इस साल भारत में खाद्यान्न उत्पादन में और खास तौर से गेंहूँ के उत्पादन में रिकार्ड बृद्धि हुई है।गोदाम ठसाठस भरे हैं,निजी और सरकारी अन्न भंडारों में जगह नहीं बची . कुछ अनाज -गेंहूँ कतिपय राज्यों में खुले में सड़ रहा है।इस अनाज को वाले-वाले भृष्ट अधिकारी बाज़ार में भी ठिकाने लगा रहे हैं। भंडारण की माकूल व्यवस्था का आभाव और ऍफ़ सी आई इत्यादि निगमों की 'राम भरोसे' वाली मानसिकता के कारण गेंहूँ का एक बड़ा हिस्सा 'अन्न का कुन्न ' हो रहा है। दूसरी ओर देश में लाखों लोग दिन भर मेह्नत करने के बाद एक वक्त का भरपेट भोजन याने 'मानक आहार' पाने में असमर्थ हैं।सत्ता सीन नेतृत्व तो अपने समर्थक घटक दलों और कॉरपोरेट घरानों के बीच चकरघिन्नी हो रहा है। विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी सिर्फ विपक्ष होने का स्वांग भर रही है। वामपंथी दलों ओर श्रम संगठनों ने अवश्य इस ओर ध्यान आकर्षित किया है किन्तु उन्हें मीडिया का सहयोग नहीं मिला और उनके आन्दोलन' नक्कारखाने में तूती ' की आवाज बनकर रह गए।
बाज मर्तवा सुप्रीम कोर्ट ने जरुर इस ओर कार्यपालिका और व्यवस्थापिका का ध्यान आकर्षण किया किन्तु किसी के कान में जू नहीं रेंगी।अभी भी देश का पूंजीवादी विपक्ष और मीडिया उन काल्पनिक मुद्दों को हवा दे रहा है जिनका वास्तविकता और सामाजिक सरोकारों से कोई वास्ता नहीं।कहीं कार्टून बनाने ,कहीं सोशल मीडिया पर अंकुश लगाने, कहीं कोलगेट काण्ड पर संसद न चलने देने , कभी जंतर-मंतर और रामलीला मैदान पर अपनी अपनी बाजीगरी दिखाकर भृष्टाचार और कालेधन पर रात-दिन बकवास करने वाले स्वनामधन्य [अ]नेता भी अन्न भण्डारण ,उचित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था , मूल्य नियंत्रण और सुखा बाढ़ की समस्याओं पर एक शब्द नहीं बोलते। इसीलिए यह कहावत वन गई है की ' ये देश चल रहा भगवान् भरोसे' खाद्यान्न का रिकार्ड उत्पादन और भुखमरी दोनों ही यदि दुनिया में कहीं एक साथ हैं तो वो मुल्क है भारत।
इस साल भारत की उपरोक्त तस्वीर को अब हम अपने पड़ोसी चीन के साथ विजन करके देखते हैं। चीन ही क्यों लगभग सारी दुनिया में सुखा -बाढ़ जनित खाद्यान संकट मुह बाए खड़ा है। वैश्विक
स्तर पर अनाजों का उत्पादन न केवल घटा है बल्कि स्थिति नाज़ुक बनी हुई है।चीन ने लगभग 5 दशक तक महंगाई को लगातार काबू में रखा। अपनी विशाल आबादी और श्रम शक्ति को न केवल राजनैतिक रूप से परिपक्व किया , बल्कि सामाजिक और आर्थिक रूप से हर क्षेत्र में असमानता और गैर-बराबरी को ध्वस्त करते हुए चीन ने खेल जगत ,संचार सूचना प्रोदौगिकी तथा सेन्य क्षेत्र में विश्व कीर्तिमान स्थापित किये हैं। हाल के दिनों में आई भूकंप,बाढ़ सुखा इत्यादि प्राकृतिक आपदाओं ने चीन को भी पूंजीवादी बीमारियों ने आ घेरा है।
दुनिया भर में बढ़ रहीं अनाज की कीमतों और चीन में घटे खाद्यान उत्पादन ने महंगाई का दामन थाम लिया है। भले ही अभी महंगाई दर 2% के आसपास है किन्तु आखिर मौत ने घर तो देख ही लिया है। चीन को अपने साम्यवादी ढाँचे में घुसपेठ कर रही पूंजीवादी 'यूनियन कार्वईड ' के हमले से सावधान रहना चाहिए। वर्ना साम्यवादी लाल क्रांति [1940-47] के पूर्व के चीन से बदतर हालातों के लिए तैय्यार रहना चाहिए।
भारत को विदेशी ताकतों के गुलाम रहने की परम्पराओं की वेशुमार बीमारियाँ घेरे हुए हैं। कुछ आज़ादी के बाद नेताओं अफसरों के हरामीपन ने देश की तस्वीर बदरंग कर दी है ऐंसे में आजू बाजू के देशों में भुखमरी या राजनेतिक उथलपुथल का होना भारत की सेहत के लिए ठीक नहीं। भारत को अपनी खाद्यान्न व्यवस्था पर प्रथमिकता और दूरदर्शिता के आधार पर ध्यान केन्द्रित कर अन्न के प्रत्येक कण की कद्र करनी चाहिए।
