रविवार, 17 जनवरी 2016

''जय हनुमंत अतुल बल धामा। तुमको भजे भक्त ओबामा।।

सलमान खान ने अपनी फिल्म 'बजरंगी भाई जान ' में सिर्फ बजरंग शब्द का प्रयोग ही किया है ,कथावस्तु का कोई सरोकार बजरंगबली से नहीं है। इतने अवदान मात्र से  फिल्म की अप्रत्यासित सफलता -कमाई और  'हिट एंड रन 'केस से बाइज्जत बरी होना। एक साथ इतना बम्फर बोनांजा ! जय हो बजरंगबली ! ये तो महिमा नाम की या में सलमान का क्या कसूर है ?  हालाँकि  सलीम -सलमान खानदान में सुना है गणेश स्थापना और पूजा का भी चलन है।वेशक  यह  निजी निष्ठां का प्रश्न हो सकता है कि भाववादी दर्शन या धर्म-अध्यात्म जगत में कौन किससे कितनी  प्रेरणा लेता है?  मैं निहायत ही नास्तिक किस्म का प्राणी  हूँ ,किन्तु जब कभी कहीं  मंदिर, मस्जिद  ,गुरुद्वारा गिरजा देखता  हूँ तो श्रद्धा से  अनायास ही मेरा सर झुक जाया  करता है। लेकिन चमत्कार का दावा करने वालों , कर्मकांड और दिखावा करने वालों  और राजनीति के लिए धर्म को सड़क पर लाने वालों से मुझे  शख्त नफरत  है। तीर में तुक्का लगने पर या चांस लगने पर ,या निजी तौर पर अच्छे  दिन आने पर, हर  कोई  प्रतिमान या अवलम्ब गढ़ लेता है। जैसा कि सलमान ने गढ़ा होगा और अब बराक ओबामा गढ़ रहे  हैं ! 

अब तक तो हनुमान जी केवल भारत जैसे गरीब देश के  दींन -हीन मूर्तिपूजक हिन्दुओं के ही तारणहार हुआ करते थे। किन्तु अब तो वे  बाजारीकरण - उदारीकरण के दौर में वैश्विक हुए जा रहे हैं। खबर है कि नाटो और पेंटागन पर बराक ओबामा को जब भरोसा नहीं रहा, जब उन्हें लगा कि अमेरिकी फौजें और नाटो की ताकतें मिलकर भी आईएसआईएस का मुकाबला नहीं  कर सकतीं और वे  अमेरिकन साम्राज्य्वाद  की रक्षा नहीं  कर सकेंगे। तो  उन्होंने '' पवन तनय बल पवन समाना । बुधि विवेक  विज्ञान निधाना'' भजना शुरू कर दिया है। बराक ओबामा की  भक्ति पर प्रशन्न होकर महावीर बजरंगबली  ने अब उनके परिवार और अमेरिका की रक्षा का उत्तरदायित्व  भी मंजूर कर लिया  है। शायद यही  वजह है कि भारत के सनातनी हिन्दुओं को ओबामा की इस बजरंग भक्ति  पर  बड़ा गर्व और गुमान हो चला है। किन्तु उनकी मंदिर वाली राजनीति से बजरंग बलि बहुत नाराज हैं। इसीलिये  आजकल नकली रामभक्तों की  कोई सुनवाई नहीं हो रही है।वे बातें तो बड़ी लच्छेदार कर लेते हैं लेकिन चाल-चरित्र-चेहरे की विद्रूपता में खोट होने से तेतीस करोड़ में से  कोई एक भी देवता उन पर विश्वास नहीं कर पा रहा है। रामा दल वाले भले ही ठाठ  से हों किन्तु 'राम लला ' तो अभी भी टाट में ही हैं।

यूरोपियन हैनीमैन से निराश होने के बाद ओबामा को किष्किन्धा के हनुमान जी की असीम ताकत पर बड़ा  भरोसा है। अब यदि  सनातनी हिन्दू भक्तगण चाहें तो हनुमान चालीसा में यह तो जोड़ ही सकते हैं कि  ''जय हनुमंत अतुल बल धामा। तुमको भजे भक्त ओबामा।। सुना है कि मार्क जुकुरवर्ग ने  भी मोदी जी की अमेरिका यात्रा के दौरान उन्हें बताया कि एफबी की स्थापना से पूर्व वह  भारत के हिमालय क्षेत्र स्थित नीम करौली वाले बाबा से  आशीर्वाद लेकर ही अमेरिका लौटा था। इस खबर से भारत के  तमाम बाबाओं की इज्जत में चार चाँद  लग गए।  इस आधार पर रामायण या हनुमान चालीसा में यह  भी  शामिल किया जा सकता है कि   ,,,,,,,,,

