गुरुवार, 18 अक्टूबर 2012

अरविन्द केजरीवाल को अपनी नीतियां घोषित करना चाहिए.

मेरे कतिपय समकालीन प्रगतिशील   मित्रों में आजकल एक विषय पर आम राय  है कि  वर्तमान वैश्विक चुनौतियां अब भारत में तीव्रगति से और अधिक  आक्रामक रूप से प्रविष्ट हो रही हैं। इन चुनौतियों में सबसे अव्वल है राज्य सत्ता का अमानवीयकरण। प्रजातांत्रिक व्यवस्था में भले ही वो  पूंजीवादी ही क्यों न हो,आम जनता को ज़िंदा रहने के न्यूनतम संसाधनों का एक हिस्सा न्यूनतम ही सही - जन-कल्याण के रूप में -विगत  शताव्दी के अंतिम दशक तक सर्वत्र दिया जाता रहा है। सबको  शिक्षा,स्वास्थ्य,सुरक्षा,रोटी,कपडा,मकान और  सामाजिक सुरक्षा इत्यादि के लिए निरंतर संयुक्त संघर्ष चलाये  जाने पर शाशक वर्गों ने 'सोवियत पराभव'उपरान्त पश्चिमी पूंजीवादी आर्थिक माडल को अपनाने में देर नहीं की और जनता को मिलने वाली कमोवेश आवश्यक न्यूनतम  सेवा सुविधाएँ  धीरे-धीरे  छीन  ली गई .राजकोषीय घाटे के बहाने ,अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक अनुबंधों के बहाने खाद,बीज,तेल,गेस  शिक्षा  स्वास्थय  पर सरकारी इमदाद लगभग जीरो कर दी गई।सरकारी क्षेत्र का दायरा सीमित कर दिया गया।निजी क्षेत्र को  लूट की खुली  छूट दी गई।राज्यसत्ता में हितधारकों  को उपकृत करने हेतु एनजीओ बनाये गए .आर्थिक सुधारों के बहाने जनता को बाज़ार के हवाले कर दिया गया . इस अंधेरगर्दी के खिलाफ देश की संगठित ट्रेड यूनियनों ने अपनी-अपनी राजनैतिक विचारधारा से परे एकजुट होकर निरंतर  संघर्ष चलाया है।विगत 28 फरवरी -2012 ,20 सितम्बर-2012 और आगामी 21-22 फरवरी 2013 को राष्ट्रव्यापी हड़तालों का एलाने जंग इसी संघर्ष की छोटी सी कड़ी है। इस संघर्ष में साथ देने के बजाय कुछ लोग' विना सुर-ताल के अपनी  ढपली अपना राग' गा-बजा रहे हैं।अन्ना  एंड कम्पनी,रामदेव रविशंकर,और इन्ही के कल तक के हमसफर अरविन्द केजरीवाल  कुछ इस तरह से देश के तस्वीर दुनिया के सामने रख  रहे हैं कि  इस देश में 'सब कुछ बुरा ही बुरा है' ये कल तक अपने अपने एनजीओ चलाने  वाले अब देश का उद्धार करने के लिए अवतरित हो चुके हैं।
                                                                      सारी दुनिया जानती है की  किसी भी राष्ट्र की एकजुटता,शांति ,सुरक्षा और विकाश तभी संभव  है जब उस राष्ट्र के नागरिकों  की  राष्ट्रीय  चेतना  को  वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सोचने समझने  के अनुरूप ढाला जाए। आर्थिक नीतियों को राष्ट्र की मांग आपूर्ति और जनसंख्या अनुपात से तत्संगत किया जाए।आज जब देश में खुदरा व्यापार में  विदेशी  निवेश पर आपत्ति है, वायदा वाजार।