर्गंधित कचरा हो। इन माध्यमों में वो सब कुछ है जो विश्व बैंक ,विश्व व्यपार संगठन,अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और 'यूरो-पोंड-डालर ' के कर्ता-धर्ताओं को सुहाता हो। भारत के तथाकथित मुख्य धारा के मीडिया को भी शायद वेनेज़ुएला ,के आम चुनाव से ज्यादा मिस्टर ओबामा और मिस्टर मिट रोमनी के बीच चल रही आगामी इलेक्ट्रोरल प्रक्रिया में ज्यादा अभिरुचि है और इस सन्दर्भ में भारत का प्रिंट,दृश्य,श्रव्य मीडिया वास्तव में तेजी से अधोगति की ओर अग्रसर है।
किस हिरोइन ने किस हीरो से डेटिंग की कौन कहाँ अपनी ऐसी-तैसी करवा रहा है, कितने बलात्कार,कितनी हत्याएं और कितने महा भ्रष्ट्र हैं हम भारत के जन -गण इसे पूरे आठ पेज में छपने का गौरव हासिल है किन्तु वेनेज़ुएला में ह्यूगो शावेज तीसरी बार शानदार चुनाव जीते वो भी अमेरिकी हथकंडों और वैश्विक पूंजीवादी ताकतों के खिलाफ इसे छापने ,प्रकाशित करने की ,इस पर समीक्षा करने की किसी भी संपादक,एंकर या खबर नाबीस को फुर्सत नहीं मिली। क्यों? क्योंकि ये खबर मीडिया मालिकों में दहशत पैदा करती है।उनके विदेशी निवेशक आकाओं और देशी प्रभु वर्ग को असहज करती प्रतीत होती है।क्योंकि ये खबर कि ' वेनेजुएला में कामरेड ह्यूगो शावेज तीसरी बार भारी बहुमत से जीते' वर्तमान सड़ी गली व्यवस्था को ललकारती प्रतीत होती हैं।
वेनेज़ुएला के वर्तमान राष्ट्रपति कॉम ह्यूगो शावेज विगत 8 अक्तूबर-2012 को पुन:तीसरी बार राष्ट्रपति का चुनाव जीत गए।वे "21 वीं शताब्दी का समाजवाद"परियोजना को आगे बढाने का जनादेश हासिल करने में सफल रहे। जैसा कि सुविदित है की कॉम शावेज ने वेनेज़ुएला में तमाम राष्ट्रीय संपदाओं और उद्द्य्मो का राष्ट्रीयकरण पहले ही कर दिया है। दुनिया के तेल उत्पादक देशों में वेनेज़ुएला का स्थान अग्रिम पंक्ति में है।उस पर अमेरिका समेत पूरे पूंजीवादी मुनाफाखोरों की टेडी नज़र बनी हुई है। इस चुनाव में कॉम ह्यूगो शावेज को 54.42% वोट मिले है।नेशनल इलेक्ट्रोरल कौंसिल के अनुसार शावेज के प्रतिद्वंदी -डेमोक्रेटिक यूनिटी रौंड़ताब्ले गठबंधन को मात्र 40%और अन्य को दहाई के अंक तक पहुचने में असफलता हाथ लगी वेनेज़ुएला के 1.10 करोड़ मतदाताओं में से 90% ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया।
पांच घरेलु निरीक्षण समूह और कई अंतर्राष्ट्रीय निरीक्षण एजेंसियों की निगरानी में ये चुनाव सम्पन्न किये गए। इन सभी ने और खास तौर से यु एन ओ के निरीक्षकों ने बड़े बेमन से अपना बोरिया बिस्तर बांधकर 'काराकस' छोड़ा . हुगो शावेज ने इस एतिहासिक हेट्रिक जीत का श्रेय महान स्वाधीनता सेनानी ' साइमन बोलिबार' को समर्पित किया। कॉम ह्यूगो शावेज विगत 14 वर्ष से वेनेजुएला के राष्ट्रपति है और उन्होंने अपने कार्यकाल में न केवल वेनेज़ुएला का बल्कि विश्व के तमाम निर्धन ,अविकसित और आर्थिक संकट से जूझ रहे राष्ट्रों का पथ प्रदर्शन किया है।वे आधुनिक विश्व में विश्व सर्वहारा के वास्तविक हीरो हैं।
उनकी महाविजय पर दुनिया के मेहनतकशों में शोषण उत्पीडन के खिलाफ संघर्ष की चेतना का संचार हुआ है। विश्व में आज पूंजीवादी व्यवस्था अपने चरम पर है और इस व्यवस्था में महंगाई,बेरोजगारी,नाइंसाफी,असमानता लूट और भयानक भृष्टाचार का सर्वत्र बोलबाला है। इस व्यवस्था को ख़त्म किया जा सकता है और विश्व को एक वैकल्पिक व्यवस्था का शानदार माडल उपलब्ध है ,वेनेजुएला के रूप में।कामरेड ह्यूगो शावेज के नेतृत्व में।
श्रीराम तिवारी
सोमवार, 1 अक्टूबर 2012
रविवार, 30 सितंबर 2012
गुरुवार, 20 सितंबर 2012
विदेशी पूँजी निवेश को भारत की जनता कभी मंजूर नहीं करेगी।
आज का राष्ट्रव्यापी बंद भविष्य के लिए कई अर्थों में दूरगामी नतीजों का कारक सावित होगा।भाजपा,सपा,वामपंथ तो मैदान में थे ही किन्तु तृणमूल ,शिव् सेना तथा बीजद को छोड़ बाकी सम्पूर्ण विपक्ष आज 20 सितम्बर -2012 को इस एतिहासिक 'भारत बंद' के लिए सड़कों पर उतर आया था।इस बंद में जहां भाजपा और वामपंथ ने सरकार की अद्द्तन आर्थिक घोषणाओं के बरक्स संघर्ष छेड़ा वहीँ मुलायम ,ममता,मायावती इत्यादि ने अपनी -अपनी राजनीतिक आकांक्षाओं के मद्देनजर इस परिदृश्य में भूमिका अदा की।
यह सर्वविदित है की भारतीय राजनीति में ये गठबंधन सरकारों की मजबूरियों का दौर है।
इस दौर का श्री गणेश तभी हो चूका था जब केंद्र की नरसिम्हाराव सरकार ने डॉ मनमोहनसिंह को वित्त मंत्री बनाया और देश पर विश्व बैंक ,अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाइजेसन की शर्तों को लादने की छूट दे दी। 1992 से 1999 तक केंद्र में राजनैतिक अस्थिरता के दौर में इन नीतियों को लागू नहीं करने दिया गया।इसमें तत्कालीन गठबंधन सरकारों पर वाम के विरोध का असर था। किन्तु वैकल्पिक नीतियों का भी कोई खास रूप आकार नहीं बन पा रहा था।बाद में जब 1999 में भाजपा नीति एनडीए सरकार सत्ता में आई तो उसने कांग्रेस को सेकड़ों मील पीछे छोड़ दिया। एनडीए ने इतने आक्रमक और निर्मम तरीके से इन मनमोहनी आर्थिक नीतियों को लागू किया की उनके सरपरस्त दत्तोपंत ठेंगडी जैसे आर्थिक विचारक इस अकल्पनीय भाजपाई कायाकल्प को सहन नहीं कर पाए और असमय ही देव लोक प्रस्थान कर गए। कांग्रेस ने और मनमोहन ने तो नीतियों का खुलासा अपने चुनावी घोषणा पत्र में भी किया था कि वे यदि सत्ता में आये तो नई आर्थिक नीतियों-विदेशी पूँजी निवेश,श्रम कानून संसोधन,सरकारी संस्थानों का निजीकरन और आयात नीति को सुगम बनायेंगे। किन्तु भाजपा और उसके अलाइंस पार्टनर्स ने इन नीतियों का विपक्ष में रहते हुए तब लगातार विरोध किया था। जैसा कि भाजपा ने आज 20 सितम्बर को किया है।उनसे तब उम्मीद थी की इन विनाशकारी आर्थिक सुझावों को रद्दी की टोकरी के हवाले कर देश और जनता के हित में 'जन-कल्याणकारी ' नीतियों को लागु करेंगे किन्तु अटल सरकार ने सत्ता में आते ही 'सब कुछ बदल डालूँगा ' की तर्ज़ पर तमाम सरकारी उपक्रमों ,जमीनों,खानों,संसाधनों और सेवाओं को ओने -पाने दामों पर अपने वित्तीय पोषकों के हवाले करना शुरू कर दिया।अटल सरकार ने अपने 6 साल के इतिहास में 'इंडिया शाइनिंग और फील गुड' का तमगा अपने गले में लटकाया तो जनता ने भी उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया।जो भाजपा और एनडीए आज 'विदेशी निवेश और आर्थिक सुधारों के खिलाफ भारत बंद में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही है उसी ने अपने कार्यकाल [1999-2004] में अरुण शौरी जैसा एक धाकड़ विनिवेश[?] मंत्री और प्रमोद महाजन जैसा एक संसाधन [बेचो] लूटो मंत्री बना रखा था। आगे क्या गारंटी है कि एनडीए या भाजपा सत्ता में आये तो वे मनमोहन सिंह या विश्व बैंक की नीतियों पर नहीं चलेंगे! तो फिर वे किस नीति पर चलेंगे? क्योंकि दुनिया में अभी तक तो दो ही आर्थिक नीतियाँ वजूद में है। एक-पूंजीवादी,आर्थिक उदारीकरण की नीति।दो-समाजवादी या साम्यवादी ,जनकल्याण की नीति। भाजपा की अपनी कोई आर्थिक नीति नहीं।दरसल वो तो साम्प्रदायिक राजनीती के हिमालय से अवतरित होकर हिंदुत्व के अश्वमेध पर सवार होकर दिग्विजय पर निकली थी किन्तु उसके अश्व को आर्थिक चिंतन की कंगाली के कपिल ने अपनी अश्वशाला में बाँध रखा है। अब उसे एक आर्थिक नीति के भागीरथ की दरकार है जो उसके सगर् पुत्रों को तार सके!
