रविवार, 8 जुलाई 2012

वर्तमान व्यवस्था में हनुमान जी को भी रिश्वत देना पड़ेगी.

हमारे अधिकारी मित्र को  हनुमानजी ने सपने में दर्शन दिए। उसने हनुमानजी से यह इच्छा व्यक्त की

त्रेता में आपने जो  कारनामे किये थे उनमें से एक आध 'अब'' करके दिखाए। हनुमानजी  ने सपने में संजीविनी
 बूटी लाकर दिखा दी। अब भक्त ने इच्छा जाहिर की  कि  हनुमानजी आप  कलयुग वाला  कोई
काम और खासतौर  से 'लाल फीताशाही'' वाला कोई काम करके दिखाएँ तो हम आपको 'बुद्धिमतां वरिष्ठं''
 माने ? हनुमान जी ने पूछा- मसलन ? भक्त ने कहा--आप अपने हिमालयन टूर का टी.ऐ. प्राप्त करके दिखाएँ
      हनुमानजी ने  अपने हिमालयन टूर का टी.ए. सबमिट किया और कारण वाले कालम में  संजीविनी बूटी लाना दर्शाया.  टी.ए. सेक्सन के क्लर्क  ने तीन आब्जेक्शन  लगाकर फाइल ठन्डे बसते  में डाल  दी।
   आब्जेक्शन  [1] प्रार्थी  द्वारा   तत्कालीन  राजा  भरत  से यात्रा  की परमिशन   नहीं ली गई।
                     [2] हनुमान जी  को उड़ान [केवल पक्षियों के लिए आरक्षित]] की पात्रता नहीं थी।
                     [3] उन्हें सिर्फ संजीविनी लाने को कहा गया था जबकि वो पूरी की पूरी पहाडी[द्रोण गिरी] उठा कर
 आ गए।
 हनुमानजी  ने श्रीरामजी से  भी  प्रार्थना की  किन्तु वे भी   इस कलयुगी सिस्टम के आगे असहाय सिद्ध हुए।
तभी लक्ष्मण को एक उपाय सूझा। उन्होंने कुल टी.ऐ. बिल का 10% तत्संबंधी बाबू  को देने का वादा   किया  तो  मामला सेट हो गया। अब एल डी सी ने निम्नांकित टिप्पणी  के साथ बिल रिक्मंड  किया--
                      "मामले पर पुन:गौर किया गया और पाया गया कि  राम का आदेश ही पर्याप्त था"
और चूँकि इमरजेंसी थी अतएव हवाई मार्ग से जाना उचित था और  सही दवा की पहचान सुशेन वैद्य  की 
ड्यूटी में आता है यह हनुमान की जिम्मेदारी नहीं थी सो यह मलयगिरी से हिमालय तक की आपात्कालीन 
 यात्रा  का टी.ऐ. बिल पास करने योग्य है"
          कवन सो काज कठिन जग माही.

          जो नहीं होय तात [बाबू] तुम पाहीं।      
                                                                              श्रीराम तिवारी           
       

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