जैसी करनी - वैसा फल

आज नहींं तो निश्चित कल


माता-पिता नही रहे,भाई सेना में बड़े अफसर थे, अब वे भी नही रहे। जिसको गोद लिए, उसकी शादी हो गई। अब उसे भी इनसे मतलब नहीं है। अपने घर मे कुछ बन्दर और कुत्ते पाल रखे हैं, ये शानो शौकत, पैसे सब बेकार सिद्ध हुए......अब बस मृत्यु ही शायद इनका कष्ट दूर कर सकती है।
जरा सोंचिये! कल तक बड़े बड़े अधिकारी/कर्मचारी जिनकी गाड़ी का दरवाज़ा खोलने के लिए आतुर रहते थे, वही आज दुनिया के सामने जमीन पर असहाय पड़ा था। उसने दो शादी की, मगर दोनों बीबियों ने तलाक दे दिया। कोर्ट में सबका कोई न कोई आया था,लेकिन वे अकेले थे..
इसकी वजह बिल्कुल स्पष्ट है कि जब वह पद पर रहे होंगे, सिर्फ धन अर्थात रुपैया को ही अपना सब कुछ मान लिए होंगे। किसी की दिल से मदद नहींं की होगी। अगर की होती तो शायद आज कोई न कोई उनके लिये जरूर खड़ा रहता...........। एक बात तय मानिए, भ्रष्टाचार यानी लूट-खसोट की कमाई सर चढ़कर अपना असर दिखाती है। इसलिये जब हम सामर्थ्यवान हों तो हमें दूसरे की मदद जरूर करनी चाहिए, जिससे की लोग बाद में आपको भी याद करें, आपके साथ रहे।
इसलिये जीवन को जीवन्त बनायें। लोगों की मदद करते हुए अपना जीवन जिएं। पाप की कमाई आखिर किसके लिए---? जरा सोंचिए तो सही कि पैसा बहुत कुछ तो है पर , सब कुछ नहींं।
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