दरसल डॉ मनमोहन सिंह जिन आर्थिक सुधारों पर अति विश्वाश के सिंड्रोम से पीड़ित हैं भाजपा और एनडीए भी उन विषाणुओं से असम्प्रक्त नहीं है। दोनों का चिंतन ,दिशा और दशा एक जैसी है।फर्क सिर्फ इतना भर है कि जहां भाजपा साम्प्रदायिकता के अभिशाप से ग्रस्त है वहीँ कांग्रेस भृष्टाचार के गर्त में आकंठ डूबी हुई है। क्षेत्रीय दलों में मुलायम ,माया,लालू,पासवान, ममता शिवसेना,अकाली और नेशनल कांफ्रेंस ,द्रुमुक अना द्रुमुक,सबके सब घोर अवसरवादी जातिवादी ,भाषावादी,क्षेत्रीयतावादी और परिवारवादी हैं इन दलों को आर्थिक उदारीकरण ,विनिवेश या आर्थिक सुधार की चिड़िया से क्या लेना -देना? सबके सब अपने निहित स्वार्थों की हांडी उसी चूल्हे पर चढाने को आतुर हैं जिस पर अतीत में कभी यूपीए की कभी एनडीए की तो कभी तीसरे मोर्चे की चढ़ चुकी है। देश में केवल वामपंथ को केंद्र में सत्ता नसीब नहीं हुई जबकि उनके पास शानदार वैकल्पिक आर्थिक नीति मौजूद है। वास्तव में 20 सितम्बर -2012 को भाजपा और एनडीए ने कोई वैकल्पिक आर्थिक नीति के लिए भारत बंद में शिरकत नहीं की बल्कि यूपीए सरकार पर उसके गठबंधन दलों की निहित स्वार्थजन्य बदनीयतों की प्रत्याषा के बरक्स कांग्रेश को सत्ता से बाहर कर खुद सत्ता में विराजने की विपक्षी आकांक्षा का प्रदर्शन भर किया है। जिन मुद्दों पर ये भारत बंद किया गया उस पर देश का मजदूर आन्दोलन विगत 20 साल से लगातार संघर्ष ,हड़ताल और बंद करता आ रहा है। इसी साल 28 फरवरी को देश की तमाम श्रमिक संघों ने एकजुट हड़ताल की थी। इन्हीं मुद्दों पर वामपंथ ने यूपी ऐ प्रथम के समय कांग्रेस की मनमानी नहीं चलने दी थी। बाहर से समर्थन की शर्तों का उलंघन किये जाने पर वामपंथ को भले ही चुनावी क्षेत्र में पराभव का सामना करना पड़ा हो किन्तु आज उन्ही की नीतियों पर एनडीए और देश के अन्य राजनीतक ग्रुपों को पुनर्विचार करना पड़ रहा है। क्योंकि पूंजीवाद का विकल्प पूंजीवाद नहीं हो सकता .पूंजीवाद का विकल्प केवल और केवल साम्यवाद या समाजवाद ही हो सकता है।
वामपंथ के नारे और वामपंथ के तेवर चुराकर ममता बनर्जी भले ही उस बन्दर की तरह नक़ल करती रहतीं हैं जिसने नाइ की नकल कर उस्तरे से अपना गला काट लिया था किन्तु देश और दुनिया जानती है की न केवल विदेशी पूँजी निवेश अपितु समग्र आर्थिक सुधारों का वादा उन्होंने श्रीमती हिलेरी क्लिंटन से खुद रूबरू होकर किया है।वे अस्थिर ता की मूर्ती है,दिखावे का विरोध करतीं हैं . राष्ट्रपति का चुनाव हो उपराष्ट्रपति का चुनाव हो रेल मंत्रालय में अपने चहेते को बिठाने का सवाल हो या बंगाल को कोई विशेष आर्थिक पैकेज का सवाल हो हर प्रकरण में एक ही बात परिलक्षित हुई की ममता पक्की राजनीतक ब्लैक मेलर हैं।उन्हें खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश ,आर्थिक सुधार या देश की राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय चुनौतियों से कोई वास्ता नहीं। प्रधानमंत्री और केंद्र सरकार को डराकर अपना उल्लू सीधा करते -करते ममता भूल गई की मनमोहन सिंह को अब इस दौर में उनकी तो क्या पूरे देश की जनता की भी परवाह नहीं है। क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी ' स्टेंडर्ड एंड पुअर्स ' ने 2-3 बार लगातार निवेश के लिए भारत की रेटिंग घटा दी है। विगत 10 साल से अंतर्राष्ट्रीय वित्त पूँजी के लिए निवेश का आकर्षक ठिकाना रहे भारत का दर्ज़ा उसने 'स्थिर' से घटाकर 'नकारात्मक' कर दिया है।अब इस एजेंसी ने भारत की रेटिंग और घटाकर बी-बी-बी [-] कर दी है। यह रेटिंग लिस्ट में सबसे निचली हैसियत इन्द्राज है। इसके बाद सिर्फ 'कबाड़'का दर्जा शेष बचा है।
भारत की रेटिंग गिराए जाने का यह फैसला पिछले दिनों जब वाशिंगटन में प्रतिध्वनित हुआ तो भारत के वित्त सलाहकार ने ' गठबंधन सरकार की वजह' बताया। उन्होंने आर्थिक सुधारों की गति तेज होने और आर्थिक वृद्धि दर बढ़ने की सम्भावना 2014 के आम चुनावों के बाद बताकर न केवल मनमोहन सरकार को रुसवा किया बल्कि पूरे देश को इस स्थिति में ला दिया की आज इसी मुद्दे पर पूरा देश आंदोलित हो रहा है।
स्वभाविक है कि भारत के नव उदारवादी आर्थिक सुधारों के पैरोकार तत्परता से ' डेमेज कंट्रोल' में जुट गए और आनन् फानन डीज़ल में सब्सिडी घटाने,सार्वजनिक उपक्रमों में देशी -विदेशी पूँजी निवेश को छूट देने,खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश करने की घोषणाएं कर दीं। आर्थिक सुधारों पर मनमोहन सरकार से 'कड़े फेसले' लेने की अपेक्षा रखने वाला अमेरिका और लन्दन का मीडिया आज बेहद खुश है क्योंकि आंशिक ही सही उनके आर्थिक संकट का बोझ कुछ हद तक भारत जैसी उभरती हुई अर्थव्यवस्था पर डाले जाने का रास्ता कुछ तो साफ़ हुआ।
हालांकि यूपीए के विगत आठ साल ओर एनडीए के 6 साल इन्ही पूंजीवादी आर्थिक नीतियों को समर्पित रहे हैं। फिर भी कभी वामपंथ ने कभी गठबंधन सहयोगियों ने अपने बलबूते उन विनाशकारी नीतियों को पूरी तरह लागू नहीं होने दिया। किन्तु फिर भी प्रकारांतर से नव-उदारवादी नीतियों को लागू करने का नतीजा यह हुआ कि कुछ अमीर लोग और ज्यादा बड़े अमीर होते चले गए।गरीब और ज्यादा गरीब होता चला गया। मोंटेकसिंह या चिदम्बरम हों या स्वयम मनमोहनसिंह सभी को यह तो स्वीकार है कि देश में विकाश की गंगा बह रही है किन्तु उन्हें यह स्वीकार नहीं कि देश की अधिसंख्य जनता त्राहि-त्राहि कर रही है और देश की संपदा देशी विदेशी पूंजीपतियों के उदार में समां गई है।
इससे देश को फर्क पड़ता है कि मुखेश अम्बानी ने 27 मंजिला भवन बनवाया किन्तु करोड़ों हैं जिनके पास न तो जमीन है,न मकान है,न रोजी-रोटी का साधन है और न ही 'हो रहा भारत निर्माण ,भारत के इस निर्माण में"उनका कोई हक है। जबसे उदारीकरण की नीति लागू हुई तबसे अब तक 20 सालों में देश में 250000 किसान आत्म हत्या कर चुके हैं . सरकार द्वारा अपनाई जा रही और देशी विदेशी सरमायेदारों द्वारा जबरिया थोपी जा रही आर्थिक नीतियों के कारण भ्रष्टाचार परवान चढ़ा है। पूंजीपति वर्ग और बड़े जोत की जमीनों के मालिक सत्तसीन वर्ग के वित्त पोषक होने से सरकार उनके मार्ग की बाधाएं हटाने के लिए तत्पर है।इसी वजह से आवश्यक वस्तुओं के दाम बढ़ते रहते हैं किन्तु सरकार मूक दृष्टा बनी रहती है। मेहनतकश जनता की वास्तविक जीवन की समस्याओं का कोई समाधान निकाले बगैर सिर्फ विदेशी मीडिया या विदेशी पूँजी के अवाव में वर्तमान सरकार एलपीजी सिलेंडरों में कटोती ,सब्सिडी में कटोती,डीजल के भावों में वृद्धि तो कर ही चुकी है अब खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश की छुट देकर अपने सत्ताच्युत होने का इंतज़ाम का रही है।
देश का प्रबुद्ध वर्ग जानता है कि राजकोषीय घटा तो बहाना है असल में इन आर्थिक सुधारों से जितनी वित्तीय स्थति में सुधार का अनुमान लगाया जा रहा है उससे लाखों करोड़ों गुना तो पूंजीपतियों को सेकड़ों बार छुट दी जा चुकी है अब जबकि आर्थिक सुधारों के मसीहा को विदेशी आकाओं ने ललकारा तो 'सिघ इज किंग ' होने को उतावले हो रहे हैं।
श्रीराम तिवारी
आज का राष्ट्रव्यापी बंद भविष्य के लिए कई अर्थों में दूरगामी नतीजों का कारक सावित होगा।भाजपा,सपा,वामपंथ तो मैदान में थे ही किन्तु तृणमूल ,शिव् सेना तथा बीजद को छोड़ बाकी सम्पूर्ण विपक्ष आज 20 सितम्बर -2012 को इस एतिहासिक 'भारत बंद' के लिए सड़कों पर उतर आया था।इस बंद में जहां भाजपा और वामपंथ ने सरकार की अद्द्तन आर्थिक घोषणाओं के बरक्स संघर्ष छेड़ा वहीँ मुलायम ,ममता,मायावती इत्यादि ने अपनी -अपनी राजनीतिक आकांक्षाओं के मद्देनजर इस परिदृश्य में भूमिका अदा की।
यह सर्वविदित है की भारतीय राजनीति में ये गठबंधन सरकारों की मजबूरियों का दौर है।
इस दौर का श्री गणेश तभी हो चूका था जब केंद्र की नरसिम्हाराव सरकार ने डॉ मनमोहनसिंह को वित्त मंत्री बनाया और देश पर विश्व बैंक ,अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाइजेसन की शर्तों को लादने की छूट दे दी। 1992 से 1999 तक केंद्र में राजनैतिक अस्थिरता के दौर में इन नीतियों को लागू नहीं करने दिया गया।इसमें तत्कालीन गठबंधन सरकारों पर वाम के विरोध का असर था। किन्तु वैकल्पिक नीतियों का भी कोई खास रूप आकार नहीं बन पा रहा था।बाद में जब 1999 में भाजपा नीति एनडीए सरकार सत्ता में आई तो उसने कांग्रेस को सेकड़ों मील पीछे छोड़ दिया। एनडीए ने इतने आक्रमक और निर्मम तरीके से इन मनमोहनी आर्थिक नीतियों को लागू किया की उनके सरपरस्त दत्तोपंत ठेंगडी जैसे आर्थिक विचारक इस अकल्पनीय भाजपाई कायाकल्प को सहन नहीं कर पाए और असमय ही देव लोक प्रस्थान कर गए। कांग्रेस ने और मनमोहन ने तो नीतियों का खुलासा अपने चुनावी घोषणा पत्र में भी किया था कि वे यदि सत्ता में आये तो नई आर्थिक नीतियों-विदेशी पूँजी निवेश,श्रम कानून संसोधन,सरकारी संस्थानों का निजीकरन और आयात नीति को सुगम बनायेंगे। किन्तु भाजपा और उसके अलाइंस पार्टनर्स ने इन नीतियों का विपक्ष में रहते हुए तब लगातार विरोध किया था। जैसा कि भाजपा ने आज 20 सितम्बर को किया है।उनसे तब उम्मीद थी की इन विनाशकारी आर्थिक सुझावों को रद्दी की टोकरी के हवाले कर देश और जनता के हित में 'जन-कल्याणकारी ' नीतियों को लागु करेंगे किन्तु अटल सरकार ने सत्ता में आते ही 'सब कुछ बदल डालूँगा ' की तर्ज़ पर तमाम सरकारी उपक्रमों ,जमीनों,खानों,संसाधनों और सेवाओं को ओने -पाने दामों पर अपने वित्तीय पोषकों के हवाले करना शुरू कर दिया।अटल सरकार ने अपने 6 साल के इतिहास में 'इंडिया शाइनिंग और फील गुड' का तमगा अपने गले में लटकाया तो जनता ने भी उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया।जो भाजपा और एनडीए आज 'विदेशी निवेश और आर्थिक सुधारों के खिलाफ भारत बंद में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही है उसी ने अपने कार्यकाल [1999-2004] में अरुण शौरी जैसा एक धाकड़ विनिवेश[?] मंत्री और प्रमोद महाजन जैसा एक संसाधन [बेचो] लूटो मंत्री बना रखा था। आगे क्या गारंटी है कि एनडीए या भाजपा सत्ता में आये तो वे मनमोहन सिंह या विश्व बैंक की नीतियों पर नहीं चलेंगे! तो फिर वे किस नीति पर चलेंगे? क्योंकि दुनिया में अभी तक तो दो ही आर्थिक नीतियाँ वजूद में है। एक-पूंजीवादी,आर्थिक उदारीकरण की नीति।दो-समाजवादी या साम्यवादी ,जनकल्याण की नीति। भाजपा की अपनी कोई आर्थिक नीति नहीं।दरसल वो तो साम्प्रदायिक राजनीती के हिमालय से अवतरित होकर हिंदुत्व के अश्वमेध पर सवार होकर दिग्विजय पर निकली थी किन्तु उसके अश्व को आर्थिक चिंतन की कंगाली के कपिल ने अपनी अश्वशाला में बाँध रखा है। अब उसे एक आर्थिक नीति के भागीरथ की दरकार है जो उसके सगर् पुत्रों को तार सके!
