गुरुवार, 2 अप्रैल 2015

आ गए ! आ गए ! ! "अच्छे दिन आ गये"!!!

एक गाँव में एक काणा रहता था.

सब लोग उसकी एक आँख होने की वजह से उसे  "काणा" -"काणा" कह कर चिढाते रहते थे.
.
उसे इस बात से बेहद  तकलीफ  हुआ करती थी..

 एक दिन उसने सोचा कि  इन गाँव वालो को सबक  कोई सबक सिखाना चाहिए  !

 इसी उधेड़बुन में उसने  आधी रात को अपनी दूसरी आँख भी फोड़ डाली।  सुबह होते ही वह पूरे  गाँव में

 चिल्लाता हुआ दोड़ने लगा.

     मुझे  भगवान दिखाई दे रहें हैं!

 मुझे अच्छे दिन दिखाई दे रहे हैं !!

 यह सुनकर गाँव वाले बोले-

“अबे काणे तुझे कहाँ से भगवान या अच्छे दिन दिखाई दे रहें हैं”??? सब दूर तो बदहाली ही बदहाली बिखरी पडी है ?
 नाबीना बोला -रात को मेरे सपने में भगवान ने दर्शन दिये और कहा -: अगर तू अपनी दुसरी आँख भी फोड़ ले

तो तुझे "अच्छे दिन" जरूर दिखाई देंगे..!

मैंने ईश्वर का आदेश माना  और दूसरी आँख भी फोड़ ली.

इतना सुनकर गाँव के सरपंच ने

कहा:- मुझे  भी अच्छे दिन देखने हैं..! क्या करना होगा ?

 अँधा बोला ;-  सरपंच जी आप अपनी दोनों आँखे फोड लो -तभी दिखाई देंगे "अच्छे दिन"..!

सरपंच ने हिम्मत करकेरात में  अपनी दोनों आँखे फोड़ लीं..!

पर ये क्या  ? अच्छे  दिन तो दूर अब तो उसे दुनिया दिखाई देना भी बंद हो गई..!

सरपंच ने अँधे से कान में कहा की " मुझे अच्छे दिन  दिखाई  क्यों नहीं दे रहे".?

अँधा बोला  :-सरपंच जी सबके सामने ये सच मत बोलना, नहीं तो सब आप को मुर्ख कहेंगे, इसलिए झूंठ-मूंठ ही बोलते रहो  कि " अच्छे दिन आ गए".!

यह  सुनकर सरपंच  ज़ोर  से  बोला "मुझे भी अच्छे दिन दिखाई दे रहे हैं"..!

इसके बाद एक एक करके सभी  गांव वालों ने अपनी -अपनी आँखे फोड़ डालीं।  आत्मग्लानि के सिंड्रोम से

पीड़ित सभी ग्राम वासी  मजबूरी में वही दुहरा रहे थे -जो उनके  सरपंच ने कहा  था कि  ..!

 आ  गए ! आ गए ! ! "अच्छे दिन आ गये"..!

यही हाल  इन दिनों काल्पनिक अच्छे दिनों के अंध  समर्थक  अंधश्रद्धालुओं का है..!

 अपनी  वैयक्तिक चाटुकारिता और बेलगाम स्वार्थ पूर्ती के निमित्त कुछ लोग देश की वास्तविक दुर्दशा से

लगातार  मुँहफेर रहे हैं। वे कश्मीर में अपनी कूटनीतिक असफलता को पूर्ववर्ती सरकारों के मत्थे  मढ़  रहे हैं! 

किसानों की बर्बादी में ,उनकी आत्महत्याओं में ,उन्हें उनकी बदनसीबी और खुद  का महानतम पुण्योदय

दिखाई पड रहा है !अपनी  तमाम असफलताओं - विरुपताओं  और  अधोगामी - चारित्रिक पतन  से

देश की आवाम  का ध्यान भटकाने के लिए टूटे-फूटे वर्तमान विपक्ष को  ही कोसा जा रहा है । आज  फेंकुओं-

गप्पाड़ियों-ढपोरशंखियों के स्वर में स्वर मिल रहे हैं..!  उनका  विरुद्गान है  कि "अच्छे दिन आ गए " "अच्छे

 दिन आ गए" !

                                                      श्रीराम तिवारी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें