युवा पीढ़ी को स्मरण कराया जाता है कि मानव द्वारा मानव के शोषण का इतिहास कितना पुराना है ? शक्तिशाली व्यक्तियों ,समाजों और राष्ट्रों द्वारा -निर्बल व्यक्तियों,शोषित समाजों ओर गुलाम राष्ट्रों के शोषण -दमन -उत्पीड़न का इतिहास जितना पुराना है अन्याय के प्रतिकार का ,संघर्षों का और बलिदान का इतिहास भी उतना ही पुरातन है। हर किस्म के अमानवीय शोषण -दमन - उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने के यादगार इतिहास में '१ -मई -१८८६'का दिन दुनिया के मेहनतकशों के लिए सर्वाधिक- स्मरणीय है। पूँजीबाद के शोषण का तत्कालीन स्वरूप इतना क्रूर और भयावह था कि मेहनतकशों को पशुवत जीवन के लिए मजबूर किया जाता था। उनकी उजरती मजदूरी तो नितांत दयनीय थी ही साथ ही काम के घंटे भी १८ से बीस तक हुआ करते थे। अपनी औपनिवेशिक स्वतंत्रता और औद्द्योगिक क्रांति के उपरान्त 'संयुक राज्य अमेरिका ' दुनिया में जब एक महाशक्ति के रूप में विकसित हो रहा था। तब तत्कालीन पूँजीपतियों को अपने मुनाफे के लिए सस्ता श्रम ,सस्ती जमीन और समर्पित -पक्षधर क़ानून व्यवस्था की दरकार थी। परिणामस्वरूप मजदूरों ,कामगारों के पास गुलामी की बेड़ियों के सिवा सिर्फ़ अपना 'श्रम ' का ही आसरा था। वे अपने मालिकों को सस्ते में श्रम बेचने को बाध्य हुआ करते थे। मजदूरों का बदतर जीवन और मालिकों की ऐयाशी के बीच जो जमीन आसमान का फर्क पैदा हुआ उसने सामाजिक विद्रोह की स्थति पैदा कर दी। मेहनतकश वर्ग का संगठित आक्रोश संघर्ष की मशाल में तब्दील हो गया।
मजदूर संघों के उदय ओर उनकी वर्गीय चेतना ने शोषण के खिलाफ आवाज उठाने का काम किया। मेहनतकशों की मांग थी की "एक दिन में काम के घंटे आठ होने चाहिए "। शिकागो शहर के 'हे मार्किट स्कॉयर ' पर मजदूर अपनी मांग को लेकर - शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन और आम सभा कर रहे थे। उन अहिंसक मजदूरों पर मालिक परस्त पुलिस ने अचानक गोलियों की बौछार कर दी। इस बर्बर गोलीकांड में कई मजदूर मारे गए। अनेक मजदरो और उनके नेताओं पर झूंठे मुकदमें भी लाद दिये गए। कई को फांसी दे दी गई। कई मजदूरों को आजीवन कारावास भोगने के लिए जेलों में जबरन ठूँस दिया गया। जबकि उनका कसूर सिर्फ इतना था कि उन्होंने न केवल खुद के लिए ,बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए भी अपनी आवाज बुलंद की ! उन्होंने हम सब के लिए ,समस्त संसार के मेहनतकशों के लिए अपना श्रेष्टतम बलिदान दिया।जिन्होंने यह महान शहादत दी उनके लिए हमारे दिलों में सदैव कृतग्यता भाव रहेगा । हम सदैव उनके आत्म बलिदान से प्रेरणा लेते रहेंगे।