दरसल डॉ मनमोहन सिंह जिन आर्थिक सुधारों पर अति विश्वाश के सिंड्रोम से पीड़ित हैं भाजपा और एनडीए भी उन विषाणुओं से असम्प्रक्त नहीं है। दोनों का चिंतन ,दिशा और दशा एक जैसी है।फर्क सिर्फ इतना भर है कि जहां भाजपा साम्प्रदायिकता के अभिशाप से ग्रस्त है वहीँ कांग्रेस भृष्टाचार के गर्त में आकंठ डूबी हुई है। क्षेत्रीय दलों में मुलायम ,माया,लालू,पासवान, ममता शिवसेना,अकाली और नेशनल कांफ्रेंस ,द्रुमुक अना द्रुमुक,सबके सब घोर अवसरवादी जातिवादी ,भाषावादी,क्षेत्रीयतावादी और परिवारवादी हैं इन दलों को आर्थिक उदारीकरण ,विनिवेश या आर्थिक सुधार की चिड़िया से क्या लेना -देना? सबके सब अपने निहित स्वार्थों की हांडी उसी चूल्हे पर चढाने को आतुर हैं जिस पर अतीत में कभी यूपीए की कभी एनडीए की तो कभी तीसरे मोर्चे की चढ़ चुकी है। देश में केवल वामपंथ को केंद्र में सत्ता नसीब नहीं हुई जबकि उनके पास शानदार वैकल्पिक आर्थिक नीति मौजूद है। वास्तव में 20 सितम्बर -2012 को भाजपा और एनडीए ने कोई वैकल्पिक आर्थिक नीति के लिए भारत बंद में शिरकत नहीं की बल्कि यूपीए सरकार पर उसके गठबंधन दलों की निहित स्वार्थजन्य बदनीयतों की प्रत्याषा के बरक्स कांग्रेश को सत्ता से बाहर कर खुद सत्ता में विराजने की विपक्षी आकांक्षा का प्रदर्शन भर किया है। जिन मुद्दों पर ये भारत बंद किया गया उस पर देश का मजदूर आन्दोलन विगत 20 साल से लगातार संघर्ष ,हड़ताल और बंद करता आ रहा है। इसी साल 28 फरवरी को देश की तमाम श्रमिक संघों ने एकजुट हड़ताल की थी। इन्हीं मुद्दों पर वामपंथ ने यूपी ऐ प्रथम के समय कांग्रेस की मनमानी नहीं चलने दी थी। बाहर से समर्थन की शर्तों का उलंघन किये जाने पर वामपंथ को भले ही चुनावी क्षेत्र में पराभव का सामना करना पड़ा हो किन्तु आज उन्ही की नीतियों पर एनडीए और देश के अन्य राजनीतक ग्रुपों को पुनर्विचार करना पड़ रहा है। क्योंकि पूंजीवाद का विकल्प पूंजीवाद नहीं हो सकता .पूंजीवाद का विकल्प केवल और केवल साम्यवाद या समाजवाद ही हो सकता है।
वामपंथ के नारे और वामपंथ के तेवर चुराकर ममता बनर्जी भले ही उस बन्दर की तरह नक़ल करती रहतीं हैं जिसने नाइ की नकल कर उस्तरे से अपना गला काट लिया था किन्तु देश और दुनिया जानती है की न केवल विदेशी पूँजी निवेश अपितु समग्र आर्थिक सुधारों का वादा उन्होंने श्रीमती हिलेरी क्लिंटन से खुद रूबरू होकर किया है।वे अस्थिर ता की मूर्ती है,दिखावे का विरोध करतीं हैं . राष्ट्रपति का चुनाव हो उपराष्ट्रपति का चुनाव हो रेल मंत्रालय में अपने चहेते को बिठाने का सवाल हो या बंगाल को कोई विशेष आर्थिक पैकेज का सवाल हो हर प्रकरण में एक ही बात परिलक्षित हुई की ममता पक्की राजनीतक ब्लैक मेलर हैं।उन्हें खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश ,आर्थिक सुधार या देश की राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय चुनौतियों से कोई वास्ता नहीं। प्रधानमंत्री और केंद्र सरकार को डराकर अपना उल्लू सीधा करते -करते ममता भूल गई की मनमोहन सिंह को अब इस दौर में उनकी तो क्या पूरे देश की जनता की भी परवाह नहीं है। क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी ' स्टेंडर्ड एंड पुअर्स ' ने 2-3 बार लगातार निवेश के लिए भारत की रेटिंग घटा दी है। विगत 10 साल से अंतर्राष्ट्रीय वित्त पूँजी के लिए निवेश का आकर्षक ठिकाना रहे भारत का दर्ज़ा उसने 'स्थिर' से घटाकर 'नकारात्मक' कर दिया है।अब इस एजेंसी ने भारत की रेटिंग और घटाकर बी-बी-बी [-] कर दी है। यह रेटिंग लिस्ट में सबसे निचली हैसियत इन्द्राज है। इसके बाद सिर्फ 'कबाड़'का दर्जा शेष बचा है।
भारत की रेटिंग गिराए जाने का यह फैसला पिछले दिनों जब वाशिंगटन में प्रतिध्वनित हुआ तो भारत के वित्त सलाहकार ने ' गठबंधन सरकार की वजह' बताया। उन्होंने आर्थिक सुधारों की गति तेज होने और आर्थिक वृद्धि दर बढ़ने की सम्भावना 2014 के आम चुनावों के बाद बताकर न केवल मनमोहन सरकार को रुसवा किया बल्कि पूरे देश को इस स्थिति में ला दिया की आज इसी मुद्दे पर पूरा देश आंदोलित हो रहा है।
स्वभाविक है कि भारत के नव उदारवादी आर्थिक सुधारों के पैरोकार तत्परता से ' डेमेज कंट्रोल' में जुट गए और आनन् फानन डीज़ल में सब्सिडी घटाने,सार्वजनिक उपक्रमों में देशी -विदेशी पूँजी निवेश को छूट देने,खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश करने की घोषणाएं कर दीं। आर्थिक सुधारों पर मनमोहन सरकार से 'कड़े फेसले' लेने की अपेक्षा रखने वाला अमेरिका और लन्दन का मीडिया आज बेहद खुश है क्योंकि आंशिक ही सही उनके आर्थिक संकट का बोझ कुछ हद तक भारत जैसी उभरती हुई अर्थव्यवस्था पर डाले जाने का रास्ता कुछ तो साफ़ हुआ।
हालांकि यूपीए के विगत आठ साल ओर एनडीए के 6 साल इन्ही पूंजीवादी आर्थिक नीतियों को समर्पित रहे हैं। फिर भी कभी वामपंथ ने कभी गठबंधन सहयोगियों ने अपने बलबूते उन विनाशकारी नीतियों को पूरी तरह लागू नहीं होने दिया। किन्तु फिर भी प्रकारांतर से नव-उदारवादी नीतियों को लागू करने का नतीजा यह हुआ कि कुछ अमीर लोग और ज्यादा बड़े अमीर होते चले गए।गरीब और ज्यादा गरीब होता चला गया। मोंटेकसिंह या चिदम्बरम हों या स्वयम मनमोहनसिंह सभी को यह तो स्वीकार है कि देश में विकाश की गंगा बह रही है किन्तु उन्हें यह स्वीकार नहीं कि देश की अधिसंख्य जनता त्राहि-त्राहि कर रही है और देश की संपदा देशी विदेशी पूंजीपतियों के उदार में समां गई है।
इससे देश को फर्क पड़ता है कि मुखेश अम्बानी ने 27 मंजिला भवन बनवाया किन्तु करोड़ों हैं जिनके पास न तो जमीन है,न मकान है,न रोजी-रोटी का साधन है और न ही 'हो रहा भारत निर्माण ,भारत के इस निर्माण में"उनका कोई हक है। जबसे उदारीकरण की नीति लागू हुई तबसे अब तक 20 सालों में देश में 250000 किसान आत्म हत्या कर चुके हैं . सरकार द्वारा अपनाई जा रही और देशी विदेशी सरमायेदारों द्वारा जबरिया थोपी जा रही आर्थिक नीतियों के कारण भ्रष्टाचार परवान चढ़ा है। पूंजीपति वर्ग और बड़े जोत की जमीनों के मालिक सत्तसीन वर्ग के वित्त पोषक होने से सरकार उनके मार्ग की बाधाएं हटाने के लिए तत्पर है।इसी वजह से आवश्यक वस्तुओं के दाम बढ़ते रहते हैं किन्तु सरकार मूक दृष्टा बनी रहती है। मेहनतकश जनता की वास्तविक जीवन की समस्याओं का कोई समाधान निकाले बगैर सिर्फ विदेशी मीडिया या विदेशी पूँजी के अवाव में वर्तमान सरकार एलपीजी सिलेंडरों में कटोती ,सब्सिडी में कटोती,डीजल के भावों में वृद्धि तो कर ही चुकी है अब खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश की छुट देकर अपने सत्ताच्युत होने का इंतज़ाम का रही है।
देश का प्रबुद्ध वर्ग जानता है कि राजकोषीय घटा तो बहाना है असल में इन आर्थिक सुधारों से जितनी वित्तीय स्थति में सुधार का अनुमान लगाया जा रहा है उससे लाखों करोड़ों गुना तो पूंजीपतियों को सेकड़ों बार छुट दी जा चुकी है अब जबकि आर्थिक सुधारों के मसीहा को विदेशी आकाओं ने ललकारा तो 'सिघ इज किंग ' होने को उतावले हो रहे हैं।
श्रीराम तिवारी
बुधवार, 12 सितंबर 2012
भारत में खाद्यान्न भण्डारण : एक चुनौती
इस साल भारत में खाद्यान्न उत्पादन में और खास तौर से गेंहूँ के उत्पादन में रिकार्ड बृद्धि हुई है।गोदाम ठसाठस भरे हैं,निजी और सरकारी अन्न भंडारों में जगह नहीं बची . कुछ अनाज -गेंहूँ कतिपय राज्यों में खुले में सड़ रहा है।इस अनाज को वाले-वाले भृष्ट अधिकारी बाज़ार में भी ठिकाने लगा रहे हैं। भंडारण की माकूल व्यवस्था का आभाव और ऍफ़ सी आई इत्यादि निगमों की 'राम भरोसे' वाली मानसिकता के कारण गेंहूँ का एक बड़ा हिस्सा 'अन्न का कुन्न ' हो रहा है। दूसरी ओर देश में लाखों लोग दिन भर मेह्नत करने के बाद एक वक्त का भरपेट भोजन याने 'मानक आहार' पाने में असमर्थ हैं।सत्ता सीन नेतृत्व तो अपने समर्थक घटक दलों और कॉरपोरेट घरानों के बीच चकरघिन्नी हो रहा है। विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी सिर्फ विपक्ष होने का स्वांग भर रही है। वामपंथी दलों ओर श्रम संगठनों ने अवश्य इस ओर ध्यान आकर्षित किया है किन्तु उन्हें मीडिया का सहयोग नहीं मिला और उनके आन्दोलन' नक्कारखाने में तूती ' की आवाज बनकर रह गए।