सट्टा -बाज़ार ,निजीकरण, ठेकाकरण,कारखना बंदी पर आमजनता को संगठित कर संघर्ष की जरुरत है तब  देश में कुछ लोग जनता को धार्मिक अफीम खिला रहे है, चारों ओर धरम के नाम पर तिजारत करने वाले ढोंगी बाबाओं,मुल्लाओं,फादरों की भरमार है।जनता का एक हिस्सा इन बाबाओं -मुल्लाओं-फादरों की मीठी-मीठी  लुभावनी  बातों  में आकर  न केवल खुद का सतानाश कर लेता है अपितु देश को दुनिया भर में जग हंसाई का पात्र  बना देता है। धरम मज़हब का ये धंधा कुछ राजनीतिक पार्टियों को भी  पोषता है। ये धर्माडंबर  उन्हें आम चुनाव में  परोक्ष सहयोग देकर राष्ट्र को वास्तविक प्रजातांत्रिक रास्ते से भटकाता है।
 निरीह निर्दोष आम जनता अपने हकों की लूट को ईश्वर की इक्षा  समझती  है। इसी वजह से जब कभी देश के संगठित  मजदूर किसान  बढ़ती हुई महंगाई ,वेरोजगारी,शिक्षा,स्वास्थ्य ,पीने का पानी और आवश्यक जीवन संसाधनों के  लिए राष्ट्र व्यापी संघर्ष छेड़ते  हैं तो यह तथाकथित अंध श्रद्धालु वर्ग इन ढोंगी बाबाओं के चरणों में अपनी मुक्ति   ढूंड़ता  है।इतना ही नहीं ये एनजीओ चलाने वाले अन्ना  ,रामदेव ,केजरीवाल सबके सब सिर्फ  मीडिया के सामने ही  हीरो बनने की फितरत में रहते हैं। ये कभी कांग्रस  कभी भाजपा के नेताओं को भ्रष्ट बताकर समझते हैं  की इससे देश पाक साफ़ हो जाएगा?
          कौन कितना भृष्ट है यह जान लेने से क्या होगा? जब व्यवस्था ही लूट की है याने आर्थिक सुधारों की ,भूमंडलीकरण की,निजीकरण की या पूँजी के मार्फ़त राज्यसत्ता सञ्चालन की तब यह कैसे संभव है की रिश्वत ,घूंस, घोटाले नहीं होंगे ? गंदगी होगी तो मख्खियाँ भी होंगी। पूंजीवाद होगा ,अमेरिकी इच्छाओं का प्रधान  मंत्री होगा,देशी-विदेशी पूंजी का प्रवाह होगा, व्यापार और मुनाफे पर  सरकार उदार होगी तो जो सरकार में होंगे  उन्हें बिन मांगे  मोती  तो मिलना ही हैं। फिर सत्ता में चाहे यूपीए हो या एनडीए हो ऐ  राजा  हो या प्रमोद महाजन हो,रावर्ट वाड्रा हो या गडकरी हो खुर्शीद हों या लक्ष्मण बंगारू हों कलमाडी हों या जूदेव हों लूट  का ये सिलसिला जारी रहेगा   .अरविन्द केजरीवाल का इरादा यदि वाकई देश भक्ति पूर्ण है तो   वे पहले अपनी आर्थिक नीति घोषित करें . इतना ही काफी नहीं बल्कि व्यवस्था रुपी जिस कुएं में भंग पडी  उसी की साफ़ सफाई करते कराते रहेंगे या की नए कुएं के निर्माण पर देश के प्रगतिशील वैज्ञानिक विचारों से सलाह मशविरा करेंगे! सिर्फ हंगामा खड़ा करते रहने से आप चेर्चा में बने रह सकते हैं देश का कुछ भी भला इस हँगामा  नवाजी से नहीं होने वाला। यदि  नदी किनारे खड़े खड़े लहरों को कोसते रहोगे तो नदी रुकने वाली नहीं  और लहरें तो कभी भी नहीं।।।।
                                                             श्रीराम तिवारी 

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