हमें मालुम है कि हम उस जल में रहते हैं,
जिसमें मगरमच्छ भी रहते हैं।
लुटेरों को भाग्यवान और मज़दूर को बदनसीब,
सिर्फ शोषण के समर्थक ही कहते हैं।
बाज़ारों में गलाकाट प्रतिस्पर्धा की मच रही होड़,
इस 'सिस्टम' में केवल 'लाभ-शुभ'चलते हैं।
राज्यसत्ता पर काबिज भूस्वामी और पूंजीपति,
आपस में गठजोड़ बना रखते हैं।
टेलीविजन पर खबरिया चेनलों का कुकरहाव,
देख-देख' ' प्रोलेटेरियत' सर धुनते रहते हैं।
गोदामों में सड़ता रहता अन्न -गेंहूँ -चावल,
फिर भी कुछ अभागे भूँखों मरते रहते हैं।
अन्याय और भृष्टाचार की इन्तहा हो चुकी,
वे अहमक हैं जो भूंख पर नज्में लिखते हैं।
श्रीराम तिवारी
जिसमें मगरमच्छ भी रहते हैं।
लुटेरों को भाग्यवान और मज़दूर को बदनसीब,
सिर्फ शोषण के समर्थक ही कहते हैं।
बाज़ारों में गलाकाट प्रतिस्पर्धा की मच रही होड़,
इस 'सिस्टम' में केवल 'लाभ-शुभ'चलते हैं।
राज्यसत्ता पर काबिज भूस्वामी और पूंजीपति,
आपस में गठजोड़ बना रखते हैं।
टेलीविजन पर खबरिया चेनलों का कुकरहाव,
देख-देख' ' प्रोलेटेरियत' सर धुनते रहते हैं।
गोदामों में सड़ता रहता अन्न -गेंहूँ -चावल,
फिर भी कुछ अभागे भूँखों मरते रहते हैं।
अन्याय और भृष्टाचार की इन्तहा हो चुकी,
वे अहमक हैं जो भूंख पर नज्में लिखते हैं।
श्रीराम तिवारी
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