चींटियाँ खूब मेहनती होती हैं। अपनी एकता और मेहनत से अपनी सामूहिक सुरक्षा के निमत्त ठिकाना बनाती हैं। लेकिन उनके इस सार्वजनिक घर [वामी] में साँप जबरन घुस आते हैं। शायद इसीलिये कहावत चल पड़ी है कि 'चींटियाँ घर बनाती हैं और साँप उसमें रहने आ जाते हैं '। हर जानकार इंसान वामी के पास जाने से डरता है। हालाँकि उसे कोई गलतफहमी नहीं कि वह वामी से क्यों डरता है ? दरशल इंसान ही नहीं बल्कि वन्य जीव जन्तु -चूहा,बिल्ली ,कुत्ते ,कीट ,पतंगे भी जानते है कि 'वामी'में उसकी सृजनहार चींटियाँ नहीं बल्कि 'विषधर' निवास करते हैं। वास्तव में तो 'वामी ' के रूप - आकार से किसी को कोई खतरा नहीं। किन्तु वामी में डेरा डालने वाले 'जहरीले' केरेक्टर से हरेक को खतरा है। कहने को तो हर इंसान एक सामाजिक प्राणी है। किन्तु सीधे -सादे सरल लोगों के हक छीनकर ,ओरों के त्याग -बलिदान के कंधों पर चढ़कर जब कोई खास व्यक्ति या संगठन ताकतवर हो जाता है तो उसका आचरण किसी तक्षक ,वासुकि या कालियानाग से कम नहीं होता।
अपने ३५ वें स्थापना दिवस पर 'भारतीय जनता पार्टी ' ने इस छः -अप्रैल को बंगलुरु सहित देशभर में खूब जश्न मनाया। भाजपा को शाबासी देने के बहाने 'संघ' ने भी दिल्ली में एक शानदार जलसा आयोजित किया। अजीम प्रेमजी ,जी एम राव जैसे अग्रिम कतार के पूँजीपतियों को आरएसएस ने अपने मंच पर दुलराया। जबकि जिन्होंने 'संघ' की विचारधारा को परवान चढ़ाया ,जो उसकी संकीर्णता में यकीन रखते हैं ,जो हिन्दुत्ववादी साम्प्रदायिकता की राजनीति करते -करते बूढ़े हो गए ,जिन्होंने जनसंघ की स्थापना की थी ,जिन्होंने आपातकाल में जेपी का साथ दिया , जिन्होंने १९७७ में कांग्रेस को पटखनी देने में ख़ास रोल अदा किया था , जिन्होंने १९८० के मुंबई अधिवेशन में 'भाजपा' की स्थापना की , जिन्होंने रथयात्राओं और कमंडल यात्राओं के बहाने देश भर में साम्प्रदायिकता का तांडव नृत्य नचाया ,जिनके बहकावे में देश के निर्धन -गरीब सर्वहारा मजदूर -किसान ने हल-बैल छोड़कर अयोध्या कुछ किया ,जिनके भाषणों से उत्तेजित मूर्खों ने मस्जिद ढहाई ,जिनके कारण हिन्दू -मुस्लिम दंगे हुए ,जिनके कारण गोधरा काण्ड हुआ ,जिनके कारण गुजरात और देश भर में 'हिन्दुओं' की रुसवाई हुई ,जिनके कारण अनेक बेकसूर जेल गए और दंगों में जान गंवाई ,उन् लालकृष्ण आडवाणी को महज मंच पर बैठकर ही संतोष करना पड़ा। मोदी शाह की जोड़ी ने आडवाणी को सम्बोधन से वंचित कर सिद्ध कर दिया कि कहावत सही है। भाजपा के वर्तमान ' बलात कब्जाधारियों ' ने सावित कर दिया कि 'मूर्ख लोग तो मकान बनाते- बनाते मर जाते हैं किन्तु विद्वान [धूर्त-चालाक ] ही उसमें रह सकते हैं! देश की ज्वलंत समस्याओं की रंचमात्र चर्चा न करना , बड़े नेताओं द्वारा अपने ही काल्पनिक और उन्मुक्त भाषणों को उपलब्धियों बताना ,खुद ही अपनी पीठ थपथपाना इस सम्मेलन की विशेषता कही जा सकती है।
दुनिया की तथाकथित 'सबसे बड़ी पार्टी' भाजपा के बंगलुरु सम्मेलन में हिंदुत्व के एजेंडे पर कोई चर्चा नहीं हुई। लेकिन पार्टी को नाभिनाल से हलाहल पिलाने वाले चीखकर -कह रहे हैं कि 'दूनिया ने इन २००० सालों में जो भी प्रयोग किये हैं वे सब बेकार गए हैं '।अर्थात अबसे २००० साल पहले दुनिया में जो कुछ भी था वही 'सत्यम शिवम सुंदरम' था। समझदार को इशारा काफी है। शायद तब दुनिया में २०००साल पहले सिर्फ भारतीय परम्पराएँ ,दर्शन और धर्म की तूती बोल रही होगी। इसके बाद तो उनके अनुसार दूनिया में केवल ऊधम मचाने वाले ही पैदा हुए हैं। जो लोग समझते हैं कि भाजपा में अब हिंदुत्व की बातों का कोई नामोनिशान नहीं रहा। वास्तव में वे ही हिंदुत्व के वोट वटोरु कार्ड है।लेकिन अंततोगत्वा असल चीज है सत्ता पिपासा। इसके सहारे ही भारत में लोकतंत्र की जगह फास्जिम,समाजवाद की जगह - अब अमीरों का विकाश और धर्मनिरपेक्षता की जगह साम्प्रदायिकता की धमक सुनी सुनायी दे रही है। कार्पोरेट आवारा पूँजी के दलाल ,साम्राज्य्वाद के पिठ्ठू और बहुसंख्यक समुदाय के 'बौद्धिक' इस राज्यसत्ता के बगलगीर हो चुके हैं।
श्रीराम तिवारी
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