मई दिवस के उस निर्मम हत्याकांड से बचे-खुचे कुछ बहादुरों साथियों -अलबर्ट पार्सन्स ,अगस्त स्पाइस ,अडोल्फ़ फिशर जार्ज एन्जेल को तो फांसी दे दी गई। समूल फील्डन ,मिखाइल इकबाग ,ऑस्कर नीबे को आजीबन सश्रम कारावास ओर लुइस लींग जैसे बहादुर क्रांतिकारियों की जेल में हत्या करवा दी गई।इस शहादत का असर और रंग तब और गाढ़ा होता चला गया जब महान अक्टूबर क्रांति और दुनिया भर में तमाम देशों में लाल क्रांतियों' के झंडे बुलंद होते गए। लेकिन इतिहास अपने आप को दुहराता है। अभी मेहनतकशों के पराभव और लुटेरी ताकतों के अच्छे दिनों का दौर है। यह मई दिवस हम सभी को ,मेहनतकश - शोषित वर्ग को ज्यादा संघर्ष करने -ज्यादा संगठित होने का संदेश दे रहा है।
शिकागो के शहीद मजदूरों के बलिदान की उस शौर्य गाथा में क्या जोश था ? वह आज भी प्रासंगिक है। एक शहीद मजदूर की १२ साल की बेटी ने अपने मृतप्राय पिता को जब पूंजीपतियों के हत्यारे हुक्मरानों की गोलियों से रक्तरंजित देखा तो मातम मनाने के बजाय उस लड़की ने आक्रोश से मुठ्ठी भींचकर अपने पिता के लहू से रक्तरंजित उनकी शर्ट को हवा में लहराया दिया । आसमान में मुक्का तानकर, अपना बाल्य रोष व्यक्त कर, इस धरती के समस्त मेहनतकशों को उस अबोध लड़की ने अनायास ही लाल झंडे का अन्वेषण कर दिया। शहीदों के रक्त से सना वह लाल झंडा तभी से सारे संसार के क्रांतिकारियों -मजदूरों और उनके पावन संघर्षों का प्रतीक बन चुका है। आज के युवा , छात्र ,नौजवान और एक्टिविस्ट उस महान शहादत से कितनी ऊर्जा ले रहे हैं ? यह विचारणीय है !
सवा सौ साल से लगातार संसार के तमाम मेहनतकश -मजदूर -कर्मचारी ओर किसान इस एक -मई अंतरार्ष्ट्रीय मजदूर दिवस को एक क्रान्तिकारी अभिव्यक्ति दिवस के रूप में मिलकर मनाते हैं।इस दिन
दुनिया के तमाम मजदूर शिकागो के अमर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित कर अपनी बिरादराना एकता का भी इजहार करते हैं। शोषण -दमन उत्पीड़न तथा राज्य सत्ता की विनाशकारी नीतियों का प्रतिरोध करते हुए विश्व सर्वहारा वर्ग न केवल अमेरिका ,न केवल यूरोप ,न केवल भारत , न केवल अफ्रीका बल्कि सारे संसार को साम्राज्य वादियों के चंगुल से मुक्ति की कामनार्थ आवाज बुलंद करता है। वर्तमान आर्थिक उदारीकरण के दौर में भी दुनिया के मेहनतकश अपने-अपने राष्ट्रों में समता ,न्याय और मानवीयकरण की व्यवस्था के लिए संघर्ष रत हैं। बढ़ती हुई महँगाई ,बेरोजगारी ,निजीकरण ,ठेकाकरण तथा अन्य जन -सरोकारों को लेकर भारत का ट्रेड यूनियन आन्दोलन संगठित संघर्ष के लिए निरंतर सक्रिय है।
भारत में विगत मई-२०१४ को जबसे केंद्र में भाजपा नीत मोदी सरकार सत्ता में आयी है तबसे हर मोर्चे पर देश को संकटों ने घेर रखा है। किसान आत्म हत्याएं ,साम्प्रदायिक हिंसा ,रेप ,घूसखोरी ,भृष्टाचार का चारों और भयानक मंजर है। चौतरफा बदहाली है। इन तथाकथित हिंदुत्वादियों के सत्ता में आते ही इंद्र देव के विनाशकारी तेवरों ने किसानों की फसलें बर्बाद कर डाली है। मोदी सरकार के सत्ता में आते ही अल्पसंख्यक वर्ग अनावश्यक रूप से भयभीत होने लगा है। सरकार के विरोध में लड़ने के बजाय मेहनतकशों में हिन्दू-ईसाई हिन्दू -मुस्लिम भेद पनपने लग गया है। कश्मीर सहित देश के अंदरूनी भागों में आईएसआईएस ,अलकायदा और सिमी उग्रवादियों ने पाक परस्त आतंकी अलगाववादियों से एका करके भारत के खिलाफ छद्म युद्ध छेड़ रखा है। देश में न तो सुशासन है ,न भृष्टाचार कम हुआ और कालेधन का कहीं अता-पता भी नहीं है।