''जब वह  नीम  करौली आवे। जुकरवर्ग भी ध्यान लगावे ''

सुना है  कार्ल मार्क्स बहुत विद्वान थे। उन्होंने भारत के बारे में बहुत कुछ लिख मारा  है। उनकी एक मसहूर पुस्तक ''भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम ''तो मैंने भी जवानी के दिनों में पढ़ी है। यह एक नायाब यथार्थ और सत्यापित दस्तावेज के रूप में  है।मार्क्स ने भारतीय प्राच्य संस्कृति ,उपनिषद,अष्टाध्यायी और वैदिक साहित्य का भी खूब सांगोपांग अध्यन किया था। किन्तु मुझे यह समझ नहीं आया कि उन्होंने सृष्टि के प्रथम क्रांतिकारी मारुतिनंदन -बजरंगबली को क्यों छोड़ दिया। जबकि ये लाल लंगोटे वाले ब्रह्मचारी महाबली वीर  हनुमान जी तो विश्व के  प्रथम क्रूसेडर अथवा  वोल्शेविक थे । हनुमान जैसे प्रबुद्ध ,चैतन्य  और वर्ग चेतना से समृद्ध सर्वहारा के मामले में मार्क्स -एंगेल्स और लेनिन ही नहीं बल्कि भारत के तमाम वामपंथी भी गच्चा  खा गए ! मेरा  दावा है कि जिस किसी ने भी हनुमान जी द्वारा लिखित ''हनुमन्नाटक '' पढ़ा होगा  वह  उन्हें पौराणिक - मिथकीय पात्र नहीं मानकर सिद्ध देवता ही मानेगा और  ओबामा की  तरह अपनी जेब में रखना पसंद  करेगा।

मार्क्स ने 'हनुमन्ननाटक 'तो क्या  हनुमान चालीसा भी नहीं  पढ़ा होगा।और यदि  बजरंगबाण  पढ़ा होता तो वे अपनी प्रसिद्ध पुस्तक पूँजी [दास केपिटल]में या  अपने प्रसिद्ध अविष्कार 'द्वन्दात्मक-भौतिकवाद 'में या अपने वैज्ञानिक -  विकासवाद के सिद्धांत में उनका उल्लेख जरूर करते। तब वे  शायद अपनी 'अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत 'जैसी थीसिस को  किंचित यूरोपियन नजरिये से नहीं बल्कि 'भारतीय नजरिये'से पेश करते। हालाँकि मार्क्स द्वारा सम्पादित 'कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो' अवश्य  ही हनुमान जी के पुरातन क्रांतिकारी  भावों को  ही व्यक्त करता है। कितना दुखद है कि  हनुमान जी को समझने या यों  कहें कि उन्हें  भंजने में  कार्ल मार्क्स चूक गए। यही वजह है कि  भारत के लाल झण्डे  वालों पर  इन लाल लंगोट वाले महावीर बजरंगबली की कृपादृष्टि  नहीं है।  इसीलिये वामपंथ के हर संघर्ष और क़ुरबानी का फल  कभी कांग्रेस , कभी भाजपा,कभी मुलायम ,कभी माया ,कभी ममता ,कभी द्रमुक पार्टियां खा जाती हैं ।