क्योंकि 'अन्न ही इश्वर है' अन्न ,जल और प्राण वायु तो भारत में प्रकृति ने सहज ही उपलब्ध करा रखे हैं। केवल एक काम बाकी था और उसे करने का हक कुदरत ने हम देशवासियों के लिए दिया था।जो हम अभी तक नहीं कर पाए।10 सह्श्त्र वर्षों में भी . हम उतना भी नहीं कर सके जो चीन ने कर दिखाया। आज एक तरफ भारत है जहां अनाज खुले आसमान के नीचे बारिस में सड़ रहा है और 70 फीसदी आबादी गरीबी की रेखा से नीचे है।दूसरी ओर चीन है जहां प्रुकृतिजन्य खाद्यान्न कासंकट है किन्तु कोई भूंखा नही सोयेगा और अन्न का एक दानाभी बेकार नहीं जाने दिया जाएगा।
श्रीराम तिवारी
बाज मर्तवा सुप्रीम कोर्ट ने जरुर इस ओर कार्यपालिका और व्यवस्थापिका का ध्यान आकर्षण किया किन्तु किसी के कान में जू नहीं रेंगी।अभी भी देश का पूंजीवादी विपक्ष और मीडिया उन काल्पनिक मुद्दों को हवा दे रहा है जिनका वास्तविकता और सामाजिक सरोकारों से कोई वास्ता नहीं।कहीं कार्टून बनाने ,कहीं सोशल मीडिया पर अंकुश लगाने, कहीं कोलगेट काण्ड पर संसद न चलने देने , कभी जंतर-मंतर और रामलीला मैदान पर अपनी अपनी बाजीगरी दिखाकर भृष्टाचार और कालेधन पर रात-दिन बकवास करने वाले स्वनामधन्य [अ]नेता भी अन्न भण्डारण ,उचित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था , मूल्य नियंत्रण और सुखा बाढ़ की समस्याओं पर एक शब्द नहीं बोलते। इसीलिए यह कहावत वन गई है की ' ये देश चल रहा भगवान् भरोसे' खाद्यान्न का रिकार्ड उत्पादन और भुखमरी दोनों ही यदि दुनिया में कहीं एक साथ हैं तो वो मुल्क है भारत।
इस साल भारत की उपरोक्त तस्वीर को अब हम अपने पड़ोसी चीन के साथ विजन करके देखते हैं। चीन ही क्यों लगभग सारी दुनिया में सुखा -बाढ़ जनित खाद्यान संकट मुह बाए खड़ा है। वैश्विक
स्तर पर अनाजों का उत्पादन न केवल घटा है बल्कि स्थिति नाज़ुक बनी हुई है।चीन ने लगभग 5 दशक तक महंगाई को लगातार काबू में रखा। अपनी विशाल आबादी और श्रम शक्ति को न केवल राजनैतिक रूप से परिपक्व किया , बल्कि सामाजिक और आर्थिक रूप से हर क्षेत्र में असमानता और गैर-बराबरी को ध्वस्त करते हुए चीन ने खेल जगत ,संचार सूचना प्रोदौगिकी तथा सेन्य क्षेत्र में विश्व कीर्तिमान स्थापित किये हैं। हाल के दिनों में आई भूकंप,बाढ़ सुखा इत्यादि प्राकृतिक आपदाओं ने चीन को भी पूंजीवादी बीमारियों ने आ घेरा है।
दुनिया भर में बढ़ रहीं अनाज की कीमतों और चीन में घटे खाद्यान उत्पादन ने महंगाई का दामन थाम लिया है। भले ही अभी महंगाई दर 2% के आसपास है किन्तु आखिर मौत ने घर तो देख ही लिया है। चीन को अपने साम्यवादी ढाँचे में घुसपेठ कर रही पूंजीवादी 'यूनियन कार्वईड ' के हमले से सावधान रहना चाहिए। वर्ना साम्यवादी लाल क्रांति [1940-47] के पूर्व के चीन से बदतर हालातों के लिए तैय्यार रहना चाहिए।
भारत को विदेशी ताकतों के गुलाम रहने की परम्पराओं की वेशुमार बीमारियाँ घेरे हुए हैं। कुछ आज़ादी के बाद नेताओं अफसरों के हरामीपन ने देश की तस्वीर बदरंग कर दी है ऐंसे में आजू बाजू के देशों में भुखमरी या राजनेतिक उथलपुथल का होना भारत की सेहत के लिए ठीक नहीं। भारत को अपनी खाद्यान्न व्यवस्था पर प्रथमिकता और दूरदर्शिता के आधार पर ध्यान केन्द्रित कर अन्न के प्रत्येक कण की कद्र करनी चाहिए।
क्योंकि 'अन्न ही इश्वर है' अन्न ,जल और प्राण वायु तो भारत में प्रकृति ने सहज ही उपलब्ध करा रखे हैं। केवल एक काम बाकी था और उसे करने का हक कुदरत ने हम देशवासियों के लिए दिया था।जो हम अभी तक नहीं कर पाए।10 सह्श्त्र वर्षों में भी . हम उतना भी नहीं कर सके जो चीन ने कर दिखाया। आज एक तरफ भारत है जहां अनाज खुले आसमान के नीचे बारिस में सड़ रहा है और 70 फीसदी आबादी गरीबी की रेखा से नीचे है।दूसरी ओर चीन है जहां प्रुकृतिजन्य खाद्यान्न कासंकट है किन्तु कोई भूंखा नही सोयेगा और अन्न का एक दानाभी बेकार नहीं जाने दिया जाएगा।
श्रीराम तिवारी
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