बाज मर्तवा सुप्रीम कोर्ट ने जरुर इस ओर कार्यपालिका और व्यवस्थापिका का ध्यान आकर्षण किया किन्तु किसी के कान में जू नहीं रेंगी।अभी भी देश का पूंजीवादी विपक्ष और मीडिया उन काल्पनिक मुद्दों को हवा दे रहा है जिनका वास्तविकता और सामाजिक सरोकारों से कोई वास्ता नहीं।कहीं कार्टून बनाने ,कहीं सोशल मीडिया पर अंकुश लगाने, कहीं कोलगेट काण्ड पर संसद न चलने देने , कभी जंतर-मंतर और रामलीला मैदान पर अपनी अपनी बाजीगरी दिखाकर भृष्टाचार और कालेधन पर रात-दिन बकवास करने वाले स्वनामधन्य [अ]नेता भी अन्न भण्डारण ,उचित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था , मूल्य नियंत्रण और सुखा बाढ़ की समस्याओं पर एक शब्द नहीं बोलते। इसीलिए यह कहावत वन गई है की ' ये देश चल रहा भगवान् भरोसे' खाद्यान्न का रिकार्ड उत्पादन और भुखमरी दोनों ही यदि दुनिया में कहीं एक साथ हैं तो वो मुल्क है भारत।
इस साल भारत की उपरोक्त तस्वीर को अब हम अपने पड़ोसी चीन के साथ विजन करके देखते हैं। चीन ही क्यों लगभग सारी दुनिया में सुखा -बाढ़ जनित खाद्यान संकट मुह बाए खड़ा है। वैश्विक
स्तर पर अनाजों का उत्पादन न केवल घटा है बल्कि स्थिति नाज़ुक बनी हुई है।चीन ने लगभग 5 दशक तक महंगाई को लगातार काबू में रखा। अपनी विशाल आबादी और श्रम शक्ति को न केवल राजनैतिक रूप से परिपक्व किया , बल्कि सामाजिक और आर्थिक रूप से हर क्षेत्र में असमानता और गैर-बराबरी को ध्वस्त करते हुए चीन ने खेल जगत ,संचार सूचना प्रोदौगिकी तथा सेन्य क्षेत्र में विश्व कीर्तिमान स्थापित किये हैं। हाल के दिनों में आई भूकंप,बाढ़ सुखा इत्यादि प्राकृतिक आपदाओं ने चीन को भी पूंजीवादी बीमारियों ने आ घेरा है।
दुनिया भर में बढ़ रहीं अनाज की कीमतों और चीन में घटे खाद्यान उत्पादन ने महंगाई का दामन थाम लिया है। भले ही अभी महंगाई दर 2% के आसपास है किन्तु आखिर मौत ने घर तो देख ही लिया है। चीन को अपने साम्यवादी ढाँचे में घुसपेठ कर रही पूंजीवादी 'यूनियन कार्वईड ' के हमले से सावधान रहना चाहिए। वर्ना साम्यवादी लाल क्रांति [1940-47] के पूर्व के चीन से बदतर हालातों के लिए तैय्यार रहना चाहिए।
भारत को विदेशी ताकतों के गुलाम रहने की परम्पराओं की वेशुमार बीमारियाँ घेरे हुए हैं। कुछ आज़ादी के बाद नेताओं अफसरों के हरामीपन ने देश की तस्वीर बदरंग कर दी है ऐंसे में आजू बाजू के देशों में भुखमरी या राजनेतिक उथलपुथल का होना भारत की सेहत के लिए ठीक नहीं। भारत को अपनी खाद्यान्न व्यवस्था पर प्रथमिकता और दूरदर्शिता के आधार पर ध्यान केन्द्रित कर अन्न के प्रत्येक कण की कद्र करनी चाहिए।
क्योंकि 'अन्न ही इश्वर है' अन्न ,जल और प्राण वायु तो भारत में प्रकृति ने सहज ही उपलब्ध करा रखे हैं। केवल एक काम बाकी था और उसे करने का हक कुदरत ने हम देशवासियों के लिए दिया था।जो हम अभी तक नहीं कर पाए।10 सह्श्त्र वर्षों में भी . हम उतना भी नहीं कर सके जो चीन ने कर दिखाया। आज एक तरफ भारत है जहां अनाज खुले आसमान के नीचे बारिस में सड़ रहा है और 70 फीसदी आबादी गरीबी की रेखा से नीचे है।दूसरी ओर चीन है जहां प्रुकृतिजन्य खाद्यान्न कासंकट है किन्तु कोई भूंखा नही सोयेगा और अन्न का एक दानाभी बेकार नहीं जाने दिया जाएगा।
श्रीराम तिवारी
बाज मर्तवा सुप्रीम कोर्ट ने जरुर इस ओर कार्यपालिका और व्यवस्थापिका का ध्यान आकर्षण किया किन्तु किसी के कान में जू नहीं रेंगी।अभी भी देश का पूंजीवादी विपक्ष और मीडिया उन काल्पनिक मुद्दों को हवा दे रहा है जिनका वास्तविकता और सामाजिक सरोकारों से कोई वास्ता नहीं।कहीं कार्टून बनाने ,कहीं सोशल मीडिया पर अंकुश लगाने, कहीं कोलगेट काण्ड पर संसद न चलने देने , कभी जंतर-मंतर और रामलीला मैदान पर अपनी अपनी बाजीगरी दिखाकर भृष्टाचार और कालेधन पर रात-दिन बकवास करने वाले स्वनामधन्य [अ]नेता भी अन्न भण्डारण ,उचित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था , मूल्य नियंत्रण और सुखा बाढ़ की समस्याओं पर एक शब्द नहीं बोलते। इसीलिए यह कहावत वन गई है की ' ये देश चल रहा भगवान् भरोसे' खाद्यान्न का रिकार्ड उत्पादन और भुखमरी दोनों ही यदि दुनिया में कहीं एक साथ हैं तो वो मुल्क है भारत।
इस साल भारत की उपरोक्त तस्वीर को अब हम अपने पड़ोसी चीन के साथ विजन करके देखते हैं। चीन ही क्यों लगभग सारी दुनिया में सुखा -बाढ़ जनित खाद्यान संकट मुह बाए खड़ा है। वैश्विक
स्तर पर अनाजों का उत्पादन न केवल घटा है बल्कि स्थिति नाज़ुक बनी हुई है।चीन ने लगभग 5 दशक तक महंगाई को लगातार काबू में रखा। अपनी विशाल आबादी और श्रम शक्ति को न केवल राजनैतिक रूप से परिपक्व किया , बल्कि सामाजिक और आर्थिक रूप से हर क्षेत्र में असमानता और गैर-बराबरी को ध्वस्त करते हुए चीन ने खेल जगत ,संचार सूचना प्रोदौगिकी तथा सेन्य क्षेत्र में विश्व कीर्तिमान स्थापित किये हैं। हाल के दिनों में आई भूकंप,बाढ़ सुखा इत्यादि प्राकृतिक आपदाओं ने चीन को भी पूंजीवादी बीमारियों ने आ घेरा है।
दुनिया भर में बढ़ रहीं अनाज की कीमतों और चीन में घटे खाद्यान उत्पादन ने महंगाई का दामन थाम लिया है। भले ही अभी महंगाई दर 2% के आसपास है किन्तु आखिर मौत ने घर तो देख ही लिया है। चीन को अपने साम्यवादी ढाँचे में घुसपेठ कर रही पूंजीवादी 'यूनियन कार्वईड ' के हमले से सावधान रहना चाहिए। वर्ना साम्यवादी लाल क्रांति [1940-47] के पूर्व के चीन से बदतर हालातों के लिए तैय्यार रहना चाहिए।
भारत को विदेशी ताकतों के गुलाम रहने की परम्पराओं की वेशुमार बीमारियाँ घेरे हुए हैं। कुछ आज़ादी के बाद नेताओं अफसरों के हरामीपन ने देश की तस्वीर बदरंग कर दी है ऐंसे में आजू बाजू के देशों में भुखमरी या राजनेतिक उथलपुथल का होना भारत की सेहत के लिए ठीक नहीं। भारत को अपनी खाद्यान्न व्यवस्था पर प्रथमिकता और दूरदर्शिता के आधार पर ध्यान केन्द्रित कर अन्न के प्रत्येक कण की कद्र करनी चाहिए।
क्योंकि 'अन्न ही इश्वर है' अन्न ,जल और प्राण वायु तो भारत में प्रकृति ने सहज ही उपलब्ध करा रखे हैं। केवल एक काम बाकी था और उसे करने का हक कुदरत ने हम देशवासियों के लिए दिया था।जो हम अभी तक नहीं कर पाए।10 सह्श्त्र वर्षों में भी . हम उतना भी नहीं कर सके जो चीन ने कर दिखाया। आज एक तरफ भारत है जहां अनाज खुले आसमान के नीचे बारिस में सड़ रहा है और 70 फीसदी आबादी गरीबी की रेखा से नीचे है।दूसरी ओर चीन है जहां प्रुकृतिजन्य खाद्यान्न कासंकट है किन्तु कोई भूंखा नही सोयेगा और अन्न का एक दानाभी बेकार नहीं जाने दिया जाएगा।
श्रीराम तिवारी
मंगलवार, 4 सितंबर 2012
मंगलवार, 28 अगस्त 2012
कॉम. ए. के. हंगल को विनम्र श्रद्धांजलि
कौमी एकता के प्रवल पक्षधर और भारत की
सांझी विरासत के सजग प्रहरी-
फिल्म अभिनेता ,चिन्तक ,नाटककार ,फ्रीडम फाइटर और कामरेड
अवतारकृष्ण हंगल का 26 अगस्त -2012 को मुंबई
में देहांत हो गया. राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में यह खबर या
तो नदारत रही या फिर हासिये पर. इलेक्ट्रोनिक मीडिया और कतिपय सजग टी
वी चेनल्स ने भी रस्म अदायगी के बतौर
ले-दे कर दो-चार मिनिट ही उनकी श्ख्शियत पर कम और उनकी शोले या गुड्डी
जैसी फिल्मों पर अधिक जाया किये। मैं चाहते हुए भी फ़िल्में नहीं
देख पाता जिन फिल्मों के कारण भारत के फिफ्टी प्लस एजर्स नर-नारी
ऐ के हंगल के मुरीद हैं उनकी वजह से मेरा और हंगल का नाता जीरो बटा
सन्नाटा है। मैं तो उनके प्रगातिशील विचारों और यथार्थ
बोधता से अभिभूत रहा हूँ।
गोरा रंग, सुर्ख चेहरा, पोपला मुखमंडल ,तेजस्वी आँखें,सफाचट गंजा सर,कड़क आवाज और अक्सर धोती-कुरते में आम हिन्दुतानी का रोल करने वाले अवतार कृष्ण हंगल को फ़िल्मी परदे पर देख-देख कर मेरी पीढी के स्त्री-पुरुष अब प्रौढ़ता की ओर अग्रसर हैं . आज जबकि ऐ के हंगल नहीं हैं तो भी लोग उनकी इसी छवि को धारण किये हुए हैं जो कि हंगल के व्यक्तित्व का सिर्फ एकांश मात्र है. जब तक में जनवादी लेखक संघ या प्रगतिशील लेखकों के साथ नहीं जुड़ा था तब तक यही समझता था कि हंगल [रहीम चाचा] कोई मुसलमान कलाकार हैं. उनके अधिकांश किरदार कुछ इस तरह अभिनीत हुए हैं की हंगल ने मानों उस किरदार को यथार्थ में जिया हो. खेर ... हंगल साब शुद्ध कश्मीरी पंडित थे.कश्मीरी भाषा में हंगल का मतलब हिरन या मृग होता है.हंगल के पूर्वजों ने तीन सौ साल पहले ठीक नेहरुओं की तरह कश्मीर छोड़ा और लाख लखनऊ आ वसे. उनके पिताजी अंग्रजों की नौकरी में पेशावर में पदस्थ थे।वहीँ जन्म हुआ था 1917 में अवतार कृष्ण हंगल का.