''कनक  भूधराकार शरीरा । समर भयंकर अति  बलवीरा।। ''  की तर्ज पर यदि किसी भी देवता या अवतार की छवि का  इस तरह भयानक चित्रण या व्यक्तित्व निरूपण किया जाता रहा हो तब उससे प्यार कैसे किया जा सकता है ? इसीलिए प्यार -व्यार और श्रद्धा -आश्था तो दूर उनके  नजदीक जाने का साहस भी बहुत कम लोगों में  ही होगा।'भूत-पिशाच निकट नहीं आवें ' से लेकर अष्ट-सिद्धि नव निधि के दाता ''की छवि गढ़ने में भारतीय सनातन समाज की  शहस्त्राब्दियाँ खप  गयीं। प्राचीन काल में हर देश की  आस्तिक आवाम  ने अपने  दुखों-कष्टों के निवारण और हर्किस्म के शत्रु से सुरक्षा बाबत अपनी अपनी समझ ,रुचि ,सभ्यता,संस्कृति,देशकाल के अनुरूप धर्म-मजहब एवं  देवीय शक्तियों की कल्पना की थी ।  कालांतर में उन धर्मो-मजहबों और अवतारों में हेर-फेर  होते रहना स्वाभाविक प्रक्रिया है। हिन्दुओं ने तो  इस मामले में वर्ल्ड  रिकार्ड  भी हजारों साल पहले ही कायम  कर लिया था। तेतीस करोड़  देवताओं की  परिकल्पना ,उनके मन्त्र ,स्तुति ,पूजा -अर्चना ,उनके  चित्र-विचित्र विग्रहों की कल्पना को साकार रूप प्रदान करना और उनके अनुरूप नैवेद्य -पत्रं-पुष्पम समर्पयामि की उचित व्यवस्था  करना कोई आसान काम नहीं रहा होगा।

 अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा  की जेब में  तो सिर्फ 'बजरंगबली'ही विराजमान हैं। वैसे भी  यदि इस धरती पर उपलब्ध  समस्त  देवताओं ,अवतारों ,पीर-पैगंबरों की प्रसिद्धि विषयक  मीजान निकला जाये तो  ''प्रात ले जो नाम हमारा। तेहि दिन ताह  न मिले अहारा '' वाले अन्जनीनंदन की टीआरपी  ही सर्वाधिक पायी जाएगी। हजारों साल से  भारत के करोड़ों अमीर-गरीब ,दलित- सवर्ण और अगड़े-पिछड़े राजा-रंक  समान रूप से  इन  रुद्रावतार  महाबली  वीर बजरंग बलि पर सर्वाधिक भरोसा करते आये हैं। अब यदि बराक ओबामा भी  उनके भक्तों में शुमार हैं ,तो अमरीका का कोई बाल -बाँका नहीं कर सकता।

महाबली वीर हनुमान जी  चूँकि  गरीब वर्ग के देवता हैं। इसलिए वे देवताओं में 'सर्वहारा कहे जा सकते हैं। वे यदि अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा की जेब में हैं तो यह पूँजीवादी अमेरिका की कोई चाल है। क्योंकि यदि उसे हनुमान जी  बाकई प्यार है  तो  पेंटागन और नाटो की क्या जरुरत है ?  वैसे भी कुछ पक्के बजरंग भक्त तो हैनीमेन को भी हनुमान का अपभ्रंस  ही बताते हुए  पुलकित होते रहते हैं। मुझे भी बचपन से ही  बजरंग बली मे अगाध श्रद्धा रही है। उन्ही की बदौलत अपन किसी भी बड़े से बड़े तुरमखाँ को ,आधुनिक असुर या  लंकापति  को भुनगे से ज्यादा  कुछ नहीं समझते। मेरा जन्म चूँकि  खौपनाक जंगल वाले और दुर्दांत डाकुओं वाले इलाके में  हुआ है। और वहाँ  धामनिया, कोबरा ,करैत  साँप  और हिंसक जंगली जानवरों के अलावा मनुष्यमात्र में भी  विषाक्त  और  हिंसक प्रवृत्ति  प्रचुर मात्रा  में उपलब्ध है। वहाँ आज भी गाँव  से मीलों दूर-तक कोई पुलिस या मिलट्री नहीं है। वैसे यदि  होती भी तो क्या कर लेती ? उधमपुर ,पठानकोट ,मालदह , दादरी ,रतलाम व देवास में इन सुरक्षा बालों ने क्या कर लिया  ?केवल शहादत देना ही इनका उत्त्तरद्यित्व नहीं है ,असल चीज है जान-माल की सुरक्षा करना। चूँकि कांग्रेस और भाजपा सरकारें  भी अपने  देश और समाज की सुरक्षा नहीं कर पा रहीं हैं, इसलिए  भारत  के भोले -भाले  मजदूर -किसान अब इस वैज्ञानिक युग में भी कभी बजरंगवली कभी  हाजी अली पीर के समक्ष मत्था टेक रहे  हैं। श्रीराम तिवारी 

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