यह अकाट्य सत्य है कि नाम,यश,कीर्ती के परे असीम आनंद के आवेग में नकारात्मक सोच का कुटिल व्यक्ति भी ह्रदय परिवर्तन का सौभाग्य प्राप्त कर सकता है! मरा मरा कहने वाला रत्नाकर डाकू भी एक दिन बाल्मीकी के रूप में रामायण जैसे महा काव्य की रचना कर सकता है ! इतिहास में अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं जब किसी दुष्ट खलनायक को नायक बनते देखा गया!
वैसे भी हर कोई पैदायशी हरिष्चंद्र नही होता,देश काल परिस्थितियां और सोच- ये सब मिलकर ही व्यक्ति,वस्तु और परिवेश की दिशा और दशा तय करते हैं!अत: यह जरूरी नहीं कि जो पूर्व में बदमाश रहा,वह कालांतर में ह्रदय परिवर्तन के उपरांत बोधत्व को प्राप्त न हो सके ! हालाँकि इसका प्रतिलोम भी संभव है! बहरहाल तमाम खामियों के बावजूद भारत के मौजूदा भाग्यविधाता राष्ट्र के प्रति यथेष्ट उत्तरदायी सिद्ध हो रहे हैं! ईश्वर का बहुत बहुत धन्यवाद!
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