जिन्दगी में सबकी जरुरत पड़ती है सो उस हिसाब से सम्वाद बनाओ किन्तु ये मत सोचो कि किसी की कमी से कोई काम नहीं रुकता ,उसकी कमी कोई और पूरी कर देगा -ऐसा सोचने से उसकी कमी को पूरा नहीं किया जा सकता।जिन्दगी शतरंज के खेल की तरह है,जिसमें कोई भी प्यादा चाहे तो अंतिम पंक्ति में पहुंचकर - वजीर,हाथी,ऊंट,घोडा,बनकर प्रत्स्पर्धी के राजा को मात दे सकता है,किन्तु किसी भी पक्ष का कोई भी मोहरा लाख चाहने पर भी किसी और की जगह नहीं ले सकता।प्यादे की भी जगह कोई नहीं ले सकता .जीवन में सबको सबकी जरुरत है।सब को चाहिए की सभी की कद्र करें,फ़िक्र करें .यह प्रकारांतर से स्वयम की फ़िक्र का शानदार क्रियान्वन होगा।
आजकल भारतीय राजनीति में विश्वाश का संकट उत्पन्न हो गया है। सत्ता पक्ष [यूपीए] के नेता विपक्ष[खास तौर से एनडीए] पर सच्चे-झूंठे आरोप लगा रहे हैं,मीडिया भी अपने हितधारकों के मंशानुसार आरोप,प्रत्यारोप की चूहा-बिल्ली दौड़ में शामिल है।स्वनामधन्य कतिपय तथाकथित 'सिविल सोसायटी'वाले और राजनीती में शोषित वर्ग के पक्षधर भी इस कीचड उछाल वीभत्स खेल में शामिल हो गए हैं।न्याय पालिका और कतिपय वास्तविक ईमानदार समूह भी इस हवा के रुख के साथ चला जा रहा है।इस दौर में क्या वास्तव में कुछ भी ऐंसा नहीं जिस पर देश को नाज़ हो? क्या राजनीती में,कार्यपालिका में,न्याय पालिका में,व्यवस्थापिका में ऐसा कुछ नहीं बचा जो इस व्यवस्था की जीवन्तता का वाहक सिद्ध हो सके? यदि कुछ नहीं बचा तो इस व्यवस्था को बदलने में क्या हर्ज़ है?
आजकल भारतीय राजनीति में विश्वाश का संकट उत्पन्न हो गया है। सत्ता पक्ष [यूपीए] के नेता विपक्ष[खास तौर से एनडीए] पर सच्चे-झूंठे आरोप लगा रहे हैं,मीडिया भी अपने हितधारकों के मंशानुसार आरोप,प्रत्यारोप की चूहा-बिल्ली दौड़ में शामिल है।स्वनामधन्य कतिपय तथाकथित 'सिविल सोसायटी'वाले और राजनीती में शोषित वर्ग के पक्षधर भी इस कीचड उछाल वीभत्स खेल में शामिल हो गए हैं।न्याय पालिका और कतिपय वास्तविक ईमानदार समूह भी इस हवा के रुख के साथ चला जा रहा है।इस दौर में क्या वास्तव में कुछ भी ऐंसा नहीं जिस पर देश को नाज़ हो? क्या राजनीती में,कार्यपालिका में,न्याय पालिका में,व्यवस्थापिका में ऐसा कुछ नहीं बचा जो इस व्यवस्था की जीवन्तता का वाहक सिद्ध हो सके? यदि कुछ नहीं बचा तो इस व्यवस्था को बदलने में क्या हर्ज़ है?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें