भारत की गुलामी और आर्य सभ्यता के पतन के कारणोंमें पौराणिक लफ्फाजी,"अहिंसा परमोधर्मा" और सामंतवादी व्यवस्था मुख्य कारण रहे हैं।जहां एक और अहिंसावादी सोच ने पराजित विदेशियों को बार बार माफ किया और उनका बध न करके जिंदा छोड़ दिया,कालांतर में वही शत्रु हमारे राजे रजवाड़ों के लिए घातक सिद्ध हुए।
महाप्रतापी चक्रवर्ती सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने यदि मुहम्मद गौरी को जिंदा न छोड़ दिया होता, तो भारत का इतिहास एवं भारत की गौरवगाथा और 'हिंदू समाज' का जाज्वल्यमान चरित्र विश्व वंदनीय होता।
इस्लाम के आगमन उपरांत भारतीय समाज में छुआ-छूत का व्यापक असर हुआ, जिससे समाज के विभिन्न अंगों को परस्पर मिलने नहीं दिया वहीं दूसरी तरफ जो भी लोग भय,लोभ या अत्याचार से मुस्लिम बन गए थे उन्हें शुद्ध करने से मना कर दिया गया ।पानीपत की दूसरी लड़ाई में वीर हेमू का अकेले ही लड़ कर मरना इसी छुआ-छूत के विष वृक्ष का फल था ।धर्म के ठेकेदारों की धर्म व राष्ट्र विरोधी नीति के कारण मुस्लिम बने लोगों ने हमारी मानसिक संकीर्णता के कारण हम पर कैसे कैसे अत्याचार किये उसे याद कर मन आक्रोश से भर जाता है ।
सिन्धु नदी के पार धुरी नामक हिंदुओं की जाति निवास करती थी परिस्थितिवश पूरी जाती मजबूर होकर मुसलमान बन गई किसी ने उसकी शुद्धि का विचार नहीं किया। कुछ काल बाद धर्मांतरित हिंदुओं के एक कबीले में मोहम्मद गौरी पैदा हुआ, जिसके कारण भारत में इस्लामिक गुलामी का सूत्रपात हुआ।
मोहम्मद गजनबी की चढ़ाई के समय हजारों हिंदुओं को गुलाम बनाकर ईरान ,तूरानऔर अरब स्थान ले जाया जाता था। उनमें से कुछ धोखा देकर पुनः पंजाब भाग आते थे। और फिर राजस्थान के हिंदू राजाओं की शरण में आने लगे इस बात से प्रसन्न थे कि अब फिर अपने कुटुंब व समाज के साथ रहेंगे पर कोई भी उन्हें हिंदू समाज में मिलाने को तैयार नहीं हुआ।इसका कारण यह था कि कहीं उन्हें भी अछूता मान लिया जाए ।इस निर्दयी शुद्धि रक्षा का परिणाम था कि लाखों स्त्री पुरुषों को मुसलमानों द्वारा भ्रष्ट होने के भय से अग्नि ,नदी तालाबों में कूदकर मरना पड़ा।
वीर सावरकर ने 'भारतीय इतिहास के छः स्वर्णिम पृष्ठ' में लिखा है कि जेहाद का नारा देकर टीपू सुल्तान ने मालाबार पर हमला करके एक लाख स्त्री पुरुषों को जबरदस्ती मुसलमान बनाया इस के आतंक से डरकर धर्म रक्षा हेतु सैकड़ों हिंदुओं ने अपने बच्चों के साथ तुंगभद्रा नदी में कूदकर या धधकती आग में शरण ली।
मराठा सरदारों ने कर्नाटक जीतकर टीपू के धर्मोन्माद उतार दिया। जिस समय कर्नाटक को जीतकर मराठी सेना हर हर महादेव के नारे लगाती हुई वापस आ रही थी ,तो जबरदस्ती मुसलमान बनाई गई महिलाएं मुसलमानी जनानखानों की खिड़कियों पर आ खड़ी हुईं ताकि उस विजयी सेना में सम्मलित उनके भाई ,पिता आदि उन्हें पहचानने और उन्हें अपने साथ ले जाएं। परंतु सब कुछ देख कर भी उनके मन में इस बात का विचार तक नहीं आया, यदि केवल विचार भी आता तो उन्हें सरलतापूर्वक मुक्त कराया जा सकता था।सेना चली जाने के बाद वे महिलाएं रोती रोती उन्हीं मुस्लिम घरों में चली गई ,और जीवन भर हिंदुओं के शत्रुओं की संख्या बढ़ाती रहीं।
अपनों के अत्याचारों से पीड़ित होकर ही कालाचंद्र ने मोहम्मद मावली बनकर हिंदुओं पर घोर जुल्म ढाए,उन्हें याद कर ह्रदय काँप उठता है । कहते है उसने अपने पर आसक्त मुस्लिम राजा की बेटी से शादी कर ली तो ब्राह्मणों ने उसे पतित कहकर अपमानित किया। उसने जगन्नाथपुरी में भी शुद्धि के लिए प्रार्थना की पर बदले में तिरस्कार ही मिला ।प्रतिशोध की भावना से उसने मोहम्मद मावली बनकर उड़ीसा पर आक्रमण कर दिया और हैवानियत की पराकाष्ठा कर दी । काला पहाड़* पुस्तक पढ़ कर ह्रदय क्षोभ और आक्रोश से इस कद्र भर जाता है कि कई दिन तक मन परेशान रहता हैं ।
कश्मीर में हिंदू राजा बनने पर मुसलमानों द्वारा अपील की गई कि "हम कई वर्ष पठान और दूसरे मुसलमानी राज में पीसे गये। छल से हमें मुस्लिम बनाए गया ।हमें हिंदू धर्म में वापिस आना है।.... आप जो आज्ञा करेंगे वह प्रायश्चित कर हम पुनः हिंदू होंगे।" याचिका लेकर राजा ने काशी के पंडितों से इस संबंध में पूछा। पंडितों के मना करने पर भी राजा ने शुद्धि कार्य का प्रबंध किया . राजपुरोहितों ने राजा से कहा -----'यदि आप अधर्म करेंगे तो हम प्राण त्याग देंगे' यह कह कर उन्होंने झेलम में नाव छोड़ दी ।राजा को शुद्धि कार्य रोकना पड़ा और कश्मीर के नागरिक मुसलमान ही रहे ।
सदियों बाद महर्षि दयानंद सरस्वती ने शुद्धि के महत्व को समझ कर हिंदू धर्म में आने के बंद तालों को खोल शुद्धि आंदोलन चलाया। पंडित लेखराम इसी शुद्धि यज्ञ में आहुत हो गए ।बाद में स्वामी श्रद्धानंद जी ने आगे बढ़कर लगभग 800000 मुसलमानों को उनके घर ,(हिंदू धर्म) में प्रवेश कराया। महात्मा गांधी ने शुद्धि आंदोलन का विरोध किया जिससे क्रोधित हुए मुसलमानों ने स्वामी श्रद्धानंद को गोली मारकर हत्या कर दी ।यदि गांधी शुद्धि यज्ञ में रोड़ा ना अटकाते तो पाकिस्तान बनने की नौबत ही ना आती।
गलतियों पर करींगलतियाँ इस कदर ,
साथ अपनों का हमसे छूटता ही गया।
नफरतों ने दिलों पर सितम ढा दिये,
आइना प्यार का टूटता ही गया।।
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