किशोर अवस्था में ही पढाई के साथ-साथ टेलरिंग इत्यादि कामों में आजीविका के मेहनत मशक्कात वाले अंदाज़ को सहज ही ह्र्द्यगगामी कर चुके श्री हंगल जी को बेहद जद्दोजहद से गुजरना पड़ा।महात्मा गाँधी ,सीमान्त गाँधी खान अब्दुल गफ्फार खान इत्यादि विभूतियों को जब भारत छोडो आन्दोलान के गिरफ्तार किया गया तो उन्होंने जुलुस निकाले लाठियां खाई .दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान हंगल साहब का परिवार पेशावर से कराची आ गया।उनके पिता सेवा निव्रत हो चुके थे .आजादी की बेला में काफी उथल-पुथल के दिन थे।हिटलर ने सोवियत संघ पर हमला कर दिया था।इसी बीच हंगल साब ट्रेड युनियन से जुड़ चुके थे .तत्कालीन एटक के संघर्षों में शामिल होकर देशी विदेशी इजारेदार शाशकों के खिलाफ लड़ाई में शामिल होकर ऐ के हंगल अब तक कॉम .हंगल हो चुके थे।इसके बाद पूरी जिन्दगी वे देश के मेहनतकशों के संघर्षों के साक्षी रहे।प्रगतिशील लेखक संघ,जनवादी लेखक संघ और इप्टा ईत्यादी के मार्फ़त भारत पाकिस्तान की साझी विरासत को संजोये रहते हुए आपसी भाईचारा और अमन के पैगाम देते चले गए।
मुझे उनकी 250 फिल्मों के नाम याद नहीं. 2-4 को छोड़ अधिकांश को देखने का न तो अवसर मिला और न ही कोई ख्वाइश दर पेश हुई. किन्तु उनके इस सामाजिक,राजनैतिक और वैचारिक अवदान से देश का शोषित वर्ग और प्रगतिशील तबका जरुर गौरवान्वित रहा करता था।
मेरा उनकी विचारधारा से सीधा सरोकार सदैव रहा है।हंगल विचारधारा के लिहाज़ से प्रतिबद्ध साम्यवादी रहे हैं। यह उजागर करने में देश के पूंजीवादी मीडिया ,दक्षिणपंथी मीडिया और साम्प्र्दायिक मीडिया को परेशानी हो सकती है किन्तु मुख्यधारा के मीडिया ने और बाएं वाजू के मीडिया ने अपने इस शानदार कामरेड 'अवतार कृष्ण हंगल ' के दुखद निधन उपरान्त भी न्याय नहीं किया। अपने जीवन के उत्तरार्ध में जिन कारुणिक अवस्थाओं से वो गुजरे उसकी कहानी तो जग जाहिर है ही । अपने किशोर काल में ब्रटिश हुकूमत की संगीनों को उन्होंने बहुत नज़दीक से देखा था।भगतसिंह ,सीमान्त गाँधी अब्दुल गफ्फार खान, फेज अहमद फेज, अल्लामा इकवाल ने हंगल को काफी नज़दीक से अनुप्रेरित किया। फिल्मों में आने से पहले बलराज साहनी ,पृथ्वीराज कपूर,हरीन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय और उत्पल दत्त जैसी महान विभूतियों के साथ इप्टा इत्यादि के मंचों पर ऐ के हंगल शिद्दत से स्थापित हो चुके थे।
ऐ के हंगल 2004 में इंदौर में 'प्रगतिशील लेखक संघ' के सम्मेलन में बतौर अतिथि पधारे थे।उस समय उनसे चर्चा में काफी कुछ उनके बारे में हमे जानने का अवसर मिला .वे मार्क्सवाद -लेनिनवाद और सर्वहारा अंतर्राष्ट्रीयतावाद के कट्टर समर्थक थे।उन्होंने फिल्म जगत में 40 साल काम किया ,250 फिल्मों में किया ओर लोगों को कौमी एकता तथा जम्हूरियत के कई समर्थक तैयार किये जिन्होंने न केवल एक्टिंग बल्कि गीत,ग़ज़ल और फिल्मों के निर्माण से माया नगरी मुंबई में भी 'वर्ग संघर्ष ' की ज्योत जला रखी है। कॉम .अवतार कृष्ण हंगल को जन-काव्य भारती ,जनवादी लेखक संघ की ओर से श्रधांजलि अर्पित की गई। कॉम हंगल अमर रहे।.. कॉम हंगल लाल सलाम।.....
श्रीराम तिवारी
गोरा रंग, सुर्ख चेहरा, पोपला मुखमंडल ,तेजस्वी आँखें,सफाचट गंजा सर,कड़क आवाज और अक्सर धोती-कुरते में आम हिन्दुतानी का रोल करने वाले अवतार कृष्ण हंगल को फ़िल्मी परदे पर देख-देख कर मेरी पीढी के स्त्री-पुरुष अब प्रौढ़ता की ओर अग्रसर हैं . आज जबकि ऐ के हंगल नहीं हैं तो भी लोग उनकी इसी छवि को धारण किये हुए हैं जो कि हंगल के व्यक्तित्व का सिर्फ एकांश मात्र है. जब तक में जनवादी लेखक संघ या प्रगतिशील लेखकों के साथ नहीं जुड़ा था तब तक यही समझता था कि हंगल [रहीम चाचा] कोई मुसलमान कलाकार हैं. उनके अधिकांश किरदार कुछ इस तरह अभिनीत हुए हैं की हंगल ने मानों उस किरदार को यथार्थ में जिया हो. खेर ... हंगल साब शुद्ध कश्मीरी पंडित थे.कश्मीरी भाषा में हंगल का मतलब हिरन या मृग होता है.हंगल के पूर्वजों ने तीन सौ साल पहले ठीक नेहरुओं की तरह कश्मीर छोड़ा और लाख लखनऊ आ वसे. उनके पिताजी अंग्रजों की नौकरी में पेशावर में पदस्थ थे।वहीँ जन्म हुआ था 1917 में अवतार कृष्ण हंगल का.
किशोर अवस्था में ही पढाई के साथ-साथ टेलरिंग इत्यादि कामों में आजीविका के मेहनत मशक्कात वाले अंदाज़ को सहज ही ह्र्द्यगगामी कर चुके श्री हंगल जी को बेहद जद्दोजहद से गुजरना पड़ा।महात्मा गाँधी ,सीमान्त गाँधी खान अब्दुल गफ्फार खान इत्यादि विभूतियों को जब भारत छोडो आन्दोलान के गिरफ्तार किया गया तो उन्होंने जुलुस निकाले लाठियां खाई .दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान हंगल साहब का परिवार पेशावर से कराची आ गया।उनके पिता सेवा निव्रत हो चुके थे .आजादी की बेला में काफी उथल-पुथल के दिन थे।हिटलर ने सोवियत संघ पर हमला कर दिया था।इसी बीच हंगल साब ट्रेड युनियन से जुड़ चुके थे .तत्कालीन एटक के संघर्षों में शामिल होकर देशी विदेशी इजारेदार शाशकों के खिलाफ लड़ाई में शामिल होकर ऐ के हंगल अब तक कॉम .हंगल हो चुके थे।इसके बाद पूरी जिन्दगी वे देश के मेहनतकशों के संघर्षों के साक्षी रहे।प्रगतिशील लेखक संघ,जनवादी लेखक संघ और इप्टा ईत्यादी के मार्फ़त भारत पाकिस्तान की साझी विरासत को संजोये रहते हुए आपसी भाईचारा और अमन के पैगाम देते चले गए।
मुझे उनकी 250 फिल्मों के नाम याद नहीं. 2-4 को छोड़ अधिकांश को देखने का न तो अवसर मिला और न ही कोई ख्वाइश दर पेश हुई. किन्तु उनके इस सामाजिक,राजनैतिक और वैचारिक अवदान से देश का शोषित वर्ग और प्रगतिशील तबका जरुर गौरवान्वित रहा करता था।
मेरा उनकी विचारधारा से सीधा सरोकार सदैव रहा है।हंगल विचारधारा के लिहाज़ से प्रतिबद्ध साम्यवादी रहे हैं। यह उजागर करने में देश के पूंजीवादी मीडिया ,दक्षिणपंथी मीडिया और साम्प्र्दायिक मीडिया को परेशानी हो सकती है किन्तु मुख्यधारा के मीडिया ने और बाएं वाजू के मीडिया ने अपने इस शानदार कामरेड 'अवतार कृष्ण हंगल ' के दुखद निधन उपरान्त भी न्याय नहीं किया। अपने जीवन के उत्तरार्ध में जिन कारुणिक अवस्थाओं से वो गुजरे उसकी कहानी तो जग जाहिर है ही । अपने किशोर काल में ब्रटिश हुकूमत की संगीनों को उन्होंने बहुत नज़दीक से देखा था।भगतसिंह ,सीमान्त गाँधी अब्दुल गफ्फार खान, फेज अहमद फेज, अल्लामा इकवाल ने हंगल को काफी नज़दीक से अनुप्रेरित किया। फिल्मों में आने से पहले बलराज साहनी ,पृथ्वीराज कपूर,हरीन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय और उत्पल दत्त जैसी महान विभूतियों के साथ इप्टा इत्यादि के मंचों पर ऐ के हंगल शिद्दत से स्थापित हो चुके थे।
ऐ के हंगल 2004 में इंदौर में 'प्रगतिशील लेखक संघ' के सम्मेलन में बतौर अतिथि पधारे थे।उस समय उनसे चर्चा में काफी कुछ उनके बारे में हमे जानने का अवसर मिला .वे मार्क्सवाद -लेनिनवाद और सर्वहारा अंतर्राष्ट्रीयतावाद के कट्टर समर्थक थे।उन्होंने फिल्म जगत में 40 साल काम किया ,250 फिल्मों में किया ओर लोगों को कौमी एकता तथा जम्हूरियत के कई समर्थक तैयार किये जिन्होंने न केवल एक्टिंग बल्कि गीत,ग़ज़ल और फिल्मों के निर्माण से माया नगरी मुंबई में भी 'वर्ग संघर्ष ' की ज्योत जला रखी है। कॉम .अवतार कृष्ण हंगल को जन-काव्य भारती ,जनवादी लेखक संघ की ओर से श्रधांजलि अर्पित की गई। कॉम हंगल अमर रहे।.. कॉम हंगल लाल सलाम।.....
