वह सिद्धांत और दर्शन ,जो मनुष्यमात्र को -
जीवन जीना सिखाता हो , उसे सत धर्म कहते हैं।
वह संगीत-कला -साहित्य ,गीत सम्पूर्ण जगत का ,
करता हो संचार सरस रस , जीवन का मर्म कहते हैं।
आये काम सताने के , निर्बल को जो काली ताकत
उसी बला को वसुंधरा पर ,मानवता की शर्म कहते हैं।
कार्य विशेष को करने से ,या जिसेके न करने से ,
हो विश्व का कल्याण ,उसे सतकर्म कहते हैं। श्रीराम तिवारी
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