बुधवार, 1 अप्रैल 2015

क्या वे नहीं जानते कि :- बोली एक अमोल है ,जो कोई बोले जान ?



 केन्द्रीय  मंत्री गिरिराज सिंह और उनके जैसे अन्य अपरिपक्व  भाजपा नेताओं  के  रंगभेदवादी और नस्लवादी वयानों से उन  समस्त भारतीय महिलाओं का घोर अपमान  हुआ है जो गोरे  रंग की नहीं हैं। इन  घटिया वयानों  से दुनिया भर  में भारत  की भद्द पिट रही है। सरकर  का  भी  भद्दा मजाक उड़ाया जा रहा है।ये ढीठ बतौलेबाज- मुँहफट नेता और उनकी पार्टी सत्ता के लायक तो कदापि नहीं है। ये सिर्फ विपक्ष की भाषा ही जानते हैं। शासन  में  बने रहने का शऊर इनमें किंचित नहीं है। यह  जनता की भी भयंकर भूल है कि 'बादल देखकर सुराही फोड़  देती है '। नागनाथ की जगह सांपनाथ को सत्ता में बिठा  देती है। मीडिया की मेहरवानी से उसे सर्वहारापरस्त ईमानदार हरावल दस्तों के रूप में  सही विकल्प नजर  ही नहीं आता। मोदी सरकार की जय-जैकार करने वाले  बताएं की क्या अब  रेलें समय पर चल रहीं हैं ? क्या गाड़ियाँ  पटरी से नहीं उत्तर रहीं ? क्या कालाधन वापिस आया है?  क्या  किसान  को मदद मिल रही है?  क्या मजदूर को मजदूरी मिल रही है ? क्या भृष्टाचार पर अंकुश लगा है? क्या रिश्वतखोरी  पर कोई काबू है ? क्या  महँगाई पर किसी का कोई नियंत्रण है ? क्या  सीमाओं पर शांति है? क्या  कश्मीर सहित सम्पूर्ण भारत  में अमन है ? क्या  हत्या -बलात्कार और नारी उत्पीड़न में कोई   कमी आयी है ? क्या  बिजली-पानी -स्वाश्थ  या शिक्षा में कोई ठोस सकारात्मक बदलाव हुआ है ? क्या यह सच नहीं है  कि  मौजूदा चुनौतियों और समस्याओं से जनता का ध्यान भटकाने के लिए- कभी धर्मांतरण ,कभी घर वापिसी  , कभी गाय-गीता -गंगा का काल्पनिक विमर्श, कभी जाति  - धर्म का विमर्श ,कभी देशी-विदेशी का विमर्श ,कभी काले-गोरे का विमर्श और कभी किसी की वैयक्तिक जिंदगी-शादी -व्याह के विमर्श  को रहस्य  रोमांच  के साथ  बचकानी  दंतकथा के रूप में पेश करने का शौक सत्तारूढ़ नेताओं को चर्राया है ? क्या  तथाकथित हिंदूवादी सरकार के  मंत्रियों से  यह  अपेक्षा नहीं  थी कि  कम से कम अपने संतों की पावन  वाणी का  अनुशीलन वे खुद करते? क्या वे नहीं जानते  कि :-

                     बोली एक अमोल है ,जो कोई बोले जान !

                    ह्रदय तराजू तौलकर ,फिर मुख बाहर आन ! ! 


                                                                                                         श्रीराम तिवारी 

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