श्रीराम तिवारी
बुधवार, 22 अगस्त 2012
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक कर्मचारी/अधिकारी आज 22 अगस्त और कल 23 अगस्त को हड़ताल पर रहेंगे .यह हड़ताल तथाकथित प्रतिगामी सुधारों और आउट सोर्सिंग जैसी अधोगामी सिफारिशों को क़ानूनी जामा पहिनाए जाने के विरोध में की जा रही है।' यूनाइटेड फोरम आफ बैंक युनियंस ' के झंडे तले हो रही इस राष्ट्र व्यापी हड़ताल के कतिपय निहतार्थ नितांत देशभक्तिपूर्ण और जनोन्मुखी हैं। मनमोहनसिंग जी के नेत्रत्व में यूपीए सरकार की आर्थिक नीतियों से भारत का अमीर वर्ग और ज्यादा अमीर और निर्धन वर्ग और ज्यादा निर्धन होता चला गया है। निजी क्षेत्र की बेंकों और विदेशी ह्म-रह्वरों के पूँजी निवेश के आकर्स्षण हेतु गठित खंडेलवाल कमिटी की अनुशंसाओं को यथावत लागू कराने की जल्द्वाजी में सरकार बेंकों की कर्मचारी/अधिकारी युनिय्नों से द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से चर्चा कर हल निकालने में असफल रही।परिणामस्वरूप उक्त राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान गया। तमाम हडताली साथियों को उनके बहादुराना संघर्ष के लिए !शुभकामनाएं
मंगलवार, 21 अगस्त 2012
[1] Successful people always have two things on their lips ...
Silence......&
Smile....
Smile to solve the problems&silence to avoid the problem.by ganesh mathpati ...mumbai.
[2]Morning is a good time to rembember all sweet things and all sweet person in your life so wake up with ur sweet memories.mkt.
Silence......&
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शुक्रवार, 3 अगस्त 2012
In badlon ka mijaj khub milta hai mere apno se,
kabhi toot kar baras jaate hain, to kabhi berukhi se guzar jaate hain......GCP
'''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''=='''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''='''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
yadi kisi ko dukhi dekh kar tumehn bhi dukh mehsoos hota hai to samjh lo tumehn ' insaan' kahlaane ka hk hai......CSB
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kabhi toot kar baras jaate hain, to kabhi berukhi se guzar jaate hain......GCP
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yadi kisi ko dukhi dekh kar tumehn bhi dukh mehsoos hota hai to samjh lo tumehn ' insaan' kahlaane ka hk hai......CSB
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मंगलवार, 24 जुलाई 2012
श्री प्रणव मुखर्जी दुनिया के श्रेष्ठतम राष्ट्र-अध्यक्ष.
भारत के 13 वें महामहिम राष्ट्रपति चुने जाने से भारत में अधिकांस नर-नारी [जो राजनीती से सरोकार रखते हैं] खुश हैं। में भी खुश हूँ। इससे पहले कि अपनी ख़ुशी का राज खोलूं उन लोगों के प्रति आभार व्यक्त करना चाहूँगा जिन्होंने यह सुखद अवसर प्रदान किया।
सर्वप्रथम में भारतीय संविधान का आभारी हूँ जिसमें ऐसी व्यवस्था है कि सही आदमी सही जगह पर पहुँचने में जरुर कामयाब होता है।सही से मेरा अभिप्राय उस 'सही' से है जो भारत के बहुमत जन-समुदाय की आम समझ के दायरे में हो। हालाँकि इस 'सही' से मेरे वैयक्तिक' सही' का सामंजस्य नहीं बैठता।वास्तव में मेरा सही तो ये है कि कामरेड प्रकाश करात ,कामरेड वर्धन,कामरेड गुरुदास दासगुप्त,कामरेड सीताराम येचुरी ,कामरेड बुद्धदेव भटाचार्य में से या वामपंथ की अगली कतार में से कोई इन्ही कामरेडों के सदृश्य अनुभवी व्यक्ति राष्ट्राध्यक्ष चुना जाता। लेकिन ये भारत की जनता को अभी इस पूंजीवादी बाजारीकरण के दौर में कदापि मंजूर नहीं। भारत की जनता को ये भी मंजूर नहीं कि घोर दक्षिण पंथी -साम्प्रदायिक व्यक्ति या उनके द्वारा समर्थित' हलकट' व्यक्ति भारत के संवैधानिक सत्ताप्र्मुख की जगह ले। भारत की जनता को जो मंजूर होता है वही इस देश में होता है। भले ही वो मुझे रुचकर लगे या न लगे।भले ही वो उन लाखों स्वनामधन्य हिंदुवादियों,राष्ट्रवादियों और सामंतवादियों को भी रुचिकर न लगे। ये हकीकत है कि इस देश की जनता का बहुमत जिन्हें चाहता है उन्हें सत्ता में पदस्थ कर देता है।यह भारतीय संविधान के महानतम निर्माताओं और स्वतंत्रता के महायज्ञं में शहीद हुए 'धर्मनिरपेक्ष-समाजवादी-प्रजातांत्रिक' विचारों के प्रणेताओं की महती अनुकम्पा का परिणाम है। में इन सबका आभारी हौं।
में आभारी हूँ उन लोगों का जिन्होंने यूपीए ,एनडीए ,वाम मोर्चा और तीसरे मोर्चे के दायरे से बाहर आकर राष्ट्र हित में श्री प्रणव मुखर्जी को भारत का 'राष्ट्रपति चुनने में अपना अमूल्य वोट दिया। में आभारी हूँ भाजपा के उन महानुभावों का जिन्होंने 'नरेंद्र मोदी' को एनडीए का भावी नेता और भारत का प्रधान मंत्री बनाए जाने का प्रोपेगंडा चलाया,जिसकी वजह से एनडीए के खास पार्टनर [धर्मनिरपेक्ष] जदयू को खुलकर श्री मुखर्जी के पक्ष में आना पडा।में आभारी हूँ शिवानन्द तिवारी जी ,नीतीशजी ,बाल ठाकरेजी,मुलायम जी,वृंदा करात जी,प्रकाश करातजी,सीताराम येचुरीजी,विमान वसुजी,बुद्धदेव भट्टाचार्य जी,मायावती जी,येदुराप्पजी और ज्ञात-अज्ञात उन सभी राजनीतिक दलों,व्यक्तियों ,मीडिया कर्मियों और नीति निर्माण की शक्तियों का जिन्होंने कांग्रेस को,श्रीमती सोनिया गाँधी को प्रेरित किया कि देश के 13 वें राष्ट्रपति के चुनाव हेतु प्रणव मुखर्जी को उम्मीदवार घोषित करें ताकि 'सकारण' किसी अन्य 'गैर जिम्मेदार ' व्यक्ति को इस पद पर आने से रोका जा सके।
में आभारी हूँ सर्वश्री अन्ना हज़ारेजी,केजरीवाल जी,रामदेवजी ,सुब्रमन्यम स्वामी जी,रामजेठमलानी जी नवीन पटनायक जी,जय लालिथाजी,जिहोने एनडीए के साथ मिलकर एक बेहद कमजोर और लिजलिजे व्यक्ति को उम्मेदवार बनाया ताकि 'नाम' का विरोध जाहिर हो जाए और 'पसंद' का व्यक्ति याने 'प्रणव दा ' ही महामहिम चुने जाएँ। संगमा को जब लगा कि ईसाई होने में फायदा है तो ईसाई हो गए।जब लगा की कांग्रेसी होने में फायदा है तो कांग्रेसी हो गए।जब लगा कि राकपा में फायदा है तो उसके साथ हो लिए।
जब लगा कि एनडीए के साथ फायदा है तो उनके साथ हो लिए इतना ही नहीं जिस आदिवासी समाज को वे पीढ़ियों पहले छोड़ चुके थे क्योंकि तब आदिवासी होने में शर्म आती थी।अब आदिवासी होने के फायदे दिखे तो पुनह आदिवासी हो लिए। उनकी इस बन्दर कूदनी कसरत ने इस सर्वोच्च पद के चुनाव में विपक्ष की भूमिका अदा की सो वे भी धन्यवाद के पात्र हैं।देश उनका आभारी है।
विगत 19 जुलाई को संपन्न राष्ट्र्पति के चुनाव में श्री प्रणव मुखर्जी की भारी मतों से जीत- वास्तव में उन लोगों की करारी हार है जो उत्तरदायित्व विहीनता से आक्रान्त हैं।अन्ना हजारे,केजरीवाल ,रामदेव का मंतव्य सही हो सकता है लेकिन अपने पवित्र[?] साध्य के निमित्त साधनों की शुचिता को वे नहीं पकड सके और अपनी अधकचरी जानकारियों तथा सीमित विश्लेशनात्म्कता के कारण सत्ता पक्ष से अनावश्यक रार ठाणे बैठे हैं।उन्हें बहुत बड़ी गलत फहमी है क़ि देश की भाजपा और संघ परिवार तो हरिश्चंद्र है केवल कांग्रेसी और सोनिया गाँधी ,दिग्विजय सिंह तथा राहुल गाँधी ही नहीं चाहते क़ि देश में ईमानदारी से शाशन प्रशाशन चले। इन्ही कूप -मंदूक्ताओं के कारण ये सिरफिरे लोग प्रणव मुखर्जी जैसे सर्वप्रिय राजनीतिग्य को भी लगातार ज़लील करते रहे।श्री राम जेठमलानी और केजरीवाल को तो चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए। उन्होंने मुखर्जी पर जो बेबुनियाद आरोप लगाये हैं उससे भारत की और भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद की गरिमा को भारी ठेस पहुंची है।
श्री प्रणव मुखर्जी की जीत न तो अप्रत्याशित है और न ही इस जीत से कोई चमत्कार हुआ है, पी ऐ संगमा भले ही अपने आपको कभी दलित ,कभी ईसाई,कभी अल्पसंख्यक और कभी आदिवासी बताकर बार-बार ये सन्देश दे रहे थे कि 'अंतरात्मा की आवाज' पर लोग उन्हें ही वोट करेंगे और रायसीना हिल के राष्टपति भवन की शोभा वही बढ़ाएंगे।उन्हें किसी सिरफिरे ने जचा दिया कि नीलम संजीव रेड्डी को जिस तरह वी।वी गिरी के सामने हारना पड़ा था उसी तरह संगमा के सामने मुखर्जी की हार संभव है।और लगे रहो मुन्ना भाई की तरह संगमा जी भाजपा के सर्किट भी नहीं बन सके।प्रणव दा के पक्ष में वोटों का गणित इतना साफ़ था कि प्रमुख विपक्षी दल भाजपा और उसके अलायन्स पार्टनर्स इसी उहापोह में थे कि काश कांग्रेस ने उनसे सीधे बात की होती।
प्रणव दा को कमजोर मानने वालों को आत्म-मंथन करना चाहिए कि वे वैचारिक धरातल के मतभेदों को एक ऐसे मोड़ पर खड़ा कर चुके हैं जहां से भविष्य की राजनीती के अश्वमेध का घोडा गुजरेगा। बेशक कांग्रेस ,सोनिया जी और राहुल को इस मोड़ पर स्पष्ट बढ़त हासिल है और ये सिलसिला अब थमने वाला नहीं क्योंकि प्रणव दादा के हाथों जब विरोधियों का भला होता आया है तो उनका भला क्यों नहीं होगा जिन्होंने उनमें आस्था प्रकट की और विश्वास जताया .अब यदि 2014 के लोक सभा चुनाव में गठबंधन की राजनीती के सूत्र 'दादा ' के हाथों में होंगे तो न केवल कांग्रेस न केवल राहुल बल्कि देश के उन तमाम लोगों को बेहतर प्रतिसाद मिलेगा जिन्हें भारतीय लोकतंत्र ,समाजवाद,धर्मनिरपेक्षता और श्री प्रणव मुखर्जी पर यकीन है।