इन बदतर हालात में मजदूर -किसान के मुद्दे भी नेपथ्य में चले गए हैं।
भाजपा और मोदी जी की काल्पनिक हिन्दुत्ववादी छवि के बरक्स अल्पसंख्यक कतारों के कुछ नापाक तत्वों ने पूरे भारत को ही अपने हमलों की जद में ले लिया है । इस मई दिवस का सामयिक संदेश यही है कि देश के मजदूरों -किसानों की और नौजवानों की व्यापक एकता से उनके सार्थक क्रान्तिकारी संघर्षों को विकसित किया जाए। साम्प्रदायिकता और जातीयता के संघर्षों को पनपने नहीं दिया जाए। तभी देश की सुरक्षा सम्भव है। देश के मेहनतकश वर्ग को यदि अपने हिस्से की जमीन-जल-जंगल चाहिए ,अपने हिस्से का आसमान चाहिए ,यदि शोषण से मुक्ति चाहिए तो वर्तमान विनाशकारी पूँजीवादी नीतियों के खिलाफ एकजुट संघर्ष करना ही होगा। मेहनतकषवर्ग के समक्ष उनकी व्यापक एकता और संघर्ष के अलावा कोई और विकल्प नहीं। इस दौर में राष्ट्रीय एकता और संप्रभुता की सुरक्षा भी अत्यंत आवश्यक है। इसलिए इस मई दिवस पर भारत के मेहनतकशों को न केवल कार्पोरेट परस्त नीतियों का विरोध करना होगा ,बल्कि उजबक साम्प्रदायिकता से भी लड़ना होगा। देश की सुरक्षा संप्रभुता के लिए भी एकजुट संघर्ष करना होगा।
वर्तमान परिदृश्य में लेफ्ट फ्रंट को छोड़ बाकी सभी राजनीतिक पार्टियों और उनके नेताओं ने मजदूरों की दुर्दशा के बारे में या किसानों की आत्महत्या -दूर्दशा के बारे में केवल मगरमच्छ के आंसू ही बहाये हैं। अधिकंस सत्तारूढ़ नेताओं ने तो राजनैतिक लफ्फाजी का ही इस्तेमाल किया है। इसीलिए भारत के मेहनतकश मजदूर -कर्मचारी -किसान और आवाम के शोषित पीड़ित जन को आज -एक -मई मजदूर दिवस पर सामूहिक संकल्प लेना होगा कि "हम जाति,धर्म,मजहब या क्षेत्रीयता के नागपाश में नहीं बंधेंगे, हम घोषणा करते हैं कि एक शोषण विहीन ,न्यायसंगत बेहतर दुनिया का निर्माण जब तक नहीं हो जाता तब तलक शोषण के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रखेंगे " ! शोषण की समाप्ति तक - एक नए क्रान्तिकारी युग के आगमन तक- देश और दुनिया के 'सर्वहारा' वर्ग का संघर्ष निरंतर जारी रहेगा !!
एक-मई के अमर शहीदों को लाल -सलाम ! शिकागो के अमर शहीदों को लाल सलाम !!
दुनिया के मेहनतकशों -एक हो -एक हो !! पूंजीवाद हो बर्बाद ! साम्राज्यबाद मुर्दाबाद !!
एक -मई अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस -जिंदाबाद !
यदि नंगा -भूँखा इंसान रहेगा,,,,,,,,,, तो धरती पर तूफ़ान रहेगा ,,,,,,,,,!
इंकलाब -जिंदाबाद ! !
:-श्रीराम तिवारी