अंत में अब में अपनी ख़ुशी का राज भी बता दूँ कि मैंने जिस केन्द्रीय पी एंड टी विभाग में 38 साल सेवायें दी हैं प्रणव दा ने भी उसी विभाग में लिपिक की नौकरी की है।देश के मजदूर कर्मचारी और मेहनतकश लोग आशा करते हैं की उदारीकरण ,निजीकरण, और ठेकेकरण की मार से आम जनता की और देश की हिफाजत में महामहिम राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी उनका उसी तरह सहयोग करेंगे जैसे की कोई बड़ा भाई अपने छोटे भाइयों की मदद करता है। श्री मुखर्जी का मूल्यांकन केवल राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतर-राष्ट्रीय स्तर पर किया जाना चाहिए। श्री मुखर्जी को चुना जाने पर न केवल कांग्रेस बल्कि विपक्ष को भी इसका श्रेय दिया जाना चाहिए। वे राष्ट्रीयकरण के पोषक हैं। श्री मुखर्जी ने वित्त मंत्री रहते हुए सार्वजनिक उपक्रमों का विनिवेश नहीं होने दिया इसलिये अमेरिकी-नीतियों के भी कोप-भाजन बनें। मजदूर-
कर्मचारी हितों की रक्षा करने वाले ऐसे राष्ट्रपति से हमें काफी अपेक्षाएं हैं। श्रीराम तिवारी।
सर्वप्रथम में भारतीय संविधान का आभारी हूँ जिसमें ऐसी व्यवस्था है कि सही आदमी सही जगह पर पहुँचने में जरुर कामयाब होता है।सही से मेरा अभिप्राय उस 'सही' से है जो भारत के बहुमत जन-समुदाय की आम समझ के दायरे में हो। हालाँकि इस 'सही' से मेरे वैयक्तिक' सही' का सामंजस्य नहीं बैठता।वास्तव में मेरा सही तो ये है कि कामरेड प्रकाश करात ,कामरेड वर्धन,कामरेड गुरुदास दासगुप्त,कामरेड सीताराम येचुरी ,कामरेड बुद्धदेव भटाचार्य में से या वामपंथ की अगली कतार में से कोई इन्ही कामरेडों के सदृश्य अनुभवी व्यक्ति राष्ट्राध्यक्ष चुना जाता। लेकिन ये भारत की जनता को अभी इस पूंजीवादी बाजारीकरण के दौर में कदापि मंजूर नहीं। भारत की जनता को ये भी मंजूर नहीं कि घोर दक्षिण पंथी -साम्प्रदायिक व्यक्ति या उनके द्वारा समर्थित' हलकट' व्यक्ति भारत के संवैधानिक सत्ताप्र्मुख की जगह ले। भारत की जनता को जो मंजूर होता है वही इस देश में होता है। भले ही वो मुझे रुचकर लगे या न लगे।भले ही वो उन लाखों स्वनामधन्य हिंदुवादियों,राष्ट्रवादियों और सामंतवादियों को भी रुचिकर न लगे। ये हकीकत है कि इस देश की जनता का बहुमत जिन्हें चाहता है उन्हें सत्ता में पदस्थ कर देता है।यह भारतीय संविधान के महानतम निर्माताओं और स्वतंत्रता के महायज्ञं में शहीद हुए 'धर्मनिरपेक्ष-समाजवादी-प्रजातांत्रिक' विचारों के प्रणेताओं की महती अनुकम्पा का परिणाम है। में इन सबका आभारी हौं।
में आभारी हूँ उन लोगों का जिन्होंने यूपीए ,एनडीए ,वाम मोर्चा और तीसरे मोर्चे के दायरे से बाहर आकर राष्ट्र हित में श्री प्रणव मुखर्जी को भारत का 'राष्ट्रपति चुनने में अपना अमूल्य वोट दिया। में आभारी हूँ भाजपा के उन महानुभावों का जिन्होंने 'नरेंद्र मोदी' को एनडीए का भावी नेता और भारत का प्रधान मंत्री बनाए जाने का प्रोपेगंडा चलाया,जिसकी वजह से एनडीए के खास पार्टनर [धर्मनिरपेक्ष] जदयू को खुलकर श्री मुखर्जी के पक्ष में आना पडा।में आभारी हूँ शिवानन्द तिवारी जी ,नीतीशजी ,बाल ठाकरेजी,मुलायम जी,वृंदा करात जी,प्रकाश करातजी,सीताराम येचुरीजी,विमान वसुजी,बुद्धदेव भट्टाचार्य जी,मायावती जी,येदुराप्पजी और ज्ञात-अज्ञात उन सभी राजनीतिक दलों,व्यक्तियों ,मीडिया कर्मियों और नीति निर्माण की शक्तियों का जिन्होंने कांग्रेस को,श्रीमती सोनिया गाँधी को प्रेरित किया कि देश के 13 वें राष्ट्रपति के चुनाव हेतु प्रणव मुखर्जी को उम्मीदवार घोषित करें ताकि 'सकारण' किसी अन्य 'गैर जिम्मेदार ' व्यक्ति को इस पद पर आने से रोका जा सके।
में आभारी हूँ सर्वश्री अन्ना हज़ारेजी,केजरीवाल जी,रामदेवजी ,सुब्रमन्यम स्वामी जी,रामजेठमलानी जी नवीन पटनायक जी,जय लालिथाजी,जिहोने एनडीए के साथ मिलकर एक बेहद कमजोर और लिजलिजे व्यक्ति को उम्मेदवार बनाया ताकि 'नाम' का विरोध जाहिर हो जाए और 'पसंद' का व्यक्ति याने 'प्रणव दा ' ही महामहिम चुने जाएँ। संगमा को जब लगा कि ईसाई होने में फायदा है तो ईसाई हो गए।जब लगा की कांग्रेसी होने में फायदा है तो कांग्रेसी हो गए।जब लगा कि राकपा में फायदा है तो उसके साथ हो लिए।
जब लगा कि एनडीए के साथ फायदा है तो उनके साथ हो लिए इतना ही नहीं जिस आदिवासी समाज को वे पीढ़ियों पहले छोड़ चुके थे क्योंकि तब आदिवासी होने में शर्म आती थी।अब आदिवासी होने के फायदे दिखे तो पुनह आदिवासी हो लिए। उनकी इस बन्दर कूदनी कसरत ने इस सर्वोच्च पद के चुनाव में विपक्ष की भूमिका अदा की सो वे भी धन्यवाद के पात्र हैं।देश उनका आभारी है।
विगत 19 जुलाई को संपन्न राष्ट्र्पति के चुनाव में श्री प्रणव मुखर्जी की भारी मतों से जीत- वास्तव में उन लोगों की करारी हार है जो उत्तरदायित्व विहीनता से आक्रान्त हैं।अन्ना हजारे,केजरीवाल ,रामदेव का मंतव्य सही हो सकता है लेकिन अपने पवित्र[?] साध्य के निमित्त साधनों की शुचिता को वे नहीं पकड सके और अपनी अधकचरी जानकारियों तथा सीमित विश्लेशनात्म्कता के कारण सत्ता पक्ष से अनावश्यक रार ठाणे बैठे हैं।उन्हें बहुत बड़ी गलत फहमी है क़ि देश की भाजपा और संघ परिवार तो हरिश्चंद्र है केवल कांग्रेसी और सोनिया गाँधी ,दिग्विजय सिंह तथा राहुल गाँधी ही नहीं चाहते क़ि देश में ईमानदारी से शाशन प्रशाशन चले। इन्ही कूप -मंदूक्ताओं के कारण ये सिरफिरे लोग प्रणव मुखर्जी जैसे सर्वप्रिय राजनीतिग्य को भी लगातार ज़लील करते रहे।श्री राम जेठमलानी और केजरीवाल को तो चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए। उन्होंने मुखर्जी पर जो बेबुनियाद आरोप लगाये हैं उससे भारत की और भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद की गरिमा को भारी ठेस पहुंची है।
श्री प्रणव मुखर्जी की जीत न तो अप्रत्याशित है और न ही इस जीत से कोई चमत्कार हुआ है, पी ऐ संगमा भले ही अपने आपको कभी दलित ,कभी ईसाई,कभी अल्पसंख्यक और कभी आदिवासी बताकर बार-बार ये सन्देश दे रहे थे कि 'अंतरात्मा की आवाज' पर लोग उन्हें ही वोट करेंगे और रायसीना हिल के राष्टपति भवन की शोभा वही बढ़ाएंगे।उन्हें किसी सिरफिरे ने जचा दिया कि नीलम संजीव रेड्डी को जिस तरह वी।वी गिरी के सामने हारना पड़ा था उसी तरह संगमा के सामने मुखर्जी की हार संभव है।और लगे रहो मुन्ना भाई की तरह संगमा जी भाजपा के सर्किट भी नहीं बन सके।प्रणव दा के पक्ष में वोटों का गणित इतना साफ़ था कि प्रमुख विपक्षी दल भाजपा और उसके अलायन्स पार्टनर्स इसी उहापोह में थे कि काश कांग्रेस ने उनसे सीधे बात की होती।
प्रणव दा को कमजोर मानने वालों को आत्म-मंथन करना चाहिए कि वे वैचारिक धरातल के मतभेदों को एक ऐसे मोड़ पर खड़ा कर चुके हैं जहां से भविष्य की राजनीती के अश्वमेध का घोडा गुजरेगा। बेशक कांग्रेस ,सोनिया जी और राहुल को इस मोड़ पर स्पष्ट बढ़त हासिल है और ये सिलसिला अब थमने वाला नहीं क्योंकि प्रणव दादा के हाथों जब विरोधियों का भला होता आया है तो उनका भला क्यों नहीं होगा जिन्होंने उनमें आस्था प्रकट की और विश्वास जताया .अब यदि 2014 के लोक सभा चुनाव में गठबंधन की राजनीती के सूत्र 'दादा ' के हाथों में होंगे तो न केवल कांग्रेस न केवल राहुल बल्कि देश के उन तमाम लोगों को बेहतर प्रतिसाद मिलेगा जिन्हें भारतीय लोकतंत्र ,समाजवाद,धर्मनिरपेक्षता और श्री प्रणव मुखर्जी पर यकीन है।
अंत में अब में अपनी ख़ुशी का राज भी बता दूँ कि मैंने जिस केन्द्रीय पी एंड टी विभाग में 38 साल सेवायें दी हैं प्रणव दा ने भी उसी विभाग में लिपिक की नौकरी की है।देश के मजदूर कर्मचारी और मेहनतकश लोग आशा करते हैं की उदारीकरण ,निजीकरण, और ठेकेकरण की मार से आम जनता की और देश की हिफाजत में महामहिम राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी उनका उसी तरह सहयोग करेंगे जैसे की कोई बड़ा भाई अपने छोटे भाइयों की मदद करता है। श्री मुखर्जी का मूल्यांकन केवल राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतर-राष्ट्रीय स्तर पर किया जाना चाहिए। श्री मुखर्जी को चुना जाने पर न केवल कांग्रेस बल्कि विपक्ष को भी इसका श्रेय दिया जाना चाहिए। वे राष्ट्रीयकरण के पोषक हैं। श्री मुखर्जी ने वित्त मंत्री रहते हुए सार्वजनिक उपक्रमों का विनिवेश नहीं होने दिया इसलिये अमेरिकी-नीतियों के भी कोप-भाजन बनें। मजदूर-
कर्मचारी हितों की रक्षा करने वाले ऐसे राष्ट्रपति से हमें काफी अपेक्षाएं हैं। श्रीराम तिवारी।
मंगलवार, 10 जुलाई 2012
is system men keval laabh-shubh kyo?
हमें मालुम है कि हम उस जल में रहते हैं,
जिसमें मगरमच्छ भी रहते हैं।
लुटेरों को भाग्यवान और मज़दूर को बदनसीब,
सिर्फ शोषण के समर्थक ही कहते हैं।
बाज़ारों में गलाकाट प्रतिस्पर्धा की मच रही होड़,
इस 'सिस्टम' में केवल 'लाभ-शुभ'चलते हैं।
राज्यसत्ता पर काबिज भूस्वामी और पूंजीपति,
आपस में गठजोड़ बना रखते हैं।
टेलीविजन पर खबरिया चेनलों का कुकरहाव,
देख-देख' ' प्रोलेटेरियत' सर धुनते रहते हैं।
गोदामों में सड़ता रहता अन्न -गेंहूँ -चावल,
फिर भी कुछ अभागे भूँखों मरते रहते हैं।
अन्याय और भृष्टाचार की इन्तहा हो चुकी,
वे अहमक हैं जो भूंख पर नज्में लिखते हैं।
श्रीराम तिवारी
जिसमें मगरमच्छ भी रहते हैं।
लुटेरों को भाग्यवान और मज़दूर को बदनसीब,
सिर्फ शोषण के समर्थक ही कहते हैं।
बाज़ारों में गलाकाट प्रतिस्पर्धा की मच रही होड़,
इस 'सिस्टम' में केवल 'लाभ-शुभ'चलते हैं।
राज्यसत्ता पर काबिज भूस्वामी और पूंजीपति,
आपस में गठजोड़ बना रखते हैं।
टेलीविजन पर खबरिया चेनलों का कुकरहाव,
देख-देख' ' प्रोलेटेरियत' सर धुनते रहते हैं।
गोदामों में सड़ता रहता अन्न -गेंहूँ -चावल,
फिर भी कुछ अभागे भूँखों मरते रहते हैं।
अन्याय और भृष्टाचार की इन्तहा हो चुकी,
वे अहमक हैं जो भूंख पर नज्में लिखते हैं।
श्रीराम तिवारी
रविवार, 8 जुलाई 2012
वर्तमान व्यवस्था में हनुमान जी को भी रिश्वत देना पड़ेगी.
हमारे अधिकारी मित्र को हनुमानजी ने सपने में दर्शन दिए। उसने हनुमानजी से यह इच्छा व्यक्त की
त्रेता में आपने जो कारनामे किये थे उनमें से एक आध 'अब'' करके दिखाए। हनुमानजी ने सपने में संजीविनी
बूटी लाकर दिखा दी। अब भक्त ने इच्छा जाहिर की कि हनुमानजी आप कलयुग वाला कोई
काम और खासतौर से 'लाल फीताशाही'' वाला कोई काम करके दिखाएँ तो हम आपको 'बुद्धिमतां वरिष्ठं''
माने ? हनुमान जी ने पूछा- मसलन ? भक्त ने कहा--आप अपने हिमालयन टूर का टी.ऐ. प्राप्त करके दिखाएँ
हनुमानजी ने अपने हिमालयन टूर का टी.ए. सबमिट किया और कारण वाले कालम में संजीविनी बूटी लाना दर्शाया. टी.ए. सेक्सन के क्लर्क ने तीन आब्जेक्शन लगाकर फाइल ठन्डे बसते में डाल दी।
आब्जेक्शन [1] प्रार्थी द्वारा तत्कालीन राजा भरत से यात्रा की परमिशन नहीं ली गई।
[2] हनुमान जी को उड़ान [केवल पक्षियों के लिए आरक्षित]] की पात्रता नहीं थी।
[3] उन्हें सिर्फ संजीविनी लाने को कहा गया था जबकि वो पूरी की पूरी पहाडी[द्रोण गिरी] उठा कर
आ गए।
त्रेता में आपने जो कारनामे किये थे उनमें से एक आध 'अब'' करके दिखाए। हनुमानजी ने सपने में संजीविनी
बूटी लाकर दिखा दी। अब भक्त ने इच्छा जाहिर की कि हनुमानजी आप कलयुग वाला कोई
काम और खासतौर से 'लाल फीताशाही'' वाला कोई काम करके दिखाएँ तो हम आपको 'बुद्धिमतां वरिष्ठं''
माने ? हनुमान जी ने पूछा- मसलन ? भक्त ने कहा--आप अपने हिमालयन टूर का टी.ऐ. प्राप्त करके दिखाएँ
हनुमानजी ने अपने हिमालयन टूर का टी.ए. सबमिट किया और कारण वाले कालम में संजीविनी बूटी लाना दर्शाया. टी.ए. सेक्सन के क्लर्क ने तीन आब्जेक्शन लगाकर फाइल ठन्डे बसते में डाल दी।
आब्जेक्शन [1] प्रार्थी द्वारा तत्कालीन राजा भरत से यात्रा की परमिशन नहीं ली गई।
[2] हनुमान जी को उड़ान [केवल पक्षियों के लिए आरक्षित]] की पात्रता नहीं थी।
[3] उन्हें सिर्फ संजीविनी लाने को कहा गया था जबकि वो पूरी की पूरी पहाडी[द्रोण गिरी] उठा कर
आ गए।
हनुमानजी ने श्रीरामजी से भी प्रार्थना की किन्तु वे भी इस कलयुगी सिस्टम के आगे असहाय सिद्ध हुए।
तभी लक्ष्मण को एक उपाय सूझा। उन्होंने कुल टी.ऐ. बिल का 10% तत्संबंधी बाबू को देने का वादा किया तो मामला सेट हो गया। अब एल डी सी ने निम्नांकित टिप्पणी के साथ बिल रिक्मंड किया--
"मामले पर पुन:गौर किया गया और पाया गया कि राम का आदेश ही पर्याप्त था"
और चूँकि इमरजेंसी थी अतएव हवाई मार्ग से जाना उचित था और सही दवा की पहचान सुशेन वैद्य की
ड्यूटी में आता है यह हनुमान की जिम्मेदारी नहीं थी सो यह मलयगिरी से हिमालय तक की आपात्कालीन
यात्रा का टी.ऐ. बिल पास करने योग्य है"
कवन सो काज कठिन जग माही.
जो नहीं होय तात [बाबू] तुम पाहीं।
श्रीराम तिवारी
मंगलवार, 3 जुलाई 2012
Thoughts of the Day.
Life would be perfect if : anger had a mute button.Mistake had a brrke button .Hard time had fast forward buttonand good time had a pause button.........Naresh tandaon.....
There are 3c's of life
1-choice
2-chance
3-changes
you must make a choice to take a chance to change your life.G.C.Pandey....
It is very easy to defeat some one but it is very hard to win some one.N.K.U.....
Believe in Karm,not in Raashi.Remember Ram and Ravn, Krishna and Kans, Gandhi and Godse ,Obama and Osama they had same Raarshi but their 'KARM' made them different. J.M.P.....
Zindgee ke har mod pr sunahri yad rahne do.
Zuban pr hr wakt mithas rahne do..
Yahi to andaz he jeene ka ,
N khud raho udas ,n kisi ko udas rahne do.. bunty.......
Best relations are like beautiful street lamps....They may not make the distance shorter but they light your path and make the journey easier. Mathpati........
There are 3c's of life
1-choice
2-chance
3-changes
you must make a choice to take a chance to change your life.G.C.Pandey....
It is very easy to defeat some one but it is very hard to win some one.N.K.U.....
Believe in Karm,not in Raashi.Remember Ram and Ravn, Krishna and Kans, Gandhi and Godse ,Obama and Osama they had same Raarshi but their 'KARM' made them different. J.M.P.....
Zindgee ke har mod pr sunahri yad rahne do.
Zuban pr hr wakt mithas rahne do..
Yahi to andaz he jeene ka ,
N khud raho udas ,n kisi ko udas rahne do.. bunty.......
Best relations are like beautiful street lamps....They may not make the distance shorter but they light your path and make the journey easier. Mathpati........
मंगलवार, 26 जून 2012
thoughts of human life.
To love without condition,to talk without intention,to give without reason and to care without expectation is the ' art of the relations'....
Nice Words.
You are the writer of your own story.Other people just helping you to open or turn the next page........JMP
Faith makes all things possible, Hope makes all things workable,Love makes all things beautiful,Trust makes all things achieved....UPADHYAY.NK...
If you feel that you don't have time then ask a question two yourself Is it your achievement or mistake?....GM GCP....
Remember it for all those special people in your life ' when
Faith makes all things possible, Hope makes all things workable,Love makes all things beautiful,Trust makes all things achieved....UPADHYAY.NK...
If you feel that you don't have time then ask a question two yourself Is it your achievement or mistake?....GM GCP....
Remember it for all those special people in your life ' when
मंगलवार, 19 जून 2012
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